आम जानकारी
इनकी लंबाई 200 मि.मी. और पंजे बेलनाकार होते हैं। स्कैंपाई मुख्य रूप से 10-250 मीटर के बीच की गहराई में बिल में रहती हैं। इसका औसतन 200 ग्राम भार होता है। मुख्यत: 12000-16000 स्कैंपाई प्रति एकड़ में पाली जा सकती हैं।
आम जानकारी
चारा
नस्ल की देख रेख
बीमारियां और रोकथाम
इनकी लंबाई 200 मि.मी. और पंजे बेलनाकार होते हैं। स्कैंपाई मुख्य रूप से 10-250 मीटर के बीच की गहराई में बिल में रहती हैं। इसका औसतन 200 ग्राम भार होता है। मुख्यत: 12000-16000 स्कैंपाई प्रति एकड़ में पाली जा सकती हैं।
• पूंछ और पंखों का गलना : इसके लक्षण है पूंछ और पंखों का गलना, पंखों के कोने हल्के सफेद रंग के दिखते हैं और फिर यह पूरे पंखों पर फैल जाते हैं और अंतत: ये गिर जाते हैं।
• गलफड़े गलना : इस बीमारी में गलफड़े सलेटी रंग के हो जाते हैं और अंत में गिर जाते हैं। मछली का सांस घुटने लगता है और वह सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आ जाती है और आखिर में दम घुटकर मर जाती है।
• ई यू एस : शरीर पर फोड़ों का होना, चमड़ी और पंखों का खुरना, जिससे मछली की मौत हो जाती है।
• सफेद धब्बों का रोग : मछली की त्वचा, गलफड़े और पंखों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं।
• काले धब्बों का रोग : शरीर पर काले रंग के छोटे धब्बे दिखते हैं।
• मछली की जुंएं : इसके कारण मछली की वृद्धि धीमी हो जाती है, पंख ढीले पड़ जाते हैं और त्वचा पर रक्त के धब्बे पड़ जाते हैं।
• मछली की जोक : इसके कारण त्वचा और गलफड़े जख्मी हो जाते हैं।
• विबरीओसिस : इसके कारण तिल्ली और आंतों पर सफेद या सलेटी रंग के धब्बे पाये जाते हैं।
• फुरूनकुलोसिस : इसके लक्षण हैं त्वचा का गहरा होना, तिल्लियों का बड़ा होना, तेजी से सांस लेना और खूनी बलगम आना। यह रोग मछलियों में मृत्यु दर की वृद्धि करता है।
• लाल मुंह रोग : इसके लक्षण हैं पंखों, मुंह, गले और गलफड़ों का सिरे से लाल होना।
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