पासचुरेलोसिस: निमोनिया, तापमान में वृद्धि, सांस की बीमारी और छींके आना इस रोग के लक्षण हैं। यह बीमारी जयादातर छोटे खरगोशों में आती है।
इलाज: इस रोग के इलाज के लिए पैन्सिलिन एल ए 4 या स्ट्रैप्टोमाइसिन का टीका (3-5 दिन) 0.5 ग्राम दें।
थनैला रोग: यह जीवाणु रोग है, जो स्ट्रैप्टोकोकस के कारण होता है। इस बीमारी से थनों पर नीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मादा बच्चों को दूध नहीं पीने देती।
इलाज: शुरूआती समय में पैन्सिलिन एल ए 3, स्ट्रैप्टोमाइसिन या अन्य एंटीबायोटिक दवाइयों का टीका 3-5 दिन तक लगातार दें।
मिक्सोमैटोसिस: यह रोग मुख्य तौर पर खरगोश में पिस्सू और मच्छरों के द्वारा फैलता है। इसके लक्षण कान, पूंछ, जनन अंग, और आंखों की पलकों पर देखे जा सकते हैं।
इलाज: इसका कोई असरदार इलाज नहीं है। अन्य सहायक प्रभावों से बचने के लिए एंटीबायोटिक दिए जा सकते हैं।
कोक्सीडियोसिस: इसके मुख्य लक्षण खून वाले दस्त हैं।
इलाज: इस बीमारी के इलाज के लिए सल्फा दवाइयां (सलफामेराजीन सोडियम(0.2 प्रतिशत), सलफाकुइनाकिसलीन (0.05-0.1 प्रतिशत)) या नाइट्रोफिउरॉन (0.5 - 2 ग्राम प्रति किलो भार के अनुसार) दिया जाता है।
म्यूरकोइड इंटरोपैथी : इसके लक्षण दस्त और शरीर में पानी की कमी होना आदि हैं।
इलाज: इसका कोई असरदार इलाज नहीं होता। अन्य सहायक प्रभावों से बचने के लिए एंटीबायोटिक दिए जा सकते हैं।
कान का कोढ़ (कैंकर): इसके लक्षण सिर हिलाना, कानों में पपड़ी और टांगों से कानों को खुरकना आदि हैं।
इलाज: पहले पपड़ी हटाएं और फिर कान को साफ करें और फिर बेंजाइल बेंजोएट दवाई 3-4 दिन तक लगाएं।
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शरीर पर खुजली और ददरी: इसका मुख्य लक्षण नाक और कानों पर से बालों का झड़ना है।
इलाज: पहले पपड़ी हटाएं और फिर कान को साफ करें और फिर बेंजाइल बेंजोएट दवाई 3-4 दिन तक लगाएं।
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सॉर हॉक या पैरों के जख्म: इस बीमारी के लक्षण भार का कम होना, एनोरैक्सिया और सुन्न होना आदि हैं।
इलाज: जिंक का लेप और आयोडीन और एममोनियम एसीटेट घोल 0.2 प्रतिशत सॉर हॉक के इलाज के लिए दिया जाता है।