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आम जानकारी

यह नसल छोटी और हल्के शरीर वाली होती है। इनकी लगभग 13 प्रजातियां हैं जिनमें से इकहरी चोटी वाली सफेद लैगहॉर्न प्रसिद्ध है। जो ज्यादा मात्रा में अंडा उत्पादन के लिए जानी जाती है। नर लैगहॉर्न का औसतन भार 2.4-2.7 किलो और मादा लैगहॉर्न का औसतन भार 2.0-2.3 किलो होता है। इसके पंख सफेद रंग के, त्वचा का रंग पीला और सफेद या क्रीम रंग के कान होते हैं। यह सफेद रंग के अंडे देती है जिसका औसतन भार 55 ग्राम होता है।

चारा

प्रोटीन : 0-10 सप्ताह के मुर्गी के बच्चों के आहार में 10-20 प्रतिशत प्रोटीन होना जरूरी है। मीट पक्षियों जैसे तीतर, बटेर और टर्की के लिए 22-24 प्रतिशत प्रोटीन आवश्यक होता है। प्रोटीन की उच्च मात्रा से मुर्गी के बच्चों को वृद्धि करने में मदद मिलती है। वृद्धि के लिए उनके आहार में लगभग 15-16 प्रतिशत प्रोटीन होना जरूरी है और लेयरर्स के लिए उनके आहार में 16 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होनी जरूरी है।

पानी : मुर्गी के बच्चों के पहले पानी में 1/4 कप चीनी और 1 चम्मच टैरामाइसिन/ गैलोन शामिल होना चाहिए और दूसरे पानी में 1 चम्मच टैरामाइसिन शामिल होना चाहिए और फिर उसके बाद सामान्य पानी दिया जाना चाहिए। प्रत्येक चार बच्चों को एक चौथाई पानी दें। पानी ताजा और साफ होना चाहिए।

कार्बोहाइड्रेट्स : शारीरिक फैट और तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए कार्बोहाइड्रेट्स जरूरी होते हैं। इसके लिए उन्हें एनर्जी की जरूरत होती है जो कि कार्बोहाइड्रेट्स से आती है। उनके भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसे पचाना उनके लिए मुश्किल होता है।

खनिज सामग्री : खनिज सामग्री का उपयोग हड्डियों और अंडों को बनाने के लिए  और अन्य शारीरिक कार्यों के लिए किया जाता है। खनिज सामग्री में कैल्शियम, मैगनीशियम, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, सल्फर, मैगनीज़, आयरन, कॉपर, आयोडीन, जिंक, कोबाल्ट और सेलेनियम शामिल हैं। मुख्य रूप से इन सामग्रियों को फीड से प्राप्त किया जाता है।

 

नस्ल की देख रेख

शैल्टर और देखभाल : मुर्गी पालन के लिए उपयुक्त ज़मीन का चयन किया जाना चाहिए जहां पर ज्यादा से ज्यादा बच्चे और अंडे विकसित हो सकें। शैल्टर सड़क से कुछ ऊंचाई पर होना चाहिए ताकि बारिश का पानी आसानी से बाहर निकल जाये और इससे उनका बाढ़ से भी बचाव होगा। शैल्टर में ताजे पानी का प्रबंध भी होना चाहिए। 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए। मुर्गियों का आश्रय औद्योगिक और शहरी क्षेत्र से दूर होना चाहिए क्योंकि इससे मुर्गियों की खादें वातावरण में प्रदूषित होंगी और मक्खियों की समस्या भी होगी । ऐसा आश्रय चुनें जो शोर रहित हो। शोर की समस्या पक्षियों के उत्पादन पर प्रभाव डालेगी। फैक्टरियों का धुआं भी पक्षियों पर प्रभाव डालता है।

नए जन्में बच्चों की देखभाल : मुर्गियों के नन्हें बच्चों की वृद्धि के लिए उचित ध्यान और इनक्यूबेटर की आवश्यकता होती है। अंडों को उपयुक्त तापमान देकर 21 दिनों के लिए इनक्यूबेटर में रखा जाता है। अंडे सेने के बाद बच्चों को 48 घंटे बाद इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है। इनक्यूबेटर से निकालने के दौरान बच्चों की संभाल बहुत सावधानी से की जानी चाहिए। इनक्यूबेटर से बच्चों को निकालने के बाद उन्हें ब्रूडर में रखा जाता है। पहले सप्ताह के लिए ब्रूडर का तापमान 95 डिगरी फार्नाहीट होना जरूरी है और प्रत्येक सप्ताह इसका तापमान 5 डिगरी फार्नाहीट कम करना जरूरी है। बच्चों को उचित फीड  उचित समय पर देनी चाहिए और ब्रूडर में ताजा पानी हर समय उपलब्ध होना चाहिए।

सिफारिश टीकाकरण : मुर्गी के बच्चों की अच्छी वृद्धि के लिए अपडेट किया गया टीकाकरण भी आवश्यक है। कुछ मुख्य टीके और दवाइयां जो कि मुर्गियों की अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं, निम्नलिखित हैं।

जब बच्चा एक दिन का हो तो उसे Marek’s  बीमारी से बचाने के लिए HVT का टीका लगवाएं। इस टीके का प्रभाव 18 महीनों तक रहेगा।

जब बच्चा 4-7 दिन का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए RD vaccination (F1 strain) का टीका लगवाएं इस टीके का प्रभाव 2-4 महीने तक रहेगा। 

जब बच्चा 18-21 दिन का हो तो उसे गुमबोरो बीमारी से बचाने के लिए IBD का टीका लगवाएं।

जब बच्चा 4-5 सप्ताह का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए RD (F1 strain) का टीका लगवाएं।

जब बच्चा 6-8 सप्ताह का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए RD (F2B strain) का टीका लगवाएं। बच्चे को 0.5 मि.ली. दवाई दी जाती है।

जब बच्चा 8-10 सप्ताह का हो तो उसे चिकन पॉक्स बीमारी से बचाने के लिए चिकन पॉक्स का टीका लगवाएं।

 

 

बीमारियां और रोकथाम

 र्ब्ड फ्लू (Bird flu (Avian influenza)) : यह इन्फ्लूएंजा के कारण होता है और यह 100 प्रतिशत मौत दर को बढ़ाता है। यह संक्रमण श्वास नाली, आंसू और व्यर्थ पदाथों से आता है। यह बीमारी एक मुर्गी से दूसरी मुर्गी में बड़ी जल्दी फैलती है। यह अस्वस्थ खाना और पानी के बर्तन, कपड़ों से भी फैल सकती है। इसके लक्षण हैं - मुर्गियों का सुस्त हो जाना, भूख कम लगना, अंडों का कम उत्पादन और चोटी का पीले रंग में बदल जाना और जल्दी मौत हो जाना है।

इलाज : चिकन फार्म से कुछ भी अंदर या बाहर ले जाना बंद कर दें। फार्म के अंदर प्रयोग किए जाने वाले जूते अलग रखें। गड्ढा बनाएं और उसमें दी गई मात्रा में दवाई डालें। ताकि फार्म में जाने से पहले अपने पैरों को इस उपचारित पानी में डुबोया जा सके। फार्म के चारों तरफ Qualitol की स्प्रे करके कीटाणुओं को नष्ट करें।

बीमारी के दौरान सावधानियां : क्योंकि यह बीमारी इंसानों को प्रभावित करती है इसलिए बीमारी से प्रभावित मुर्गियों को उठाने से पहले उचित कपड़े और दस्ताने पहनें। मरी हुई और संक्रमित मुर्गियों को जला दें या मिट्टी में दबा दें। मीट को 70 डिगरी सेल्सियस पर बनायें इससे संक्रमण मरता है और इसे खाने के लिए प्रयेाग किया जाता है। 
 
विटामिन ए की कमी : इस बीमारी के लक्षण हैं चोंच और टांगों का पीला पड़ना और सिर चकराना।

इलाज : खाने में विटामिन ए की मात्रा बढ़ाएं और हरी फीड दें।

 

 

पंजों का कमज़ोर होना : यह बीमारी मुख्यत: विटामिन बी 2 की कमी के कारण होती है और यह मुख्यत: बढ़ते हुए पशुओं में देखी जाती है। इससे पंजे अंदर की तरफ मुड़ जाते हैं।

इलाज : फीड में विटामिन बी2 दें।


विटामिन डी की कमी : यह बीमारी मुख्यत: विटामिन बी 2 की कमी के कारण और शरीर में कैल्शियम और फास्फोरस के संतुलन बिगड़ने के कारण होती है।

इलाज : फीड में विटामिन डी 3 दें।

 



चिकन पॉक्स : यह संक्रमण द्वारा फैलने वाली बिमारी है और यह किसी भी उम्र के पक्षी में फैल सकती है। इसके लक्षण हैं चोटी, आंखों और कानों के आस-पास फोड़ों का होना है।

इलाज :  चिकन पॉक्स से बचाव के लिए होमियोपैथिक दवाई antimonium torterix 5 मि.ली. प्रति 100 पक्षियों को दें।

 

 



कोकसीडियोसिस : यह एक परजीवी बीमारी है, जो कि कोकसीडियान प्रोटोज़ोआन के कारण होती है। यह बीमारी मुख्यत: मुर्गी के 3-10 सप्ताह के बच्चों में होती है। यह प्रौढ़ बच्चों को भी प्रभावित करती है। 

इलाज : उचित साफ सफाई की जानी चाहिए। लगभग 12 सप्ताह के मुर्गी के बच्चों को फीड में कोकसीडियोस्टैट दें। उदाहरण के लिए befran या amprol 50 ग्राम, clopidol 125 ग्राम प्रति क्विंटल, stanorol 50 ग्राम प्रति टन फीड में दें। प्रत्येक 1-2 वर्ष बाद दवाई बदलते रहें। दवाई को फीड में अच्छी तरह से मिक्स करें।

 

Leucosis and marek’s: यह एक संक्रामक बीमारी है जो कि दूसरे पशु से हवा, पंखों, मिट्टी आदि द्वारा फैलती है। Leucosis हवा द्वारा नहीं फैलती और ना ही प्रदूषित वातावरण द्वारा फैलती है।

Marek’s के लक्षण : यह मुख्यत: 1-4 महीने के मुर्गी के बच्चों में फैलती है और कई बार यह 30 दिन के बच्चों को भी हो जाती है। इसके लक्षण हैं टांगों, पंखों और गर्दन का कमज़ोर होना, सलेटी रंग की आंखे होना और पक्षी का अपने आप अंधा हो जाना।

Leucosis के लक्षण : यह मुख्यत: 4 महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों में होती है। इसके लक्षण हैं लीवर का आकार बढ़ना और नसों को छोड़कर बाकी सारे शरीर के भागों में अल्सर का पाया जाना।

इलाज : जब बच्चा 1 दिन का हो तो उसे  Marek’s का टीका लगवायें। साफ सफाई का उचित ध्यान रखें और अच्छी तरह से देखभाल करें।

रानीखेत बीमारी :इसे न्यू कैस्टल बीमारी (New Castle disease) भी कहा जाता है। यह बहुत ही संक्रामक बीमारी है और हर उम्र के पक्षी में फैलती है। इसके लक्षण हैं मौत दर का बढ़ना, सांस लेने में समस्या, टांगों और पंखों का कमज़ोर होना।

इलाज : जब बच्चे 1-6 दिन के हों तो इन्हें रानीखेत दवाई F strain का टीका लगवायें और 4 सप्ताह के अंतराल पर  F-1 का टीका ब्रॉयलर को लगवाया जाना चाहिए।

Fatty liver syndrome (FLS) : यह बीमारी मुख्यत: फीड की अपच की समस्या के कारण होती है जिसकी वजह से शरीर में फैट का जमाव हो जाता है। यह बीमारी मुख्यत: अंडा उत्पादित मुर्गी और ब्रॉयलर में पायी जाती है जिन्हें ज्यादा एनर्जी वाला भोजन दिया जाता है। इसके लक्षण हैं 50 प्रतिशत कम अंडों का उत्पादन, 20-25 प्रतिशत भार का कम होना और लीवर और शरीर पर रक्त के धब्बे दिखना आदि।

इलाज : फीड में ऊर्जा की मात्रा कम कर दें। 1क्विंटल फीड में 100 ग्राम choline chloride, 10000  I U Vitamin E, 1.2 मि.ग्रा. Vitamin B12  और 100 ग्राम incitol मिक्स करें।
 

Aflatoxin : यह मुख्यत: नमी और गर्म मौसम और बारिश के मौसम के कारण होती है। इसके लक्षण हैं भूख कम लगना, अंडों के उत्पादन में कमी, प्यास का बढ़ना और रक्त के स्तर का कम होना आदि हैं।

इलाज : Livol या liv-52 या tefroli tonic  फीड में दें और पानी के द्वारा दें। विटामिन ए और विटामिन ई 60000 IU और 300 IU प्रति एकड़ में दें।