ਲੀਚੀ ਦੇ ਫਲ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ

आम जानकारी

यह बहुत ही रसीला और गुणवत्ता वाला फल है। यह विटामिन सी और विटामिन बी कंपलैक्स का महत्तवपूर्ण स्त्रोत है। इसकी खोज दक्षिणी चीन में की गई थी। चीन के बाद विश्व स्तर पर भारत इसकी पैदावार में दूसरे स्थान पर आता है। भारत में इसकी खेती सिर्फ जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में होती है परंतु बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती अब बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, आसाम और त्रिपुरा और पश्चिमी बंगाल आदि में भी की जाने लगी है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    25-35°C
  • Season

    Rainfall

    1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
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    Temperature

    25-35°C
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    1200mm
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    25-35°C
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    25-30°C
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    25-35°C
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    Rainfall

    1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की अलग अलग किस्मों में उगाया जा सकता है। लीची की पैदावार के लिए गहरी, उपजाऊ, अच्छे निकास वाली और दरमियानी रचना वाली मिट्टी अनुकूल होती है। मिट्टी की पी एच 7.5 से 8 के बीच में होनी चाहिए। ज्यादा पी एच और नमक वाली मिट्टी लीची की फसल के लिए अच्छी नहीं होती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Calcuttia: इस किस्म के फल बड़े और आकर्षिक होते हैं। इसकी तुड़ाई जून के तीसरे सप्ताह के दौरान की जा सकती है। इस किस्म पर फलों के घने गुच्छे लगते हैं। इसकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है। इसके फल रसभरे और स्वादी होते हैं।
 
Dehradun: यह जल्दी तैयार होने और लगातार फल देने वाली किस्म है। इसके फल जून के दूसरे सप्ताह में तोड़े जा सकते हैं। इसके फल आकर्षक रंग वाले होते हैं पर यह बड़ी जल्दी दरारें छोड़ जाते हैं। इसके फल मीठे, नर्म, रसभरे और बहुत स्वादिष्ट होते हैं।
 
Seedless Late: इसका फल गुद्दे से भरपूर होता है। इनका रंग गहरा लाल और स्वाद मीठा और रस भरा होता है। इसकी फसल जून के तीसरे सप्ताह में तैयार हो जाती है।
दूसरे राज्यों की किस्में 
 
Rose Scented:  यह प्रसिद्ध और मध्यम ऋतु की किस्म है। इसके फल दरमियाने और बड़े आकार के होते हैं। इसके फल जूसी या रस भरे, मीठे और हल्के सलेटी रंग के होते हैं।
 
Saharanpur
 
Muzaffarpur
 
Khatti
 
Gulabi
 

ज़मीन की तैयारी

खेत की दो बार तिरछी जोताई करें और फिर समतल करें। खेत को इस तरह तैयार करें कि उसमें पानी ना खड़ा रहे।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई मॉनसून के तुरंत बाद अगस्त सितंबर के महीने में की जाती है। कई बार पंजाब में इसकी बिजाई नवंबर महीने तक की जाती है। इसकी बिजाई के लिए दो साल पुराने पौधे चुने जाते हैं।
 
फासला
बिजाई के लिए वर्गाकार ढंग के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 8-10 मीटर और पौधे से पौधे का फासला 8-10 मीटर रखा जाता है।
 
बीज की गहराई
कुछ दिन पहले 1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर के गड्ढे धूप में खोदें। इसके बाद इन गड्ढों को 20-25 किलोग्राम गली सड़ी रूड़ी की खाद के साथ भर दें। 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 2 किलोग्राम बॉन मील डालें। इन गड्ढों को भरने के बाद ऊपर से पानी का छिड़काव कर दें। पौधे गड्ढों के बीच में लगाएं।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई सीधे बीज लगा कर और पनीरी लगा कर की जाती है।
 

प्रजनन

बड़े स्तर पर लीची उगाने के लिए एयर लेयरिंग तरीका अपनाया जाता है। बीज बनाना एक आसान तरीका नहीं है इस क्रिया के लिए पौधा लंबा समय लेता है। एयर लेयरिंग के लिए पौधे की टहनियां कीड़े और बीमारियां रहित होनी चाहिए जिनका व्यास 2-3 सैं.मी. और लंबाई 30-60 सैं.मी. हो। चाकू की मदद से टहनियों के ऊपर 4 सैं.मी. चौड़ा गोल आकार का कट लगाएं। उस कट के ऊपर दूसरी टहनी लगा कर लिफाफे से बांध दें। चार सप्ताह के बाद जड़ें बांधनी शुरू हो जाती हैं। जब जड़ें पूरी तरह बन जाएं तो उसे मुख्य पौधे से अलग कर दें। इसके तुरंत बाद पौधे को मिट्टी में लगा दें और पानी देना शुरू कर दें। एयर लेयरिंग मध्य जुलाई से सितंबर महीने में की जाती है।

कटाई और छंटाई

शुरूआती समय में पौधे को अच्छा आकार देने के लिए कटाई करनी जरूरी होती है। लीची के पौधों के लिए छंटाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती। फलों की कटाई के बाद नई टहनियां लाने के लिए हल्की छंटाई करें।
 

अंतर-फसलें

यह धीमी गति से उगने वाली फसल है जो कि 7-10 साल का समय लेती है। शुरूआती 3-4 साल तक अंतर फसलें उगाई जा सकती हैं जिससे आमदन बढ़ती है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में भी वृद्धि  होती है। इसके इलावा नदीनों को भी कंटरोल किया जा सकता है। तेजी से उगने वाले पौधे जैसे कि आड़ू, आलू बुखारा, किन्नू अंतर फसलों के रूप में उगाए जा सकते हैं। इसके इलावा दालों और सब्जियों को भी अंतर फसलों के तौर पर उगाया जा सकता है। जब मुख्य फसल का बाग पूरी तरह बड़े स्तर पर विकास कर ले तो अंतर फसलों को उखाड़ दें।
 
लीची का परागण कीड़ों, पतंगों और शहद की मक्खियों द्वारा किया जाता है। 20-25 शहद की मक्खियों के डिब्बे परागण करने के लिए प्रति हैक्टेयर रखे जाते हैं।
 

नए पौधों की देखभाल

नए पौधों को गर्म और ठंडी हवा से बचाने के लिए लीची के पौधों के आस-पास 4-5 साल के हवा रोधक वृक्ष लगाएं। जंतर की फसल लगाने से फरवरी के महीने में इससे बीज भी प्राप्त किया जा सकता है। लीची के पौधों को तेज हवाओं से बचाने के लिए आस-पास आम और जामुन जैसे लंबे वृ़क्ष लगाएं।

खाद

Age of crop 

(Year)

Well decomposed cow dung 

(in kg)

Urea 

(in gm)

SSP 

(in gm)

MOP 

(in gm)

First to three years 10-20 150-500 200-600 60-150
Four to six years 25-40 500-1000 750-1250 200-300
Seven to ten year 40-50 1000-1500 1500-2000 300-500
Ten year and above 60 1600 2250 600

 

1 से 3 साल की फसल के लिए 10-20 किलो गली सड़ी रूड़ी खाद के साथ यूरिया 150-500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 200-600 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 60-150 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं। 4-6 साल की फसल के लिए गली सड़ी रूड़ी की खाद की मात्रा बढ़ा कर 25-40 किलोग्राम, यूरिया 500-1000 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 750-1250 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 200-300 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं। 7-10 साल की फसल के लिए गली सड़ी रूड़ी की खाद की मात्रा बढ़ा कर 40-50 किलोग्राम, यूरिया 1000-1500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 1000 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 300-500 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं। जब फसल 10 साल की हो जाये तो गली सड़ी रूड़ी की खाद की मात्रा बढ़ाकर 60 किलोग्राम, यूरिया 1600 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 2250 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 600 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।

 

सिंचाई

विकास के हर पड़ाव पर सिंचाई करें। विकास के शुरूआती समय में पानी लगाना बहुत ज़रूरी होता है। गर्मियों की ऋतु में नए पौधों को 1 सप्ताह में 2 बार और पुराने पौधों को सप्ताह में 1 बार पानी दें। खादें डालने के बाद एक सिंचाई ज़रूर करें। फसल को कोहरे से बचाने के लिए नवंबर के अंत और दिसंबर के पहले सप्ताह में पानी दें। फल बनने के समय सिंचाई बहुत ज़रूरी होती है। इस पड़ाव पर सप्ताह में 2 बार पानी दें। इस तरह करने से फल में दरारें नहीं आती और फल का विकास अच्छा होता है। 

पौधे की देखभाल

फल छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल छेदक : यह फल के ऊपर वाले छिल्के से भोजन लेता है और फल को नुकसान पहुंचाता है। छोटे-छोटे बारीक छेद फलों के ऊपर देखने को मिलते हैं।
 
बाग को साफ रखें। प्रभावित और गिरते हुए फल को दूर ले जाकर  नष्ट कर दें। ट्राइकोग्रामा 20000 अंडे प्रति एकड़ या निंबीसाइडिन 50 ग्राम + साइपरमैथरिन 25 ई सी 8 मि.ली.  और डाइक्लोरवास 20 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर फल बनने के समय और रंग बनने के समय स्प्रे करें। 7 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें। फल बनने के समय डाइफलूबैनज़िओरॉन 25 डब्लयु पी 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से की गई स्प्रे प्रभावशाली होती है। आखिरी स्प्रे कटाई के 15 दिन पहले करें।
 
जूं
जूं : यह लीची की फसल को लगने वाला खतरनाक कीड़ा है। इसका लार्वा और कीड़ा पत्तों के नीचे की तरफ और तने आदि का रस चूस लेता है। इसके हमले के कारण पत्तों का रंग पीला पड़ना शुरू हो जाता है। इसका शिकार हुए पत्ते मुड़ने शुरू हो जाते हैं और बाद में झड़ कर गिर पड़ते हैं।
 
इस बीमारी से प्रभावित हिस्सों की छंटाई करके उन्हें नष्ट कर देना चाहिए। डीकोफोल 17.8 ई सी 3 मि.ली. या प्रॉपरगाइट 57 ई सी 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7 दिनों के फासले के दौरान स्प्रे करें। इस घोल का छिड़काव नए निकले पत्तों से पहले नए तनों पर करना चाहिए।
 
पत्ते में छेद करने वाला कीड़ा
पत्तों का सुरंगी कीट इसका हमला दिखाई देने पर प्रभावित पत्तों को तोड़ देना चाहिए। डाइमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर फल लगने के समय  स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
  
पत्तों के निचली तरफ सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के निचली तरफ सफेद धब्बे : इसे भूरेपन का रोग भी कहा जाता है। पत्तों, फूलों और कच्चे फलों के ऊपर सफेद धब्बों के साथ भूरे दाग नज़र आते हैं। यह पके फलों पर भी हमला करती है। दिन के समय ज्यादा तापमान और रात के समय कम तापमान, ज्यादा नमी और लगातार बारिश का पड़ना इस बीमारी के फैलने का कारण होता है।
 
कटाई के बाद बागों को अच्छी तरह साफ कर दें। सर्दियों में इस बीमारी से बचने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की स्प्रे करें।
 
एंथ्राक्नोस
एंथ्राक्नोस : चॉकलेटी रंग के बेढंगे आकार के पत्तों, टहनियों, फूलों और फलों के ऊपर धब्बे नज़र आते हैं। फालतू टहनियों को हटा दें और पौधे की अच्छे ढंग से छंटाई कर लें। फरवरी के महीने में बोर्डीऑक्स की स्प्रे करें, अप्रैल और अक्तूबर के महीने में कप्तान डब्लयु पी 0.2 प्रतिशत इस बीमारी की रोकथाम के लिए प्रयोग करें।
 
पौधों का सूखना और जड़ गलन
पौधों का सूखना और जड़ गलन : इस बीमारी के कारण पौधे की 1 या 2 टहनियां या सारा पौधा सूखना शुरू हो जाता है। पौधे में अचानक सूखा आना इस बीमारी के लक्षण हैं। यदि इस बीमारी का इलाज जल्दी नहीं किया जाए तो जड़ गलन की बीमारी वृक्ष को बहुत तेजी से मार देती है।
 
नए बाग लगाने से पहले खेत को साफ करें और पुरानी फसल की जड़ों को खेत में से बाहर निकाल दें पौधे के आस-पास पानी खड़ा ना होने दें और सही जल निकास का ढंग अपनाएं। पौधे की छंटाई करें और फालतू टहनियों को काट दें।
 
लाल कुंगी
लाल कुंगी : पत्तों के निचली तरफ फंगस के धब्बे नज़र आते हैं। यह बहुत तेजी से फैलती है और बाद में जामुनी लाल भूरी से संतरी रंग की होकर बढ़ती है। प्रभावित पत्ते मुड़ जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए जून से अक्तूबर महीने में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत की स्प्रे करें । यदि खेत में नुकसान ज्यादा दिखे तो बोर्डीऑक्स घोल की सितंबर से अक्तूबर महीने और फरवरी से मार्च महीने में स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के फासले पर स्प्रे करते रहें।
 
फल गलन
फल गलन : यह लीची की फसल की कटाई के बाद की खतरनाक बीमारी है। यदि स्टोरेज सही ढंग से नहीं की गई तो फलों के ऊपर पानी के रूप के धब्बे बन जाते हैं और बाद में उनमें से गंदी बदबू आनी शुरू हो जाती है।
 
कटाई के बाद फलों को कम तापमान पर स्टोर करें कम तापमान फल गलन की दर को कम कर देता है।
 

फसल की कटाई

फल का हरे रंग से गुलाबी रंग का होना और फल की सतह का समतल होना, फल पकने की निशानियां हैं। फल को गुच्छों में तोड़ा जाता है। फल तोड़ने के समय इसके साथ कुछ टहनियां और पत्ते भी तोड़ने चाहिए। इसे ज्यादा लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता। घरेलू बाज़ार में बेचने के लिए इसकी तुड़ाई पूरी तरह से पकने के बाद करनी चाहिए जब कि दूर के क्षेत्रों में भेजने के लिए इसकी तुड़ाई फल के गुलाबी होने के समय करनी चाहिए।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद फलों को इनके रंग और आकार के अनुसार अलग अलग करना चहिए। प्रभावित और दरार वाले फलों को अलग कर देना चाहिए। लीची के हरे पत्तों को बिछाकर टोकरियों में इनकी पैकिंग करनी चाहिए। लीची के फलों को 1.6-1.7 डिगरी सैल्सियस तापमान और 85-90 प्रतिशत नमी में स्टोर करना चाहिए। फलों को इस तापमान पर 8-12 सप्ताह के लिए स्टोर किया जा सकता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare