स्टीविया की फसल

आम जानकारी

स्टीविया को 'हनी प्लांट' के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह स्वाद में मीठा होता है। यह एक प्राकृतिक स्वीटनर होता है जो कि शूगर के मरीजों को उनके शरीर में इंसुलन की मात्रा को संतुलित रखता है। इसके पत्ते कई तरह की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किये जाते हैं।  स्टीविया से तैयार दवाइयों का प्रयोग मधुमेह, दांतों की कैविटी, टॉनिक और भोजन में से कैलोरी कम करना आदि इलाज के लिए किया जाता है। यह एक सदाबहार जड़ी बूटी है, जिसकी ऊंचाई 60-70 सैं.मी. होती है। इसके पत्ते विपरीत रूप से व्यवस्थित होते हैं और हरे रंग के होते हैं।  इसके फूल छोटे और सफेद होते हैं। भारत में मुख्य पंजाब, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और आंध्रा प्रदेश आदि स्टीविया उत्पादक राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    1600-1800mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-30°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    1600-1800mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-30°C
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    Temperature

    25-30°C
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    Rainfall

    1600-1800mm
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    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-30°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    1600-1800mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-28°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    24-30°C

मिट्टी

यह मिट्टी की व्यापक किस्मों में उगाया जा सकता है। इसे रेतली दोमट से दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की उच्च मात्रा हो और अच्छे जल निकास वाली हो, में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। खारी मिट्टी में खेती करने से परहेज करें क्योंकि यह स्टीविया के लिए हानिकारक होती है। पौधे के विकास के लिए मिट्टी का pH 6-8 होना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

SRB-123: यह डेकन पठार में अच्छी वृद्धि करती है। इस किस्म की कटाई एक वर्ष में 3-4 बार की जा सकती है। इसमें ग्लूकोसाइड की मात्रा 9-12 %होती है।

SRB-512: यह किस्म उत्तरी आक्षांशों में अच्छी तरह से बढ़ती है। इस किस्म की कटाई एक वर्ष में 3-4 बार की जा सकती है। इसमें ग्लूकोसाइड की मात्रा 9-12% होती है।

SRB-128: यह दक्षिण और उत्तरी भारतीय जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ती है। इसमें ग्लूकोसाइड की मात्रा 14-15% होती है।

MDS-13 and MDS-14: यह किस्म भारतीय जलवायु हालातों में अच्छे से बढ़ती है। इसे उच्च तापमान और कम या सूखे बारिश के मौसम की आवश्यकता होती है।

ज़मीन की तैयारी

स्टीविया की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार खेत की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक, खेत की 2-3 बार जोताई करें। जोताई के समय मिट्टी में ट्राइकोडरमा अच्छे से मिलायें और आखिरी जोताई के समय रूड़ी की खाद मिट्टी में अच्छे से मिलायें। स्टीविया की रोपाई तैयार बैडों पर की जाती है।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई के लिए फरवरी से मार्च का समय उचित होता है।

फासला
नए पौधों में 18 इंच का फासला और पंक्ति के बीच का फासला 20-24 इंच रखें|

बिजाई का ढंग
बिजाई के बाद, 6-7 सप्ताह के नए पौधे खेत में रोपण किए जाते हैं।

बीज

बीज की मात्रा
नए पौधों की रोपाई, 30000 बीजों को  एक एकड़ खेत में डालें|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

स्टीविया के बीजों को 6-8 सप्ताह तक कंटेनरों के भीतर बोया जाता है। बिजाई के बाद बैडों को मिट्टी से ढक दें। मिट्टी में नमी रखने के लिए पानी देते रहें। झाड़ियों के बढ़िया विकास के लिए रोपाई से पहले पौधे के शिखर को काट दें।
पौधों की रोपाई 60 सैं.मी. चौड़े और 15 सैं.मी. ऊंचाई वाले तैयार बैडों पर की जाती है। पौधे 6-8 सप्ताह में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई से 24 घंटे पहले पौधों को पानी देना चाहिए ताकि उन्हें आसानी से बैडों में से निकाला जा सके।

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
24 282 75

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
11 45 45

 

खेत की तैयारी के समय, रूड़ी की खाद 200 क्विंटल, गाय का गोबर या मूत्र  और गंडोया खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 11 किलो (यूरिया 24 किलो), फासफोरस 45 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 282 किलो), पोटाश 45 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश  75 किलो) प्रति एकड़ में डालें। सिंगल सुपर फासफेट की पूरी मात्रा शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। नाइट्रोजन और पोटाश की मात्रा प्रति महीना 10 खुराकें दी जाती है।
अधिक सूखे पत्तों कीपैदावार के लिए बोरोन और मैगनीज़ की स्प्रे करें|

खरपतवार नियंत्रण

खेत में से नदीनों को निकालने के लिए मुख्यत: हाथों से गोडाई करें| रोपाई के एक महीना बाद पहली गोडाई की जाती है और फिर हर दो सप्ताह में लगातार गोडाई की जाती है। नदीनों को बाहर निकालने के लिए गोडाई करें क्योंकि फसल तैयार किये बैडों पर विकास करते है और यह मजदूरों के लिए भी आसान होता है।

सिंचाई

सिंचाई मुख्य रूप से फुव्वारा और ड्रिप सिंचाई द्वारा की जाती है। पौधे को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती इसलिए नियमित अंतराल पर हल्की सिंचाई करें। गर्मियों में, 8 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। खेत में पानी ना खड़ा होने दें यह फसल के लिए नुकसानदायक है|

पौधे की देखभाल

चेपा

हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा: यह नज़दीक से पारदर्शी, मुलायम त्वचा वाले रस चूसने वाले कीट हैं। यह पर्याप्त मात्रा में होने के पर इनके लक्षण पत्ते पीले पड़ जाते है और पकने से पहले मर जाते है|
चेपे की रोकथाम के लिए, कराइसोपरला पराडेटरज़ 4-6 हज़ार प्रति एकड़ या 50 ग्राम नीम के घोल को प्रति एकड़ में डालें।

पत्तों पर काले धब्बे और सूखना
  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों पर काले धब्बे और सूखना: इस बीमारी से पत्तों पर क्लोरोसिस के द्वारा सलेटी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।

सफेद फंगस

सफेद फंगस: इस बीमारी से पौधे के तने के ऊपर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और बाद में पूरा पौधा सूख जाता है और बाद में मर जाता है।

दक्ष्णी झुलस रोग

दक्ष्णी झुलस रोग: यह मिट्टी से पैदा होने वाली फंगस सक्लेरोशियम रोलफसी के कारण होती है।सूर्य की किरणें इस बीमारी को मारने का सबसे अच्छा तरीका है।

फसल की कटाई

बिजाई के बाद 3 महीने में पौधा पैदावार देना शुरू कर देता  है। कटाई 90 दिनों के फासले पर लगातार की जाती है। इस बात का ध्यान रखें कि कटाई करते समय 5-8 सैं.मी. तने को दोबारा पनपने के लिए जमीनी स्तर पर छोड़ देना चाहिए। एक वर्ष में लगभग चार बार कटाई की जाती है। दोबारा प्रक्रिया के लिए, पत्तों का प्रयोग किया जाता है।

कटाई के बाद

कटाई के बाद, पत्तों को सुखाया जाता है। पत्तों को हवा में सुखाया जाता है और फिर अलग-अलग कर लिया जाता है फिर पत्तों को हवा रहित पॉलीथीन बैग में लंबे दूरी के स्थानों पर ले जाने और जीवन काल बढ़ाने के लिए पैक किया जाता है। अलग किए हुए पत्तों से पाउडर, टॉनिक, और शूगर रहित टैबलेट आदि बनाई जाती है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare