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आम जानकारी

यह नस्ल उत्तर-पूर्व भारत में पायी जाती हैं। यह नस्ल एन. ई. एच. क्षेत्र, मेघालय के लिए आई.सी.ए.आर. रिसर्च कॉम्प्लेक्स पर उपलब्ध है। यह एक अच्छी नस्ल मानी जाती है। इस के शरीर का रंग लाल होता है। ड्यूरोक नस्ल की लम्बाई मध्यम होती है और कान ढके हुए होते हैं। यह नस्ल मुख्य रूप से अमेरिका में उत्पन्न हुई और भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में पायी जाती है। नर सुअर का वजन 500-750 किलोग्राम और मादा सुअर का वजन 204-295 किलोग्राम होता है।
 

चारा

खाद्य प्रबंधन:
सूअरों को ऐसी फ़ीड की ज़रूरत होती है जो पौष्टिक हो और उनकी भूख को संतुष्ट कर सके। सूअरों को ताजा खाना बहुत पसंद होता है। वे विभिन्न प्रकार के खाने को पसंद करते हैं जिनमें कई तरह की किस्में और स्वाद हों।वे अलग प्रकार का भोजन जैसे कि जलीय पौधे, फल, नट्स, मांस, झाड़ियों और सभी प्रकार की सब्जियों को विशेष रूप से बंद गोभी को खाते हैं। उन्हें स्वाद और बनावट के लिए मिट्टी खाना भी पसंद होता है। वे अधूरे भोजन और कूड़े को भी ख़ुशी से खाते हैं। सुअर प्रति दिन औसतन 2-3 किलो भोजन खाते हैं। आहार सुअर की आयु और वजन के हिसाब से अलग-अलग होता है। सुअर के आहार में अनाज और प्रोटीन की खुराक होनी चाहिए। मुख्य रूप से उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सुअर के आहार में कसावा, ज्वार, जवी, गेंहू, चावल, बिनौले, मछली का आहार (फिश मील), मक्का चोकर, पूर्व मिश्रित विटामिन और पानी शामिल हैं।सुअर आहार में एक पूरक के रूप में विटामिन बी 12 आवश्यक है।अच्छी वृद्धि के लिए खनिज की खुराक भी दी जानी चाहिए।
 
नर सूअरों की खुराक:
सूअरों कि उम्र और सेहत के हिसाब से उन्हें खाना दिया जाता है।एक सामान्य सूअर जिसका वजन 100 किलोग्राम हो को  2-2.5 किलोग्राम खाने की आवश्यकता होती है।यदि सूअरों को घर के अंदर रखा जाता है, तो उनको हरी फीड दी जानी चाहिए।
 
मादा सूअरों की खुराक:
आहार में विटामिन, खनिज और प्रोटीन सामग्री दी जानी चाहिए। गर्भ के दौरान फीड को संभोग से 1-2 पहले बढ़ाया जाना चाहिए। एक मादा सूअर जिसका वजन 100 किलोग्राम हो को  2.5-3 किलोग्राम खाने की आवश्यकता होती है।
 
दूध पीते सूअर के बच्चो की खुराक:
पौष्टिक भोजन जिसे क्रीप फ़ीड के नाम से जाना जाता है वह सूअर के बच्चो को दिया जाना चाहिए। 8 सप्ताह की उम्र तक पहुंचने से पहले प्रत्येक सूअर के बच्चे को 10 किलोग्राम क्रीप फ़ीड दी जाती है।
 

नस्ल की देख रेख

रहने की व्यवस्था: सुअर पालने के लिए उचित भूमि जो शोर से मुक्त और शांत हो, को चुनें। सूअर पालन के लिए जो भी सुविधाएँ आवशयक होती है वे सभी चुनी हुई भूमि पर होनी चाहिए। सुनिश्चित करें कि पास में बाजार और पशु चिकित्सा सेवा मौजूद हो। उस भूमि को चुनें, जिसमें अच्छा हवा का परवाह, उपयुक्त मौसम और सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हों।
 
गर्भवती मादा सूअर का रख-रखाव: प्रजनन मुख्य रूप से किया जाता है जब नर और मादा सूअर 8 महीने के हों। प्रजनन के बाद, गर्भावस्था अवधि 115 दिनों के लिए रहती है और वे 8-12 बच्चों को जन्म देती हैं। गर्भवती मादा पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है। बच्चों के जन्म से एक हफ्ता पहले गर्भवती मादा को अलग क्षेत्र, भोजन और पानी दिया जाना चाहिए।
 
नवजात बच्चो का रख-रखाव: जन्म के बाद बच्चों को गरम जगह पर रखा जाता है। हर एक सूअर के नाल को एक नरम कपडे से साफ़ करना चाहिए। साफ़ करने के बाद नाभि की नाड को हटा देना चाहिए और स्टंप आयोडीन से साफ किया जाना चाहिए। 4 जोड़े के तेज दांतों का कतरन (कटिंग) किया जाना चाहिए। ये थन को नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए जरूरी है। बच्चों 2-3 को सप्ताह बाद सूखी फीड देनी चाहिए।

सिफारिश टीकाकरण: सुअर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उचित समय पर उचित टीके दिए जाने चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक टीकाकरण के साथ हर बार जुएं निकलना भी आवश्यक है। कुछ टीके जैसे कि डीवर्मिंग प्रत्येक वर्ष में एक बार आवश्यक होता है। कुछ प्रमुख टीके या दवाइयां जो सुअर के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं, इस प्रकार हैं:
बच्चे के जन्म के 3 और 10 दिनों के बाद, 1ml और 2ml आयरन का इंजेक्शन गर्दन पर दिया जाता है।
जन्म के 24 घंटों के भीतर ओरल आयरन का पेस्ट बच्चे के मुंह में रखा जाता है।
बुखार से रोकने के लिए 2-4 सप्ताह का होने पर सुअर को टीका लगा दें।
लकड़ी को राख भी दिया जाता है क्योंकि यह पशु को महत्वपूर्ण खनिज देता है।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली फीड खाद भी दी जाती है।
यदि किसी भी बीमारी से संबंधित कोई लक्षण दिखाई देते हैं तो तत्काल पशु चिकित्सक से परामर्श करें।
 

बीमारियां और रोकथाम

कोलीबैसिलोसिस: इसमें सबसे पहले दस्त होते हैं और फिर जानवर की अचानक मृत्यु होती है।
उपचार: इस रोग को ठीक करने के लिए पशु को द्रव चिकित्सा या एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं।
 

 

 


कुकड़िया रोग: दस्त 10-21 दिनों के शिशु को होते हैं।
उपचार: बीमारी का इलाज करने के लिए फ्लूइड थेरेपी या कॉकसीडायस्ट्स दिया जाता है।
 

 

 

 

भुखमरी (हाइपोग्लाइसीमिया): सबसे पहले कमजोरी आती है और फिर जानवर की मृत्यु हो जाती है।
उपचार: बीमारी का इलाज करने के लिए डेक्सट्रोज़ समाधान या पूरक आहार दिया जाता है|
 

 

 

 


एक्जीडेटिव एपिडर्मिटिसः शरीर की त्वचा पर घाव पाए जाते हैं फिर मृत्यु हो जाती है।
उपचार: विटामिन और त्वचा का बचाव करने वाली एंटीबायोटिक दवाइयां रोग से राहत पाने के लिए दी जाती हैं।
 

 

 

 


श्वसन रोग: छींकना, खाँसी और सूअर का विकास रुक जाना इस रोग के लक्षण हैं और कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है।
उपचार: उपयुक्त एंटीबायोटिक दवाइयां देकर या वेंटिलेशन में सुधार करके रोग को ठीक करने में मदद मिलती है।
 

 



स्वाइन पेचिश: इस रोग में खुनी दस्त या दस्त हो जाते हैं और पशु के विकास की दर कम हो जाती है और अंततः पशु की मृत्यु हो जाती है।
उपचार: सुअरो की संख्या को समान्य रख कर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

 

 

 


प्रोलिफेरेटिव एंटरपैथी: इस रोग में रक्त या डायरिया के साथ दस्त हो जाते है, विकास दर कम हो जाती है और अंततः पशु की अचानक मौत हो जाती है।

उपचार: प्रोलिफेरेटिव एंटीऑप्टैथी का इलाज करने के लिए आयरन या विटामिन की खुराक दी जाती है।

 

 



सरकोप्टीक मैंजे: इस बीमारी के लक्षण खुजली, खरोंच, रगड़ और विकास दर कम कर रहे हैं।

उपचार: बीमारी का इलाज करने के लिए मिटीसीडल स्प्रे या इंजेक्शन दिए जाते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

आंतों का मरोड़ा: इसका परिणाम पशु की अचानक मृत्यु हो जाती है।

उपचार: पशु को आहार बदल बदल कर देना इस रोग से छुटकारा पाने में मदद करता है।

 
आंतरिक कीट (कीड़े): इस रोग में दस्त होता है या कम वृद्धि या निमोनिया होता है।
उपचार: फीड या इंजेक्शन के माध्यम से कीटनाशक दिए जाते हैं जो रोग को ठीक करने में मदद करते हैं।
 
बच्चा पैदा करने पर कमजोरी: इस बीमारी के लक्षण दूध उत्पादन में कमी, भूख की हानि और शरीर के तापमान में वृद्धि होना है।
उपचार: रोग से इलाज करने के लिए ऑक्सीटोक्सिन या सोजिश ठीक करने वाली दवाएं जानवर को दी जाती हैं।
 


लंगड़ापन: इस बीमारी में प्रजनन क्षमता घट जाती है और समय से पूर्व प्रसव भी हो सकता है।
उपचार: इसका कोई गंभीर इलाज नहीं है लेकिन चोटों को रोकने के द्वारा इसे रोका जा सकता है।
 

 

 

 

योनि स्राव सिंड्रोम: रोग मुख्य रूप से प्रजनन पथ में संक्रमण का कारण बनता है।

उपचार: इस रोग से इलाज करने के लिए सूअर के मादा सूअर के शिशन मुख पर खुली त्वचा का एंटीबायोटिक उपचार दिया जाता है।
 

मूत्राशय / गुर्दा संक्रमण: मूत्र में खून आना इस रोग का पहला लक्षण है, फिर अचानक पशु की मृत्यु हो जाती है।

उपचार: इस रोग से इलाज करने के लिए सूअर की मूत्र नली का एंटीबायोटिक उपचार किया जाता है।
 


इरिसिपेलस: यह रोग में पशु की प्रजनन प्रक्रिया में विफलता या गर्भपात का कारण बनता है।
उपचार: इस बीमारी का इलाज करने के लिए पेनिसिलिन का इंजेक्शन 1 मिलि / 10 किलो वजन के हिसाब से दिया जाता है जो कि इरिसिपेलस को ठीक करने में मदद करता है। बीमारी का इलाज होने तक 3-4 दिनों तक इंजेक्शन जारी रखें।
 

 

 
गैस्ट्रिक अल्सर: इस बीमारी के लक्षण उल्टी, भूख न लगना, गोबर के निचले हिस्से में रक्त आदि हैं और इससे अचानक मौत हो सकती है।
उपचार: गैस्ट्रिक अल्सर से इलाज करने के लिए विटामिन ई को खुराक में मिलकर 2 महीने तक दिया जाता है।
 


पी. एस. एस. (पोर्सिन तनाव सिंड्रोम): इसे अत्याधिक ताप के रूप में भी जाना जाता है इसके लक्षण हैं पसीना आना, आंशिक रूप से मृत, धड़कन का बहुत तेज होना या असाधारण तरीके से चलना और बुखार होना आदि।
उपचार: एनेस्थेसिया के तहत डेंट्रालेन सोडियम उपचार एक प्रभावी उपचार है।