खीरे की फसल की बिजाई

आम जानकारी

खीरे का वानस्पतिक नाम कुकुमिस स्टीव्स है| खीरे का मूल स्थान भारत है| यह एक बेल की तरह लटकने वाला पौधा है जिसका प्रयोग सारे भारत में गर्मियों में सब्ज़ी के रूप में किया जाता हैं| खीरे के फल को कच्चा, सलाद या सब्जियों के रूप में प्रयोग किया जाता है| खीरे के बीजों का प्रयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है जो शरीर और दिमाग के लिए बहुत बढ़िया है| खीरे में 96% पानी होता हैं, जो गर्मी के मौसम में अच्छा होता है| इस पौधे का आकार बड़ा, पत्ते बालों वाले और त्रिकोणीय आकार के होते है और इसके फूल पीले रंग के होते हैं| खीरा एम बी (मोलिब्डेनम) और विटामिन का अच्छा स्त्रोत है| खीरे का प्रयोग त्वचा, किडनी और दिल की समस्याओं के इलाज और अल्कालाइज़र के रूप में किया जाता है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    120-150mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    120-150mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-30°C
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    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    120-150mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

इसको मिट्टी की अलग-अलग किस्मे जैसे की रेतली दोमट से भारी मिट्टी में उगाया जा सकता हैं| खीरे की फसल के लिए दोमट मिट्टी में, जिसमे जैविक तत्वों की उच्च मात्रा हो और पानी का अच्छा निकास हो, उचित पैदावार देती है| खीरे की खेती के लिए मिट्टी का pH 6-7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Kheera - 1 (2018): यह किस्म केवल ग्रीनहाउस (polynet houses) के लिए अनुकूल है। इस किस्म का पौधा जल्दी बढ़ने वाला होता है प्रति नोड 1-2 फल पैदा करता है। फूल पार्थेनोकार्पिक होते हैं और फल गहरे हरे, बीज रहित, स्वाद कम कड़वा, मध्यम आकार (125 ग्राम), 13-15 सेंटीमीटर लंबे होते हैं, और इन्हें छीलने की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी तुड़ाई सितंबर और जनवरी महीने में फसल बोने से 45-60 दिनों के बाद की जा सकती है। सितंबर महीने में बोयी फसल की औसतन पैदावार 304 क्विंटल प्रति एकड़ और जनवरी महीने में बोयी फसल की उपज 370 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Punjab Naveen (2008): इस किस्म की सतह खुरदरी होने के कारण पौधों की गहरे हरे रंग की पत्तियाँ होती हैं। जब फल पकने के स्तर पर पहुंच जाता है तब फल नर्म सतह के साथ आकार में बेलनाकार और फीके हरे रंग होते हैं और साथ ही फल कुरकुरे, कड़वेपन रहित और बीज रहित होते है। इसमें विटामिन सी की उच्च मात्रा पायी जाती है और सूखे पदार्थ की मात्रा ज्यादा होती है। यह किस्म 68 दिनों में पक जाती है। इसके फल स्वादिष्ट, रंग और रूप आकर्षित, आकार और बनावट बढिया होती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

अन्य राज्य की किस्में

Pusa Uday: यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आई.ऐ.आर.आई) के द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म के फलों का रंग फीका हरा, दरमियाना आकार और लंबाई 15 सैं.मी. होती हैं। एक एकड़ ज़मीन में 1.45 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें। यह किस्म 50-55 दिनों में पक जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं।

Pusa Barkha: यह किस्म खरीफ के मौसम के लिए तैयार की गई हैं। यह उच्च मात्रा वाली नमी, तापमान और पत्तों के धब्बे रोग को सहन कर सकती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 78 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

ज़मीन की तैयारी

खीरे की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार और नदीन रहित खेत की जरूरत होती है| मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए, बिजाई से पहले 3-4 बार खेत की जोताई करें| रूड़ी की खाद, जैसे गाये के गोबर को मिट्टी में मिलाये, ताकि खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाये| फिर 2.5 मीटर चौड़े और 60 सैं.मी. के फासले पर नर्सरी बैड तैयार करें|

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई फरवरी-मार्च के महीने में की जाती है|

फासला
2.5 मीटर चौड़े बैड पर हर जगह दो बीज बोयें और बीजों के बीच 60 सैं.मी. का फासला होना चाहिए|

बीज की गहराई
बीज को 2-3 सैं.मी. गहराई पर  बोयें|

बिजाई का ढंग

  • छोटी सुरंगी विधि: इस विधि का प्रयोग खीरे की जल्दी पैदावार लेने के लिए किया जाता है| यह विधि फसल को दिसंबर और जनवरी की ठंड से बचाती है| दिसंबर के महीने में 2.5 मीटर चौड़े बैडों पर बिजाई की जाती है| बीजों को बैड के दोनों तरफ 45 सैं.मी. के फासले पर बोयें| बिजाई से पहले, 45-60 सैं.मी. लम्बे और सहायक डंडों को मिट्टी में गाढ़े| खेत को प्लास्टिक की शीट (100 गेज़ मोटाई वाली) को डंडों की सहायता से ढक दें| फरवरी महीने में तापमान सही होने पर प्लास्टिक शीट को हटा दें|
  • गड्ढे खोद कर बिजाई करना
  • खालियां बनाकर बिजाई करना
  • गोलाकार गड्ढे खोद कर बिजाई करना

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए 1.0 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी हैं|

बीज का उपचार
बिजाई से पहले, फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए और जीवनकाल बढ़ाने के लिए, अनुकूल रासायनिक के साथ उपचार करें| बिजाई से पहले बीजों का 2 ग्राम कप्तान के साथ उपचार करें|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
90 125 35

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 20 20

 

खेत की तैयारी के समय, नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल फास्फेट 125 किलो) और पोटाशियम 20 किलो (मिउरेट ऑफ़ पोटाश 35 किलो) शुरुआत में खाद के रूप में डालें| बिजाई के समय, नाइट्रोजन का 1/3 हिस्सा और पोटाशियम और सिंगल सुपर फास्फेट डालें| नाड़ी की शुरूआती अवस्था, जोकि बिजाई से एक महीना बाद होती है, के समय बची हुई खाद डालें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को हाथ से गोडाई करके या रासायनों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। ग्लाइफोसेट की स्प्रे सिर्फ नदीनों पर ही करें, मुख्य फसल पर ना करें। 

सिंचाई

गर्मी के मौसम में इसको बार-बार सिंचाई की जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है| इसको कुल 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं| बिजाई से पहले एक सिंचाई जरूरी होती है, इसके बाद 2-3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें| दूसरी बिजाई के बाद, 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें|

पौधे की देखभाल

एन्थ्राक्नोस(फल का गलना )
  • बीमारियां और रोकथाम

एन्थ्राक्नोस(फल का गलना ): यह बीमारी खीरे के लगभग सारे हिस्सों पर हमला करती है, जो ज़मीन से ऊपर होते हैं| पुराने पत्तों पर पीले रंग के धब्बे और फलों पर गहरे गोल धब्बे दिखाई देते हैं|
रोकथाम: फसल को इस बीमारी से बचाने के लिए फंगसनाशी क्लोरोथैलोनिल और बेनोमाइल डालें|

मुरझाना

मुरझाना: यह बीमारी इर्विनिया ट्रेकईफिला के कारण होती है| यह पौधे नाड़ी टिशुओं को प्रभावित करती है, जिस कारण पौधा सूख जाता है|
रोकथाम: इस बीमारी की रोकथाम के लिए पत्तों पर कीटनाशक की स्प्रे करें|

पत्तों के सफेद धब्बे

पत्तों के सफेद धब्बे: पत्तों के ऊपर की तरफ सफेद पाउडर वाले धब्बे दिखाई देना, इस बीमारी के लक्षण है, जिसके कारण पत्ते सूखने लग जाते हैं|
रोकथाम: इस बीमारी की रोकथाम के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 1 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें| इसको क्लोरोथैलोनिल, बैनोमाइल या डिनोकैप जैसी फंगसनाशी स्प्रे द्वारा रोका जा सकता हैं

चितकबरा रोग

चितकबरा रोग: पौधों का विकास रुक जाना, पत्ते मुरझाना और फल के निचले हिस्से का पीला दिखाई देना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं|
रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए डियाज़ीनॉन डाली जाती हैं| इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% ऐस एल 7 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिला कर प्रयोग करें|

फल की मक्खी
  • कीटों की रोकथाम

फल की मक्खी: यह खीरे की फसल में पाये जाने वाला गंभीर कीट हैं| मादा मक्खियां नए फल की परत के नीचे की ओर अंडे देती हैं| फिर यह फल के गुद्दे को भोजन बनाते हैं, जिस कारण फल गलना शुरू हो जाता है और फिर टूट कर नीचे गिर जाता है|
रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए 3.0% पत्तों पर नीम के तेल की स्प्रे करें

फसल की कटाई

बिजाई से 45-50 दिनों बाद पौधे पैदावार देनी शुरू कर देते हैं| इसकी 10-12 तुड़ाइयां की जा सकती हैं| खीरे की कटाई मुख्य तौर पर बीज के नर्म होने और फल हरे और छोटे होने पर करें| कटाई के लिए तेज़ चाकू या किसी और नुकीली चीज़ का प्रयोग करें| इसकी औसतन पैदावार 33-42 क्विंटल प्रति एकड़ होता हैं|

बीज उत्पादन

भूरे रंग के फल बीज उत्पादन के लिए सबसे बढ़िया माने जाते है| बीज निकालने के लिए, फलों के गुद्दे को  1-2 दिनों के लिए ताज़े पानी में रखा जाता हैं, ताकि बीजों को आसानी से अलग किया जा सके| फिर इनको हाथों से रगड़ा जाता है और भारी बीज पानी में नीचे बैठ जाते हैं और इनको कई और कार्यो के लिए रखा जाता हैं|