अलसी फसल की जानकारी

आम जानकारी

अलसी (लाईनम यूसीटैटिसिमम) की फसल भारत में व्यापक स्तर पर बीजों की प्राप्ति के लिए की जाती है, जिनमें से तेल निकाला जाता है| इसके बीजों में तेल की मात्रा 33-47% होती हैं| अलसी में चिकनाई ज्यादा होने के कारण इससे रंग-रोगन, जल-रोधक फैब्रिक आदि तैयार किये जाते हैं| कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग खाने के लिए भी किया जाता है| अलसी से तैयार केक को खाद और पशुओं के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है| इसका प्रयोग पेपर और प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    45-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-21°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-31°C
  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    45-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-21°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-31°C
  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    45-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-21°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-31°C
  • Season

    Temperature

    21-26°C
  • Season

    Rainfall

    45-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-21°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-31°C

मिट्टी

यह घनी चिकनी काली मिट्टी और चिकनी दोमट मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है| यह ज्यादा बारिश वाले क्षेत्रों में बढ़िया पैदावार देती है| इसके लिए मिट्टी का pH 5.0-7.0 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

LC 2063 (2007): यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए बढ़िया मानी जाती है| यह सेंजू क्षेत्रों में 158 और सिंचित क्षेत्रों में 160 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैं| इसके फूल नीले रंग के और ज्यादा मात्रा में होते हैं, जो फल का खोल तैयार करते हैं| इसके बीज दरमियाने आकार के होते हैं और इनमें 38.4% तेल की मात्रा होती है| यह किस्म पत्तों के सफेद धब्बा रोग की रोधक हैं| इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

LC 2023 (1998): यह किस्म सिंचित और सेंजू क्षेत्रों के लिए भी बढिया मानी जाती है| इसका कद लम्बा और फूल नीले रंग के होते है| इसके बीजों में तेल की मात्रा 37.5% और औसतन पैदावार 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह 155-165 में पक जाती हैं| यह किस्म पत्तों के सफेद धब्बे रोग की रोधक है|

और राज्यों की किस्में

Surbhi (KL-1): यह सब्सी ज्यादा पैदावार वाली किस्म है, जो कुंगी, गर्दन-तोड़, सूखा और पत्तों के सफेद धब्बे रोग की रोधक है| यह 165-170 दिनों में पक जाती हैं| इसके बीजों में तेल की मात्रा 44% और औसतन पैदावार 3-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Jeevan (DPL-21): यह दोहरे मंत्व वाली किस्म है| यह 75 से 85 सैं.मी. के दरमियाने कद वाली किस्म है| इसके बीज भूरे रंग के, आकार में दरमियाने और फूल नीले रंग के होते है| यह 175-181 दिनों में पक जाती है| यह किस्म सूखे, कुंगी और पत्तों के सफेद धब्बे रोग की रोधक है| इसकी  औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Pusa-3, LC-185, LC-54, Sheela (LCK- 9211), K2

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार खेत की जोताई करें और फिर हैरो के साथ 2-3 बार जोताई करें| नमी को बनाये रखने के लिए कसी के साथ मलचिंग करें|

बिजाई

बिजाई का समय
अलग-अलग राज्यों में बिजाई अक्तूबर के पहले पखवाड़े से मध्य नवंबर तक की जाती है| सेंजू बिजाई को अगेती बिजाई की जरूरत होती है| अगेती बिजाई फसल को पत्तों के सफेद धब्बे रोग और कुंगी से बचाती है|

फासला
पंक्तियों के बीच का फासला 23 सैं.मी. और पौधों के बीच का फासला 7-10 सैं.मी.का रखें|

बीज की गहराई
बीज को 4-5 सैं.मी. गहराई में बोयें|

बिजाई का ढंग
अलसी की बिजाई आम तौर पर बुरकाव या मशीन के द्वारा पंक्तियों में की जाती है|

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ के लिए लगभग 15 किलो बीजों की जरूरत होती है|

बीज का उपचार
बविस्टन या थीरम 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीजों का उपचार किया जा सकता है|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
55 100 -

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 16 -

 

बिजाई के समय 25 किलो नाइट्रोजन(55 किलो यूरिया) और 16 किलो फासफोरस(100 किलो सुपर फास्फेट) प्रति एकड़ डालें| सिंचित स्थितियों में बिजाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा शुरूआती खाद के रूप में डालें| बाकी बची हुई नाइट्रोजन बिजाई से 35  दिन बाद पहली सिंचाई के साथ डालें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम नदीन नाशक के द्वारा की जा सकती है| अलसी में पाए जाने वाले मुख्य नदीन जामुनी बूटी, बाथू, गुली-डंडा, सफेद फूलों वाली बूटी, कांटेदार बूटी आदि हैं| आयीसोप्रोटिउरान 75 डब्लयू पी 500 ग्राम प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई से पहले या बाद या बिजाई से 2 दिन में अंकुरण से पहले स्प्रे करें|

सिंचाई

बिजाई के बाद और जब फूल बीजों में बदलने लग जाएं, तब सिंचाई करना जरूरी होता है| सिंचाई का फासला जलवायु की स्थिति और मिट्टी की किस्म पर निर्भर करता है|

पौधे की देखभाल

लूसर्न की सुंडी
  • कीट और रोकथाम

लूसर्न की सुंडी: यह पत्तों और फलियों को नुकसान पहुचाँती है|

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए सेविन/हेक्साविन 50 डब्लयू पी (कार्बरील)600-800 ग्राम या मैलाथिऑन 50 ई सी 400 मि.ली. को  80-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें|

कुंगी
  • बीमारियां और रोकथाम

कुंगी: इससे पत्तों के तल, फलियां और तने पर गुलाबी धब्बे पड़ जाते हैं|
रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए सल्फर 7 किलो या इंडोफिल (Z-78) 500 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

सूखा

सूखा: यह बीमारी ज्यादातर नई फसल पर हमला करती है| इससे फसल पहले पीली पड़ती है और फिर नष्ट हो जाती है|
रोकथाम: इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें|

फसल की कटाई

जब इसके फल वाले भाग पूरी तरह से भूरे हो जाए, तब इसकी कटाई करें| इसकी कटाई अप्रैल महीने में की जाती जाती है|

कटाई के बाद

कटाई के बाद पौधों को पैक करें और थ्रेशिंग वाले स्थान पर 4-5 दिन सूखने के लिए रखें| थ्रेशिंग फसल को लठों से कूटकर या फसल के ऊपर बैलगाड़ी को चला कर की जा सकती है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare