शिमला मिर्च की खेती

आम जानकारी

यह एक महत्वपूर्ण सब्जी की फसल है जिसको ग्रीन हाउस या शेड नेट हाउस में उगाया जाता है| इसे “स्वीट पेप्पर” और “बैल पेप्पर” के नाम से भी जाना जाता है| शिमला मिर्च में खनिज पदार्थ और विटामिन ऐ, सी की उच्च मात्रा पाई जाती  है| यह एक सदाबाहार जड़ी-बूटी है जो सोलनेसी परिवार से संबंध रखती है| यह 75 सैं.मी. ऊंचाई तक पहुंच जाती है| इसके फूल छोटे और फल निकलने पर सफेद-जामुनी रंग के होते हैं| पंजाब, बैंगलोर, पुणे, और कर्नाटक ग्रीन हाउस में शिमला मिर्च उगाने के मुख्य राज्य है| केरला, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी बंगाल राज्य है जो छोटे स्तर पर शिमला मिर्च का उत्पादन करते हैं|
हिमाचल प्रदेश में सोलन, कुल्लू, सिरमौर, चम्बा, कांगड़ा और शिमला आदि के मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में शिमला मिर्च की खेती की जाती है| हिमाचल प्रदेश में, 423 एकड़ ज़मीन में शिमला मिर्च की खेती की जाती है और इसकी औसतन पैदावार 3.984 टन होती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
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    Temperature

    21-25°C
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    Rainfall

    625-1500mm
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    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
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    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

इसकी खेती के लिए 18-35° सै. मिट्टी का तापमान होना आवश्यक है| इसके अच्छे विकास के लिए विभिन्न प्रकार की चिकनी से दोमट मिट्टी में इसकी खेती करें| यह कुछ हद तक तेज़ाबी मिट्टी में उगाई जा सकती है| यह रेतली दोमट मिट्टी और पानी के अच्छे निकास में बढ़िया परिणाम देती है| शिमला मिर्च की खेती के लिए मिट्टी का pH 6-7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

California Wonder: इस किस्म का पौधा दरमियाने कद का होताहै, जिसके पत्ते बड़े और फल गहरे हरे रंग के होते हैं| बिजाई के बाद इसकी पहली कटाई 75 दिनों में की जाती है| इस किस्म की बिजाई सोलन, कुल्लू, सिरमौर, चम्बा, कांगड़ा और शिमला आदि क्षेत्रों में की जाती है| इसकी औसतन पैदावार 52-62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Yellow Wonder: इस किस्म का पौधा दरमियाने कद का होता है, जिसके पत्ते बड़े और फल गहरे हरे रंग के होते है| यह किस्म 70 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 50-58 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Bharat: यह दरमियाने कद का पौधा है, जिसके चमकीले हरे रंग के फल होते हैं| यह किस्म 80 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 52-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Solan Hybrid-1: यह जल्दी पकने वाली और ज्यादा पैदावार वाली किस्म है| यह मध्यवर्ती क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल है| यह किस्म फल गलन की प्रतिरोधक है|

Solan Hybrid-2: यह जल्दी पकने वाली और ज्यादा पैदावार वाली किस्म है| यह किस्म 60-65 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है और और इसकी औसतन पैदावार 135-156 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह किस्म फल गलन की प्रतिरोधक है|

Solan bharpoor:  यह नई किस्म जो आरोपण के बाद 70-75 दिनों में तैयार हो जाती है| इसके फल घंटी आकार, गहरे हरे रंग और प्रत्येक फल का भार 50-60 ग्राम होता है| इसकी औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होता है| यह किस्म जड़ गलन और पत्तों के धब्बे रोग की प्रतिरोधक है|

दूसरे राज्यों की किस्में

Bomby (red color): यह जल्दी पकने वाली किस्म है| यह किस्म लम्बी, पौधे मज़बूत और शाखाएं फैलने वाली होती हैं| इसके फलों के विकास के लिए पर्याप्त छाया की जरूरत होती है| इसके फल गहरे हरे होते है और पकने के समय यह लाल रंग के हो जाते हैं, इसका औसतन भार 130-150 ग्राम होता है| इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है और यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर लेजाने के लिए उचित होते है|

Orobelle (yellow color): यह किस्म मुख्यतः ठंडे मौसम में विकसित होती है| इसके फल ज्यादातर वर्गाकार, सामान्य और मोटे छिलके वाले होते है| इसके फल  पकने के समय पीले रंग के होते है, जिनका औसतन भार 150 ग्राम होता है| यह किस्म बीमारीयों की रोधक किस्म है जो कि ग्रीन हाउस और खुले खेत में विकसित होती है|

Indra (green): यह किस्म लम्बी और देखने में झाड़ीदार होती है| इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और घने गुच्छों में होते है| इस किस्म के फल गहरे हरे रंग के होते हैं,जिनका औसतन भार 170 ग्राम होता है| फल विकसित होने के बाद 50-55 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार होते हैं| इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है और यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर लेजाने के लिए उचित होते है|

California Wonder, Chinese Giant, World Beater, Yolo Wonder Bharat, ArkaMohini, ArkaGaurav, ArkaBasant, Early Giant. Bullnose, King ofNorth, Ruby King, आदि भारत में उगाई जाने वाली शिमला मिर्च की महत्वपूर्ण किस्में है|

ज़मीन की तैयारी

शिमला मिर्च की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें| ज़मीन को भुरभुरा बनाने के लिए, 5-6 बार सुहागे से जोताई करें| खेत की तैयारी के समय खेत में रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में मिलाएं|

बिजाई

बिजाई का समय
कम पहाड़ी वाले क्षेत्र: नवंबर, फरवरी-मार्च, अगस्त
मध्यवर्ती क्षेत्र: मार्च-मई
ज्यादा पहाड़ी वाले क्षेत्र: अप्रैल-मई

फासला
बिजाई के लिए कतारों के बीच 60 सैं.मी. और पौधों के बीच 45 सैं.मी. का फासला रखें|

बिजाई की गहराई
बीज को 2-4 सैं.मी. गहरा बोयें|

बिजाई का ढंग
1. Low tunnel technology: शिमला मिर्च की अगेती पैदावार के लिए गर्मियों के शुरू में इस विधि का प्रयोग किया जाता है| यह दिसंबर से मध्य-फरवरी महीने के ठंडे मौसम में फसल की सुरक्षा करने में सहायता करती है| दिसंबर के महीने में 2.5 मीटर चौड़े बैड बोयें| बिजाई के समय कतारों के बीच130 सैं.मी. और पौधों के बीच 30 सैं.मी. बीजों की बिजाई करें| बिजाई से पहले 45-60 सैं.मी. लम्बे डंडों को मिट्टी में स्थापित करें| खेत को प्लास्टिक शीट से (100 गेज मोटाई) डंडों की सहायता से लगाएं| फरवरी के महीने में सही तापमान होने पर प्लास्टिक शीट को हटा दें|
2. Dibbling method

बीज

बीज की मात्रा
आम किस्मों के लिए 312-375 ग्राम प्रति एकड़ और प्रति एकड़ खेत के लिए 83-104 बीजों का प्रयोग करें|

बीज का उपचार

मिट्टी से होने वाली बीमारीयों से बचाने के लिए बिजाई से पहले थीरम या कप्तान, सिरेसन आदि 2 ग्राम में प्रति किलो बीजों को भिगोएं|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

शिमला मिर्च की खेती के लिए, सबसे पहले नर्सरी बैडों को तैयार करें| नए पौधे लगाने के लिए 300 x 60 x 15 सैं.मी. आकार के सीड बैड तैयार करें| बीजों को तैयार किये गए बैडों पर बोयें और बिजाई के बाद नर्सरी बैडों को मिट्टी की पतली परत से ढक दें| बीजों के उचित अंकुरण के लिए बिजाई के बाद तैयार बैडों पर हल्की सिंचाई करें|
जब पौधे के 4-5 पत्ते निकलने शुरू हो जाये तो आरोपण करें| मुख्य खेत में आरोपण किया जाता है| आरोपण आमतौर पर बरसात के मौसम में किया जाता है| आरोपण के लिए मुख्यतः 50-60 दिनों की पौध का प्रयोग किया जाता है|
आरोपण से पहले नर्सरी बैडों को पानी लगाएं ताकि पौधे को आसानी से उखाड़ा जा सके|

सिंचाई

बिजाई के बाद तुरंत हल्की सिंचाई करें| अगली सिंचाई रोपण के तुरंत बाद करें और फिर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें| शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई उचित अंतराल पर आवश्यक होती है।

खरपतवार नियंत्रण

फसल की बढ़िया पैदावार के लिए, उचित समय के अंतराल पर गोड़ाई करें| नए पौधों के रोपण के 2-3 हफ्ते बाद मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाएं यह खेत को नदीन मुक्त करने में मदद करती है| रोपण के 30 दिनों के बाद पहली गोड़ाई और 60 दिनों के बाद दूसरी गोड़ाई करें|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
83 200 38

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
38 32 23

 

खेत की तैयारी के समय, 83-100 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद मिट्टी में मिलाएं| रूड़ी की खाद के साथ, नाइट्रोजन 38 किलो( यूरिया 83 किलो), फासफोरस 28 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 200 किलो) और पोटाशियम 23 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 38 किलो)  प्रति एकड़ में डालें|

पोटाशियम, फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन 1/3 हिस्सा रोपण से पहले कतारों में खाद के रूप में मिलाएं और बाकी बची हुई नाइट्रोजन को दो बराबर हिस्सों में डालें| पहली खुराक रोपण के एक महीने बाद और दूसरी रोपण के दो महीने के बाद डालें|

sankar किस्मों की ज्यादा पैदावार के लिए, यूरिया 200 (नाइट्रोजन 100 किलो) और सिंगल सुपर फासफेट 157 (फासफोरस 25 किलो) का प्रयोग प्रति एकड़ ज़मीन में करें|

पौधे की देखभाल

  • बीमारीयां और रोकथाम

उखेड़ा रोग: यह एक फंगस की बीमारी है जो अंकुरित पौधों पर हमला करती है| इसके लक्षण तने पर धब्बे दिखाई देना है जिस कारण पौधा सूख कर अंत में मर जाता है| यह 4-5 दिनों में पूरी फसल पर हमला करता है| फसल को हल्के निकास वाली मिट्टी में उगाने पर मुख्य रूप से यह बीमारी हमला करती है|
उपचार: इस उखेड़ा रोग के बचाव के लिए बोर्डीओक्स मिश्रण 0.5-1.0% या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे की ब्लीटॉक्स या फ्लाईटोलन की स्प्रे करें|

एंथ्राकनोस

ऐथ्राक्नोस: यह एक फंगस की बीमारी है जो फसल के तने, पत्तों और फलों पर हमला करती है| इसके लक्षण फलों पर गहरे और गोल धब्बे और बीजों पर काले रंग के धब्बे देखे जा सकते है| कुछ समय बाद संक्रामक फल पकने से पहले ही गिर जाते है| यह बीमारी आम-तौर पर उचित नमी को संक्रामक करती है|
उपचार: ऐंथ्राक्नोस बीमारी के लिए बिजाई से पहले बीजों का उपचार आवश्यक है| बीजों को थीरम 0.2% या ब्रासिको 0.2% से उपचार करें| इस बीमारी के लिए डाईथेन(एम-45) या ब्लीटॉक्स 0.4% या डाईफ़ोलटन 0.2% की 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें|

पत्तों पर सफेद धब्बे

पत्तों के धब्बे: यह बीमारी गर्मियों में दिखाई देती है| इसके लक्षण पत्तों के विकास के समय टैलकम पाउडर दिखाई देता है, जिससे विकास रुक जाता है और पत्ते झड़ जाते हैं|
उपचार: पत्तों के धब्बे के बचाव के लिए 400 ग्राम एम-45 की स्प्रे 15 दिनों के अंतराल पर करें|

मुरझाना

सूखा: इसके लक्षण से पत्ते और फल तेज़ी से सूखने लगते है|
उपचार: ब्लीचिंग पाउडर 15 किलोग्राम की सहायता से सूखे से बचाव किया जा सकता है| इसके लिए प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें जैसे “ArkaGaurav” बीमारी को रोकने में मदद करती है|

पत्तों का मुड़ना

पत्तों का मुड़ना: इसके कारण पत्ते मुड़ जाते है, पत्तों की शिराओं का भुरना और बीच वाली शीरा मोटी होने लगती है|
उपचार: प्रभावित पौधों को निकाल दें ताकि दूसरे पौधे प्रभावित ना हो सकें|

थ्रिप्स
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

थ्रिप्स: इसके बीमारी के कारण पत्तों पर सफेद दाने दिखाई देते हैं और विकास रुक जाता है|
उपचार: मैलाथिऑन(सीथिऑन 50 ई सी 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी) या डाईमैथोएट(रोगोर 30 ई सी 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी) की स्प्रे करें| निकोटाइन सलफेट  @0.25%. की स्प्रे से कीटों की रोकथाम की जा सकती है|

चेपा

चेपा: यह पौधे को खाकर नुकसान पहुंचाता है जिससे पौधे नष्ट हो जाते हैं|
उपचार: चेपे से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफोस 0.05-0.01% या डेमेटोन मिथाइल 0.05-0.02% की स्प्रे करें|

जूं

जूं: यह शिमला मिर्च के छोटे कीट है जो पत्तों को अपना भोजन बनाते है|
उपचार: जूं की रोकथाम के लिए सैपरमैथरिन 5 ई सी 3 मि.ली. सहायक होती है| डाईमैथोएट(रोगोर 1 मि.ली. प्रति लीटर) या डीकोफोल(केलथेन 1.5 मि.ली. प्रति लीटर) भी जूं की रोकथाम के लिए सहायक है|

फसल की कटाई

अपरिपक्व हरे फल कटाई के लिए तैयार होते है| अपरिपक्व फल नर्म और कुरकुरे कटाई के लिए बढ़िया होते है| शिमला मिर्च की खेती मुख्य रूप से आम किस्मों की औसतन पैदावार 40-50 क्विंटल और 50-85 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|