जरबेरा की खेती

आम जानकारी

जरबेरा को “ट्रांसवल डेज़ी” या “अफ्रीकन डेज़ी” के नाम से भी जाना जाता है| यह सजावटी फूलों का पौधा है| यह कोम्पोसिटे परिवार से संबंध रखता है| भारत में  जरबेरा कट फ्लावर महाराष्ट्र, उत्तरांचल, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक और गुजरात आदि उगाने वाले मुख्य क्षेत्र है| पंजाब में जरबेरा की खेती मुख्य तौर पर पाली हाउस में की जाती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

जरबेरा की खेती के लिए हल्की और बढीया निकास वाली मिट्टी उचित होती है| लाल लेटराइट मिट्टी जरबेरा की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है| इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 5.0-7.2 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

हाइब्रिड किस्में:

लाल रंग के फूलों की किस्म: Fredorella, Vesta, Red Impulse, Shania, Dusty, Ruby Red, Tamara and Salvadore.

पीले रंग के फूलों की किस्म: Fredking, Gold spot, Horaizen, Talasaa, Panama, Nadja, Supernova, Mammut, Uranus and Fullmoon.

संतरी रंग के फूलों की किस्म :Orange Classic, Goliath, Carrera, Marasol and Kozak.

गुलाब के फूलों की रंग वाली किस्म: Salvadore and Rosalin.

क्रीम रंग के फूलों की किस्म: Winter Queen, Snow Flake, Dalma and Farida.

गुलाबी रंग के फूलों की किस्म: Valentine, Marmara, Pink Elegance, Terraqueen and Esmara.

सफेद रंग के फूलों की किस्म: White Maria and Delphi.

जामुनी रंग के फूलों की किस्म: Blackjack and Treasure. 

ज़मीन की तैयारी

जरबेरा की खेती के लिए, खेत को अच्छी तरह से तैयार करें| खेत को भुरभुरा बनाने के लिए, रोपण से पहले  2-3 बार जोताई करें| 15 सैं.मी. की ऊंचाई और1.2 मीटर की चौड़ाई पर बैड तैयार करें|

बिजाई

बिजाई का समय
जरबेरा की खेती, सितंबर से अक्तूबर और फरवरी से मार्च तक की जाती है|

फासला
बिजाई के लिए कतार में 40 सैं.मी. और पौधे में 30 सैं.मी. का फासला रखें|

बिजाई का ढंग
1. टिशू कल्चर मेथड

बीज

बीज का उपचार
फुमीगेशन विधि द्वारा बैड तैयार करने के साथ मिथाइल बरोमाइड 30 ग्राम प्रति वर्ग मीटर या फोरमेलिन 100 मि.ली.को 5 लीटर प्रति वर्ग मीटर पानी में मिलाकर मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारीयां जैसे कि पाईथीयम, फाइटोफ्थोरा, फ़ुज़ेरियम से बचाव किया जा सकता है|

प्रजनन

इसका प्रजनन गांठो या टिशू कल्चर मेथड द्वारा किया जाता है|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
88 250 66

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOPSHORUS POTASH
40 40 42

 

खेत की तैयारी के समय, रूड़ी की खाद 20 टन, फासफोरस 40 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 250 किलो) पोटाश 40 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 66 किलो) प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएं| लोहे की कमी वाली ज़मीन में, फेरस सल्फेट 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर डालें| बिजाई के 4-5 हफ्ते बाद, नाइट्रोजन 40 किलो(88 किलो यूरिया) प्रति एकड़ 30 दिनों के अंतराल पर डालें|

खरपतवार नियंत्रण

जरबेरा की खेती के लिए गोड़ाई आवश्यक है| बिजाई से पहले 3 महीनों में, हर दो हफ्ते में एक बार गोड़ाई करें और फिर बिजाई के 3 महीने बाद, 30 दिनों के अंतराल पर गोड़ाई करें

सिंचाई

जरबेरा की बिजाई के बाद कई बार खुले पानी से सिंचाई करें| गर्मियों में सिंचाई 5 दिन के अंतराल पर और सर्दियों में 10 दिनों के अंतराल पर करें| ज़मीन में ज्यादा नमी ना हो क्योंकि इसके कारण बीमारियां हो सकती हैं|

पौधे की देखभाल

चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा: यह पत्तों का रस चूसते हैं| शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ और काला फफूंदी जैसा मल उस भाग पर विकसित करता है|

इसकी रोकथाम के लिए, रोगर 40 ई सी 0.1% या मेटासिस्टोक्स 25 ई सी @ 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे 15 दिन के बाद डालें|

सफेद मक्खी

सफेद मक्खी: इसकी रोकथाम के लिए, रोगर 40 ई सी  0.1% @ 2 मि.ली. प्रति लीटर या मेटासिस्टोक्स 25 ई सी की स्प्रे 15 दिन के बाद डालें|

सुरंगी कीट : यदि इसका हमला दिखे तो रोगोर 40 ई सी या मैटासिसटोक्स 25 ई सी 0.1 %  की स्प्रे हर 15 दिन बाद करें।
थ्रिप्स

थ्रिप्स: पौधे के टिशू पर धब्बे पड़ जाते है| थ्रीप के कारण पत्तों पर धब्बे पड़ जाते है, गिर जाते है और मुड़ जाते है|

इसकी रोकथाम के लिए, रोगोर 40 ई सी 0.1% 2 मि.ली. प्रति लीटर या मेटासिस्टोक्स 25 ई सी की स्प्रे 15 दिन के बाद डालें|

पत्तों के धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों के धब्बे: इस बीमारी के कारण पत्तों की ऊपरी सतह पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जोकि बाद में गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं|

इसकी रोकथाम के लिए, इंडोफिल एम-45 @0.2% 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें|

सर्कोस्पोरा स्पॉट्स

सर्कोस्पोरा स्पॉट्स: इस बीमारी के कारण पत्तों की ऊपरी सतह पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जोकि बाद में काले रंग के हो जाते हैं|

इसकी रोकथाम के लिए, बेनलेट 0.1% या इंडोफिल एम-45 @0.2% 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें|

जड़ गलन

जड़ गलन: यह जरबेरा पौधे की साधारण बीमारी है|

इसकी रोकथाम के लिए, रीडोमील एम जेड @0.2% या थीरम 0.3% 2 मि.ली. प्रति लीटर  मिट्टी में मिलाएं|

पत्तों पर सफेद धब्बे

सफेद फफूंदी: धब्बे, पत्तों की निचली तरफ सफेद रंग की फफूंदी दिखाई देती है| यह पौधे को खाद्य रूप में इस्तेमाल करता है| यह आमतौर पर पुराने पत्तो पर पाई जाती है पर यह फसल की किसी भी स्थिति में विकसित हो जाती है| इसके कारण पत्ते झड़ने लहग जाते है|

यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम या एम-45@400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

तना गलन

तना गलन: यह बीमारी आमतौर पर पौधे के निचले हिस्से पर बनती है| यह बीमारी फंगस के कारण होती है| यह बीमारी ज्यादातर ज्यादा नमी वाली जगह पर होती है|

इसकी रोकथाम के लिए, रीडोमील एम जेड @0.2% या थीरम 0.2%@ 2 मि.ली. प्रति लीटर मिट्टी में मिलाएं|

फसल की कटाई

बिजाई के 3 महीने बाद, जरबेरा पर फूल आने शुरू हो जाते है|  सिंगल किस्म की कटाई पंखुड़ियों की बाहर वाली 2-3 कतारें खुलने पर की जाती है और दोहरी किस्म की कटाई फूलों के थोड़ा पकने पर की जाती है। कटाई के बाद फूलों को 200 मि.ग्रा. एच. क्यू. सी. और 5% सुक्रोस के घोल में लगभग 5 घंटे रखने से कटाई किए गए फूलों की ज़िंदगी बढ़ाई जा सकती है। खुले खेत में कटाई किए गए फूलों की औसतन उपज 140-150 फूल प्रति वर्गमीटर प्रति वर्ष होती है और ग्रीन हाउस में कटाई किए गए फूलों की औसतन पैदावार 225-250 फूल वर्गमीटर प्रति वर्ष होती है।

कटाई के बाद

कटाई के बाद, इनको अलग-अलग श्रेणी में रखा जाता है| फिर इन फूलो को गत्तों के बक्सों में पैक करके लम्बे समय की दूरी पर भेजा जाता है|