पंजाब में संतरे का उत्पादन

आम जानकारी

संतरा एक नींबूवर्गीय फल है जो भारत में उगाया जाता है| नींबूवर्गीय फलों में से 50% इस फल की खेती की जाती है| भारत में संतरा और माल्टा की किस्म बेचने के लिए उगाई  जाती है| देश के केंद्रीय और पश्चिमी भागों में संतरे की खेती दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| भारत में, फलों की पैदावार में केले और आम के बाद माल्टा का तीसरा स्थान है| भारत में, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश संतरा उगाने वाले राज्य है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    500-600 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10°C - 25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°-34°C
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    10°C - 30°C
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    500-600 mm
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    10°C - 25°C
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    Harvesting Temperature

    30°-34°C
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    10°C - 30°C
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    500-600 mm
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    10°C - 25°C
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    30°-34°C
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    10°C - 30°C
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    500-600 mm
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    10°C - 25°C
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    Harvesting Temperature

    30°-34°C

मिट्टी

यह मिट्टी की बहुत सारी किस्मों में विकसित होती है| इसके विकास के लिए सामान्य हल्की दोमट मिट्टी जिसका pH 6.0-8.0 हो,में बढ़िया विकास के लिए अनुकूल है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Khasi: इसे स्थानीय स्तर पर सिक्किम के नाम से जाना जाता है| व्यवसायिक तौर पर यह आसाम, मेघालय क्षेत्रों में उगाया जाता है| इसके वृक्ष सामान्य से बढ़े आकार के होते है| इसके पत्ते घने और कांटों वाले होते है| इसका फल संतरी-पीले से गहरे संतरी रंग के होने के साथ नर्म सतह होती है| इसका फल संतरी रंग का और 9-25 बीज होते है|

Kinnow: यह एक हाइब्रिड किस्म है king और willow leaf किस्म द्वारा तैयार की गई है| इसके पौधे बढ़े आकार के होते हैं, एक सामान होने के साथ इसके पत्ते घने और व्यापक होते है| इसके फल माध्यम आकार के, पकने पर संतरी पीले रंग के, अधिक रसभरे फल और 12-24 बीज होते है| जनवरी-फरवरी के महीने में फल पक जाते है| यह किस्म पहले पंजाब में उगाई गई, और बढ़िया परिणाम मिलने पर इसे व्यापारिक स्तर पर बहुत महत्व दिया गया|

Coorg: इसके वृक्ष सीधे, और ज्यादा घने होते है| इसके फल चमकीले संतरी रंग, माध्यम से बढ़े आकार के, आसानी से छिलने वाले होने के साथ 9-11 फाड़ियां होती है| यह ज्यादा रसदार और इसके 15-25 बीज होते है| यह फरवरी-मार्च के महीन में पक जाते है|

Nagpur: नागपुर को पोंकन के नाम से भी जाना जाता है| इसके वृक्ष मज़बूत और घने होते है| इसके फल माध्यम आकार के, फल की 10-12 ढीली फड़ियां होती है| इसका जूस ज्यादा रसदार और 7-8 बीज होते है| यह एक बहुत महत्वपूर्ण और बेहतरीन संतरे की किस्म है जो सारे विश्व में उगाई जाती है| यह जनवरी-फरवरी के महीने में पक जाती है|

दूसरे राज्यों की किस्में


Mudkhed
Shrinagar
Butwal
Dancy
Kara (Abohar)
Darjeeling
Sumithra
Seedless 182

ज़मीन की तैयारी

पौधे के अंकुरण को बढ़ाने के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करें| खेत की जोताई करें, क्रॉस जोताई और पहाड़ों पर बराबर ऊंचाई पर रोपण किया जाता है| पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा घनत्व में रोपण करना सम्भव है|

बिजाई

बिजाई का समय
पंजाब में इसका रोपण बसंत ऋतु (फरवरी से मार्च) और मानसून के मौसम में (15 अगस्त से अक्तूबर अंत) में की जाती है|

फासला
मीठे संतरों के लिए 5x5 मीटर फासला रखें| 1x1x1 मीटर, गड्ढे खोदे और कुछ दिन तक धूप में रहने दें| प्रत्येक गड्ढे में 15-20 किलो गाय का गोबर, 500 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट डालें|

बीज की गहराई
पौधे के अंकुरण के लिए 60×60×60 सैं.मी. आकार के गड्ढे तैयार करें|

बिजाई का ढंग

प्रजनन
संतरे का प्रजनन बीजों द्वारा या बडिंग द्वारा किया जा सकता है।

बीजों द्वारा प्रजनन
बीज निकालने के लिए सेहतमंद पौधे से उच्च घनता वाले फलों को चुनें। बीजों को राख में अच्छी तरह मिलायें और छांव में सूखने के लिए छोड़ दें। बीजों की जीवन शक्ति को बढ़ाने के लिए बीजों को तुरंत 3-4 सैं.मी. की गहराई में बोयें। अंकुरण के लिए 3-4 सप्ताह लगते हैं। बीमार पौधों को खेत में से निकाल देना चाहिए। पौधों को बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए उनकी उचित संभाल जरूरी है।

बडिंग
संतरे के बीजों को नर्सरी में 2 मीटर x 1 मीटर आकार के बैड पर बोयें और कतार में 15 सैं.मी. का फासला रखें जब पौधों का कद 10-12 सैं.मी. हो जाये, तब रोपाई करें। रोपाई के लिए सेहतमंद और समान आकार के पौधे ही चुनें। छोटे और कमज़ोर पौधों को निकाल दें। यदि जरूरत पड़े तो रोपाई से  पहले जड़ों की छंटाई कर लें। नर्सरी में बडिंग,पौधे की  पैंसिल जितनी मोटाई होने पर की जाती है। इसके लिए शील्ड बडिंग या टी आकार की बडिंग की जाती है। ज़मीनी स्तर से 15-20 सैं.मी. के फासले पर वृक्ष की छाल में टी आकार का छेद बनाया जाता है। लेटवें आकार में 1.5-2 सैं.मी. का लंबा कट लगाया जाता है और वर्टीकल में लेटवें आकार के मध्य में से 2.5 सैं.मी. लंबा कट लगाएं। बड स्टिक में से बड निकाल लें और टी आकार के छेद में उसे लगा दें। उसके बाद उसे प्लास्टिक के पेपर से ढक दें।
टी बडिंग फरवरी मार्च के दौरान और अगस्त-सितंबर में भी की जाती है। मीठे संतरे, किन्नू, अंगूर फलों  में प्रजनन टी बडिंग द्वारा किया जाता है। जबकि निंबू और लैमन में प्रजनन एयर लेयरिंग विधि द्वारा किया जाता है।

बीज

बीज की मात्रा
110 पौधे प्रति एकड़ का घनत्व बना कर रखना चाहिए।

कटाई और छंटाई

नए वृक्षों की छंटाई बहुत आवश्यक होती है। छंटाई, उन्हें सही आकार और बनतर प्रदान करती है। कटाई इसलिए की जाती है ताकि सिर्फ एक तना और उसके ऊपर 6-7 शाखाएं ही रह जाएं, सबसे नीचे की शाखाओं को ज़मीनी स्तर से 50-60 सैं.मी. कद से नीचे बढ़ने नहीं देना चाहिए। छंटाई का उद्देश्य फलों की अच्छी गुणवत्ता के साथ अच्छी उपज भी प्राप्त करना होता है। छंटाई में बीमार, मरी हुई और कमज़ोर  शाखाओं को भी निकाला जाता है।

खाद

खादें (ग्राम प्रति वृक्ष)

फसल की उम्र यूरिया  सिंगल सुपर फासफेट
1 से 3 वर्ष 240-720 -
4 से 7 वर्ष 960-1680 1375-2400
8 वर्ष या इससे ज्यादा 1920 2750

 

तत्व (ग्राम प्रति वृक्ष)

फसल की उम्र  नाइट्रोजन फासफोरस
1 से 3 वर्ष 110-130 -
4 से 7 वर्ष 440-770 220-385
8 वर्ष या इससे ज्यादा 880 2750

 

संतरे की फसल के लिए: फसल के 1-3 वर्ष की हो जाने पर, अच्छी तरह से गला हुए गाय का गोबर 10-30 किलो और युरिया 240-720 ग्राम प्रति वृक्ष डालें। 4-7 वर्ष की फसल में, अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 40-80 किलो और युरिया 960-1680 ग्राम और सिंगल सुपर फासफेट 1375-2400 प्रति वृक्ष डालें। जब फसल 8 वर्ष की या इससे ज्यादा की हो जाए तो गाय का गला हुआ गोबर 100 किलो या यूरिया 1920 ग्राम और सिंगल सुपर फासफेट 2750 ग्राम प्रति वृक्ष डालें।


गाय के गले हुए गोबर की पूरी मात्रा दिसंबर महीने के दौरान डालें जबकि यूरिया के दो हिस्से, पहला फरवरी महीने में और दूसरा अप्रैल-मई के महीने में डालें। यूरिया की पहली खुराक के समय सिंगल सुपर फासफेट खाद की पूरी मात्रा डालें।

यदि पकने से पहले फलों का गिरना दिखाई दे तो फलों के ज्यादा गिरने को रोकने के लिए 2,4-D 10 ग्राम को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। पहली स्प्रे मार्च के अंत में, फिर अप्रैल के अंत में करें। अगस्त और सितंबर के अंत में दोबारा स्प्रे करें। यदि संतरे के नज़दीक कपास की फसल उगाई गई हो तो 2,4-D की स्प्रे करने से परहेज़ करें, इसकी जगह GA3 की स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को हाथ से गोडाई करके या रासायनों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। ग्लाइफोसेट की स्प्रे सिर्फ नदीनों पर ही करें, मुख्य फसल पर ना करें। 

सिंचाई

सदाबाहार प्रकृति के कारण संतरे की सिंचाई साल के मध्यम में ज्यादा की जाती है| सिंचाई की मात्रा मिट्टी की किस्म पर निर्भर करती है| फूल निकलने के समय, फलों के सेट और फलों के विकास के समय उचित सिंचाई करनी चाहिए| जल-जमाव से बचाव करें| सिंचाई का पानी नमक-रहित होना चाहिए|

पौधे की देखभाल

सिटरस सिल्ला
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

सिटरस सिल्ला: ये रस चूसने वाला कीड़े हैं। निंफस के कारण नुकसान होता है। यह पौधे पर एक तरल पदार्थ छोड़ता है जिससे पत्ता और फल का छिल्का जल जाता है। पत्ते मुड़ जाते हैं और पकने से पहले ही गिर जाते हैं। प्रभावित पौधों की छंटाई करके उन्हें जला कर इसकी रोकथाम की जा सकती है। मोनोक्रोटोफॉस 0.025% या कार्बरिल 0.1% की स्प्रे भी लाभदायक हो सकती है।

पत्ते का सुरंगी कीट

पत्ते का सुरंगी कीट: ये कीट नए पत्तों के ऊपर और नीचे की सतह के अंदर लार्वा छोड़ देते हैं, जिससे पत्ते मुड़े हुए और विकृत नज़र आते हैं। सुरंगी कीट से नए पौधों के विकास में कमी देखी जा सकती है। सुरंगी कीट के अच्छे प्रबंधन के लिए इसे अकेला छोड़ देना चाहिए और ये प्राकृति कीटों का भोजन बनते हैं और इनके लार्वा को खा लेते हैं। फासफोमिडोन 1 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस 1.5 मि.ली. को प्रत्येक पखवाड़े में 3-4 बार स्प्रे करें। सुरंगी कीटों का पता लगाने के लिए के लिए फेरोमोन जाल भी उपलब्ध होते हैं।

स्केल कीट

स्केल कीट: सिटरस स्केल कीट बहुत छोटे कीट होते हैं जो सिटरस के वृक्ष और फलों से रस चूसते हैं। ये कीट शहद की बूंद की तरह पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे चींटियां आकर्षित होती हैं। इनका मुंह वाला हिस्सा ज्यादा नहीं होता है। नर कीटों का जीवनकाल कम होता है। सिटरस के पौधे पर दो तरह के स्केल कीट हमला करते हैं, कंटीले और नर्म स्केल कीट। कंटीले कीट पौधे के हिस्से में अपना मुंह डालते हैं और उस जगह से बिल्कुल नहीं हिलते, उसी जगह को खाते रहते हैं और प्रजनन करते हैं। नर्म कीट पौधे के ऊपर परत बना देते हैं जो पौधे के पत्तों को ढक देती है और प्रकाश संश्लेषण क्रिया को रोक देते हैं। जो मरे हुए नर्म कीट होते हैं वो मरने के बाद पेड़ से चिपके रहने की बजाय गिर जाते हैं। नीम का तेल इन्हें रोकने के लिए प्रभावशाली उपाय है। पैराथियोन 0.03% इमलसन, डाइमैथोएट 150 मि.ली. या मैलाथियोन 0.1% की स्प्रे भी इन कीटों को रोकने के लिए प्रभावशाली उपाय है।

संतरे का शाख छेदक

संतरे का शाख छेदक: इसका लारवा कोमल टहनियों में छेद कर देता है और नर्म टिशू को खाता है| यह कीट दिन में पौधे को अपना भोजन बनाता है| प्रभावित पौधे कमज़ोर हो जाते है| यह सिट्रस पौधे का गंभीर कीट है| इसकी रोकथाम के लिए प्रभाविक शाखाओं को नष्ट कर दे| मिट्टी के तेल/ पेट्रोल के टीके भी इसकी रोकथाम के लिए प्रयोग किये जा सकते है| संतरे का शाख छेदक की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 5 मि.ली. 20 लीटर पानी में मिलाकार प्रयोग करें|

चेपा और मिली बग

चेपा और मिली बग: ये पौधे का रस चूसने वाले छोटे कीट हैं। कीड़े पत्ते के अंदरूनी भाग में होते हैं। चेपे और कीटों को रोकने के लिए पाइरीथैरीओड्स या कीट तेल का प्रयोग किया जा सकता है।

सिटरस का कोढ़ रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

सिटरस का कोढ़ रोग: पौधों में तनों, पत्तों और फलों पर भूरे, पानी रंग जैसे धब्बे बन जाते हैं। सिटरस कैंकर बैक्टीरिया पौधे के रक्षक सैल में से प्रवेश करता है। इससे नए पत्ते ज्यादा प्रभावित होते हैं। क्षेत्र में हवा के द्वारा ये बैक्टीरिया सेहतमंद पौधों को भी प्रभावित करता है।

दूषित उपकरणों के द्वारा भी यह बीमारी सवस्थ पौधों पर फैलती है। यह बैक्टीरिया कई महीनों तक पुराने घावों पर रह सकता है। यह घावों की उपस्थिति से पता लगाया जा सकता है। इसे प्रभावित शाखाओं को काटकर रोका जा सकता है। बॉर्डीऑक्स 1 % स्प्रे, एक्यूअस घोल 550 पी पी एम, स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट भी सिटरस कैंकर को रोकने के लिए उपयोगी है।

गुंदियां रोग

गुंदियां रोग: वृक्ष की छाल में गूंद निकलना इस बीमारी के लक्षण हैं। प्रभावित पौधा हल्के पीले रंग में बदल जाता है। तने और पत्ते की सतह पर गूंद की सख्त परत बन जाती है। कई बार छाल गलने से नष्ट हो जाती है और वृक्ष मर जाता है। पौधा फल के परिपक्व होने से पहले ही मर जाता है। इस बीमारी को जड़ गलन भी कहा जाता है। जड़ गलन की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना, जल निकास का अच्छे से प्रबंध करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है। पौधे को नुकसान से बचाना चाहिए। मिट्टी में 0.2 % मैटालैक्सिल MZ-72 + 0.5 % ट्राइकोडरमा विराइड डालें, इससे इस बीमारी को रोकने में मदद मिलती है। वर्ष में एक बार ज़मीनी स्तर से 50-75 सैं.मी ऊंचाई पर बॉर्डीऑक्स को जरूर डालना चाहिए।

पत्तों के धब्बा रोग

पत्तों के धब्बा रोग: पौधे के ऊपरी भागों पर सफेद रूई जैसे धब्बे देखे जाते हैं। पत्ते हल्के पीले और मुड़ जाते हैं। पत्तों पर विकृत लाइनें दिखाई देती हैं। पत्तों की ऊपरी सतह ज्यादा प्रभावित होती है। नए फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। उपज कम हो जाती है। पत्तों के ऊपरी धब्बे रोग को रोकने के लिए पौधे के प्रभावित भागों को निकाल दें और नष्ट कर दें। कार्बेनडाज़िम की 20-22 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

काले धब्बे

काले धब्बे: काले धब्बे एक फंगस वाली बीमारी है। फलों पर काले धब्बों को देखा जा सकता है। बसंत के शुरू में हरे पत्तों पर स्प्रे करने से काले धब्बों से पौधे को बचाया जा सकता है। इसे 6 सप्ताह के बाद दोबारा दोहराना चाहिए।

जड़ गलन

जड़ गलन : जड़ गलन भी फंगस के कारण होने वाली बीमारी है। यह बीमारी वृक्ष की जड़ की छाल को मुख्य रूप से प्रभावित करती है। छाल गलनी शुरू हो जाती है और ज़मीनी सतह से ऊपर एक परत बन जाती है। यह परत धीरे-धीरे पूरी जड़ को कवर कर लेती है। यह बहुत कम हालातों में होता है, जिससे कि वृक्ष भी मर सकता है। यह गलत मलचिंग के कारण, गोडाई, निराई करते समय पौधे का नष्ट होना इसके कारण हैं। इससे वृक्ष अपनी शक्ति खो सकता है। जड़ गलन से वृक्ष को बचाने के लिए पौधे की जड़ की नर्म और प्रभावित छाल को हटा दें। वृक्ष के प्रभावित भागों पर कॉपर की स्प्रे करनी चाहिए या बॉर्डीऑक्स को प्रभावित भाग पर लगाना चाहिए। हवा के अच्छे बहाव के लिए कमज़ोर, प्रभावित और वृ़क्ष की तंग शाखाओं को हटा दें।

जिंक की कमी

जिंक की कमी: यह सिटरस के वृक्ष में बहुत सामान्य कमी है। इसे पत्तों की मध्य नाड़ी और शिराओं में पीले भाग के रूप में देखा जा सकता है। जड़ का गलना और शाखाओं का झाड़ीदार होना आम देखा जा सकता है। फल पीला, लम्बा और आकार में छोटा हो जाता है। सिटरस के वृक्ष में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए खादों की उचित मात्रा दी जानी चाहिए। जिंक सल्फेट को 10 लीटर पानी में 2 चम्मच मिलाकर दिया जा सकता है। इसकी स्प्रे पूरे वृक्ष, शाखाओं और हरे पत्तों पर की जा सकती है। इसे गाय या भेड़ की खाद द्वारा भी बचाया जा सकता है।

आयरन की कमी

आयरन की कमी: नए पत्तों का पीले हरे रंग में बदलना आयरन की कमी के लक्षण हैं। पौधे को आयरन कीलेट दिया जाना चाहिए। गाय और भेड़ की खाद द्वारा भी पौधे को आयरन की कमी से बचाया जा सकता है। यह कमी ज्यादातर क्षारीय मिट्टी के कारण होती है।

फसल की कटाई

उचित आकार के होने के साथ आकर्षित रंग, शुगर की मात्रा 12:1 होने पर किन्नू के फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। किस्म के आधार पर फल मध्य जनवरी से मध्य फरवरी के महीने में तैयार हो जाते हैं। कटाई उचित समय पर करें, ज्यादा जल्दी और ज्यादा देरी से कटाई करने पर घटिया गुणवत्ता के फल मिलते हैं।

कटाई के बाद

कटाई के बाद, फलों को पानी से अच्छे से धोयें फिर क्लोरीनेटड 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर इसमें फलों को भिगो दें। तब इन्हें अलग अलग करके सुखाएं। अच्छी गुणवत्ता के साथ आकार में सुधार लाने के लिए सिट्राशाइन वैक्स फोम लगाएं। फिर इन फलों को छांव में सुखाएं और पैकिंग करें। फलों को बक्सों में पैक किया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare