मूंगफली फसल की जानकारी

आम जानकारी

मूंगफली एक महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है जो भारत के ऊष्णकटबंधीय क्षेत्रों में उगाने के लिए उचित मानी जाती है। मूंगफली (अरैकिस हाईपोगिआ) फलीदार और दानेदार प्रजाति की फसल है। दक्षिण अमेरिका में यह जाति आम पाई जाती है। इसे कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे अर्थनट्स, ग्राउंडनट्स, गूबर पीस, मंकीनट्स, पिगमीनट्स और पीनट्स आदि। इसकी दिखावट और बनावट के बावजूद मूंगफली एक गिरी वाली नहीं फलीदार फसल कहलाती है| मूंगफली विश्व की तीसरी सबसे महत्तवपूर्ण तेल वाली फसल है और भारत में यह सारा साल उपलब्ध होती है| यह प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत है जोकि ज्यादातर बारानी क्षेत्रों में उगाई जाती है| भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, गुजरात, महांराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू आदि मुख्य मूंगफली के उत्पादन क्षेत्र है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 25°C
  • Season

    Temperature

    20°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 25°C

मिट्टी

इसकी खेती रेतली दोमट और अच्छे निकास वाली रेतली चिकनी मिट्टी में की जाती है| अच्छे जल निकास वाली गहरी और उपजाऊ मिट्टी, जिसका pH 6.5-7 हो, इस फसल के लिए उत्तम मानी जाती है| अच्छी मिट्टी के लिए स्पेन और साथ ही साथ प्रचलित किस्में, वर्जीनिया की किस्मों से ज्यादा लाभदायक है| भरी ज़मीनों में फलियां कम पाई जाती है| मूंगफली के बढ़िया अंकुरण के लिए 31°सै. तापमान सबसे बढ़िया होता है| भरी और सख्त चिकनी मिट्टी मूंगफली के लिए अनुकूल नहीं है, क्योंकि इस मिट्टी में फलियों के विकास में मुश्किल आती है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

TG 37 A: यह किस्म बसंत ऋतु के लिए अनुकूल है। इस किस्म की गांठों में से 65 प्रतिशत गिरियां निकलती हैं और 100 गिरियों को औसतन भार 42.5 ग्राम होता है। गिरियों का आकार गोल और छिल्का गुलाबी रंग का होता है। इसकी ओसतन पैदावार 12.3 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PG-1: यह एक फैलने वाली किस्म है, जिसकी सिफारिश पंजाब और बारानी इलाकों में की जाती है| यह 130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इससे 69% गिरियां निकलती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| गिरियों में 49% तेल की मात्रा होती है।C-501(Virginia group): यह एक अर्द्ध-फैलने वाली किस्म है, aजिसकी सिफारिश सिंचित स्थितियों में की जाती है, रेतली दोमट और दोमट मिट्टी में, जिसमे फैलने वाली किस्में नहीं उगती है| इसकी औसतन पैदावार 9-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह किस्म 125-130 दिनों में पक जाती है| इसमें 68% गिरियां और 48% तेल की मात्रा होती है|

M548: यह किस्म रेतीले क्षेत्रों में उगाई जाती है, जहां पर बारिश का खतरा रहता है या जुलाई, मध्य अगस्त और मध्य सितंबर में 550 मि. मी. की बारिश होती है| यह किस्म 123 दिनों में पक जाती है| इस किस्म में कच्चे तेल की मात्रा 52.4% होती है|

M-335: यह एक फैलने वाली किस्म है, जिसकी सिफारिश पंजाब में की जाती है| यह किस्म 125 दिनों में पक जाती है| इससे 67% दाने निकलते है| इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| इसके दानों में से तेल की 49% मात्रा होती है| इस किस्म की बिजाई की सिफारिश पंजाब के सिंचित क्षेत्रों के लिए की जाती है|

M-522: यह एक फैलने वाली किस्म है, जो पंजाब के सिंचित इलाकों में उगाई जाती है| यह लगभग 115 दिनों में पक जाती है| इससे 64% दाने निकलते है| इसके दानों में से तेल की 50.7% मात्रा होती है| इसकी फलियां आकार में सामान्य मोटी और ज्यादातर गिरियों वाली होती है| इसकी औसतन पैदावार 9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

M-37: इसका औसतन कद 25 सैं.मी. होता है| यह एक फैलने वाली किस्म है, जिसकी बहुत सारी शाखाएं फूटती है| इसके पत्तों का आकार बढ़ा होता है, जो बहुत घने और छांव वाले होते हैं| इसकी फलियों में ज्यादातर 1-2 दाने होते है और मुश्किल से 3 दाने पाए जाते है| इसके दाने औसतन आकार के होते है, जोकि हल्के भूरे रंग के छिलको वाले होते है| इसमें से 64% दाने निकलते है|

SG 99: यह किस्म दोमट-रेतली मिट्टी वाले क्षेत्रों में गर्मियों के महीने में उगाई जाती है| यह किस्म 124 दिनों में पक जाती है| इसके पौधे का कद 66-68 सैं.मी. होता है| इसके पके हुए पौधे की 22-24 फलियां होती हैं और 100 गिरियों का भार 54 ग्राम होता है| इसमें 66% दाने निकलते है, जिनमें 52.3% तेल की मात्रा होती है| इसकी औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह किस्म शाखाओं पर गोल और तीखे धब्बे के रोग को सेहनशील करती है|

SG-84: यह एक गुच्छेदार किस्म है, जोकि पंजाब में उगाने के लिए अनुकूल मानी जाती है| यह किस्म 120-130 दिनों में पक जाती है| इसकी गिरियां भूरे रंग की होती है, जिनमें 50% तेल होता है| इसमें 64% दाने निकलते हैं| इसकी औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Moongphali No.13: यह एक गुच्छेदार किस्म है, जिसकी भरपूर शाखाएं होती हैं, जो तेज़ी के साथ विकसित होती हैं| यह किस्म की सिफारिश रेतली ज़मीनो के लिए की जाती है| यह लगभग 125-135 दिनों में पक जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10-12 कुविन्टल प्रति एकड़ होती है| इसमें से 64% दाने निकलते है| इसके दाने मोटे होते है, जिनमें 49% तेल की मात्रा होती है|

M-145: यह एक सामान्य किस्म है| यह किस्म बारानी और सिंचित क्षेत्रों के लिए उचित मानी जाती है| इसके पत्तों का रंग हल्का हरा होता है| इसकी फलियों में 1-4 दाने होता है, जिनकी गुठली का रंग जामुनी होता है| इसमें 77% दाने निकलते है| इसकी 100 गिरियों का भार 51 ग्राम होता है| इस किस्म में 29.4% प्रोटीन होता है| यह किस्म 125 दिनों में पक जाती है|

M-197: यह सामन्य फैलने वाली किस्म है, जिसकी सिफारिश पंजाब के क्षेत्रों के लिए की जाती है| यह किस्म 118-120 दिनों में पक जाती है| इसमें से 77% दाने निकलते है| इसकी औसतन पैदावार 7-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| इसके दानों में 51% तेल होता है|

ICGS1: यह स्पेन की उचित पैदावार देने वाली गुच्छेदार किस्म है| यह किस्म 112 दिनों में पक जाती है| यह किस्म शाखाओं पर गोल और तीखे धब्बे के रोग की रोधक है| इसमें से 70% दाने निकलते है| जिनमें 51% तेल की मात्रा होती है|

दूसरे राज्यों की किस्में

GG 21: इस किस्म की गुठलियां मोटी और आकर्षक खाकी रंग की होती हैं। यह उच्च पैदावार देने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 490 क्विंटल प्रति एकड़ है।

GG 8: इसकी पैदावार 690 क्विंटल प्रति एकड़ है, जो कि TAG 24 और JL 24 किस्म से 7-15 % ज्यादा है।

ज़मीन की तैयारी

पिछली फसल की कटाई के बाद, मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की जोताई करे और फिर समतल करें| आवश्यकता पड़ने पर बारानी हलातों के लिए तीसरी जोताई जून महीने या जुलाई के शुरू में करें| जोताई के लिए तवियों या हल का प्रयोग करें| जब खेत सदाबाहार नदीनों से प्रभावित हो, तो उस समय जोताई की जरूरत होती है| सिंचित हलातों में सिंचाई के स्त्रोतों के अनुसार खेत को क्यारियों में बांट लें और आवश्यकता-अनुसार आकार के बैड बनाएं| बिजाई से एक महीना पहले 5-7 टन मुर्गियों की खाद या 10 टन रूडी की खाद डालें| यह मिट्टी की बंतर और पौधे के विकास में सुधार करती है|

बिजाई

बिजाई का समय
बारानी हलातों में मूंगफली की बिजाई मानसून शुरू होने पर जून के अंत वाले हफ्ते या जुलाई के पहले हफ्ते में करें|
जितनी जल्दी हो सके बिजाई कर दें, क्योंकि बिजाई में देरी होने से पैदावार में कमी आ जाती है|
जबकि सिंचित हलातों में खरीफ की मूंगफली की बिजाई अप्रैल के अंत से मई के अंत तक करें|

फासला
फसल की किस्म के आधार पर फासला करें जैसे कि सामान्य फैलने वाली किस्म(M 522) के लिए कतारों के बीच का फासला 30 सैं.मी. और पौधों के बीच का फासला 22.5 सैं.मी. रखें| गुच्छेदार किस्में(SG 99, SG84) फासला 30x15 सैं.मी. रखें|

बीज की गहराई
बिजाई से लगभग 15 दिन पहले पूरी तरह विकसित और सेहतमंद फलियों में से गिरियां हाथों से निकाले| सीड ड्रिल के साथ 8-10 सैं.मी. की गहराई पर बीज बोयें और 38-40 किलो प्रति एकड़ के लिए प्रयोग करें|

बिजाई का ढंग
बिजाई सीड ड्रिल के साथ की जाती है|

ICRISAT विधि: चीन की तरह ज्यादा पैदावार लेने के लिए पॉलीथिन मलचिंग को उन्नत खेती के ढंग द्वारा अपनाया जाता है| पॉलीथिन मलचिंग के साथ मूंगफली की खेती करने से मूंगफली की फसल आम विधि से 10 दिन पहले पक जाती है| पॉलीथिन मलचिंग सूरज की रोशनी को जमा करके मिट्टी के तापमान को बढ़ाती है| मिट्टी का बढ़ीया तापमान फसल को जल्दी पकने में सहायता करता है| गर्म मौसम के दौरान यह मिट्टी को सूरज की सीधी और ज्यादा गर्म किरणों से बचाते है|

इस विधि में मूंगफली की खेती के लिए चौड़े बैडों और मेंड़ों का प्रयोग किया जाता है| मूंगफली की फलियों के बढ़ीया विकास के लिए चौड़े बैड और खलियान अनुकूल है, बैडों के आकार में थोड़े से बदलाव करके पॉलीथिन फिल्म लगा दें| बैड 60 सैं.मी. के फासले पर बनाएं और साथ ही मेंड़ों के लिए 15 सैं.मी. का फासला छोड़ दें| 4.5x6.0 मीटर के प्लाट में पांच बैड बनाएं जा सकते है| बैड बनाने और खाद डालने के बाद मिट्टी पर काले रंग की पॉलीथिन शीट(90 सैं.मी.चौड़ी) बिछा दें| सात माइक्रोन 20 किलो प्रति एकड़ पॉलीथिन शीट होनी चाहिए| शीट बिछाने से पहले आवश्यकता अनुसार 30x10 सैं.मी. के फासले पर सुराख बनाएं| इस विधि के लिए बीज की आम मात्रा का ही प्रयोग करें|

बीज

बीज की मात्रा
इसकी बिजाई के लिए 38-40 किलो बीज प्रति एकड़ में बोयें।

बीजों का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद और विकसित गुठलियों का प्रयोग करें| छोटी, सिकुड़ी हुई और बीमारी वाली गुठलियों का प्रयोग बिजाई के लिए ना करें। मिट्टी से पैदा होने वाली बिमारियों से बचाने के लिए 5 ग्राम थीरम या 2-3 ग्राम कप्तान या 4 ग्राम मैनकोजेब या करबोक्सिन 2 ग्राम कार्बेन्डाज़िम से प्रति किलो बीज का उपचार करें| रासायनिक उपचार के बाद 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स से प्रति किलो बीज का उपचार करें| बीजों के उपचार द्वारा नए पौधों को जड़-गलन से बचाया जा सकता है|

फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई मात्रा(प्रति किलो बीज)
Carbendazim 2gm
Captan 2-3gm
Thiram 5gm
Mancozeb 4gm
Chlorpyriphos 20EC 12.5ml

फसली चक्र

सिंचाई के साधकों की मौजूदगी में मूंगफली- पिछेती खरीफ का चारा/गोभी सरसों+तोरियां/आलू/मटर/तोरियां/रबी की फसलें आदि फसली-चक्र के तौर पर अपनाई जा सकती है| एक ही खेत में लगातार मूंगफली न बोयें, क्योंकि इस तरह करने से मिट्टी से पैदा होने वाली बिमारियों का हमला बढ़ जाता है|

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH GYPSUM
13 50 17 50

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6 8 10

 

खादों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें| आवश्यकता अनुसार ही खादों का प्रयोग करें और खादों का अनावश्यक प्रयोग ना करें| 13 किलो यूरिया और 50 किलो सिंगल सुपर फासफेट प्रति एकड़ में डालें और अगर मिट्टी में पोटाश की कमी हो तो 10 किलो पोटाश प्रति एकड़ में डालें, साथ ही जिप्सम 50 किलो प्रति एकड़ में डालें| जिप्सम का छींटा दें और खादों को बिजाई के समय ड्रिल कर दें| जिप्सम के साथ फलियों की बनतर में विकास होता है और फलियों में दानों की मात्रा बढ़ जाती है|

ज़िंक की कमी होने पर पौधे का ऊपरी हिस्सा छोटा रह जाता है और हल्का पीला दिखाई देता है| ज़िंक की गंभीर कमी होने पर पौधे का विकास रुक जाता है और गुठलियां सिकुड़ जाती हैं| इसकी रोकथाम के लिए ज़िंक सल्फेट हैप्टाहाईड्रेट 25 किलो या ज़िंक सल्फेट मोनोहाईड्रेट 16 किलो प्रति एकड़ में डालें| यह मात्रा 2-3 साल के लिए काफी है|

पानी में घुलनशील खादें

फलियों की पैदावार में सुधार लाने के लिए तत्वों के घोल की स्प्रे करें| यह घोल तैयार करने के लिए डी ऐ पी 2.5 किलो, अमोनियम सल्फेट 1 किलो और बोरेक्स 0.5 किलो को 37 लीटर पानी में मिलाकर पूरी रात रखें| अगली सुबह घोल को छान लें और लगभग 32 लीटर घोल को निकाल लें| फिर इसे 468 लीटर पानी में मिला लें, ताकि एक एकड़ के लिए 500 लीटर की स्प्रे तैयार हो जाएं| स्प्रे करने के समय प्लेनोफिक्स140 मि.ली. को भी मिलाया जा सकता है| इसकी स्प्रे बिजाई से 25 और 35 दिन बाद करें|

खरपतवार नियंत्रण

बढ़ीया पैदावार लेने के लिए पहले 45 दिन फसल को नदीनों से बचाने के लिए बहुत जरूरी है| खास तौर पर बिजाई से 3-6 हफ्ते बाद का समय बहुत ही नाज़ुक होता है| नदीनों के कारण आम-तौर पर 30% पैदावार कम हो जाती है और ध्यान ना देने पर यह 60% तक कम हो जाती है| इसलिए शुरुआती समय में मशीनों और रसायनों द्वारा नदीनों को रोका जा सकता है|

फसल में दो बार कसी से गोड़ाई करें, पहली बिजाई के 3 हफ्ते बाद और दूसरी पहली गोड़ाई के 3 हफ्ते बाद| फलियां बनने के समय गोड़ाई ना करें| नदीनों के अंकुरण से पहले फ्लूक्लोरालिन, 600 मि.ली. या पेंडीमिथालिन 1 लीटर को प्रति एकड़ में डालें और फ़ी बिजाई से 36-40 दिन बाद एक बार हाथों से गोड़ाई करें|

दूसरी गोड़ाई के समय जड़ों के साथ मिट्टी चढ़ाएं| यह मूंगफली की फसल के लिए एक जरूरी क्रिया है| बिजाई के 40-45 दिनों के बीच जड़ों के साथ मिट्टी चढ़ाने पर फलियों के संचार में आसानी होती है और इससे पैदावार में भी विकास होता है|

सिंचाई

फसल के अच्छे विकास के लिए मौसमी वर्षा के अनुसार 2 या 3 बार पानी लगाएं| पहला पानी फूल निकलने के समय लगाएं। खरीफ की ऋतु में यदि फसल को लंबे समय के लिए प्रभावित हो, तो फलियों के बनने पर सिंचाई करें। फलियों के विकास के लिए मिट्टी की किस्म के अनुसार 2-3 सिंचाइयां करें| मूंगफली की आसानी से पुटाई के लिए कुछ दिन पहले एक बार फिर से पानी लगाएं|

पौधे की देखभाल

चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा: इस कीड़े का हमला कम वर्षा पड़ने पर ज्यादा होता है। यह काले रंग के छोटे कीड़े पौधों का रस चूसते है, जिस कारण पौधों का विकास रुक जाता हैं और पौधा पीला दिखाई देता है| यह पौधे पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जो बाद में फंगस लगने के कारण काला हो जाता है।

इसकी रोकथाम के लिए रोगोर 300 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल 80 मि.ली. या मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी 300 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

सफेद सुंडी

सफेद सुंडी: इसकी भुंडी जून-जुलाई में पहले बारिश होने पर मिट्टी में से निकलती है। यह भुंडी आस पास के वृक्ष जैसे कि बेर, रूकमणजानी, अमरूद, अंगूर की बेल और बादाम आदि पर इकट्ठे होते हैं और रात को पत्तों को खाती है। यह मिट्टी में अंडे देती हैं और उनमें से निकली सफेद सुंडी मूंगफली की छोटी जड़ों या जड़ों के बालों को खा जाती हैं।

इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए खेत की मई-जून में दो बार जोताई करें ताकि सारे कीट ज़मीन से बाहर आ जाएं। फसल की बिजाई में देरी ना करें। बिजाई से पहले क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 12.5 मि.ली. से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। भुंडीयों की रोकथाम के लिए  कार्बरील 900 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे मध्य-जुलाई तक हर बारिश के बाद तक करते रहें| बिजाई के समय या उससे पहले 4 किलो फोरेट या 13 किलो कार्बोफिउरॉन प्रति एकड़ में डालें|

बालों वाली सुंडी

बालों वाली सुंडी: यह कीट ज्यादा गिनती में हमला करते हैं, जिससे पत्ते झड़ जाते हैं। इसका लार्वा लाल-भूरे रंग का होता है, जिसके शरीर पर काले रंग की धारियां और लाल रंग के बाल होते है|

बारिश के तुरंत बाद 3 या 4 रोशनी कार्ड का प्रयोग करें। खेत में से अण्डों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। सुंडियों को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित खेत के पास 30 सैं.मी. गहरे और 25 सैं.मी. चौड़े गड्ढे खोदें। शाम के समय खेत में ज़हर की गोलियां रख दें। जहरीली गोलियां बनाने के लिए 10 किलो चावल का आटा, 1 किलो गुड़ और 1 लीटर क्विनलफॉस मिला दें। लार्वे की रोकथाम के लिए 300 मि.ली. क्विनलफॉस प्रति एकड़ में डालें|  बड़ी सुंडियों की रोकथाम के लिए 200 मि.ली. डाइक्लोरवॉस 100 ई सी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

मूंगफली के पत्तों का सुरंगी कीट

मूंगफली के पत्तों का सुरंगी कीट: इसका लार्वा पत्तों में सुराख कर के पत्तों में सुराख़ करके पत्तों पर जामुनी रंग के धब्बे बना देते हैं। कुछ समय बाद यह झुण्ड बनाकर पत्तों पर रहते हैं। यह मुड़े हुए पत्तों में रहती है। गंभीर हमले के कारण फसल झुलसी हुई दिखाई देती है| प्रति एकड़ में 5 रोशनी कार्ड का प्रयोग करें। डाइमैथोएट 30 ई.सी. 300 मि.ली. या मैलाथियॉन 50 ई.सी. 400 मि.ली. या मिथाइल  डेमेटान 25%  ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें|

दीमक

दीमक: यह  कीट फसल की जड़ों और तने में जा कर पौधों को नष्ट करता है| यह फलियों और बीजों में सुराख़ करके नुकसान पहुंचाता है। इसके हमले से पौधा सूखना शुरू हो जाता है। अच्छी तरह गली हुई रूड़ी की खाद का प्रयोग करें। फसल की पुटाई देर से ना करें। इसके बचाव के लिए बिजाई से पहले 6.5 मि.ली. क्लोरपाइरीफॉस से प्रति किलो बीज का उपचार करें | बिजाई से पहले विशेष खतरे वाले इलाकों में 2 लीटर क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव प्रति एकड़ में करें|

फली छेदक

फली छेदक: यह छोटे पौधों में सुराख़ बना देते हैं और अपना मल छोड़ते है| इसके छोटे कीट  शुरू में सफेद रंग के होते  हैं और फिर भूरे रंग की के हो जाते हैं।

प्रभावित इलाकों में मैलाथियोन 5 डी 10 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 % सी जी 13 किलो प्रति एकड़ में मिट्टी में बिजाई से 40 दिन पहले डालें।

टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग: इसके कारण पत्तों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे पड़ जाते हैं, और आस पास हल्के पीले रंग के गोल धब्बे होते हैं।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए सही बीज का चुनाव करें| सेहतमंद और बेदाग बीजों का ही प्रयोग करें। बिजाई से पहले 5 ग्राम थीरम(75%) या 3 ग्राम इंडोफिल एम-45(75%) से प्रति किलो बीज का उपचार करें। फसल के ऊपर घुलनशील सलफर 50 डब्लयू पी 500-750 ग्राम को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यह स्प्रे अगस्त के पहले सप्ताह में शुरू करें और 15 दिनों के फासले पर कुल 3-4 स्प्रे करें । सिंचित फसलों पर कार्बेनडाज़िम (बाविस्टिन, डीरोसोल, एग्रोज़िम) 50 डब्लयू पी 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। बिजाई से 40 दिन बाद 15 दिन के फासले पर 3 स्प्रे करें|

बीज गलन या जड़ गलन

बीज गलन या जड़ गलन: यह बीमारी एसपरगिलस नाइजर के कारण होती है। यह फल के निचली जड़ों वाले भाग पर हमला करती है| इससे पौधे सूख कर नष्ट हो जाते है| इसकी रोकथाम के लिए बीजों का उपचार बहुत जरूरी होता है। 3 ग्राम कप्तान या थीरम से प्रति किलो बीज का उपचार करें|

आल्टरनेरिया झुलस रोग

झुलस रोग: इससे पौधे के पत्तों पर हल्के से गहरे भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में प्रभावित पत्ते अंदर की तरफ मुड़ जाते है और भुरभुरे हो जाते है| ए. आलटरनेटा द्वारा पैदा हुए धब्बे, गोल और पानी वाले होते है, जो पत्ते की पूरी सतह पर फैल जाते है|

अगर इसका हमला दिखाई दें तो मैनकोजेब 3 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और कार्बेन्डाज़िम 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें|

कुंगी

कुंगी: इससे सबसे पहले पत्तों के निचली तरफ दाने बन जाते हैं। यह फूल और शिखर को छोड़कर पौधे के प्रत्येक हिस्से पर होती है। गंभीर हमले से प्रभावित पत्ते अकर्मक हो कर सूख जाते है, पर पौधे से जुड़े रहते हैं।

इस बीमारी का हमला दिखने पर 400 ग्राम मैनकोजेब या क्लोरोथैलोनिल 400 ग्राम या घुलनशील सल्फर 100 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर दूसरी स्प्रे 15 दिनों के बाद दोबारा करें।

कमी और इसका इलाज

पोटाशियम की कमी
इसकी कमी से पत्ते बढ़ते नहीं है और बे-ढंगे हो जाते है| पके हुए पत्ते पीले दिखाई देते है और नाड़ियां हरी रहती है|
इसकी पूर्ति के लिए मिउरेट ऑफ पोटाश 16-20 किलो प्रति एकड़ में डालें।

कैल्शियम की कमी
यह कमी ज्यादातर हल्की या तेज़ाबी मिट्टी में पाई जाती है| इसकी कमी से पौधे पूरी तरह से नहीं विकास करते और मुड़े हुए नज़र आते है|
इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ में खूंटी बनने के समय डालें|

लोहे की कमी
इसकी कमी से पत्ते सफेद दिखाई देते है|
इसकी पूर्ति के लिए सल्फेट 5 ग्राम + सिटरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर एक सप्ताह के फासले पर स्प्रे करें। स्प्रे तब तक जारी रखें जब तक कमी पूरी ना हो जाये।

जिंक की कमी
इसकी कमी से पौधे के पत्ते गुच्छों में दिखाई देते हैं, पत्तों का विकास रूक जाता है और छोटे नज़र आते हैं।
इसकी पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे 7 दिनों के फासले पर 2-3 बार करें|

सल्फर की कमी
इसकी कमी से नए पौधों का विकास रूक जाता है और आकार में छोटे नज़र आते हैं छोटे पत्ते भी पीले हो जाते है| पौधे के पकने में देरी होती है।
इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ पर बिजाई और खूंटी बनने के समय डालें|

फसल की कटाई

खरीफ की ऋतु में बोयी फसल नवंबर महीने में पक जाती है, जब पौधे एक जैसे पीले हो जाते है और पुराने पत्ते झड़ने शुरू हो जाते है| अंत-अप्रैल से अंत-मई में बोई गयी फसल मानसून के बाद अंत-अगस्त और सितंबर में पक जाती है| सही पुटाई के लिए मिट्टी में नमी होनी चाहिए और फसल को ज्यादा पकने ना दें| जल्दी पुटाई के लिए पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की तरफ से तैयार किये गए मूंगफली की पुटाई करने वाले यंत्र का प्रयोग करें| पुटाई की हुई फसल के छोटे-छोटे ढेरों को कुछ दिन के लिए धुप में पड़े रहने दें| इसके बाद 2-3 दिनों के लिए फसल को एक जगह पर इकट्ठा करके रोज़ाना 2-3 बार तरंगली से झाड़ते रहे, ताकि फलियों और पत्तों को पौधे से अलग किया जा सके| फलियों और पत्तों को इकट्ठा करके देर लगा दें| स्टोर करने से पहले फलियों को 4-5 दिनों के लिए धुप में सूखा लें|

बादलवाही वाले दिनों में फलियों को अलग करके ऐयर ड्राइयर में 27-38° सै. तापमान पर दो दिन के लिए या फलियों के गुच्छे को (6-8%) सूखने तक रहने दें|

कटाई के बाद

फलियों को साफ और छांटने के बाद बोरियों में भर दें और हवा के अच्छे बहाव के लिए प्रत्येक 10 बोरियों को चिनवा दें । बोरियों को गलने से बचाने के लिए बोरियों के नीचे लकड़ी के टुकड़े रख दें।

गिरियां तैयार करना: खानेयोग्य गिरियों को छिलके से अलग कर लें| भारत धुली हुई, भुनी हुई और सूखी हुई गिरियां तैयार करने के लिए भी जाना जाता है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare