हल्दी फसल का विवरण

आम जानकारी

हल्दी एक सदाबहार बूटी है और दक्षिण एशिया की फसल है। इसे भारती केसर भी कहा जाता है और यह एक महत्तवपूर्ण पदार्थ है और स्वाद और रंग के लिए प्रयोग किया जाता है। हल्दी दवाइयों के लिए भी प्रयोग की जाती है क्योंकि इसमें कैंसर और विषाणु विरोधी तत्व पाए जाते हैं। इसे धार्मिक और रीति रिवाज़ों के कामों में भी प्रयोग किया जाता है। इसके विकास के लिए राईजोमस प्रयोग किये जाते हैं। इसके पत्ते लंबे, चौड़े और गहरे हरे रंग के और फूल हल्के पीले रंग के होते हैं। भारत दुनिया में सब से ज्यादा हल्दी उगाने, खाने और निर्यात करने वाला देश है। भारत में यह फसल आंध्रा प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और केरल में उगाई जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    24°C - 28°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Rainfall

    70-230cm
  • Season

    Temperature

    24°C - 28°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Rainfall

    70-230cm
  • Season

    Temperature

    24°C - 28°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Rainfall

    70-230cm
  • Season

    Temperature

    24°C - 28°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-34°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20°C - 22°C
  • Season

    Rainfall

    70-230cm

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली हल्की या भारी, रेतली और चिकनी मिट्टी ज़मीनें इसके लिए अच्छी मानी जाती हैं। खेत में पानी खड़ा ना होने दें, क्योंकि यह फसल खड़े पानी को सहने योग्य नहीं है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Haldi 1: यह मध्यम कद की, हरे और लंबे पत्तों वाली और मोटी गांठों वाली किस्म है। इसका गुद्दा गहरे पीले रंग का और छिल्का भूरे रंग का होता है। यह किस्म 215 दिनों में पकती है और औसतन पैदावार 108 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Punjab Haldi 2: यह लंबे कद की हरे और चौड़े पत्तों वाली  और मोटी गांठ वाली किस्म है। इसका गुद्दा पीले रंग का और छिल्का भूरे रंग का होता है। यह किस्म 240 दिनों में पकती है और औसतन पैदावार 122 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में 
 
प्रसिद्ध किस्में: Amalapuram, Armour, Dindigam, Erode, Krishna, Kodur, Vontimitra, P317, GL Purm I and II, RH2 and RH10, Rajapuri, Salem, Sangli turmeric, Nizamabad bulb.
 
 

ज़मीन की तैयारी

खेत को 2-3 बार जोत कर और सुहागे से समतल करके तैयार करें। हल्दी की बिजाई के लिए बैड 15 सैं.मी. ऊंचे, 1 मीटर चौड़े और आवश्यकनुसार लंबे होने चाहिए। दो बैडों के बीच 50 सैं.मी. का फासला होना चाहिए।
 

बिजाई

बिजाई का समय
अधिक पैदावार लेने के लिए बिजाई अप्रैल के अंत में करें। इसे पनीरी के साथ भी उगाया जा सकता है। इसके लिए जून के पहले पखवाड़े तक पनीरी खेत में लगा दें। पनीरी के लिए 35-45 दिनों के पौधों को खेत में लगा दें।
 
फासला
राईज़ोमस को पंक्तियों में बीजें और पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सैं.मी. और पौधों में 20 सैं.मी. का फासला रखें। बिजाई के बाद खेत में 2.5 टन प्रति एकड़ स्ट्रा मलच डालें।
 
बीज की गहराई
बीज की गहराई 3 सैं.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई सीधे खेत में लगाकर या पनीरी लगाकर की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए साफ-सुथरे ताजे और बीमारी रहित राईज़ोमस का प्रयोग करें। बीज की मात्रा 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ बहुत होती है।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले क्विनलफोस 25 ई.सी. को 20 मि.ली. + कार्बेनडाज़िम 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर बीज का उपचार करें। बाद में गांठों को 20 मिनट के लिए इस घोल में भिगोदें ताकि इन्हें फफूंद से बचाया जा सके।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़) 

UREA SSP MURIATE OF POTASH
25 60 16

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
10 10 10

 

नाइट्रोजन 10 किलो (25 किलो यूरिया), फासफोरस 10 किलो (60 किलो एस एस पी) और पोटाश 10 किलो (16 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें सारी पोटाश और आधी फासफोरस बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन दो हिस्सों में डालें, आधी बिजाई से 75 दिन बाद और बाकी नाइट्रोजन और आधी फासफोरस बिजाई के 3 महीने बाद डालें।

 

खरपतवार नियंत्रण

बिजाई के 2-3 दिनों के बाद पैंडीमैथालीन 30 ई.सी. 800 मि.ली. या मैटरीब्यूज़िन 70 डब्लयू पी 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। नदीन नाशक के प्रयोग के बाद खेत को हरे पत्तों या धान की तूड़ी से ढक दें। जड़ों के विकास के लिए बिजाई से 50-60 दिनों के बाद और फिर 40 दिनों के बाद जड़ों को मिट्टी लगाएं।

सिंचाई

यह कम वर्षा वाली फसल है, इसलिए वर्षा के अनुसार सिंचाई करें। हल्की ज़मीन में फसल को कुल 35-40 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है। बिजाई के बाद फसल को 40-60 क्विंटल प्रति एकड़ हरे पत्तों से  ढक दें। हर बार खाद डालने के बाद 30 क्विंटल प्रति एकड़ मलच डालें।  

पौधे की देखभाल

झुलस रोग और पत्तों पर धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम

झुलस रोग और पत्तों पर धब्बे: इसे रोकने के लिए मैनकोज़ेब 30 ग्राम या कार्बेनडैज़िम 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में डालकर 15-20 दिनों के फासले पर स्प्रे करें या फिर प्रोपीकोनाज़ोल 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डाल कर स्प्रे करें।

 
जड़ गलन
जड़ गलन: इसे रोकने के लिए बिजाई के 30, 60 और 90 दिनों के बाद मैनकोज़ेब 3 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें।
मुरझाना रोग
मुरझाना रोग: इसे रोकने के लिए खेत में हमला दिखते ही कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करें।
 

 

पत्तों पर बड़े धब्बे
पत्तों पर बड़े धब्बे: इसे रोकने के लिए मैनकोज़ेब 20 ग्राम या कॉपर आक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 

 

राईज़ोम मक्खी
  •  हानिकारक कीट और रोकथाम
राईज़ोम मक्खी: यदि इसका हमला दिखे तो एसीफेट 75 एस पी 600 ग्राम. 100 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करें। 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 

 

रस चूसने वाले कीड़े
रस चूसने वाले कीड़े: इन कीड़ों को रोकने के लिए नीम से बने कीटनाशक अझाडीराक्टीन 0.3 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

 

शाख का छेदक

शाख का छेदक: यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 250 मि.ली. या क्विनलफॉस 250 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करें।

फसल की कटाई

किस्म के अनुसार 6-9 महीनों में कटाई करें। पत्ते सूखने और पीले होने पर कटाई का अनुकूल समय होता है। गांठों को उखाड़ कर बाहर निकालें और साफ करें। गांठों को 2-3 दिनों के लिए छांव में सुखाएं। इससे छिल्का सख्त हो जाता है और आसानी से उबलता है।
 

कटाई के बाद

साफ करने के बाद गांठों को पानी में सोडियम बाइकार्बोनेट डालकर 1 घंटे के लिए उबालें। गांठों को उबालने के लिए कड़ाही जैसे बर्तनों का प्रयोग करें। अच्छी किस्म की हल्दी लेने के लिए झाग बनने, भाफ निकलने और महक आने तक उबालें। उबालने के बाद इसे 10-15 दिनों तक सुखाएं। सुखाने के बाद जाली, बोरियों या मशीन से चमकायें और आकार, बनतर और रंग के अनुसार बांटे।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare