अश्वगंधा  की फसल

आम जानकारी

अश्वगंधा को चमत्कारी जड़ी बूटी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इससे बहुत सारी दवाइयां बनाई जा सकती हैं। इसका नाम अश्वगंधा इसलिए है क्योंकि इसकी जड़ें घोड़े की तरह गंध देती है यह शरीर को घोड़े की तरह शक्ति प्रदान करता है। इसके बीज, जड़ें और पत्ते का प्रयोग काफी सारी दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। अश्वगंधा से तैयार की गई दवाइयां तनाव निवारक, नपुंसकता दूर करने के लिए और चिंता, अवसाद, भय, सिजोफ्रनिया इत्यादि को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग की जाती है। जिसका औसतन कद 30-120 सैं.मी. और जड़ें सफेद-भूरे रंग की गुद्देदार होती है|इसके फूल हरे रंग के होते है, जिन परसंतरी-लाल रंग के बेर की तरह फल लगे होते है|  भारत में मुख्य अश्वगंधा उगने वाले राज्य राज्यस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महांराष्ट्र और मध्य प्रदेश आदि हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-350mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-35°C
  • Season

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    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-350mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C
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    Harvesting Temperature

    20-35°C
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    20-25°C
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    300-350mm
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    Sowing Temperature

    20°C
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    Harvesting Temperature

    20-35°C
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    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    300-350mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-35°C

मिट्टी

बढ़िया निकास वाली रेतली दोमट या हल्की लाल मिट्टी, जिसका 7.5-8.0 pH हो, में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। नमी बरकरार रखने वाली और जल सोखने वाली मिट्टी में  अश्वगंधा की खेती नहीं की जा सकती है। इसके लिए मिट्टी हल्की, गहरी और अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए। अच्छे निकास वाली काली और भारी मिट्टी इसकी खेती के लिए अनुकूल होती हैं|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Jawahar Asgand-20 and Jawahar Asgand-134: यह उच्च क्षारी किस्म है। यह जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश द्वारा विकसित की गई है। इस किस्म के पौधेका कद छोटा होता है और यह अपना घनत्व ज्यादा होने के कारण जनि जाती है| यह किस्म की पैदावार 180 दिनों में सूखी जड़ों में कुल 0.30% एनोलाइड की मात्रा है।

Raj Vijay Ashwagandha-100: यह किस्म भी जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश द्वारा तैयार की गई है।

Rakshita and Poshita: अधिक उपज देने वाली यह किस्म CSIR-CIMAP लखनऊ द्वारा विकसित की गई है।

WSR : यह किस्म सी एस आई आर खेतरी रिसर्च लैबोर्टरी, जम्मू द्वारा विकसित की गई है।

Nagori: यह एक स्थानीय किस्म है जिसकी जड़ों में ज्यादा स्टार्च पाया जाता हैं।

ज़मीन की तैयारी

अश्वगंधा की खेती के लिए भुरभुरी और समतल ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की 2-3 बार जोताई करें और बारिश से पहले खेत की डिस्क या तवियों से जोताई करें। खेत को अप्रैल-मई के महीने में तैयार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
अश्वगंधा की खेती के लिए जून-जुलाई के महीने में नर्सरी तैयार करें।

फासला

अंकुरन प्रतिशतता के आधार पर, पंक्ति में फासला 20-25 सैं.मी. और पौधों में फासला 10 सैं.मी. रखें।

बीज की गहराई
बीज को बोने के लिए 1-3 सैं.मी. गहराई में बोयें|

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई पनीरी मुख्य खेत में लगा क्र की जाती है|

बीज

बीज की मात्रा
अच्छी किस्मों के लिए 4-5 किलो बीजों का प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए, थीरम या डाईथेन एम 45 (इनोफिल एम 45 ) 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। उपचार के बाद बीजों को हवा में सुखाएं और बिजाई के लिए प्रयोग करें।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बिजाई से पहले खेत की हल से एक बार जोताई करें फिर तवियों से मिट्टी के भुरभरा होने तक दो बार जोताई करें और मिट्टी को पोषक बनाने के लिए जैविक तत्व डालें| नर्सरी बैड को सतह से ऊपर उठाकर उपचार किए गए बीजों का बोने के लिए प्रयोग करें।

रोपाई से पहले  10-20 टन रूड़ी की खाद, यूरिया 15 किलो और 15 किलो फासफोरस मिट्टी को पोषित करने के लिए डालें।

बीज 5-7 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं और लगभग 35 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई से पहले आवश्यकता अनुसार पानी दें ताकि नए पौधों को आसानी से निकाला जा सके।
60 सैं.मी. के फासले पर मौजूद 40 सैं.मी. की चौड़ी मेंड़ों पर रोपाई करें|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
14 38 -

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6 6 -

 

खेत दी तैयारी के समय, लगभग 4-8  टन रूड़ी की खाद प्रति एकड़ डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें| फिर सुहागे के साथ खेत को समतल करें| इस में किसी भी रासायनिक खाद या कीटनाशक प्रयोग करने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि यह एक चिकित्सिक पौधा है और जैविक खेती के द्वारा उगता है| कुछ जैविक खादें जैसे कि रूड़ी की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद आदि जरूरत अनुसार प्रयोग की जा सकती है| कुछ बायो-कीटनाशक, जोकि नीम, चित्रकमूल, धतूरा, गौ-मूत्र  आदि से तैयार होते है, इनको मिट्टी और बीजों से पैदा होने वाली बीमारीयों को रोकने के लिए प्रयोग किया जा सकता है| मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन(यूरिया 14 किलो) और फासफोरस 6 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 38 किलो) प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है|

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए आमतौर पर दो बार गोडाई की आवश्यकता होती है। पहली बिजाई के 20-25 दिनों और दूसरी गोडाई पहली गोडाई के 20-25 दिनों के बाद करें। नदीनों को रोकने के लिए बिजाई से पहले इसोप्रोटूरान 200 ग्राम और ग्लाइफोसेट 600 ग्राम प्रति एकड़ में डालें।

सिंचाई

अनावश्यक पानी और बारिश के साथ फसल को नुकसान होता है। यदि बारिश वाले दिन हो तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, 1-2 बार जीवन रक्षक सिंचाइयां करें| सिंचित हालातों में फसल को, 10-15 दिनों में एक बार सिंचाई करें| पहली सिंचाई अंकुरन से 30-35 दिनों के बाद और दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 60-70 दिनों के बाद करनी चाहिए।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम

इस फसल पर कोई हानिकारक कीट नहीं देखे जा सकते, लेकिन कईं बार जूं और कीटों का हमला इस फसल पर देखा जा सकता है।

चेपा: यह एक छोटा कीट है जो पौधों का रस चूसता है। काली और हरी उड़ने वाली मक्खी जो तेजी से प्रजनन करती हैं, पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाती है।चेपे की रोकथाम के लिए 0.5% मैलाथियॉन और कैलथेन 0.1-0.3%  के मिश्रण की स्प्रे 10-15 दिनों के फासले पर करें|

कीटों का हमला: शाख का केंचुया और जूं हमला करने वाले मुख्य कीट हैं।

शाख का केंचुया: इसकी रोकथमा के लिए सुमीसिडिन 10 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से रोका जा सकता है।

जूं: जैसे ही इसका हमला दिखे, तो रोकथाम के लिए इथियॉन 10 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

  • बीमारियां और रोकथाम

इस फसल पर नए पौधों का गलन और झुलस रोग जैसी बीमारियां देखी जा सकती है।

नए पौधों का गलना और मुरझाना: यह बीमारी कीटों और नीमातोढ के कारण होती है, जो बीजों और नए पौधों को नष्ट कर देते हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीमारी रहित बीज और नीम का प्रयोग किया जा सकता है।

पत्तों पर धब्बे: यह एक बड़ी संख्या में फंगस, विषाणु और रोगाणु, के कारण यह बीमारी फैलती हैं, जिससे पत्तों पर बेरंगे धब्बे पड़ जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई के 30 दिन बाद 3 ग्राम  डाइथेन एम 45 को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें और बीमारी दिखे तो 15 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें|

फसल की कटाई

पौधा 160-180 दिनों में पैदावार देना  है। कटाई सूखे मौसम में करें, जब पत्ते सूख रहे हो और फल लाल संतरी रंग के हो जायें। कटाई हाथों से जड़ों को उखाड़कर या मशीन द्वारा बिना जड़ों को नुकसान पहुंचाए की जाती है,जैसे कि पावर टिल्लर या कंट्री पलोअ आदि के साथ|

कटाई के बाद

कटाई के बाद पौधे से जड़ों को अलग करें और इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में जैसे 8-10 सैं.मी. काट दें और फिर हवा में सुखाएं। कटाई के बाद छंटाई की जाती है। जड़ों के टुकड़ों को बेचने के लिए टीन के बक्सों में स्टोर कर लिया जाता है| जड़ें जितनी लंबी होंगी उसका मुल्य उतना ही ज्यादा होगा। फल को अलग से तोड़ें और हवा में सुखा के पीस लिया जाता है ताकि बीज आसानी से बाहर निकल सकें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare