सौंफ की खेती

आम जानकारी

सौंफ एपियेसी परिवार से संबंधित है। इस वार्षिक फसल का मूल स्थान यूरोप है। इसके बीज सुखाकर मसाले के तौर पर प्रयोग किए जाते हैं। सौंफ फाइबर, विटामिन सी और पोटाश्यिम का मुख्य स्त्रोत है। यह मांस व्यंजन , सूप आदि को स्वादिष्ट बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।  इसकी पत्तियां सलाद  पर गार्निश के लिए भी प्रयोग किया जाता है। सौंफ की औषधिय विशेषताएं भी हैं। इसे पाचन, कब्ज के उपचार, डायरिया, गले का दर्द और सिरदर्द के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी खेती रबी फसल के तौर पर की जाती है। भारत में राज्यस्थान, आंध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा मुख्य सौंफ उत्पादक राज्य है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
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    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C

मिट्टी

वह मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ उच्च मात्रा में हों, सौंफ की खेती के लिए उपयुक्त है। यह सूखी रेतली मिट्टी और बालुई मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। हल्की मिट्टी में सौंफ की खेती करने से परहेज़ करें। मिट्टी की पी एच 6.5 से 8 तक होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Local: इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 150 सैं.मी. होती है। यह फसल बिजाई के बाद 185-190 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल धारियों के साथ लंबे और हरे सलेटी रंग के होते है। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
RF 101:  यह किस्म 155-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Gujrat Fennel 1: यह किस्म 255 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म सूखे को सहनेयोग्य हैं इसकी औसतन पैदावार 6.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RF 35: यह किस्म लंबी और 225 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पत्तों के धब्बा रोग और शूगरी रोग की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 5.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 1:  यह किस्म मध्य लंबी और 220 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी खेती खारी और पानी रोकने वाली ज़मीनों में भी की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावर 3 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

एक अच्छा सीड बैड तैयार करें । हल्की मिट्टी में दो से तीन बार जोताई करें।  तीन से चार बार जोताई भारी मिट्टी के लिए करें। प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
लंबे समय की फसल होने के कारण इसकी बिजाई अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े में पूरी कर लें। अच्छी उपज के लिए देरी से बिजाई करने पर परहेज़ करें।
 
फासला
बारानी हालातों में दो पंक्तियों में फासला 45 सैं.मी. और दो फसलों में 10 सैं.मी. का फासला होना चाहिए।
 
बीज की गहराई
3-4 सैं.मी. की गहराई में बीज बोने चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
सौंफ की बिजाई सीधे तौर पर की जाती है। कुछ क्षेत्रों में इसकी पहले पनीरी लगाई जाती है और बाद में मुख्य खेत में रोपण कर दिया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 4 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
45 Apply if deficiency observed Apply if deficiency observed

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
20 - -

 

खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 4-6 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 20 किलो (यूरिया 45 किलो), दो से तीन बार समान मात्रा में डालें। पहली नाइट्रोजन शुरूआती खुराक के तौर पर डाली जाती है और बाकी की नाइट्रोजन बिजाई के 30 या 60 दिनों के बाद डालें। फासफोरस  की खाद का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें। यदि जांच में कमी आती है तो ही इसका प्रयोग करें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की तीव्रता के अनुसार खेत की एक या दो बार गोडाई करें। नदीनों की रोकथाम के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ में डालें।

सिंचाई

अच्छे अंकुरन के लिए बिजाई से पहले सिंचाई करें। पहली सिंचाई बिजाई के 10-15 दिनों के बाद करें। मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार  15-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल लगने और बीज बनने के समय फसल को पानी की कमी ना होने दें।

पौधे की देखभाल

 चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
 चेपा : यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 30 ई सी 2 मि.ली या मिथाइल डैमेटोन 25 ई सी 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 

 

 पत्तों पर सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम


 पत्तों पर सफेद धब्बे : यदि इसका हमला दिखे तो सलफर 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

किस्म के अनुसार फसल 180 दिनों में (अप्रैल के अंत और मई के अंत में)कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब गुच्छों का रंग हरे से हल्का पीला हो जाता है, तब इसकी कटाई करें। इसकी कटाई गुच्छे तोड़कर की जाती है। उसके बाद इन्हें 1-2 दिन के लिए धूप में सुखाया जाता है और 8-10 दिनों के लिए छांव में रख दिया जाता है।

कटाई के बाद

अच्छी तरह सुखाने के बाद सौंफ के बीजों की सफाई की जाती है। फिर इसकी गुणवत्ता के आधार पर ग्रेडिंग की जाती है। उसके बाद बीजों को जूट के बैग में पैक कर दिया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare