अंगूर की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

यह विश्व की बहुत प्रसिद्ध फसल है और अधिकतर देशों में व्यापारिक तौर पर उगाई जाती है। यह विटामिन बी और खनिज पदार्थ जैसे कैल्शियम, फासफोरस और आयरन का अच्छा स्त्रोत है। अंगूर, खाने के लिए और विभिन्न पदार्थ जैसे जैली, जैम, किशमिश, सिरका, जूस, बीजों का तेल और अंगूर के बीजों का अर्क बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। अंगूर की खेती मुख्य तौर पर फ्रांस, यू एस ए, टर्की, दक्षिण अफ्रीका, चीन, पुर्तगाल, अर्जेनटीना, इरान, इटली और चाइल में की जाती है। इसके साथ ही चीन अंगूर की खेती करने वाला सबसे बड़ा देश है। इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं जैसे शूगर को नियंत्रित करने, अस्थमा, हृदय रोग, कब्ज, हड्डियों के स्वास्थ्य आदि के लिए लाभदायक होती है।। यह त्वचा और बालों से संबंधित समस्याओं के लिए भी लाभदायक है।
 
हिमाचल प्रदेश में अंगूरों का उत्पादन शुष्क क्षेत्रों जैसे किन्नौर, लाहौल स्पिती और पहाड़ी क्षेत्रों जैसे कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, मंडी, निचले क्षेत्रों जैसे सोलन, सिरमौर की पाउंटा पहाड़ियों आदि में किया जाता है।  शुष्क क्षेत्रों जहां कम बारिश होती है वहां अंगूर की किस्में अगस्त-अक्तूबर के महीने में पक जाती है और निचली पहाड़ी क्षेत्रों जहां बारिश जून के अंत में शुरू होती है, वहां पर अगेती किस्में उगाई जाती है।
 

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जाता है, लेकिन अंगूर की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी जिसकी पी एच 6.5-8.5 हो, और जल जमाव वाली मिट्टी उपयुक्त होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

शुष्क क्षेत्रों के लिए
 
किशमिश बनाने के लिए :  Thompson Seedless, Black Sahebi
 
कच्चा खाने के लिए : Thompson Seedless, Beauty Seedless, Black Sahebi, Anab-e-Shahi,
 
जूस बनाने के लिए : Beauty Seedless, Black Prince
 
वाइन बनाने के लिए : Rangspray, Cholhu White, Cholhu Red
 
निचली पहाड़ी क्षेत्रों के लिए 
 
Perlette, Beauty Seedless, Delight, and Himred.
 
Thompson Seedless :  इस किस्म के गुच्छे बड़े होते हैं। अंगूर समान आकार के, मध्यम लंबे, हरे रंग के और पकने पर सुनहरी रंग के हो जाते हैं। फल बीज रहित, सख्त और स्वाद में अच्छे होते हैं। यह देरी से पकने वाली किस्म है।
 
Black Sahebi : इसके फल जामुनी रंग के, अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। इसके गुच्छे अच्छे, छिल्का पतला और मीठा गुद्दा होता है। बीज नर्म होते हैं और इन्हें लंबे समय तक रखा जा सकता है। फल की उपज कम होती है और फल का आकार बड़ा होता है।
 
Perlette : यह अधिक उपज वाली किस्म है। इसके गुच्छे बड़े से मध्यम आकार के होते हैं। अंगूर मध्यम आकार के, हल्के सुगंधित, गोल होते हैं। इसका छिल्का मोटा, गुद्दा मीठा और सख्त होता है।
 
Anab-e-Shahi : इसके गुच्छे मध्यम से बड़े आकार के भरे हुए, सफेद रंग के फल होते हैं। इसका छिल्का पतला होता है। फलों की गुणवत्ता अच्छी होती है और फल का स्वाद मीठा होता है।
 
Black Prince : इसके फल जामुनी रंग के गोल, मोटा छिल्का, मीठा और नर्म गुद्दा होता है। इसके गुच्छे मध्यम आकार के, कम घनत्व के होते हैं। यह जल्दी और अच्छी उपज देने वाली किस्म है, यह किस्म खाने और जूस बनाने के लिए उपयुक्त है।
 

ज़मीन की तैयारी

अंगूर की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक ट्रैक्टर से 3-4 गहरी जोताई करें और हैरो से 3 जोताई करें।

खाद

खादें (ग्राम प्रति पौधा)

Age (in years) Cow dung (kg) CAN (gm) SSP (gm) MOP (gm)
1st year 25 400 500 250
2nd year 40 800 1500 400
3rd year 50 1200 2000 500
4th year 60 1400 3000 600
5th year 75 1600 4000 800

 

गड्ढे भरने के समय गाय का गोबर 50 किलो, एस एस पी 2 किलो और क्लोरपाइरीफॉस 1.5 लीटर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर डालें। डालने के बाद हल्की सिंचाई जरूर करें।

अंगूर के नए पौधे की बेल के ऊपर कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 250 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 250 ग्राम अप्रैल महीने में डालें और जून के महीने में दोबारा डालें।
 
शुष्क क्षेत्रों में कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 1200 ग्राम, एस एस पी 1500 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 500 ग्राम बेलों के पूरी तरह विकसित होने पर डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

जोताई के बाद मार्च के पहले पखवाड़े में नदीनों के अंकुरण से पहले स्टांप 800 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें और फिर ग्रामोक्सोन 24 या ग्लाइसेल 41 एस सल (ग्लाईफोसेट) 1.6 लीटर को 150 लीटर पानी में मिलाकर, नदीनों के अंकुरण के बाद जब नदीन 15-20 सैं.मी. कद प्राप्त कर लें, तब स्प्रे करें।
 

सिंचाई

मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में, सिंचाई फरवरी महीने के पहले पखवाड़े में की जाती है और उसके बाद मार्च के पहले सप्ताह में की जाती है। फिर अप्रैल के शुरू से जूत के अंत में फलों के विकसित होने पर सिंचाई की जाती है। सिंचाई की जरूरत तब होती है जब बारिश कम हो। शुष्क क्षेत्रों में जलवायु के आधार पर सिंचाई सप्ताह में एक बार की जाती है।

पौधे की देखभाल

भुंडियां
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
भुंडियां : ये कीट ताजे पत्तों को खाती है और बेलों को पत्ते रहित बना देती है।
उपचार: इसके लिए मैलाथियोन 400 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
थ्रिप्स और तेला : ये कीट पत्तों और फलों का रस चूसते हैं। तेला पत्तों की निचली सतह से रस चूसता है जिसके कारण ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
उपचार: इसके लिए मैलाथियोन 400 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पत्ता लपेट सुंडी
पत्ता लपेट सुंडी : ये सुंडियां पत्तों को लपेट देती हैं और फूलों को भी खाती है।
उपचार: इसके लिए लिए क्विनलफॉस 600 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पीला और लाल ततैया
पीला और लाल ततैया : ये कीट पके फलों में छेद करके उन्हें खाते हैं।
उपचार: इसके लिए क्विनलफॉस 600 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें ।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के निचली ओर धब्बे : पत्तों के ऊपर की ओर अनियमित आकार के पीले रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं और निचली परत पर सफेद रंग की फंगस देखी जा सकती है।
उपचार : कटाई और छंटाई के दौरान मैनकोजेब 500-600 ग्राम की पहली स्प्रे करें, दूसरी स्प्रे पहली स्प्रे के 3-4 सप्ताह बाद करें, उसके बाद तीसरी स्प्रे टहनियों के विकसित होने से पहले और चौथी स्प्रे गुच्छों के विकसित होने के शुरू में करें।
 
एंथ्राक्नोस
एंथ्राक्नोस : तनों और टहनियों पर कोढ़ के गहरे धंसे हुए जख्म देखे जा सकते हैं और पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं।
उपचार : इसके लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या एम 45@400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

तुड़ाई मुख्यत: फरवरी के शुरू से अप्रैल के अंत में की जाती है। पके हुए गुच्छों की तुड़ाई 18 डिगरी ब्रिक्स होती है। बीज रहित किस्मों की औसतन उपज 8-12.5 टन प्रति एकड़ होती है और बीज वाली किस्मों की औसतन उपज 15-20 टन प्रति एकड़ होती है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद छंटाई की जाती है। छंटाई के बाद  6 घंटों में फलों को 4.4 डिगरी सेल्सियस तापमान पर ठंडा होने के लिए रखा जाता है। लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए अंगूरों की पैकिंग कंटेनर में की जाती है।

बिजाई

Time of sowing:
In low hilly areas and in dry areas, sowing is done in February-March month.

Spacing:
By Kniffin method, use spacing of 3X3m and by arbour method use spacing of 5 X 3m. For Anab-e-Shahi variety, use a spacing of 6 X 3m.