पंजाब में ज्वार की फसल

आम जानकारी

ज्वार उत्तरी अफ्रीका और मिसरी सुदनीस सरहद पर 5000-8000 वर्ष पहले की जमपल फसल है। यह भारत के अनाजों में तीसरी महत्तवपूर्ण फसल है। यह फसल चारे के लिए और कईं फैक्टरियों में कच्चे माल में प्रयोग की जाती है। यू एस ए और अन्य कईं देशों में इसका प्रयोग होता है। यू एस ए ज्वार की पैदावार में सबसे आगे है। भारत में महांराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तामिलनाडू, राज्यस्थान और उत्तर प्रदेश इस फसल के मुख्य प्रांत हैं। यह खरीफ ऋतु की चारे की मुख्य फसल है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 16°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 16°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 16°C
  • Season

    Temperature

    25°C - 32°C (Max)
    18°C (Min)
  • Season

    Rainfall

    40 cm annual
  • Season

    Sowing Temperature

    25°C - 30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18°C - 16°C

मिट्टी

यह बहुत तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है, पर रेतली मिट्टी और जल निकास वाली मिट्टी में अच्छी उगती है। 6-7.5 पी एच फसल के विकास और वृद्धि के लिए अनुकूल है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

SL44:- यह मीठी, रसीली, पतले तने वाली किस्म पूरे पंजाब में खरीफ ऋतु में सिंचित हालातों के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

SL 45 (2022)(Single cut): यह लम्बे पौधों (297 सेंटीमीटर), चौड़ी पत्तियों और देर से पकने वाली एक ही कटाई वाली किस्म है। इसका तना रसदार और मीठा होता है। यह पत्तों के लाल धब्बा रोग के लिए उच्च स्तर पर प्रतिरोधी और धारीदार पत्ता धब्बा रोग के लिए दरमियानी स्तर पर प्रतिरोधक है। इसमें उच्च पोषण गुणवत्ता है विशेष रूप से कच्चे प्रोटीन और विट्रो में शुष्क पदार्थ की पाचनशक्ति के रूप में। इसकी औसतन पैदावार 271 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Punjab Sudax Chari 4 (2015) (multi cut): यह ज्वार की हाइब्रिड किस्म है जिसकी अत्यधिक बार कटाई की जा सकती है। बिजाई के 60 दिनों के बाद, पौधे चौड़े पत्तों के साथ लम्बे और पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। यह पत्तों के धब्बा रोग और ज्वार की मक्खी के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है। समय पर बोई गई फसल से तीन अच्छी प्रकार की कटाई प्राप्त होती है इसकी औसतन पैदावार 445 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Punjab Sudax: यह ज्वार की दोगली किस्म है। इसके पौधे लंबे, पत्ते मोटे और चौड़े होते हैं। तना मीठा और रसीला होता है। सही समय पर बोयी फसल 3 बार काटी जा सकती है। यह किस्म पत्तों के लाल धब्बा रोग की रोधक हैं इसकी औसतन पैदावार 480 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में 

SSG 59-3

Pusa Chari

HC 136

Pusa Chari 9

Pusa Chari 23

MP Chari

HC 260, HC 171

Harasona 855 F

MFSH 3

ज़मीन की तैयारी

वर्ष में एक बार गहराई तक जोताई करें। क्रॉस हैरो के बाद 1-2 बार जोताई करें। खेत इस तरह से तैयार करें कि यह पानी में ना खड़़ा रहे।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई का सही समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है। अगेती हरे चारे के लिए इसकी बिजाई मार्च के मध्य में की जाती है।
 
फासला
बिजाई के लिए फासला 45 सैं.मी.x15 सैं.मी. या 15 सैं.मी. या 60 सैं.मी.x10 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बीज को 2-3 सैं.मी. से गहरा नहीं बोना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
उत्तरी भारत में ज्वार की बिजाई छींटा देकर हलों के द्वारा पंक्तियों में बोयी जाती है। बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 30-35 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीज को 300 मैश 4 ग्राम सल्फर चूरा और अजोओबैक्टर 25 ग्राम प्रति किलो से बीज को बिजाई से पहले उपचार करें।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी का प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 2gm
Captan 2gm
Thiram 2gm

 

 

 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH ZINC
44 50 16 #

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
20 8 10

 

बिजाई से पहले 4-6 टन हरी खाद या रूड़ी की खाद मिट्टी में डालें। बिजाई के शुरूआती समय में नाइट्रोजन 20 किलो (44किलो यूरिया), फासफोरस 8 किलो (16 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 10 किलो (16 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा से बिजाई के समय डालें। बची हुई खाद बिजाई के 30 दिनों के बाद डालें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

बिजाई से 1-2 दिन बाद मिट्टी में नमी के समय 800 ग्राम एंट्राज़िन प्रति एकड़ में (150 लीटर पानी) के साथ स्प्रे करें। स्प्रे के समय मिट्टी में आवश्यक नमी होनी चाहिए।

सिंचाई

अच्छी पैदावार के लिए फूल निकलने के समय और दानों के बनने के समय सिंचाई करें। कई बार सिंचाई नाज़ुक हालात पैदा कर देती है। खरीफ में बारिश के अनुसार 1 से 3 बार सिंचाई की जा सकती है। रबी और गर्मी के समय आवश्यक हालातों में सिंचाई की जानी चाहिए। यदि पानी की कमी हो, तो पानी फूल बनने से पहले और फूल बनने के समय लगाएं।

पौधे की देखभाल

ज्वार की मक्खी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
ज्वार की मक्खी : यह नए पत्तों के ऊपर अंडे देती है। अंडे सफेद रंग के और बेलनाकार के होते हैं जबकि प्रौढ़ कीट सलेटी रंग के हो जाते हैं। छोटे कीट पीले रंग के होते हैं और तने के अंदर वृद्धि करके तने को काट देते हैं और डेड हार्ट का उत्पादन करते हैं। प्रभावित पौधे में आस पास पत्तों का उत्पादन होता है। पौधे को खींचने पर पौधा आसानी से बाहर निकल आता है और गंदी दुर्गंध देता है। 1 से 6 सप्ताह के पौधे इस कीट के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
 
बिजाई में देरी ना करें। पिछली फसल की कटाई के बाद, खेत साफ करें और बचे पौधे बाहर निकाल  दें। बिजाई से पहले बीज को इमीडाकलोप्रिड 70 डब्लयु एस 4 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधे को निकालें और खेत में से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। हमले की हालत में मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 200 मि.ली. और डाइमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें। 
तना छेदक
तना छेदक : इसके अंडे लंबे पत्ते के नीचे की ओर गुच्छे में होते हैं। यह सुंडी पीले भूरे रंग की होती है। जिसका सिर भूरा होता है। पतंगे तूड़ी रंग के होते हैं। हमले के दौरान पत्तों का सूखना और उनका झड़ना देखा जा सकता है। पत्तों के ऊपर छोटे छोटे सुराख नज़र आते हैं।
 
इस कीट की जांच के लिए मध्य रात्रि तक रोशनी कार्ड लगा दें। इसे तने छेदक के प्रौढ़ कीट आकर्षित होते हैं और मर जाते हैं। फोरेट 10 जी 5 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 जी 10 किलो को रेत में मिलाकर 20 किलो मात्रा बना लें और पत्ते के छेदों में डालें। इससे बचाव के लिए कार्बरील 800 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
गोभ की सुंडी
गोभ की सुंडी : इसके अंडे सफेद और गोल आकार के होते हैं। इसके अंडे क्रीमी सफेद और गोलाकार आकार के होते हैं। कीटों का रंग हरे से भूरे रंग के साथ शरीर पर भूरी सलेटी रंग की धारियां होती हैं। प्रौढ़ कीट हल्के भूरे पीले रंग के होते हैं। इन कीटों का हमला होने पर बालियां आधी खायी हुइ लगती हैं और चूने जैसी दिखाई देती हैं। बालियों में इनका मल देखा जा सकता है।
 
हमले की जांच के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। फूल निकलने से दानों के पकने तक 5 सैक्स फेरोमोन कार्ड  प्रति एकड़ में प्रयोग करें। कार्बरील 10 डी 1 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 
बालियों की सुंडी
बालियों की सुंडी : जब दाने दूधिया अवस्था में होते हैं तो छोटे और प्रौढ़ कीट दानों में से रस चूसते हैं। जिसके कारण दाने सिकुड़ जाते हैं और काले रंग के हो जाते हैं। बालियों पर बड़ी संख्या में छोटे कीटों को देखा जा सकता है। ये कीट पतले और हरे रंग के होते हैं। बालियों के नर प्रौढ़ कीट हरे रंग के होते हैं। और मादा भी हरे रंग के और किनारों पर से भूरे रंग के होते हैं।
 
बालियों के निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में छिड़कें। मैलाथियोन 50 ईसी 400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर 10 प्रतिशत बालियों के निकलने पर स्प्रे करें।  
ज्वार का मच्छर
ज्वार का मच्छर : यह कीट छोटे मच्छर के आकार का होता है। जिसका पेट गहरा संतरी रंग का और पारदर्शी पंख होते हैं। छोटे कीट विकसित दानों को अपना भोजन बनाते हैं। लार्वा अंडकोश से अपना भोजन लेता है और विकसित दानों को नष्ट कर देता है जिससे दाने आधे हो जाते हैं। दानों पर लाल रंग के चिपचिपे पदार्थ का निकलना छोटे कीटों की मौजूदगी को दर्शाता है।
 
इन कीटों को आकर्षित करने के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो बालियां निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन प्रति एकड़ में डालें। 
एंथ्राक्नोस
  • बीमारियां और रोकथाम
एंथ्राक्नोस : पत्तों की दोनों तरफ छोटे लाल रंग के धब्बे जो बीच में से सफेद रंग के होते हैं, पड़ जाते हैं। प्रभावित भाग के सफेद सतह के ऊपर कई छोटे छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो फंगस के जीवाणु होते हैं। तने के ऊपर गोलाकार कोढ़ विकसित हो जाता है। जब हम प्रभावित तने को काटते हैं तो यह बेरंगा दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश, उच्च नमी और 28-30 डिगरी सैल्सियस तापमान पर ज्यादा फैलती है। 
 
फसल को लगातार ना उगाएं। अंतरफसली अपनायें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 300 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कुंगी
कुंगी : यह बीमारी फसल की वृद्धि वाली अवस्था में हमला करती है। पत्तों के निचली तरफ लाल रंग के छोटे धब्बे देखे जा सकते हैं। पत्तों की दोनों सतहों पर दाने बन जाते हैं और पत्तों के फटने पर लाल रंग का पाउडर निकलता है। तने के नज़दीक और तने पर भी दाने पड़ जाते हैं। यह बीमारी कम तापमान 10-12 डिगरी सैल्सियस के साथ बारिश वाले मौसम में भी हमला करती है।  
 
कुंगी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 250 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। या सल्फर 10 किलो को प्रति एकड़ में छिड़कें।
गुंदिया रोग
गुंदिया रोग : इस बीमारी के कारण प्रभावित फूल में से शहद जैसा पदार्थ निकलता है।  यह पदार्थ कई कीटों और कीड़ियों को आकर्षित करता है और बालियां काले रंग की दिखाई देती हैं। मिट्टी के ऊपर प्रभावित पौधे के आधार पर सफेद रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। फूल निकलने के समय अधिक बारिश, उच्च नमी और बादलवाई में यह बीमारी अधिक फैलती है।
 
गुंदिया रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले 2 प्रतिशत नमक के घोल में बीजों को भिगोयें, इस रोग से प्रभावित बीजों को निकाल दें। कप्तान या थीरम 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज़ीरम, ज़िनेब, कप्तान या मैनकोजब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर बालियां निकलने के समय स्प्रे करें। दूसरी स्प्रे 50 प्रतिशत फूल निकलने के समय करें। यदि जरूरत पड़े तो सप्ताह में एक सप्ताह में दोबारा स्प्रे करें।
दानों पर फंगस
दानों पर फंगस : फूल निकलने या दानें भरने के समय नमी वाले मौसम के कारण बालियों पर फंगस पड़ जाती है। घनी बालियां इस बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
 
पिछेती बिजाई ना करें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि बालियां निकलने के दौरान बारिश हो जाये तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कप्तान 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पत्तों के निचले धब्बे
पत्तों के निचले धब्बे : पत्तों की निचली सतह पर सफेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। पत्ते हरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।
 
एक ही खेत में लगातार फसल ना उगायें। दालों और तेल वाली फसलों के साथ फसली चक्र अपनायें। इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले मैटालैक्सिल 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैटालैक्सिल 2 ग्राम या मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 
पत्ते का झुलस रोग
पत्ता झुलस रोग : शुरूआती अवस्था में छोटे संकुचित लंबी धुरी के आकार के धब्बे पड़ जाते हैं। पुराने पौधों पर लंबे समय तक तूड़ी के आकार के धब्बे मध्य और किनारों पर देखे जा सकते हैं। यह पत्ते के बड़े भाग को नष्ट कर देता है और फल जली हुई दिखाई देती है। यह बीमारी उच्च नमी, अधिक बारिश के साथ ठंडे नमी वाले मौसम में ज्यादा फैलती है।
 
बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
दानों की कांगियारी
दानों की कांगियारी : बालियों में दाने बनने के समय यह बीमारी हमला करती है। दाने गंदे सफेद या सलेटी रंग के दिखाई देते हैं और सफेद क्रीम से ढक जाते हैं। बालियों के निकलने से पूर्व भी पौधा इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है। इससे पौधा, सेहतमंद पौधे से छोटा, पतला तना होता है। बालियां सेहतमंद पौधे से जल्दी निकल आती हैं। 
 
बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

फसल की कटाई

बिजाई के 65-85 दिन बाद जब फसल चारे का रूप ले लेती है तब इसकी कटाई करनी चाहिए। इसकी कटाई का सही समय तब होता है जब दाने सख्त और नमी 25 प्रतिशत से कम हो। जब फसल पक जाये तो तुरंत कटाई कर लें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें। पौधे धरती के नज़दीक से काटें। कटाई के बाद काटी फसल को एक जगह पर इक्ट्ठी करें और अलग अलग आकार की भरियां बना लें। कटाई के 2-3 दिन बाद बलियों में से दाने निकालें। कई बार खड़ी फसल में से बलियां काटकर अलग अलग कर ली जाती हैं और फिर बलियों की छंटाई कर ली जाती है। इसके बाद इन्हें धूप में सुखाया जाता है।

कटाई के बाद

सूखने के बाद एक ढोल और छड़ी की सहायता से फसल को झाड़ लें। दाने इक्ट्ठे करें। धूप में 6-7 दिन रखें ताकि 13-15 प्रतिशत नमी हो जाये। साफ किये दाने सूखी और साफ जगह पर जमा कर लें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare