शहतूत का फल

आम जानकारी

शहतूत को बानस्पतिक रूप में मोरस अल्बा के नाम से जाना जाता है। शहतूत के पत्तों का प्राथमिक उपयोग रेशम के कीट के तौर पर की जाती है। शहतूत से काफी औषधीय जैसे कि रक्त टॉनिक, चक्कर आना, कब्ज, टिनिटस के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे फल जूस बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है जो कि कोरिया, जापान और चीन में काफी प्रसिद्ध है। यह एक सदाबहार वृक्ष होता है जिसकी औसतन ऊंचाई 40-60 फीट होती है। इसके फूलों के साथ-साथ ही जामुनी-काले रंग के फल होते है| भारत में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटका, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू मुख्य शहतूत उगने के मुख्य राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    24-28°C
  • Season

    Rainfall

    600-2500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-45°C
  • Season

    Temperature

    24-28°C
  • Season

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    600-2500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
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    Harvesting Temperature

    35-45°C
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    24-28°C
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    600-2500mm
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    Sowing Temperature

    35-40°C
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    Harvesting Temperature

    35-45°C
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    24-28°C
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    600-2500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-45°C

मिट्टी

यह मिट्टी की कई किस्मों जैसे दोमट से चिकनी, घनी उपजाऊ से समतल मिट्टी, जिसका निकास प्रबंध बढ़िया हो और अच्छे जल निकास वाली और जिसमें पानी सोखने की क्षमता ज्यादा हो, में उगाया जाता है। इसके बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का pH 6.2-6.8 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

S-36: इसको पत्तों का आकार दिल के जैसा, मोटा और हल्के हरे रंग का होता हैं। इसकी औसतन पैदावार 15,000-18,000 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। पत्तों में उच्च नमी और पोषक तत्व मौजूद होते हैं।

V-1: यह किस्म 1997 में तैयार की गई थी। इसके पत्ते गहरे हरे रंग कर अंडाकार और चौड़े होते है| इसकी औसतन पैदावार 20,000-24,000 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है।

ज़मीन की तैयारी

शहतूत की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार मिट्टी कि आवश्यकता होती है| नदीन और रोड़ियों को खेत में से पहले बाहर निकाल दें और भूमि को समतल करने के लिए खेत की अच्छी तरह से जोताई करें|

बिजाई

बिजाई का समय
शहतूत की बिजाई आम तौर पर जुलाई अगस्त के महीने में की जाती है। इसकी बिजाई के लिए जून जुलाई के महीने में बढ़िया ढंग से नर्सरी तैयार करें|

फासला
पौधों के बीच का फासला 90 सैं.मी. x 90 सैं.मी. रखें|

बीज की गहराई

गड्ढे में 90 सैं.मी. की गहराई पर बिजाई करनी चाहिए।

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ के लिए 4 किलो बीजों का प्रयोग करें।

बीज का उपचार
सबसे पहले बीजों को 90 दिनों के लिए ठंडी जगह पर स्टोर करें| फिर बीजों को 90 दिनों के बाद 4 दिन के लिए पानी में भिगो दें और 2 दिन के बाद पानी बदल दें। उसके बाद बीजों को पेपर टॉवल में रख दें, ताकि उनमें नमी बनी रहे। जब बीज अंकुरन होना शुरू हो जाएं तो बीजों को नर्सरी बैड में बो दें।

खाद

8 मिलियन टनप्रति साल रूड़ी कि खाद दो बराबर हिस्सों में डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं| रूड़ी कि खाद के साथ-साथ V-1 किस्म के लिए नाइट्रोजन 145 किलो, फासफोरस 100 और पोटाशियम 62 किलो प्रति एकड़ प्रत्येक साल, जबकि S-36 किस्म के लिए नाइट्रोजन 125 किलो, फासफोरस 50 और पोटाशियम 50 किलो प्रति एकड़ प्रत्येक साल डालें|

खरपतवार नियंत्रण

फसल की अच्छी वृद्धि और अधिक पैदावार के लिए फसल के शुरूआती समय में खेत को नदीन मुक्त रखें| पहले छ: महीनों में 3 बार गोडाई करें और कांट-छांट करने के बाद हर दो महीने के अंतराल पर गोडाई करें और फिर उसके बाद 2-3 महीने के अंतराल गोडाई करें|

सिंचाई

हर एक सप्ताह में 80-120 मि.मी. सिंचाई करें। जिस क्षेत्र में पानी की कमी हो वहां ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करें। ड्रिप सिंचाई 40 % पानी की बचत होती है|

पौधे की देखभाल

पत्तों के निचले धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों पर सफेद धब्बे: यह बीमारी फाइलैकटीनियाकोरिली के कारण होती है। इससे पत्तों के निचले भाग पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देना, इसके मुख्य लक्षण है| कुछ समय बाद यह धब्बे बढ़ जाते है और पीले रंग के हो जाते हैं और पत्ते पकने से पहले ही गिरने लग जाते हैं।

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए पौधे के नीचे वाले भाग पर सलफैक्स 80 डब्लयु पी (2 ग्राम प्रति लीटर) 0.2% मिट्टी में डालें और पत्तों पर भी स्प्रे करें|

पत्तों की कुंगी

पत्तों की कुंगी: यह बीमारी पैरीडियोसपोरामोरी के कारण होती है। इससे पत्तों के निचले भाग पर भूरे दाने और ऊपरी सतह पर लाल भूरे रंग के धब्बे इस बीमारी के अम्म लक्षण हैं। यह धब्बे कुछ समय में पीले रंग के हो जाते हैं और फिर पत्ते सूख जाते है। यह बीमारी आम तौर पर फरवरी-मार्च के महीने में हमला करती है|

रोकथाम: पत्तों की कुंगी से बचाव के लिए बलाईटॉक्स 50 डब्लयू पी@300 ग्राम या बविस्टन 50 डब्लयू पी@300 ग्राम की पत्तों पर स्प्रे करें।

पत्तों के धब्बे

पत्तों के धब्बे: यह बीमारी सरकोसपोरामोरीकोला के कारण होती है। इससे पत्तों के दोनों तरफ हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। प्रभावित पत्ते पकने से पहले ही गिर जाते हैं| यह बीमारी सर्दियों में और बरसात के मौसम में हमला करती है।

रोकथाम: बविस्टन @300 ग्राम की स्प्रे 10 दिनों के अंतराल पर करें।

सफेद फंगस

सफेद फंगस: इससे पत्तों की ऊपरी सतह पर काले रंग की परत का दिखना, यह बीमारी के मुख लक्षण है| यह बीमारी मुख्य रूप से अगस्त-दिसंबर के महीने में हमला करती है।

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस@200 मि.ली. की स्प्रे करें।

झुलस रोग

झुलस रोग: इससे पत्तों की पैदावार में काफी कमी आती है।

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए बविस्टन घोल @300 ग्राम 3 कर स्प्रे करें।

जड़ों में गांठे बनना

जड़ों में गांठे बनना: यह बीमारी सिउडोमॉनास के कारण होती है।इसके मुख्य लक्षण पत्तों पर अनियमित काले-भूरे रंग के धब्बों का दिखाई देना| जिससे कि पत्ते मुड़ना और गलना शुरू हो जाते है|

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए फंगसनाशी घोल M-45@300 ग्राम को 150-180 लीटर पानी में मिलाकर जड़ों में डालें|

तना छेदक
  • कीट और रोकथाम

तना छेदक: यह छाल के अंदर सुरंग बना लेता है और अंदरूनी टिशुओं को नुकसान पहुंचाता है। इसका लार्वा सुरंग के बाहर की तरफ देखा जा सकता है।

रोकथाम: यदि इसका हमला दिखे तो, सुरंग को सख्त तार से साफ करें और इसके बाद रूई को कैरोसीन और क्लोरपाइरीफॉस के 50:50 अनुपात में डालकर सुरंग के अंदर रखें और उसे मिट्टी से बंद कर दें।

छाल खाने वाली सुंडी

छाल खाने वाली सुंडी: यह कीट तने में सुरंग बनाकर पौधे को कमज़ोर करती है, जिसके कारण तेज हवा में पौधा गिर जाता है।

रोकथाम: इस कीट की रोकथाम के लिए, मोनोक्रोटोफॉस (नुवाक्रॉन 36 डब्लयू एस सी) या 10 मि.ली. मिथाइल पैराथियॉन (मैटासीड) 50 ई सी को 10 लीटर पानी में मिलाकर डालें|

पीली और लाल भुंडी

पीली और लाल भुंडी: यह पौधे को अंदर अंदर से खोखला कर देती है। यह कीट मुख्य रूप से मार्च से नवंबर महीने में पाया जाता है।

रोकथाम: इस कीट की रोकथाम के लिए कार्बरिल 50 डब्लयू पी 40 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फसल की कटाई

इसकी तुड़ाई आम तौर पर गहरे-लाल रंग से जामुनी-लाल रंग के होने पर की जाती है। सुबह के समय कटाई करने को पहल दी जाती है। इसकी तुड़ाई हाथों से या वृक्ष ज़ोर-ज़ोर को हिलाकर की जाती है। वृक्ष को हिलने वाली विधि के लिए वृक्ष के नीचे कॉटन या प्लास्टिक की शीट बिछा दी जाती है| पके हुए फल इसी शीट पर आकर गिर जाते है। नए उत्पाद बनाने के लिए पके हुए फलों का प्रयोग किया जाता है।