• कैंसर - इसके लक्षण हैं सांस लेने में कठिनाई, सुस्ती, तेजी से वजन घटना, अचानक लंगड़ापन, भूख की कमी और पेशाब में कठिनाई होना। अधिक उम्र के कुत्तों में यह बीमारी ज्यादातर पायी जाती है। मुख्य रूप से बोस्टन टेरियन, गोल्डन रिटिराइवरज़ और बॉक्सरज़ नस्लें हैं जिनमें ट्यूमर विकसित होता है और ग्रेट डेन्स और सेंट बर्नार्ड नसलों में हड्डियों का कैंसर मुख्यत: पाया जाता है।
इलाज - कैंसर की किस्म और अवस्था के आधार पर इलाज करवाना चाहिए। इलाज में मुख्यत: कीमोथेरेपी, रेडिएशन, सर्जरी और इम्यूनोथेरेपी शामिल होती है।
• शूगर- यह बीमारी मुख्यत: इंसुलिन हारमोन की कमी या इंसुलिन की अपर्याप्त प्रतिक्रिया के कारण होती है। इसके लक्षण हैं, सुस्ती, उल्टियां, क्रॉनिक त्वचा संक्रमण, अंधापन, डीहाइड्रेशन, भार कम होना और बार बार पेशाब आना। मुख्य रूप से यह 6-9 वर्ष के कुत्तों में शूगर के कारण होता है। पूडलज़, केज हंड, डेशुंड, और सिनाउज़र, सैमाइड, टेरिअर नस्लों में यह बीमारी मुख्यत: पायी जाती है। गोल्डन रिट्रीवर और कीशोंड्ज़ नसल में जुवेनाइल डायबिटीज़ पायी जाती है।
इलाज - उचित रक्त नियमन के लिए इंसुलिन के इंजैक्शन जरूरी होते हैं।
• हार्टवॉर्म - इसके लक्षण हैं सांस लेने में कठिनाई, उल्टियां, खांसी होना, भार कम होना और थकान होना। यह बीमारी मुख्यत: जानवर को जानवर से मच्छरों के द्वारा फैलती है।
इलाज- हार्टवॉर्म बीमारी के इलाज के लिए एडल्टीसाइड्ज़ नाम की दवाई कुत्ते की मांसपेशी में दी जाती है।
• केन्नल कफ- इसके लक्षण हैं आवाज के साथ सूखी खांसी, बुखार और नाक बहना।
इलाज - केन्नल कफ से राहत के लिए रोगाणुरोधी या खांसी कम करने वाली दवाई देने की सिफारिश की जाती है।
• रेबीज़ - रेबीज़ के लक्षण हैं अतिसंवेदनशील, बुखार, भूख में कमी, कमज़ोरी, जबड़े और गले की मांसपेशियों का लकवाग्रस्त होना, अचानक मृत्यु आदि।
इलाज - कुत्ते को रेबीज़ एक बार हो जाने पर इसका कोई इलाज नहीं है। इस बीमारी के परिणामस्वरूप अचानक मृत्यु हो जाती है।
• पारवोवायरस - इसके लक्षण हैं भूख में कमी, सुस्ती, अधिक उल्टी होना, रक्त और दुर्गंध वाला डायरिया आदि।
इलाज - 6-8 सप्ताह के कुत्ते को पारवोवायरस के टीके की सिफारिश की जाती है और फिर 16-20 सप्ताह तक इसे बूस्टर के तौर पर दिया जाता है।
• दाद - इसके लक्षण हैं कानों, पंजों, सिर और शरीर के अगले भागों आदि पर धब्बों का पड़ना। दाद, आकार में गोल और धब्बेदार होते हैं। कम उम्र के कुत्ते इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
इलाज - दाद के इलाज के लिए चिकित्सीय शैंपू या लेप की सिफारिश की जाती है।
• केनिन डिस्टेम्पर - 3-6 महीने के कुत्ते इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इसके लक्षण हैं उल्टी, खांसी, डायरिया और निमोनिया।
इलाज - एंटीबायोटिक जैसे क्लोरमफेनीकोल या एम्पीसिलिन या जेंटामिसिन 5-7 दिनों के लिए दें।
रोकथाम - 7-9 सप्ताह के कुत्ते को पहला टीका लगवाना चाहिए और फिर दूसरा टीका 12-14 सप्ताह के बच्चे को लगवाना चाहिए।
• लेप्टोसपिरोसिस - यह एक विषाणु रोग है जो कि लेप्टोस्पिरा केनीकोला और लेप्टोस्पिरा इक्टीरोहेमोरहाजिका के कारण होता है। इसके लक्षण हैं शरीर के तापमान का बढ़ना, उल्टियां और यूरीमिया।