पंजाब में नाशपाती की खेती

आम जानकारी

यह सयंमी क्षेत्रों का महत्वपूर्ण फल है| तह रोज़ेसी प्रजाति से  संबंध रखता है| इसको समुंद्र तल से 1,700-2,400 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जाता है| यह फल प्रोटीन और विटामिन का मुख्य स्त्रोत है| कई तरह की जलवायु और मिट्टी के अनुकूल होने के कारण नाशपाती की खेती भारत के उप-उष्ण से सयंमी क्षेत्रों में की जा सकती है|
नाशपाती की खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कम सर्दी वाली किस्मों की खेती उप-उष्ण क्षेत्रों में की जा सकती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
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    Temperature

    10-25°C
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    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-18°C
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    Harvesting Temperature

    18-25°C
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    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    50-75mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C

मिट्टी

इसकी खेती कई तरह की मिट्टी जैसे की रेतली दोमट से चिकनी दोमट में की जा सकती है| यह गहरी, बढ़िया निकास वाली, उपजाऊ मिट्टी, जो 2 मीटर गहराई तक कठोर ना हो, में बढ़िया पैदावार देती है| इसके लिए मिट्टी का pH 8.7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Patharnakh: यह कठोर नाशपाती और फैलने वाली किस्म है| इसके फल सामान्य आकार के, गोल और हरे रंग के होते है,जिन पर बिंदियां बनी होती हैं| इसका गुद्दा रसभरा और कुरकुरा होता है| इसकी गुणवत्ता ज्यादा समय के लिए स्टोर होने के कारण, दूरी वाले स्थानों पर आसानी से भेजा जा सकता है| यह किस्म जुलाई के आखिरी हफ्ते में पक कर तैयार हो जाती है| इस किस्म की औसतन पैदावार 150  किलो प्रति वृक्ष होती है|

Punjab Nakh: यह कठोर नाशपाती और फैलने वाली किस्म है| जो Patharnakh  से ली गयी है| इसके फल अंडाकार, हल्के पीले रंग के होते है, जिन पर बिंदियां बनी होती हैं| इसका गुद्दा रसभरा और कुरकुरा होता है| यह किस्म जुलाई के चौथे हफ्ते में पक कर तैयार हो जाती है| इस किस्म की औसतन पैदावार 190 किलो प्रति वृक्ष होती है|

Punjab Gold: यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है| इसके फल बढ़े, सुनहरी-पीले रंग के और सफेद गुद्दे वाले होते है| यह किस्म जुलाई के आखिरी हफ्ते में पक कर तैयार हो जाती है| यह किस्म कई और उत्पाद बनाने के लिए भी उचित मानी जाती है| इस किस्म की औसतन पैदावार 80 किलो प्रति वृक्ष होती है|

Punjab Nectar: यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है| इसके वृक्ष मध्यम कद के होते है| इसके फल सामान्य से बढ़े आकार के, पीले-हरे रंग के ओर सफेद गुद्दे वाले होते है| पकने के समय यह बहुत रसीले हो जाते हैं| यह किस्म जुलाई के अंत तक पक कर तैयार हो जाती है| इस किस्म की औसतन पैदावार 80  किलो प्रति वृक्ष होती है|

Punjab Beauty: यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है| इसके वृक्ष मध्यम कद के और ऊपर की तरफ बढ़ने वाले होते है, जो सारा साल फल देते हैं| इसके फल सामान्य से बढ़े आकार के, पीले-हरे रंग के और सफेद गुद्दे वाले होते है, जो ज्यादा रसीला और मीठा होता है| इसके फल जुलाई के तीसरे हफ्ते में पक जाते है| इस किस्म की औसतन पैदावार 80 किलो प्रति वृक्ष होती है|

Le conte:
यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है| इसके फल छोटे से मध्यम आकर के, हरे-पीले रंग के और सफेद, रसीले, स्वाद गुद्दे वाले होते है|  यह किस्म अगस्त के पहले तक पक कर तैयार हो जाती है| इस किस्म की औसतन पैदावार 60-80 किलो प्रति वृक्ष होती है|

Nigisiki: यह नरम नाशपाती वाली किस्म है| इसके फलों का गुद्दा सफेद और रसीला होता है और इसका शुगर की मात्रा 12.9% होता है| यह किस्म जून के अंत से लेकर जुलाई के पहले हफ्ते में पक कर तैयार हो जाती है|

Punjab soft: यह नरम नाशपाती वाली किस्म है|  इसके फलों का आकार सामान्य और सफेद गुद्दे वाला होता है| इसका शुगर की मात्रा 11.3% होता है|

दूसरे राज्यों की किस्में

Keiffer: यह जल्दी पकने वाली किस्म है| इसके फल बढ़े और सुनहरी पीले रंग के होते है|

Baggugosha: यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है| इसके फल हरे-पीले रंग के होते है, जिसका गुद्दा मीठा और क्रीम या सफेद रंग का होता है| इसके फल अगस्त के पहले हफ्ते तक पक कर तैयार हो जाते है| यह दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए अनुकूल किस्म है| इस किस्म की औसतन पैदावार 60 किलो प्रति वृक्ष होती है|

China Pear

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई जनवरी महीने में पूरी हो जाती है| बिजाई के लिए एक साल पुराने पौधों का प्रयोग किया जाता है|

फासला
पौधों के बीच 8x4 मीटर का फासला रखें| बिजाई से पहले खेत को अच्छी तरह से साफ करें और फसल की बचा-खुचा हटा दें| फिर ज़मीन को अच्छी तरह से समतल करें और पानी के निकास के लिए हल्की ढलान दें|

बीज की गहराई

1x1x1 मीटर आकार के गड्डे खोदे और बिजाई से एक महीना पहले नवंबर में ऊपर वाली मिट्टी और रूड़ी की खाद से भर कर छोड़ दें| आखिर में गड्डे को मिट्टी, 10-15 किलो रूड़ी की खाद, 500 किलो सिंगल सुपर फासफेट और क्लोरपाइरीफोस 50 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में डालें|

बिजाई का ढंग

बिजाई के लिए वर्गाकार या आयताकार विधि अपनाये| पहाड़ी क्षेत्रों में ढलान विधि का प्रयोग किया जाता है|

प्रजनन

(1) नाशपाती के नए पौधे तैयार करने के लिए कैंथ वृक्ष प्रयोग की जाती है| सितम्बर के अंत से अक्तूबर के पहले हफ्ते तक कैंथ वृक्ष के पके हुए बीज इकट्ठे करें| बीजों को निकाल कर दिसंबर में 30 दिनों तक लकड़ी के बक्सों में रखें, जिस में रेत की भीगी हुई परत मौजूद हो| जनवरी महीने में बीजों को नरसरी में बीज दें| 10 दिनों तक बीज अंकुरण हो जाते है| पनीरी वाले पौधे अगले साल के जनवरी महीने तक कलम लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं|
(2) बीजों को लकड़ी के बक्सों में नमी वाली रेत की पर अंकुरण के लिए रख दें| यह 10 -12 दिनों में अंकुरण हो जाते हैं| फिर पौधों को 10 सै.मी. के फैसले पर मुख्य खेत में लगाएं| हर पंक्ति के बाद 60  सै.मी. का फासला रखें| नए पौधे दिसंबर-जनवरी में कलम लगाने के लिए तैयार होते है|
नाशपाती के भागों की टी-बडिंग या टंग ग्राफ्टिंग करके कैंथ वृक्ष के निचले भागों को प्रयोग किया जाता है| ग्राफ्टिंग दिसंबर-जनवरी महीने में की जाती है और टी-बडिंग मई-जून महीने में की जाती है|

अंतर-फसलें

फल ना लगने के समय खरीफ ऋतु में उड़द, मूंग, तोरियों जैसे फसलें और रब्बी में गेंहू, मटर, चने आदि फसलें अंतर-फसली के रूप में अपनाई जा सकती है|

कटाई और छंटाई

पौधे की शाखाओं के मज़बूत ढांचे को ज्यादा पैदावार और बढ़िया गुणवत्ता के फल देने वाला बनाने के लिए कंटाई- छंटाई की जाती है|

कांट-छांट: निष्क्रिय वाले मौसम में पौधे की शाखा को ज्यादा फैलने से रोकने के लिए बीमारी-ग्रस्त, नष्ट हो चुकी, टूटी हुई और कमज़ोर शाखा के 1/4 हिस्से को हटा दें|

खाद

खादें

Age of the crop

(Year)

Well decomposed cow dung

(in kg)

UREA

(in gm)

SSP

(in gm)

MOP

(in gm)

First to three year 10-20 100-300 200-600 150-450
Four to six 25-35 400-600 800-1200 600-900
Seven to nine 40-60 700-900 1400-1800 1050-1350
Ten and above 60 1000 2000 1500

 

जब फसल 1-3 साल की हो, तो 10-20 रूड़ी की खाद, 100-300 ग्राम यूरिया, 200-600 ग्राम सिंगल फासफेट, 150-450 ग्राम मिउरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वृक्ष को डालें| 4-6 साल की फसल के लिए 25-35 रूड़ी की खाद, 400-600 ग्राम यूरिया, 800-1200  ग्राम सिंगल फासफेट, 600-900 ग्राम मिउरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वृक्ष को डालें| 7-9 साल की फसल के लिए40-60 रूड़ी की खाद,700-900 ग्राम यूरिया,1400-1800 ग्राम सिंगल फासफेट, 1050-1350 ग्राम मिउरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वृक्ष को डालें| 10 साल या इससे ज्यादा की फसल के लिए 60 रूड़ी की खाद, 1000 ग्राम यूरिया, 2000 ग्राम सिंगल फासफेट, 1500 ग्राम मिउरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वृक्ष को डालें|

रूड़ी की खाद, सिंगल सुपर फासफेट और मिउरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा दिसंबर के महीने में डालें| यूरिया की आधी मात्रा फूल निकलने से पहले फरवरी के शुरू में और बाकी की आधी मात्रा फल निकालनेके बाद अप्रैल के महीने में डालें|

खरपतवार नियंत्रण

जोताई के बाद, नदीनों के अंकुरण से पहले डिउरॉन 1.6 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे करें| अंकुरण के बाद, जब नदीन 15 -20 सै.मी. के हो, तो नदीनों की रोकथम के लिए ग्लाइफोसेट 1.2 लीटर प्रति एकड़ और पैराकुएट 1.2 को 200 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ में स्प्रे करें|

सिंचाई

नाशपाती की खेती के लिए पूरेसाल में 75–100 सै.मी. वितरित बारिश की जरूरत होती है| रोपाई के बाद इसको नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है| गर्मियों में 5-7 दिनों के फासले पर जबकि सर्दियों में 15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें| जनवरी महीने में सिंचाई ना करें| फल देने वाले पौधों को गर्मियों में खुला पानी दें| इससे फल की गुणवत्ता  और आकार में विकास होता है|

पौधे की देखभाल

मकोड़ा जूं
  • कीट और रोकथाम

मकोड़ा जूं: यह पत्तों को खाते है और इनका रस चूसते है, जिस से पत्तें पीले पड़ने शुरू हो जाते है|

इनका हमला दिखाई दें, तो घुलनशील सल्फर 1.5 ग्राम या प्रोपरगाइट 1 मि.ली. या फेनेजाक्वीन 1 मि.ली. या डिकोफॉल 1.5 मि.ली. को पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

टिड्डा

टिड्डा: इसका हमला होने पर फूल चिपकवे हो जाते है और और प्रभावित भागों पर काले रंग की फंगस नम जाती है|

इसकी रोकथाम के लिए कार्बरील 1 किलो या डाईमेथोएट 200 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|

चेपा और थ्रिप

चेपा और थ्रिप्स: यह पत्तों का रस चूसते है, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं| यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिस कारण प्रभावित भागों पर काले रंग की फंगस बन जाती है|

इसकी रोकथाम के फरवरी के आखिरी हफ्ते जब पत्ते झड़ना शुरू हो तो इमीडाक्लोप्रिड 60 मि.ली. या थाईआमिथोकसम 80 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें| दूसरी स्प्रे मार्च महीने में पूरी तरह से धुंध बनाकर करें और तीसरी स्प्रे फल के गुच्छे बनने पर करें|

नाशपाती का धफड़ी रोग

नाशपाती का धफड़ी रोग : इस बीमारी के साथ पत्तों के निचली और काले धब्बे दिखाई देते है| बाद में यह धब्बे स्लेटी रंग में बदल जाते है| प्रभावित भाग टूट कर गिर जाते हैं| बाद में यह धब्बे फलों के ऊपर दिखाई देने लगते है|

इसकी रोकथाम के लिए कप्तान 2 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे पौधे की निष्क्रिया समय से शुरू करके पत्ते झड़ने के समय तक 10 दिनों के फासले पर करें| प्रभावित फलों, पौधे के भागों को हटा दें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें|

जड़ का गलना

जड़ का गलना: इस बीमारी के साथ पौधे की छाल और लकड़ी भूरे रंग की हो जाती है और इस पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है| प्रभावित पौधे सूखना शुरू हो जाते है| इनके पत्ते जल्दी झड़ जाते है|

इसकी रोकथाम के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिला कर मार्च महीने में स्प्रे करें| जून महीने में दोबारा स्प्रे करें| कार्बेन्डाजिम 10 ग्राम+ कार्बोक्सिन(वीटावैक्स) 5 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिला कर, इस घोल को लगभग पूरे वृक्ष पर दो बार डालें| पहली बार मानसून आने से पहले(अप्रैल-मई) और दूसरी बार मानसून के बाद(सितंबर-अक्तूबर) में डालें| इसके बाद पोषे को हल्का पानी लगाएं|

फसल की कटाई

नज़दीकी मंडियों में फल पूरी तरह से पकने के बाद और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हरे फल तोड़े जाते है| तुड़ाई देरी से होने से फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर नहीं किया जा सकता है और इसका रंग और स्वाद भी खराब हो जाता है| नाशपाती की कठोर किस्म पकने के लिए लगभग 145 दिनों की जरूरत होती है, जबकि सामान्य नरम किस्म के लिए 135-140 दिनों की जरूरत होती है|

कटाई के बाद

कटाई के बाद फलों की छंटाई करें| फिर फलों को फाइबर बॉक्स में पकने, स्टोर या मंडी ले जाने के लिए पैक करें| फलों को 1000 पी पी एम एथीफोन के साथ 4-5 मिन्ट के लिए उपचार करें या  इनको 24 घंटों के लिए 100 पी पी एम इथाइलीन गैस में रखें और फिर 20° सै. पर स्टोर करें दें|| 0-1°सै. तापमान और 90 -95 % नमी में फलों को 60 दिन के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare