आडू की फसल

आम जानकारी

आड़ू संयमी क्षेत्रों की गुठली वाले फल की महत्वपूर्ण फसल है| बढिया किस्म के आड़ू उच्च-पहाड़ी क्षेत्र में जैसे की जे.ऐच.हेल , एल्बर्टा और मैचलेस आड़ू उगाये जाते है| 1960 के समय मैदानी क्षेत्रों में आड़ू की chakali किस्म उगाई जाती थी| फ्लोरिडा में जब पता चला किआड़ू कम ठंडे मौसम की फसल है तो यह मैदानी क्षेत्रों की महत्वपूर्ण फसल बन गई| आड़ू की तुड़ाई का समय अप्रैल-जुलाई महीने तक का होता है| बाग़ों में ताज़े आड़ू की फसल और कई प्रकार की किस्मों से स्वादिष्ट स्क्वेश तैयार किया जाता है| आड़ू की गिरी के तेल का प्रयोग कई प्रकार के कॉस्मेटिक उत्पाद और दवाईयां बनाने के लिए किया जाता है| इसमें लोहे, फ्लोराइड और पोटाशियम की भरपूर मात्रा होती है|

यह क्षेत्र उप-उष्ण जलवायु वाला है| पंजाब में आड़ू की ज्यादा पैदावार वाले क्षेत्र लुधियाना, अमृतसर, होशियारपुर, जालंधर, फ़िरोज़पुर, मुक्तसर साहिब, पटियाला, संगरूर, बठिंडा, रोपड़, ऐस ऐ ऐस नगर, ऐस बी ऐस नगर, फतेहगढ़ आदि है|

जलवायु

  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

आड़ू की फसल को गहरी रेतली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की मात्रा और पानी का बढिया निकास हो की जरूरत होती है| इसके लिए मिट्टी का pH 5.8 और 6.8 होना चाहिए| आड़ू की फसल के लिए तेज़ाबी और नमकीन मिट्टी उचित नहीं है| इसकी खेती के लिए हल्की ढलान वाली ज़मीन उचित मानी जाती है| इसके फल तलहटी, उच्च-पहाड़ी और सामान्य क्षेत्रों में बढिया बनावट लेते है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

पूरे भारत में उपलब्ध आडू की अलग-अलग किस्में  prabhat, Pratap, Flordasun, Shan-e- Punjab, Florda red sun, Red (Nectarine), Khurmani, Sharbati,  Flordaprince है|

Shan-e- Punjab: यह किस्म मई के पहले हफ्ते में पक जाती है| इसके ताज़े फल पूर्ण रूप से बड़े, पीले, गहरे-लाल रंग के, रसभरे, स्वाद में लाजवाब और गुठली के बिना होते है| इसके फल सख्त होने के कारण इनको दूरी वाले स्थानों पर आसानी से ले  जाया जा सकता है| यह पैकिंग के लिए अनुकूल किस्म है, इस किस्म की औसतन पैदावार 70 किलो प्रति वृक्ष होती है|

Pratap: यह किस्म अप्रैल के तीसरे हफ्ते में पक जाती है और इसके फल पीले-लाल रंग के होते हैं| यह किस्म बाकी किस्मों की तुलना में ज्यादा मज़बूत होती है| इसकी औसतन पैदावार 70 किलो प्रति पौधा होती हैं|

Khurmani: इस किस्म के फल बड़े, आकर्षित और लाल रंग के होते है, इसका गुद्दा सफेद, नरम, रसीला और गुठली चिपकी हुई होती हैं|

Florida Red: इस किस्म के फल बढिया, मध्य मौसम वाले होते है जो जून के शुरू में पक जाते है| इसके फल बड़े, आमतौर पर लाल, रसीले और गुठली के बिना होते है| इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती हैं|

Sharbati: इस किस्म के फल बड़े, हरे-पीले रंग के, गुलाबी रंग के धब्बों वाले, रसीले और स्वाद में बढिया होते हैं| इसके फल जून के अंत से जुलाई के शुरू तक में पक जाते हैं, इसकी औसतन पैदावार 100-120 किलो प्रति वृक्ष होती है|

Shan-e-Prince: इसके फल मई के पहले सप्ताह में पक जाते हैं। इसकी औसतन उपज 70 किलो प्रति वृक्ष होती है।

Florida Prince: इस किस्म के फल अप्रैल के चौथे सप्ताह में पक जाते हैं। इसकी औसतन उपज 100 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Prabhat: इस किस्म के फल अप्रैल के तीसरे सप्ताह में पक जाते हैं। इसकी औसतन उपज 64 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Punjab Nectarine: इस किस्म के फल मई के दूसरे सप्ताह में पक जाते हैं। इसकी औसतन उपज 40 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन को अच्छी तरह से 5X5 मीटर के फासले अलग-अलग गड्डे खोद कर तैयार करें और बैडों को 20 किलो रूड़ी की खाद, 125 ग्राम यूरिया और 25 मि.ली.क्लोरपाइरीफॉस से भरें| इनको 30 सैं.मी. तक मिट्टी में मिलाएं और ज़मीन से 10सैं.मी. ऊपर तक भरें|

बिजाई

बिजाई का समय
टी-बडिंग मई के पहले हफ्ते में पूरी हो जाती है| टी-बडिंग से तैयार किया हुआ पौधा दिसंबर-जनवरी महीने तक मुख्य खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाता है|

फासला
बिजाई के लिए 6.5x6.5 मीटर फासले पर वर्गाकार विधि का प्रयोग करें|

बीज की गहराई
वृक्ष लगाने के लिए आड़ू के बीज 5 सैं.मी. गहरे और 12-16 सैं.मी. पौधे के बीच का फासला रखें|

बिजाई का ढंग

बिजाई के लिए शुरू में कलम लगाने की विधि का प्रयोग किया जाता है और फिर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है|

बीज

बीज की मात्रा
बीजों के लिए प्रजनन क्रिया अपनाई जाती हैं|

प्रजनन

प्रजनन के लिए कलम लगाने वाली विधि का प्रयोग करें| नए पौधे तैयार करने के लिए Sharbati, Khurmani किस्में प्रयोग की जाती है| आड़ू को भारी और लगातार कांट-छांट की जरूरत होती है| कटाई-छंटाई अक्तूबर के आखरी हफ्ते में करनी जरूरी होती है| अंकुरित पौधों को पानी लगाएं और अनावश्यक शाखाओं को काट दें| आड़ू का नया पौधा लगाने के लिए इसका कद 35 इंच होना चाहिए|

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति वृक्ष)

Tree age

(in years)

FYM

(kg/tree)

UREA

(gm/tree)

SSP 

(gm/tree)

MOP 

(gm/tree)

1-2 10-15 150-200 200-300 150-300
3-4 15-20 500-700 500-700 400-600
5 and above 25-30 1000 1000 800

 

जब वृक्ष 1-2 वर्ष का होता है तो अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 10-15 किलो, यूरिया 150-200 ग्राम, एस एस पी 200-300 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 150-300 ग्राम प्रति वृक्ष डालें। जब वृक्ष 3-4 वर्ष का होता है। तो अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 15-20 किलो, यूरिया 500-700 ग्राम, एस एस पी 500-700 ग्राम, और म्यूरेट ऑफ पोटाश 400-600 ग्राम प्रति वृक्ष डालें और जब वृक्ष 5 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र का होता है तो अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 25-30 किलो, यूरिया 1000 ग्राम, एस एस पी 1000 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 800 ग्राम प्रति वृक्ष डालें।

खरपतवार नियंत्रण

इस फसल को बार-बार गोड़ाई की जरूरत पड़ती है, हालांकि यह थकाने वाला और महंगा काम है| आड़ू की जड़ें अस्थायी होती है, जो लगातार जोताई करने से क्षतिग्रस्त हो जाती है| इस लिए नदीन-नाशक का प्रयोग करना उचित है| नए बाग़ों में फरवरी-मार्च में चौड़े पत्तों और घास वाले नदीन ज्यादा पैदा होते है, इसकी रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण से पहले डीयूरोन 800 ग्राम से 1 किलो प्रति एकड़ और अंकुरण के बाद ग्लाइफोसेट 6 मि.ली. प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|

सिंचाई

पौधे की बिजाई के बाद, तुरंत सिंचाई करें| बारिश के मौसम में, पौधों को पानी की जरूरत नहीं होती है| तुपका सिंचाई पानी के प्रभावशाली प्रयोग के लिए उचित विधि है | इस फसल को नाज़ुक अवस्था में सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है, जैसे कि सूखा पड़ने पर आदि| फूलों के अंकुरण, कलम लगाने की अवस्था, फलों के विकास के समय फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है|

पौधे की देखभाल

  • बीमारीयां और रोकथाम

छोटे धब्बे: पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।

उपचार:  पत्तों के गिरने या कलियों के सूजने के समय कप्तान या ज़ीरम या थीरम 0.2 प्रतिशत की स्प्रे करें।

 

बैक्टीरियल कैंकर और गोंदिया रोग: यह मुख्य तने, टहनी, शाखाओं, कलियों, पत्तों और यहां तक कि फलों पर भी हमला करता है। 
 
उपचार: सुनिश्चित करें कि आड़ू की उपयुक्त किस्म हो और जड़ का भाग भूगौलिक स्थान और पर्यावरण की स्थितियों के आधार पर लिया गया हो। फूल खिलने से पहले वृक्षों पर कॉपर की स्प्रे करें। संक्रमण को कम करने के लिए अगेती गर्मियों में वृक्षों की सिधाई करें। 
 

भूरा गलना: इसके कारण पौधा सूख जाता है, पत्तियां और नई टहनियां मर जाती हैं।
 
उपचार:  तुड़ाई से 3 सप्ताह पहले कप्तान 0.2 प्रतिशत की स्प्रे करें।
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा: यह कीट मार्च से मई के महीने में क्रियाशील होता है। इस कीट के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और पीले हो जाते हैं।
 
उपचार: रोगोर 30 ई सी 800 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत हो तो 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
काला चेपा: यह कीट अप्रैल-जून महीने में क्रियाशील होता है।
 
उपचार: मैलाथियोन 50 ई सी 800 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
चपटे सिर वाला छेदक: यह एक गंभीर कीट है जो कि मध्य मार्च में क्रियाशील होता है। ये हरे पत्तों को खाता है।
 
उपचार: डरमेट 20 ई सी 1000 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर तुड़ाई के बाद जून के महीने में स्प्रे करें।
भुंडियां : ये भुंडियां रात के समय पत्तों को खाती हैं।
 
उपचार : हैक्ज़ाविन 50 डब्लयु पी 1 किलो को 500 लीटर पानी में मिलाकर शाम के समय स्प्रे करें। यदि नुकसान लगातार हो तो 5-6 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।

फसल की कटाई

अप्रैल से मई का महीना आड़ू की फसल के लिए मुख्य तुड़ाई का समय होता है| इनका बढ़िया रंग और नरम गुद्दा पकने के लक्षण दिखाता है| आड़ू की तुड़ाई वृक्ष को हिला कर की जाती है|

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद इनको सामान्य तामपान पर स्टोर कर लिया जाता है और स्क्वेश आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare