सोयाबीन की खेती

आम जानकारी

सोयाबीन को गोल्डन बीन्स भी कहा जाता है, जो कि लैग्यूम परिवार से संबंधित है और ज्यादातर तिलहनी उद्देश्य के लिए उपयोग की जाती है। इसका मूल स्थान, पूर्वी एशिया है। सोयाबीन से निकाले हुए तेल में कम मात्रा में संतृप्त वसा होती है। यह भारत में मूंगफली के बाद दूसरी सबसे प्रसिद्ध तिलहनी फसल है। भारत में, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश मुख्य सोयाबीन उत्पादक राज्य हैं। सोयाबीन केक को दुधारू पशुओं के भोजन के लिए उपयोग किया जाता है क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती  है। हिमाचल प्रदेश में लगभग 250 एकड़ भूमि सोयाबीन की खेती के लिए उपयोग की जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temperature

    18-38°C
  • Season

    Rainfall

    30-60cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-38°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। मिट्टी की पी एच 6 से 7.5 सोयाबीन की अच्छी उपज के लिए अनूकूल होती है। जल जमाव, खारी और क्षारीय मिट्टी सोयाबीन की खेती के लिए अनुकूल नहीं होती। कम तापमान भी इस फसल को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Shivalik (Himso-333): यह अधिक उपज वाली किस्म है जो कम पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। इसके पौधे का कद 90-100 सैं.मी. होता है। यह 115 दिनों में तैयार हो जाती है। पूरे पौधे में हल्के क्रीम रंग के बाल मौजूद होते हैं और सफेद रंग के फूल होते हैं। इसके दाने पीले रंग के होते हैं जो आकार में मध्यम होते हैं। इनमें तेल की मात्रा 18.6 प्रतिशत और प्रोटीन की मात्रा 38 प्रतिशत होती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग के प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab No.-1: यह किस्म कम और मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों में खेती करने के लिए जारी की गई है। इसके पौधे का कद 70-80 सैं.मी. होता है और प्रत्येक पौधे में 60-70 फलियां होती हैं। इसके दाने पीले रंग के और मध्यम आकार के होते हैं। यह 110 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म को निचले क्षेत्रों में उगाने पर पीले चितकबरे रोग का हमला कम होता है। इसकी औसतन पैदावार  6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Lee: यह किस्म समुद्री तल से 1000 मीटर ऊंचाई पर उगाने के लिए जारी की गई है। इसके पौधे का कद 70 सैं.मी. होता है। इसके दाने मध्यम आकार और पीले रंग के होते हैं। यह किस्म बैक्टीरियल धब्बा रोगों के प्रतिरोधी किस्म है।
 
Brag: यह अधिक उपज वाली किस्म कम पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। इसके पौधे का कद 80 सैं.मी. होता है और प्रत्येक पौधे में 50-60 फलियां होती हैं। इसके दाने मोटे, पीले, और चमकदार होते हैं, जिनमें 20 प्रतिशत ते की मात्रा और 37 प्रतिशत प्रोटीन होती है।
 
Harit Soya (P 4-2): यह हरे दानों वाली किस्म दरमियाने पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। इसकी फलियां गहरी भूरे रंग की होती हैं जिनके दाने हरे रंग के होते हैं। यह किस्म 114-129 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म बैक्टीरियल धब्बों और भूरे धब्बों के प्रतिरोधी किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Palam Soya (P30-1-1): यह किस्म दरमियाने पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। यह जल्दी और समय पर बोने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसका पौधा छोटा होता है और पौधे का कद 75 सैं.मी. लंबा होता है। यह पत्तों के धब्बा रोग, सूखा और बैक्टीरियल रोग के कुछ हद तक प्रतिरोधक है। यह किस्म 120-122 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Himso 1588:  यह किस्म दरमियाने पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। जहां पर पीले चितकबरे रोग का हमला नहीं होता। इसके पौधे का कद 79 सैं.मी. होता है। यह किस्म भूरे धब्बा रोगों के प्रतिरोधक और पत्तों के नष्ट होने और बैक्टीरियल धब्बा रोगों के कुछ हद तक प्रतिरोधी है। यह किस्म 118-123 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके 100 बीजों का भार लगभग 11 ग्राम होता है। इसके बीजों में 42 प्रतिशत प्रोटीन और 19 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। इसकी औसतन पैदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
JS 93-05: यह किस्म तना गलन, फली और कली के झुलस रोग की प्रतिरोधक किस्म है। इसके बीज हरे पीले रंग के होते हैं।
 
JS 95-60: यह किस्म 82-88 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह तना गलन और विभन्न प्रकार के कीटों की प्रतिरोधक किस्म है।
 
JS 335: यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि बैक्टीरियल झुलस रोग के प्रतिरोधी और तने की मक्खी, कली के झुलस रोग के प्रतिरोधी किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pratap Soya 1, Pratap Soya 45 (RKS 45),
 
JS 97-52: यह अधिक उपज वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 98-102 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग, तना गलन आदि के प्रतिरोधी किस्म है।
 
RKS 24
 
VL Soya 63
 
VL Soya 59
 
NRC 37 (Ahilya 4): इसके बीज हल्के से गहरे भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म तना गलन, फली और कली के झुलस रोग, तने की मक्खी और पत्ते के सुरंगी कीड़े की रोधक किस्म है।
 
MAUS 47: यह किस्म कली के झुलस रोग, तना गलन, एंथ्राक्नोस, सलेटी सुंडी आदि के प्रतिरोधक किस्म है। इसके बीज पीले रंग के होते है।
 
MAUS 61-2: इसके बीज पीले रंग के होते हैं। यह किस्म फलियों के टूटकर गिरने की प्रतिरोधक है। इसके बीज हल्के भूरे रंग के होते हैं।
 
Indira Soya 9
 
 
Alankar, Ankur, Bragg, Lee, PK 262, PK 308, PK 327, PK 416, PK 472, PK 564, Pant Soybean 1024, Pant Soybean 1042, Pusa 16, Pusa 20, Pusa 22, Pusa 24, Pusa 37, Shilajeet, VL soya 2, VL soya 47, MAUS 158, VL soya 65, VL soya 59, SL 525, Pratap Soya 2, TAMS 9821, Phule Kalyani (DS 228), Pusa 9814, Co (SOY)-3, LSB-1, Hara soya.
 

बिजाई

बिजाई का समय
सोयाबीन के खेती के लिए, मॉनसून की पहली बारिश के दौरान मध्य जून का समय उपयुक्त होता है।
 
फासला
बिजाई के लिए, कतार से कतार का 10-15 इंच और पौधे से पौधे का फासला 4-7 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
नमी की उचित मात्रा में, बीजों को 3-4 सैं.मी. की गहराई में बोयें। ज्यादा गहराई में ना बोयें, क्योंकि यह अंकुरण को प्रभावित करता है। 
 
बिजाई का ढंग
बीजों को सीड ड्रिल की सहायता से बोयें।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में 30 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें। बारानी क्षेत्रों में 40 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीज को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए, थीरम +  कार्बेनडाज़िम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, ट्राइकोडर्मा विराइड 4-5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP
MOP
Heavy rainfall areas 15 150 25
Light rainfall areas 15 75 20

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
Heavy rainfall areas 8 25 16
Light rainfall areas 8 12.5 12.5

 

बिजाई के समय गली हुई रूड़ी की खाद और गाय का  गला हुआ गोबर 10 टन और नाइट्रोजन 8 किलो (यूरिया 15 किलो) और फासफोरस 25 किलो (एस एस पी 150 किलो), पोटाश 16 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 25 किलो) प्रति एकड़ में बिजाई के समय डालें। 

 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए दो गोडाई की आवश्यकता होती है, पहली गोडाई बिजाई के 15-20 दिन बाद और दूसरी गोडाई बिजाई के 30-40 दिन बाद करें।
रासायनिक तरीके से नदीनों को रोकने के लिए, बीजों के अंकुरन से पहले बसालिन 800 मि.ली. प्रति 200 लीटर पानी की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। नदीनों के नियंत्रण के लिए गोल 400 मि.ली. या स्टांप 1-1.5  लीटर की स्प्रे बीजों के अंकुरन से पहले या बाद में करें।
 

सिंचाई

बारानी फसल होने के कारण इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बारिश की स्थिति के आधार पर सिंचाई का उपयोग करें। फली बनने के समय सिंचाई आवश्यक है। इस समय पानी की कमी उपज को काफी प्रभावित करती है। 

पौधे की देखभाल

सफेद मक्खी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सफेद मक्खी : सफेद मक्खी को रोकने के लिए थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 200 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
तंबाकू सुंडी
तंबाकू सुंडी : यदि इस कीट का हमला दिखे तो एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी को 1.5 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि  जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
 बलिस्टर बीटल
बलिस्टर बीटल : यह कीट फूल बनने की अवस्था में हमला करते हैं। ये फूल को खाते हैं और कलियों में से दाने बनने से रोकते हैं।  यदि इसका हमला दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस सी 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। स्प्रे शाम के समय करें और यदि जरूरत पड़े तो पहली स्प्रे के बाद 10 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
 
पीला चितकबरा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
पीला चितकबरा रोग : यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। इससे अनियमित पीले, हरे धब्बे पत्तों पर नजर आते हैं। प्रभावित पौधों पर फलियां विकसित नहीं होती।
इसकी रोकथाम के लिए पीला चितकबरा रोग की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। सफेद मक्खी को रोकने के लिए थाइमैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफोस 200 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
कुंगी
कुंगी : यदि इसका खेत में हमला दिखे तो हैक्साकोनाज़ोल या प्रोपीकोनाज़ोल 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
 
पत्तों पर धब्बा रोग
सरकोस्पोरा पत्तों के धब्बा रोग : इससे बचाव के लिए कार्बेनडाज़िम 50 डब्लयु पी या थायोफानेट मिथाइल 70 डब्लयु पी 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

जब फलियां सूख जाएं और पत्तों का रंग बदल कर पीला हो जाए और पत्ते गिर जाएं, तब फसल कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई हाथों से या दराती से करें। कटाई के बाद पौधों में से बीजों को निकाल लें।

कटाई के बाद

सुखाने के बाद, बीजों की अच्छे से सफाई करें। छोटे आकार के बीजों, प्रभावित बीजों और डंठलों को निकाल दें।