पंजाब में मक्का (रबी) फसल की जानकारी

आम जानकारी

मक्का दूसरे स्तर की फसल है, जो अनाज और चारा दोनों के लिए प्रयोग की जाती है। मक्की को ‘अनाज की रानी’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि बाकी फसलों के मुकाबले इसकी पैदावार सब से ज्यादा है। इससे भोजन पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं जैसे कि स्टार्च, कॉर्न फ्लैक्स और गुलूकोज़ आदि। यह पोल्टरी वाले पशुओं की खुराक के तौर पर भी प्रयोग की जाती है। मक्की की फसल हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है क्योंकि इसे ज्यादा उपजाऊपन और रसायनों की जरूरत नहीं होती । इसके इलावा यह पकने के लिए 3 महीने का समय लेती है जो कि धान की फसल के मुकाबले बहुत कम है, क्योंकि धान की फसल पकने के लिए 145 दिनों का समय लेती है।
 
वाइस चांसलर के अनुसार, मक्की की फसल उगाने से किसान अपनी खराब मिट्टी वाली ज़मीन को भी बचा सकते हैं, क्योंकि यह धान के मुकाबले 90 प्रतिशत पानी और 79 प्रतिशत उपजाऊ शक्ति को बरकरार रखती है। यह गेहूं और धान के मुकाबले ज्यादा फायदे वाली फसल है। इस फसल को कच्चे माल के तौर पर उद्योगिक उत्पादों जैसे कि तेल, स्टार्च, शराब आदि में प्रयोग किया जाता है। मक्की की फसल उगाने वाले मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पंजाब हैं। दक्षिण में आंध्रा प्रदेश और कर्नाटक मुख्य मक्की उत्पादक राज्य हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 30°C
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    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
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    Harvesting Temperature

    30-35°C
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    Temperature

    25°C - 30°C
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    Rainfall

    50-100cm
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    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
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    Harvesting Temperature

    30-35°C
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    Temperature

    25°C - 30°C
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    Rainfall

    50-100cm
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    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

मक्की की फसल लगाने के लिए उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली, मैरा और लाल मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की उचित मात्रा हो, जरूरी है। मक्की रेतली से लेकर भारी हर तरह की ज़मीनों में उगाई जा सकती हैं समतल ज़मीनें मक्की के लिए बहुत अनुकूल हैं, पर कईं पहाड़ी इलाकों में भी यह फसल उगाई जाती है। अधिक पैदावार लेने के लिए मिट्टी में जैविक तत्वों की अधिक मात्रा पी एच 5.5-7.5 और अधिक पानी रोककर रखने में सक्षम होनी चाहिए। बहुत ज्यादा भारी ज़मीनें भी इस फसल के लिए अच्छी नहीं मानी जाती।

खुराकी तत्वों की कमी पता करने के लिए मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

PMH 1: यह किस्म पंजाब के सिंचित क्षेत्रों में खरीफ, बसंत और गर्मी के मौसम में बोयी जा सकती है। यह लंबे समय वाली फसल है जो 95 दिनों में पकती है। इसका तना मजबूत और जामुनी रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 21 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prabhat: यह लंबे समय की किस्म है जो कि पंजाब के सिंचित क्षेत्रों में खरीफ, बसंत और गर्मी के मौसम में बोयी जा सकती है। यह दरमियाने लंबे कद, मोटे तने और कम गिरने वाली किस्म है। यह पकने के लिए 95 दिनों का समय लेती है। इसकी पैदावर 17.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Kesri: यह दरमियाने समय की किस्म है जो कि पकने के लिए 85 दिनों का समय लेती है। इसके दाने केसरी रंग के होते हैं। और इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
PMH-2:  यह कम समय वाली किस्म है और यह पकने के लिए 83 दिनों का समय लेती है। यह सिंचित और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। यह हाइब्रिड किस्म सूखे को सहनेयोग्य है। इसके बाबू झंडे दरमियाने आकार के और दाने संतरी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 16.6 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
JH 3459: यह दरमियाने समय की किस्म है जो कि पकने के लिए 84 दिनों का समय लेती है। यह सोके को सहनेयोग्य और कम गिरने वाली किस्म है। इसके दाने संतरी रंग के और औसतन पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Prakash: यह सूखे को सेहनेयोग्य और जल्दी बढ़ने वाली 82 दिन की किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 15-17 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Megha: यह कम समय वाली किस्म है जो कि पकने के लिए 82 दिनों का समय लेती है। इसके दाने पीले और संतरी रंग के होते हैं और औसतन पैदावार 12 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Punjab sathi 1: यह कम समय की गर्मी के मौसम वाली किस्म है जो कि पकने के लिए 70 दिनों का समय लेती है। यह गर्मी को सहनेयोग्य है और इसकी औसतन पैदावार 9 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Pearl Popcorn: यह किस्म पंजाब के सारे सिंचित क्षेत्रों में उगाने के योग्य है। यह पॉप कार्न बनाने की कंपोज़िट किस्म है। यह दरमियाने आकार की किस्म है और इसकी छल्लियां लंबी, पतली और दाने छोटे और गोल होते हैं जो कि 88 दिनों में पकती है। इसकी औसतन पैदावार 12 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Punjab sweet corn: यह किस्म व्यापारिक स्तर पर बेचने के लिए अनुकूल है क्योंकि इसके कच्चे दानों में बहुत मिठास होती है। यह पकने के लिए 95-100 दिनों का समय लेती है और इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
FH-3211: यह किस्म विवेकानंद पार्वती कृषि अनुसंधान संस्था, अलमोरा द्वारा बनाई गई है और इसकी पैदावार 2643 किलो प्रति एकड़ है।
 
JH-10655: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी लुधियाणा द्वारा बनाई गई है। यह बहुत सारी मुख्य बीमारियों को सहनेयोग्य है और इसकी औसतन पैदावार 2697 किलो प्रति एकड़ है।
 
HQPM-1 Hybrid: यह किस्म हरियाणा खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है। इसकी औसतन पैदावार 2514 किलो प्रति एकड़ है। यह किस्म झुलस रोगों को सहनेयोग्य है।
 
J 1006: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा 1992 में बनाई गई थी। यह किस्म झुलस रोग, भूरी जालेदार फफूंदी और मक्की के कीट के प्रतिरोधक है।
 
Pratap Makka Chari 6: यह किस्म एम.पी.यू.ए.एंड टी. उदेपुर द्वारा बनाई गई है। यह एक दरमियाने कद की किस्म है। जिसका तना सख्त,  मोटा और कम गिरने वाला है। यह किस्म पकने के लिए 90-95 दिनों का समय लेती है। इसके हरे चारे की औसतन पैदावार 187-200 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
प्राइवेट कंपनियों की किस्में
 
पाइनीयर 39 वी 92 और 30 आर 77, प्रो एंगरो 4640, मोनसैंटो हाईए सेल और डबल, श्री राम जैनेटिक कैमीकल लिमिटेड बायो 9690 और राजकुमार, कंचन सीड, पोलो, हाइब्रिड कॉर्न और कै एच 121, माहीको एम पी एम 3838, जुआरी सी 1415, गंगा कावेरी जी के 3017, जी के 3057, सिनजैंटा इंडिया लिमिटेड एन के 6240
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
PEEHM 5: यह ज्यादा तापमान को सहनेयोग्य किस्म है। इसे पंजाब,  हरियाणा,  दिल्ली और उत्तर प्रदेश में उगाया जा सकता है इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PC 1: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह बहुत सारे झुलस और धब्बे वाले रोगों की रोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PC 2: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह बहुत सारे झुलस और धब्बे वाले रोगों की रोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PC 3: यह जल्दी और दरमियाने समय में पकने वाली किस्म है। यह तना छेदक को सहनेयोग्य किस्म है। यह  कम गिरने वाली और नमी के दबाव की प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PC 4: यह जल्दी और दरमियाने समय में पकने वाली किस्म है। यह तना छेदक को सहनेयोग्य किस्म है। यह  कम गिरने वाली और नमी के दबाव की प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
 
 
 
 

 

ज़मीन की तैयारी

फसल के लिए प्रयोग किया जाने वाला खेत नदीनों और पिछली फसल से मुक्त होना चाहिए। मिट्टी को नर्म करने के लिए 6 से 7 बार जोताई करें। खेत में 4-6 टन प्रति एकड़ रूड़ी की खाद और 10 पैकेट एज़ोसपीरीलम के डालें। खेत में 45-50 सैं.मी. के फासले पर खाल और मेंड़ बनाएं।

बिजाई

बिजाई का समय
खरीफ की ऋतु में यह फसल मई के आखिर से जून में मानसून आने पर बोयी जाती है। बसंत ऋतु की फसल अंत फरवरी से अंत मार्च तक बोयी जाती है। बेबी कॉर्न दिसंबर-जनवरी को छोड़कर बाकी सारा साल बोयी जा सकती है। रबी और खरीफ की ऋतु स्वीट कॉर्न के लिए सब से अच्छी होती है।
 
फासला
अधिक पैदावार लेने के लिए स्त्रोतों का सही प्रयोग और पौधों में सही फासला होना जरूरी है।
1.खरीफ की मक्की के लिए:- 62X20 सैं.मी.
2.स्वीट कॉर्न :- 60X20 सैं.मी.
3.बेबी कॉर्न :- 60X20 सैं.मी. या 60X15 सैं.मी.
4.पॉप कॉर्न:- 50X15 सैं.मी.
5.चारा:- 30X10 सैं.मी.
 
बीज की गहराई 
बीजों को 3-4 सैं.मी. गहराई में बीजें। स्वीट कॉर्न की बिजाई 2.5 सैं.मी. गहराई में करें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई हाथों से गड्ढा खोदकर या आधुनिक तरीके से ट्रैक्टर और सीड डरिल की सहायता से मेंड़ बनाकर की जा सकती है।
 

 

बीज

बीज की मात्रा
बीज का मकसद, बीज का आकार, मौसम, पौधे की किस्म, बिजाई का तरीका आदि बीज की दर को प्रभावित करते हैं।
1.खरीफ की मक्की के लिए:- 8-10 किलो प्रति एकड़
2.स्वीट कॉर्न:- 8 किलो प्रति एकड़
3.बेबी कॉर्न:- 16 किलो प्रति एकड़
4.पॉप कॉर्न:- 7 किलो प्रति एकड़
5.चारा:- 20 किलो प्रति एकड़
 
मिश्रित खेती: मटर और मक्की की फसल को मिलाकर खेती की जा सकती है। इसके लिए मक्की के साथ एक पंक्ति मटर लगाएं। पतझड़ के मौसम में मक्की को गन्ने के साथ भी उगाया जा सकता है। गन्ने की दो पंक्तियों के बाद एक पंक्ति मक्की की लगाएं।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी की बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए बीज का उपचार करें। सफेद जंग से बीजों को बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम या थीरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को अज़ोसपीरीलम 600 ग्राम + चावलों के चूरे के साथ उपचार करें। उपचार के बाद बीज को 15-20 मिनटों के लिए छांव में सुखाएं। अज़ोसपीरिलम मिट्टी में नाइट्रोजन को बांधकर रखने में मदद करता है।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी का प्रयोग करें:
फंगसनाशी का नाम मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Imidacloprid 70WS 5ml
Captan 2.5gm
Carbendazim + Captan (1:1) 2gm
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA      DAP or SSP MURIATE OF POTASH ZINC
75-110 27-55 75-150 15-20 8

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
35-50 12-24 8-12

 

(मिट्टी की जांच के मुताबिक ही खाद डालें) सुपर फासफेट 75-150 किलो, यूरिया 75-110 किलो और पोटाश 15-20 किलो (यदि मिट्टी में कमी दिखे) प्रति एकड़ डालें। एस. एस. पी और एम. ओ. पी की पूरी मात्रा और यूरिया का तीसरा हिस्सा बिजाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन पौधों के घुटनों तक होने और गुच्छे बनने से पहले डालें।
 
मक्की की फसल में जिंक और मैग्नीश्यिम की कमी आम देखने को मिलती है और इस कमी को पूरा करने के लिए जिंक सलफेट 8 किलो प्रति एकड़ बुनियादी खुराक के तौर पर डालें। जिंक और मैग्नीशियम के साथ साथ लोहे की कमी भी देखने को मिलती है जिससे सारा पौधा पीला पड़ जाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए 25 किलो प्रति एकड़ सूक्ष्म तत्वों को 25 किलो रेत में मिलाकर बिजाई के बाद डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खरीफ ऋतु की मक्की में नदीन बड़ी समस्या होते हैं, जो कि खुराकी तत्व लेने में फसल से मुकाबला करते हैं और 35 प्रतिशत तक पैदावार कम कर देते हैं इसलिए अधिक पैदावार लेने के लिए नदीनों का हल करना जरूरी है। मक्की की कम से कम दो गोडाई करें। पहली गोडाई बिजाई से 20-25 दिन बाद और दूसरी गोडाई 40-45 दिनों के बाद, पर ज्यादा होने की सूरत में एट्राज़िन 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी से स्प्रे करें। गोडाई करने के बाद मिट्टी के ऊपर खाद की पतली परत बिछा दें और जड़ों में मिट्टी लगाएं।

सिंचाई

बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। मिट्टी की किस्म के आधार पर तीसरे या चौथे दिन दोबारा पानी लगाएं। यदि बारिश पड़ जाये तो सिंचाई ना करें। छोटी फसल में पानी ना खड़ने  दें और अच्छे जल निकास का प्रबंध करें। फसल को बीजने से 20-30 दिन तक कम पानी दें और बाद में सप्ताह में एक बार सिंचाई करें। जब पौधे घुटने के कद के हो जायें तो फूल निकलने के समय और दाने बनने के समय सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है। यदि इस समय पानी की कमी हो तो पैदावार बहुत कम हो जाती है। यदि पानी की कमी हो तो एक मेंड़ छोड़कर पानी दें। इससे पानी भी बचता है।

पौधे की देखभाल

तने का गलना
  • बीमारियां और रोकथाम
तने का गलना इससे तना ज़मीन के साथ फूल कर भूरे रंग का जल्दी टूटने वाला और गंदी बास मारने वाला लगता है।
 
इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना होने दें और जल निकास की तरफ ध्यान दें। इसके इलावा फसल के फूल निकलने से पहले ब्लीचिंग पाउडर 33 प्रतिशत कलोरीन 2-3 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में डालें।
 
टी एल बी
टी एल बी: यह बीमारी उत्तरी भारत, उत्तर पूर्वी पहाड़ियों और प्रायद्विपीय क्षेत्र में ज्यादा आती है और एक्सरोहाइलम टरसीकम द्वारा फैलती है। यदि यह बीमारी सूत कातने के समय आ जाए तो आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। शुरू में पत्तों के ऊपर छोटे फूले हुए धब्बे दिखाई देते हैं और नीचे के पत्तों को पहले नुकसान होता है और बाद में सारा बूटा जला हुआ दिखाई देता है। यदि इसे सही समय पर ना रोका जाये तो यह 70  प्रतिशत तक पैदावार कम कर सकता है।
 
इसे रोकने के लिए बीमारी के शुरूआती समय में मैनकोज़ेब या ज़िनेब 2-4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
 
पत्ता झुलस रोग
पत्ता झुलस रोग: यह बीमारी गर्म ऊष्ण, उप ऊष्ण से लेकर ठंडे शीतवण वातावरण में आती है और बाइपोलैरिस मैडिस द्वारा की जाती है। शुरू में जख्म छोटे और हीरे के आकार के होते हैं और बाद में लंबे हो जाते हैं। जख्म आपस में मिलकर पूरे पत्ते को जला सकते हैं।
डाइथेन एम-45 या ज़िनेब 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के फासले पर 2-4 स्प्रे करने से इस बीमारी को शुरूआती समय में ही रोका जा सकता है।
 
पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे
पत्तों के नीचे भूरे रंग के धब्बे इस बीमारी की धारियां नीचे के पत्तों से शुरू होती हैं। यह पीले रंग की और 3-7 मि.मी. चौड़ी होती हैं। जो पत्तों की नाड़ियों तक पहुंच जाती हैं। यह बाद में लाल और जामुनी रंग की हो जाती हैं। धारियों के और बढ़ने से पत्तों के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बीज को मैटालैक्सिल 6 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सिल 1 ग्राम  या  मैटालैक्सिल+मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

 

फूलों के बाद टांडों का गलना
फूलों के बाद टांडों का गलना: यह एक बहुत ही नुकसानदायक बीमारी है जो कि बहुत सारे रोगाणुओं के द्वारा इकट्ठे मिलकर की जाती है। यह जड़ों, शिखरों और तनों के उस हिस्से पर जहां दो गांठे मिलती हैं, पर नुकसान करती है।
 
इस बीमारी के ज्यादा आने की सूरत में पोटाशियम खाद का प्रयोग कम करें। फसलों को बदल बदल कर लगाएं और फूलों के खिलने के समय पानी की कमी ना होने दें। खालियों में टराइकोडरमा 10 ग्राम प्रति किलो रूड़ी की खाद में बिजाई के 10 दिन पहले डालें।
 
पाइथीयम तना गलन
पाइथीयम तना गलन : इससे पौधे की निचली गांठें नर्म और भूरी हो जाती हैं और पौधा गिर जाता है। प्रभावित हुई गांठे मुड़ जाती हैं।
बिजाई से पहले पिछली फसल के बचे कुचे को नष्ट करके खेत को साफ करें। पौधों की सही संख्या रखें और मिट्टी में कप्तान 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर गांठों के साथ डालें।
तना छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तना छेदक: चिलो पार्टीलस, यह कीट सारी मॉनसून ऋतु में मौजूद रहता है। यह कीट पूरे देश में खतरनाक माना जाता है। यह कीट पौधे उगने से 10-25 रातों के बाद पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है। कीट गोभ में दाखिल होकर पत्तों को नष्ट करता है और गोली के निशान बना देता है। यह कीट पीले भूरे रंग का होता है, जिसका सिर भूरे रंग का होता है। टराईकोग्रामा के साथ परजीवी क्रिया करके 1,00,000 अंडे प्रति एकड़ एक सप्ताह के फासले पर तीन बार छोड़ने से इस कीट को रोका जा सकता है। तीसरी बार कोटेशिया फलैवाईपस 2000 प्रति एकड़ से छोड़ें।
 
फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 4 किलो या कार्बरिल 4 प्रतिशत जी 1 किलो को रेत में मिलाकर 10 किलो मात्रा में पत्ते की गोभ में बिजाई के 20 दिन बाद डालें या कीटनाशक कार्बरिल 50 डब्लयु पी 1 किलो प्रति एकड़ बिजाई के 20 दिन बाद या डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। कलोरपाइरीफॉस 1-1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे पौधे उगने के 10-12 दिनों के बाद स्प्रे करने से भी कीड़ों को रोका जा सकता है।
 
गुलाबी छेदक
गुलाबी छेदक: यह कीट भारत के प्रायद्विपीय क्षेत्र में सर्दी ऋतु में नुकसान करता है। यह कीट मक्की की जड़ों को छोड़कर बाकी सभी हिस्सों को प्रभावित करता है। यह पौधे के तने पर गोल और एस नाप की गोलियां बनाकर उन्हें मल से भर देता है और सतह पर छेद कर देता है। ज्यादा नुकसान होने पर तना टूट भी जाता है।
 
इसे रोकने के लिए कार्बोफ्यूरॉन 5 प्रतिशत डब्लयु/डब्लयु 2.5 ग्राम  से  प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसके इलावा अंकुरन से 10 दिन बाद  4 टराइकोकार्ड प्रति एकड़ डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है। रोशनी और फीरोमोन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
 
कॉर्न वार्म
कॉर्न वार्म: यह सुंडी रेशों और दानों को खाती है। सुंडी का रंग हरे से भूरा हो सकता है। सुंडी के शरीर पर गहरी भूरे रंग की धारियां होती हैं, जो आगे चलकर सफेद हो जाती हैं।
 
एक एकड़ में 5 फीरोमोन पिंजरे लगाएं। इसे रोकने के लिए इसे रोकने के लिए कार्बरिल 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे छोटे गुच्छे निकलने से तीसरे और अठारवें दिन करें।
 
शाख का कीट
शाख का कीट: यह कीट पत्ते के अंदर अंडे देता है जो कि शाख् के साथ ढके हुए होते हैं। इससे पौधा  बीमार और पीला पड़ जाता है। पत्ते शिखर से नीचे की ओर सूखते हैं और बीच वाली नाड़ी अंडों के कारण लाल रंग की हो जाती है और सूख जाती है।
इसे रोकने के लिए डाईमैथोएट 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

 

दीमक
दीमक: यह कीट बहुत नुकसानदायक है और मक्की वाले सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसे रोकने के लिए फिप्रोनिल 8  किलो प्रति एकड़ डालें और हल्की सिंचाई करें।
 
यदि दीमक का हमला अलग अलग हिस्सों में हो तो फिप्रोनिल के 2-3 किलो दाने प्रति पौधा डालें, खेत को साफ सुथरा रखें।
 
शाख की मक्खी
शाख की मक्खी: यह दक्षिण भारत की मुख्य मक्खी है और कईं बार गर्मी और बसंत ऋतु में उत्तरी भारत में भी पाई जाती है। यह छोटे पौधों पर हमला करती है और उन्हें सूखा देती है।
 
इसे रोकने के लिए कटाई के बाद खेत की जोताई करें और पिछली फसल के बचे कुचे को साफ करें। बीज को इमीडाक्लोप्रिड 6  मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे मक्खी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 5 किलो प्रति एकड़ डालें। इसके इलावा डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 300 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी 450 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
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कमी और इसका इलाज

जिंक की कमी: यह ज्यादातर अधिक पैदावार वाली किस्मों का प्रयोग करने वाले इलाकों में पाई जाती है। इससे पौधे के शिखर से हर ओर दूसरे या तीसरे पत्ते की नाड़ियां सफेद पीले और लाल रंग की दिखती हैं।
जिंक की कमी को रोकने के लिए बिजाई के समय जिंक सल्फेट 10 किलो प्रति एकड़ डालें। यदि खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखे तो जिंक सल्फेट और सूखी मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर पंक्तियों में डालें।
 
मैग्नीश्यिम की कमी: यह मक्की की फसल में आम पाई जाती है। यह ज्यादातर पत्तों पर देखी जा सकती है। निचले पत्ते किनारे और नाड़ियों के बीच में पीले दिखाई देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मैगनीशियम सल्फेट 1 किलो की प्रति एकड़ में फोलियर स्प्रे करें।
 
लोहे की कमी: इस कमी से पूरा पौधा पीला दिखाई देता है। इस कमी को रोकने के लिए सूक्ष्म तत्व 25 किलो प्रति एकड़ को 18 किलो प्रति एकड़ रेत में मिलाकर बिजाई के बाद डालें।
 

फसल की कटाई

छल्लियों के बाहरले पर्दे हरे से सफेद रंग के होने पर फसल की कटाई करें। तने के सूखने और दानों में पानी की मात्रा 17-20 प्रतिशत होने की सूरत में कटाई करना इसके लिए अनुकूल समय है। प्रयोग की जाने वाली जगह और यंत्र साफ, सूखे और रोगाणुओं से मुक्त होने चाहिए।
 
स्वीट कॉर्न की कटाई: जब फसल पकने वाली हो जाये, रोज़ कुछ बालियों की जांच करें, ताकि कटाई का सही समय पता किया जा सके। भुट्टा के पूरे आकार में आने और रेशे के सूखने से  कटाई दानों को तोड़ने पर उनमें से दूध निकलता है। कटाई में देरी होने से मिठास कम हो जाती है। कटाई हाथों और मशीनों से रात के समय और सुबह करनी चाहिए।
 
बेबी कॉर्न : छल्लियों के निकलने के 45-50 दिनों के बाद जब रेशे 1-2 सैं.मी. के होने पर कटाई करें। कटाई सुबह के समय करें जब तापमान कम और नमी ज्यादा हो । इसकी तुड़ाई प्रत्येक 3 दिनों के बाद करें और किस्म के अनुसार 7-8 तुड़ाई करें।
 
पॉप कॉर्न: छल्लियों को ज्यादा से ज्यादा समय के लिए पौधों के ऊपर ही रहने दें। यदि हो सके तो छिल्के के सूखने पर ही कटाई करें।
 

कटाई के बाद

स्वीट कॉर्न को जल्दी से जल्दी खेत में से पैकिंग वाली जगह पर लेके जायें ताकि उसे आकार के हिसाब से अलग, पैक और ठंडा किया जा सके इसे आमतौर पर लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता है, जिनमें 4-6 दर्जन छल्लियां बक्से और छल्लियों के आकार के आधार पर समा सकती हैं।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare