पंजाब में खरबूजे की खेती

आम जानकारी

यह भारत की महत्तवपूर्ण सब्जियों वाली फसल है। इसे कईं अच्छी मानी जाने वाली किस्मों की मां भी माना जाता है। खरबूजा इरान, अनाटोलिया और अरमीनिया का मूल है। खरबूजा विटामिन ए और विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है। इसमें 90 प्रतिशत पानी और 9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होते हैं। भारत में खरबूजा उगाने वाली सब्जियों में पंजाब, तामिलनाडू, महांराष्ट्र और उत्तर प्रदेश भी शामिल है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    18-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C
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    Temperature

    18-30°C
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    Rainfall

    50-75mm
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    18-20°C
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    Harvesting Temperature

    25-30°C
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    Temperature

    18-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-30°C

मिट्टी

इसे गहरी उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में उगाया जाता है। अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। घटिया निकास वाली मिट्टी खरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती। फसली चक्र अपनायें क्योंकि एक ही खेत में एक ही फसल उगाने से मिट्टी के पोषक तत्वों, उपज में कमी और बीमारियों का हमला भी ज्यादा होता है। मिट्टी की पी एच 6-7 के बीच होनी चाहिए। खारी मिट्टी और नमक की ज्यादा मात्रा वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।
 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Hara Madhu: यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसके फल का आकार गोल और बड़ा होता है। फल का औसतन भार 1 किलोग्राम होता है। छिल्का हल्के पीले रंग का होता है। टी एस एस की मात्रा 13 प्रतिशत होती है और स्वाद में बहुत मीठा होता है। बीज आकार में छोटे होते हैं। यह सफेद रोग को सहनेयोग्य होता है। इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
 
Punjab Sunehri: यह हरा मधु किस्म के 12 दिन पहले पक जाती हैं फल का आकार गोल, जालीदार छिल्का और रंग हल्का भूरा होता है। इसका औसतन भार 700-800 ग्राम होता है। इसका आकार मोटा और रंग संतरी होता है। टी एस एस की मात्रा 11 प्रतिशत होती है। यह फल की मक्खी के हमले को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Hybrid: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसका फल जालीदार छिल्के वाला हरे रंग का होता है। इसका आकार मोटा और रंग संतरी होता है। खाने में रसीला और मज़ेदार होता है। इसमें टी एस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है और औसतन भार 800 ग्राम होता है। यह फल वाली मक्खी के हमले का मुकाबला करने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
MH-51: यह किस्म 2017 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 89 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल गोल, धारीदार और जालीदार होते हैं। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है।
 
MH-27: यह किस्म 2015 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 88 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 12.5 प्रतिशत होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Arka Jeet
 
Arka rajhans
 
MH 10
 
Pusa madhurima
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक जोताई करें। उत्तरी भारत में इसकी बिजाई फरवरी के मध्य में की जाती है। उत्तरी पूर्वी और पश्चिमी  भारत में बिजाई नवंबर से जनवरी में की जाती है। खरबूजे को सीधा बीज के द्वारा और पनीरी लगाकर भी बोया जा सकता है।

बिजाई

बिजाई का समय
खरबूजे की बिजाई के लिए मध्य फरवरी का समय सही माना जाता है।
 
फासला
प्रयोग करने वाली किस्म के आधार पर 3-4 मीटर चौड़े बैड तैयार करें। बैड पर प्रत्येक क्यारी में दो बीज बोयें और क्यारियों में 60 सैं.मी. का फासला रखें।
 
बीज की गहराई
बिजाई के लिए 1.5 सैं.मी. गहरे बीज बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई गड्ढा खोदकर और दूसरे खेत में पनीरी लगाकर यह ढंग प्रयोग कर सकते हैं।
 
पनीरी लगा कर : जनवरी के आखिरी सप्ताह से फरवरी के पहले सप्ताह तक 100 गज की मोटाई वाले 15 सैं.मी. x12 सैं.मी. आकार के पॉलीथीन बैग में बीज बोया जा सकता है। पॉलीथीन बैग में गाय का गोबर और मिट्टी को एक जितनी मात्रा में भर लें। पौधे फरवरी के आखिर या मार्च के पहले सप्ताह बिजाई के लिए तैयार हो जाते हैं। 25-30 दिनों के पौधे को उखाड़कर खेत में लगा दें और पौधे खेत में लगाने के तुरंत बाद पहला पानी लगाना चाहिए।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 400 ग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। बीजों को छांव में सुखाएं और तुरंत बिजाई कर दें।
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
110 155 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
50 25 25

 

10-15 टन गली सड़ी रूड़ी की खाद प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 50 किलोग्राम (यूरिया 110 किलोग्राम), फासफोरस 25 किलोग्राम (सिंगल सुपर फासफेट 155 किलोग्राम), पोटाश 25 किलोग्राम (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलोग्राम) प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।
 
फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का तीसरा हिस्सा (1/3) बिजाई से पहले डालें। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा शुरूआती विकास के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर डालें और पत्तों को छूने से परहेज करें।
 
जब फसल 10-15 दिनों की हो जाये तो फसल के अच्छे विकास और पैदावार के लिए 19:19:19 + सूक्ष्म तत्व 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। फूलों को झड़ने से रोकने और फसल का 10 प्रतिशत पैदावार बढ़ाने के लिए शुरूआती फूलों के दिनों में हयूमिक एसिड 3 मि.ली.+एम ए पी (12:61:00) 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। सालीसाइक्लिक एसिड (4-5 एसप्रिन गोलियां 350एम जी) प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर फूलों के बनने और पकने के समय 30 दिनों के फासले पर 1-2 बार स्प्रे करें। बिजाई के 55 दिनों के बाद 13:00:45, 100 ग्राम+हैक्साकोनाज़ोल 25 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से फल के पहले विकास के पड़ाव और सफेद धब्बा रोग से बचाने के लिए स्प्रे करें। बिजाई के 65 दिनों के बाद फल के आकार, स्वाद और रंग को बढ़ाने के लिए 00:00:50, 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ 100 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

पौधे के विकास के शुरूआती समय के दौरान बैड को नदीनों से मुक्त रखना जरूरी होता है। सही तरह से नदीनों की रोकथाम ना हो तो फल बोने से 15-20 दिनों में पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इस दौरान गोडाई करते रहना चाहिए। नदीन तेजी से बढ़ते हैं। इसलिए 2-3 गोडाई की जरूरत पड़ती है।

सिंचाई

गर्मियों के मौसम में हर सप्ताह सिंचाई करें। पकने के समय जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें। खरबूजे के खेत में ज्यादा पानी ना लगाएं। सिंचाई करते समय, बेलों या वानस्पति भागों विशेष कर फूलों और फलों पर पानी ला लगाएं। भारी मिट्टी में लगातार सिंचाई ना करें, इससे वानस्पति भागों की अत्याधिक वृद्धि होगी। अच्छे स्वाद के लिए कटाई से 3-6 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें या कम कर दें।
 

पौधे की देखभाल

चेपा और थ्रिप
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा और थ्रिप्स यह कीड़े पौधे के पत्तों का रस चूस लेते हैं जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और लटक जाते हैं। ये कीड़े पत्तों को ऊपर की तरफ मोड़ देते हैं। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें और स्प्रे करने के 15 दिन बाद डाइमैथोएट 10 मि.ली. + टराइडमोरफ 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

 

 
 
पत्ते का सुरंगी कीड़ा
पत्ते का सुरंगी कीड़ा : यह पत्तों के सुरंगी कीड़े हैं जो कि पत्तों में लंबी सुरंगे बना देते हैं और पत्तों से अपना भोजन लेते हैं। यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया और फलों के बनने को प्रभावित करते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए एबामैक्टिन 6 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फल की मक्खी
फल की मक्खी : यह बहुत नुकसानदायक कीड़ा है। मादा मक्खी फल की ऊपर वाली सतह पर अंडे देती है और बाद में वे कीड़े फल के गुद्दे को खाते हैं। जिस कारण फल गलना शुरू हो जाता है।
प्रभावित फल को खेत में से उखाड़कर नष्ट कर दें। यदि नुकसान नज़र आये तो शुरूआती समय में नीम सीड करनाल एकसट्रैट 50 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के फासले पर 3-4 बार मैलाथियॉन 20 मि.ली.+100 ग्राम गुड़ को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करते रहें।
एंथ्राकनोस
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के ऊपर की तरफ सफेद धब्बे : प्रभावित पौधे के पत्तों की ऊपरी सतह और मुख्य तने पर भी सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। गंभीर हमले के कारण पत्ते गिर जाते हैं और फल समय से पहले पक जाता है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।
 

 

अचानक सूखा
अचानक सूखा : यह फसल की किसी भी अवस्था पर हमला कर सकता है। पौधा कमज़ोर हो जाता है और शुरूआती अवस्था में पौधा पीला हो जाता है। गंभीर हमले में पौधा पूरी तरह सूख जाता है।
 
खेत में पानी ना खड़ा होने दें। प्रभावित भागों को खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। ट्राइकोडरमा विराइड 1 किलो को 50 किलो रूड़ी की खाद के साथ मिलाकर डालें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम या थियोफनेट मिथाइल 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
एंथ्राकनोस
एंथ्राक्नोस : एंथ्राक्नोस से प्रभावित पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पत्तों के निचले धब्बे
पत्तों के निचली तरफ धब्बे : इसका हमला खरबूजे पर ज्यादा होता है और तरबूज़ पर कम होता है। पत्तों का ऊपरी भाग पीले रंग का हो जाता है। बाद में पीलापन बढ़ जाता है और पत्तों को केंद्रीय भाग भूरे रंग का हो जाता है। पत्तों के अंदर की ओर सफेद सलेटी हल्के नीले रंग की फंगस पड़ जाती है। बादलवाई, बारिश और नमी के हालातों में यह बीमारी ज्यादा फैलती है।
 
यदि इसका हमला खेत में दिखे तो मैटालैक्सिल 8 प्रतिशत + मैनकोजेब 64 प्रतिशत डब्लयु पी (रिडोमिल) 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 

फसल की कटाई

हरा मधु किस्म की कटाई उस समय करें जब फल पीले रंग के हो जायें। दूसरी किस्मों की कटाई मंडी की दूरी के अनुसार की जाती है। यदि मंडी की दूरी ज्यादा हो तो जब फल हरे रंग का हो तब ही कटाई कर देनी चाहिए। यदि मंडी नज़दीक हो तो फल आधा पकने पर ही कटाई करनी चाहिए। जब तना थोड़ा सा ढीला सा नज़र आये उसे हाफ स्लिप कहते हैं।

कटाई के बाद

कटाई के बाद फलों का तापमान और गर्मी कम करने के लिए उन्हें ठंडा किया जाता है। फलों को उनके आकार के हिसाब से बांटा जाता है। खरबूजों को कटाई के बाद 15 दिनों के लिए 2 से 5 डिगरी सैल्सियस तापमान और 95 प्रतिशत पर रखा जाता है इसके बाद जब यह पूरा पक जाता है तो इसे 5 से 14 दिनों के लिए 0-2.2 डिगरी सैल्सियस तापमान और 95 प्रतिशत नीम में रखा जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare