टमाटर की खेती

कटाई के बाद

कटाई के बाद आकार के आधार पर टमाटरों को छांट लिया जाता है। इसके बाद टमाटरों को बांस की टोकरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक कर लिया जाता है। लंबी दूरी पर ले जाने के लिए टमाटरों को पहले ठंडा रखें ताकि इनके खराब होने की संभावना कम हो जाये। पूरी तरह पके टमाटरों से जूस, सीरप और कैचअप आदि तैयार किए जाते हैं।

फसल की कटाई

पनीरी लगाने के 70 दिन बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं। कटाई का समय इस बात पर निर्भर करता है कि फलों को दूरी वाले स्थानों पर लेकर जाना है या ताजे फलों को मंडी में ही बेचना है आदि। पके हरे टमाटर जिनका 1/4 भाग गुलाबी रंग का हो, लंबी दूरी वाले स्थानों पर लेकर जाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ज्यादातर सारे फल गुलाबी या लाल रंग में बदल जाते हैं, पर सख्त गुद्दे वाले टमाटरों को नज़दीक की मंडी में बेचा जा सकता है। अन्य उत्पाद बनाने और बीज तैयार करने के लिए पूरी तरह पके और नर्म गुद्दे वाले टमाटरों का प्रयोग किया जाता है। 

पत्तों पर धब्बे : इस बीमारी से पत्तों के निचली ओर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी पौधे को भोजन के रूप में प्रयोग करती है। यह आमतौर पर पुराने पत्तों पर फल बनने में थोड़ा समय पहले या फल बनने के समय हमला करती है। पर यह फसल के विकास के समय किसी भी स्थिति में हमला कर सकती है। ज्यादा हमले की स्थिति में पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं।
 
खेत में पानी ना खडा होने दें और खेत की सफाई रखें। बीमारी को रोकने के लिए हैकसा कोनाज़ोल के साथ स्टिकर 1 मि.ली.प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अचानक वर्षा की स्थिति में इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। धीरे-धीरे हो रहे नुकसान की स्थिति में पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की 2-3 बार 10 दिनों के फासले पर स्प्रे करें।
 
मुरझाना और पत्तों का झड़ना : यह बीमारी नमी वाली या बुरे निकास वाली मिट्टी में होती है। यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है। इससे तना पानी में डुबोने से मुरझाया हुआ दिखता है और मुरझाना शुरू हो जाता है। इससे पौधे निकलने से पहले ही मर जाते हैं। यदि यह बीमारी नर्सरी में आ जाये तो यह सारे पौधों को नष्ट कर देती है।
 
जड़ों के गलने से रोकने के लिए 1 प्रतिशत यूरिया 100 ग्राम प्रति 10 लीटर और कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़कें। पौधे को मुरझाने से बचाने के लिए नजदीक की मिट्टी में कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को प्रति 200 लीटर पानी में मिलाएं। ज्यादा पानी देने से तापमान और नमी में वृद्धि हो जाती है, जिससे जड़ें गलने का खतरा बढ़ जाता है। इसे रोकने के लिए ट्राइकोडरमा 2 किलो प्रति एकड़ को रूड़ी के साथ पौधे की जड़ों के नजदीक डालें। मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर या बोरडो मिक्स 10 ग्राम प्रति लीटर को पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़कें। इससे एक महीने बाद 2 किलो ट्राइकोडरमा प्रति एकड़ को 100 किलो रूड़ी में मिलाकर डालें।
 
झुलस रोग : यह टमाटर की खेती में आम पाई जाने वाली प्रमुख बीमारी है। शुरू में पत्तों पर छोटे भूरे धब्बे होते हैं। बाद में ये धब्बे तने और फल के ऊपर भी दिखाई देते हैं। पूरी तरह विकसित धब्बे भद्दे और गहरे भूरे हो जाते हैं जिनके बीच में गोल सुराख होते हैं। ज्यादा हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते हैं।
 
यदि इसका हमला देखा जाये तो मैनकोज़ेब 400 ग्राम या टैबूकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर की स्प्रे करें। पहली स्प्रे से 10-15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें। बादलवाइ वाले मौसम में इसके फैलने का ज्यादा खतरा होता है। इसे रोकने के लिए क्लोरोथैलोनिल 250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी की स्प्रे करें। 
 
एंथ्राकनोस : गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाली स्थिति में यह बीमारी ज्यादा फैलती है। इस बीमारी से पौधे के प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे आमतौर पर गोलाकार, पानी के साथ भीगे हुए और काली धारियों वाले होते हैं। जिन फलों पर ज्यादा धब्बे हों वे पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है।
 
यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो इसे रोकने के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
जूं : यह एक खतरनाक कीड़ा है जो 80 प्रतिशत तक पैदावार कम कर देता है। यह कीट पूरे संसार में फैला हुआ है। यह पत्तों को नीचे की ओर से खाता है। प्रभावित पत्ते कप के आकार में नज़र आते हैं। इसका हमला बढ़ने से पत्ते सूखने और झड़ने लग जाते हैं और शाखाएं नंगी हो जाती हैं।
 
यदि खेत में पीली जुंएं और थ्रिप का हमला देखा जाये तो क्लोफैनापियर 15 मि.ली.प्रति 10 लीटर, एबामैक्टिन 15 मि.ली.10 लीटर या फैनाज़ाकुइन 100 मि.ली.प्रति 100 लीटर असरदार सिद्ध होगा। अच्छे नियंत्रण के लिए स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली.प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
फल छेदक : यह टमाटर का मुख्य कीट है। यह हेलीकोवेरपा के कारण होता है, जिसे सही समय पर यदि कंटरोल ना किया जाये तो यह 22-37 प्रतिशत तक फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह पत्ते, फूल और फल खाता है। यह फलों पर गोल छेद बनाता है और इसके गुद्दे को खाता है।
 
शुरूआती नुकसान के समय इसके लारवे को हाथों से भी इकट्ठा किया जा सकता है। शुरूआती समय में HNPV या नीम के पत्तों का घोल 50 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल बेधक को रोकने के लिए 16 फेरोमोन कार्ड बराबर दूरी पर पनीरी लगाने के 20 दिनों के बाद लगाएं प्रभावित हिस्सों को नष्ट कर दें। यदि कीड़ों की गिणती ज्यादा हो तो सपानोसैड 80 मि.ली.+ स्टिकर 400 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। शाख और फल छेदक को रोकने के लिए कोराज़न 60 मि.ली.प्रति 100 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
थ्रिप्स : यह टमाटरों में आम पाया जाने वाला कीट है। यह विशेष कर शुष्क मौसम में पाया जाता है। यह पत्तों का रस चूसता है, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। पत्तों का आकार कप की तरह हो जाता है और यह ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं। इससे फूल झड़ने भी शुरू हो जाते हैं।
 
इनकी गिणती देखने के लिए स्टीकी ट्रैप 6-8 प्रति एकड़ में लगाएं। इन्हें रोकने के लिए वर्टीसीलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि थ्रिप की मात्रा ज्यादा हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली. या फिप्रोनिल 200 मि.ली.प्रति 100 लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 600ग्राम प्रति 100 लीटर या स्पाइनोसैड 80 मि.ली.प्रति एकड़ को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
सफेद मक्खी : यह पत्तों में से रस चूसकर पौधों को कमज़ोर बनाती है। यह शहद की बूंद की तरह के पत्तों पर काले धब्बे छोड़ती है। यह पत्ता मरोड़ बीमारी का भी कारण बनते हैं।
 
नर्सरी में बीजों की बिजाई के बाद, बैड को 400 मैस के नाइलोन जाल के साथ या पतले सफेद कपड़े से ढक दें। यह पौधों को कीड़ों के हमले से बचाता है। इनके हमले को मापने के लिए पीले फीरोमोन कार्ड प्रयोग करें, जिनमें ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा हों।सफेद मक्खी को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को जड़ों से उखाड़कर नष्ट कर दें। ज्यादा हमला होने पर एसिटामिप्रिड 20 एस पी 80 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 250 मि.ली.प्रति 200 लीटर या प्रोफैनोफोस 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह स्प्रे 15 दिन बाद दोबारा करें।
 

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
पत्ते का सुरंगी कीड़ा : यह कीट पत्तों को खाते हैं और पत्ते में टेढी मेढी सुरंगे बना देते हैं। यह फल बनने और प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर भी असर करता है।
 
शुरूआती समय में नीम सीड करनल एक्सट्रैक्ट 5 प्रतिशत 50 ग्राम लीटर पानी की स्प्रे करें। इस कीड़े पर नियंत्रण करने के लिए डाईमैथोएट 30 ई सी 250 मि.ली.या स्पीनोसैड 80 मि.ली.में 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 

सिंचाई

सर्दियों में 6 से 7 दिनों के फासले पर सिंचाई करें और गर्मियों के महीने में मिट्टी में नमी के मुताबिक 4-5 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। फूल निकलने के समय सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है। इस समय पानी की कमी से फूल झड़ सकते हैं और फल के साथ साथ पैदावार पर भी प्रभाव पड़ता है। बहुत सारी जांचों के मुताबिक यह पता चला है कि हर पखवाड़े में आधा इंच सिंचाई करने से जड़ें ज्यादा फैलती हैं और इससे पैदावार भी अधिक हो जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

थोड़े थोड़े समय बाद गोडाई करते रहें और जड़ों को मिट्टी लगाएं। 45 दिनों तक खेत को नदीन रहित रखें। यदि नदीन नियंत्रण से बाहर हो जायें तो यह 70-90 प्रतिशत पैदावार कम कर देंगे। रोपाई से पहले, मुख्य खेत में पैंडीमैथालीन 1 लीटर को प्रति एकड़ में डालें। यदि नदीन जल्दी उग रहे हों तो नदीनों के अंकुरण से पहले सैंकर 800 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। नदीनों पर नियंत्रण करने और ज़मीन का तापमान कम करने के लिए मलचिंग भी एक प्रभावी तरीका है।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA
SSP MOP
84 200 38

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
38 32 22

 

नए पौधों की रोपाई से पहले 84 क्विंटल गाय का गला हुआ गोबर प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 38 किलो (84 किलो यूरिया), फासफोरस 32 किलो (200 किलो एस एस पी) और पोटाश 22 किलो (38 किलो एम ओ पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नाइट्रोजन को रोपाई के बाद दो हिस्सों में 30वें और 50वें दिन डालें।
 
WSF:  पनीरी लगाने के 10-15 दिन बाद NPK 19:19:19, 10 ग्राम के साथ सूक्ष्म तत्वों 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर में मिलाकर स्प्रे करें। कम तापमान के कारण, पौधे तत्वों को कम सोखते हैं और इससे पौधे के विकास पर भी प्रभाव पड़ता है। इस तरह की स्थितियों में फोलियर स्प्रे पौधे के विकास में मदद करती है। शाखाएं और टहनियां निकलने के समय 19:19:19  या 12:61:00 की 3-5 ग्राम प्रति लीटर स्प्रे करें। पौधे के अच्छे विकास  और पैदावार के लिए, पनीरी लगाने के 40-50 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ को 150 लीटर पानी में मिलाकर दो बार स्प्रे करें।
अच्छी क्वालिटी और पैदावार प्राप्त करने के लिए फूल निकलने से पहले 12:61:00 (मोनो अमोनियम फासफेट) 10 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। जब फूल निकलने शुरू हो जाएं तो शुरूआती दिनों में बोरॉन 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह फूल और टमाटर के झड़ने को रोकेगा। कईं बार टमाटरों पर काले धब्बे देखे जा सकते हैं जो कैल्शियम की कमी से होते हैं। इसको रोकने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अधिक तापमान में फूल गिरते दिखें तो एन ए ए 50 पी पी एम (4 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने पर करें। फल के विकास की अवस्था के दौरान सल्फेट ऑफ पोटाश (00:00:50+18S) की 3-5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह फल के विकास और अच्छे रंग के लिए उपयोगी होती है। टमाटर में दरार आने से इसकी क्वालिटी कम हो जाती है और मूल्य भी 20 प्रतिशत कम हो जाता है। इसे रोकने के लिए चिलेटड बोरोन 200 ग्राम प्रति एकड़ प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे फल पकने के समय करें। पौधे के विकास, फूल और फल को बढ़िया बनाने के लिए काई का अर्क 3-4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे महीने में दो बार करें। मिट्टी में नमी बनाई रखें।
 

 

 

बीज

बीज की मात्रा
सामान्य किस्मों के लिए, 166-208 ग्राम और हाइब्रिड किस्मों के लिए, 62.5 ग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीड़े मकौड़ों से बचाने के लिए बीज को बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसके बाद टराइकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। बीज को छांव में रख दें और फिर बिजाई के लिए प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 3gm
Thiram 3gm
 
 

 

 

बिजाई

बिजाई का समय
कम पर्वतीय क्षेत्रों के लिए :  जून-जुलाई (बारानी क्षेत्रों में), नवंबर, फरवरी (सिंचित क्षेत्रों में)
दरमियाने पर्वतीय क्षेत्रों के लिए : फरवरी-मार्च (सिंचित क्षेत्रों में), मई-जून (बारानी क्षेत्रों में)
अधिक पर्वतीय क्षेत्रों के लिए :  मार्च-अप्रैल
 
फासला
छोटे कद की किस्मों के लिए 60 x 45 सैं.मी. और अधिक फैलने वाली किस्मों के लिए 90 x 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।

बीज की गहराई
नर्सरी में बीज को 0-5 सैं.मी. गहराई पर बोयें और मिट्टी से ढक दें।
 
बिजाई का ढंग 
नए पौधों का मुख्य खेत में रोपण किया जाता है।
टमाटर के बीज को 1 मीटर चौड़ाई और 5 मीटर लंबाई वाले तैयार बैडों पर 5-7 सैं.मी. के फासले पर कतारों में बोयें। एक एकड़ में नए पौधे के लिए लगभग 25 तैयार बैडों की आवश्यकता होती है। बीज को बोने से पहले कार्बोफिउरॉन 3G, 10 ग्राम प्रति वर्गमीटर को नर्सरी की मिट्टी में डालें। पौधों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। चार से पांच सप्ताह पुराने नए पौधे जो 10-15 सैं.मी. कद के हों, रोपाई के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

टमाटर के बीज को पहले नर्सरी में बोया जाता है फिर मुख्य खेत में रोपण कर दिया जाता है। मुख्य खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से जोती गई और समतल ज़मीन की आवश्यकता होती है। खेत की 4-5 बार जोताई करें और फिर मिट्टी को समतल करने के लिए सुहागा लगाएं।  आखिरी जोताई के समय मिट्टी में अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 60 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में मिलायें। रोपाई के लिए तैयार बैड की चौड़ाई 80-90 सैं.मी. रखें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Solan Bajr (U.H.F II) :  यह एक नई किस्म है। इसका आकार दिल जैसा, सख्त और फल का मोटा छिल्का होता है। फल का भार लगभग 70 ग्राम होता है। यह किस्म 70-75 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार177- 197 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म दरमियानी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए जारी की गई है  
 
Solan Gola : यह अधिक फैलने वाली किस्म है। फल गोल और मध्यम से बड़े आकार के, मोटा छिल्का और इस किस्म को दूरी वाले स्थानों पर आसानी से ले जाया जा सकता है। इस किस्म की औसतन पैदावार 156 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Yashwant (A-2) :  यह अधिक फैलने वाली किस्म है। फल गोल, समतल मोटा छिल्का होता है और यह फल गलन के प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 208 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Marglobe : यह अधिक फैलने वाली किस्म है। फल गोल, बड़े आकार के, मोटा छिल्का और कच्चे फलों का बाहरी छिल्का हरे रंग का होता है और फल गलन के प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 166 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Syu : यह अधिक फैलने वाली किस्म है। फल मध्यम आकार के, लगभग गोल होते हैं, कच्चे फलों का बाहरी छिल्का हरे रंग का और पकने पर लाल रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 145 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Solan Shagun : यह मध्यम कद की हाइब्रिड किस्म है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और फल गहरे लाल रंग के होते हैं और यह किस्म 70-75 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 145 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म सूखे और फल गलन बीमारी के प्रतिरोधक किस्म है।
 
Roma : यह छोटे कद की किस्म है। इसके पत्ते अधिक होते हैं, फल नाशपाती के आकार के, मोटा छिल्का होता है और इसे दूरी वाले स्थानों पर आसानी से ले जाया जा सकता है। यह किस्म कुल्लू की पहाड़ियों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Rupali : यह मध्यम फैलने वाली हाइब्रिड किस्म है। इसके फल गोल आकार के मध्यम और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए उपयुक्त होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 208 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
M.T.H -15 : यह मध्यम फैलने वाली हाइब्रिड किस्म है। इसके फल गोल और छिल्का मोटा होता है। इसकी औसतन पैदावार 188 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Naveen : यह मध्यम फैलने वाली हाइब्रिड किस्म है। इसके फल गोल आकार के और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए उपयुक्त हैं। यह किस्म सोलन और इसके साथ लगते क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 167-188 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Palam Pink (B.L. 342-I) : यह एक नई किस्म है जो बैक्टीरियल सूखा रोग के प्रतिरोधक है। यह किस्म निचली और दरमियानी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए जारी की गई है। इसके पौधे का कद छोटा, गुलाबी रंग के फल होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Palam Pride : इसकी औसतन पैदावार 98 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Solan Garima : यह हाइब्रिड किस्म है। इसके एक गुच्छे में 3-4 फल होते हैं। यह किस्म 80-85 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके फल का औसतन भार 85 ग्राम होता है। फल गोल आकार के, गहरे लाल रंग के और छिल्का मोटा होता है और यह किस्म लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 275 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म दरमियानी पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है।
 
Solan Sindhoor : यह हाइब्रिड किस्म है। इसके एक गुच्छे में 3-4 फल होते हैं। यह किस्म 75-80 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके फल का औसतन भार 60 ग्राम होता है। फल गोल आकार के, गहरे गुलाबी रंग के और छिल्का मोटा होता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 4.5 ब्रिक्स होती है और इस किस्म को लंबी दूरी वाले स्थानों पर आसानी से ले जाया जा सकता है। इसकी औसतन पैदावार 270 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म दरमियानी पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मियों के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है।
 
Him Pragti : यह किस्म सूखे तापमान वाले क्षेत्रों (लाहौल पहाड़ियों) में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके फल गहरे लाल रंग के, मध्यम नाशपाती के आकार के, गुच्छों में होते हैं। इसके फल का छिल्का मोटा होता है, और ठंड के प्रतिरोधक किस्म है। यह किस्म 85 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन उपज Roma किस्म से 46 प्रतिशत अधिक होती है।
 
Pusa Rubi : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म बसंत और सर्दियों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 133 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Early Dwarf : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके फल मध्यम छोटे और तना पीला होता है। यह किस्म रोपाई के बाद 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Chhuhara : इसके फल बीज रहित, नाशपाति के आकार के, लाल और बाहरी मोटी परत के होते हैं। इसकी गुणवत्ता कटाई के बाद 7 दिनों तक मंडी लायक होती है। इसलिए इस किस्म को लंबी दूरी वाले स्थानों और नए उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
Pusa 120 : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके फल मध्यम छोटे, नर्म, आकर्षित और तना पीले रंग का होता है। यह किस्म निमाटोड के प्रतिरोधी किस्म है।
 
Roma Selection 120 : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म जड़ गलन के प्रतिरोधी किस्म है।
 
Pant Bahar : इसके फल गोल, मध्यम आकार के होते हैं।
 
Arka Vikas : यह किस्म IIHR, बैंगलोर द्वारा जारी की गई है। यह किस्म 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 140-160 किवंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Hisar Aruna : यह किस्म HAU, हिसार द्वारा विकसित की गई है। यह जल्दी पकने वाली और उच्च उपज वाली किस्म है। इसके फल मध्यम -बड़े, गोल, गहरे लाल रंग के होते हैं।
 
Karnataka Hybrid : इस किस्म की फसल रोपाई के 80 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल लंबे और अंडाकार होते हैं। यह किस्म सूखा और निमाटोड के प्रतिरोधक किस्म है।

Rashmi : यह व्यापक रूप से अपनाई गई हाइब्रिड है। इसके फल मध्यम, गोल और आकर्षित होते हैं। यह किस्म सूखा बीमारी के प्रतिरोधी किस्म है।
 
HS 101 : यह उत्तरी भारत में सर्दियों के समय लगाई जाने वाली किस्म है। इसके पौधे छोटे होते हैं। इस किस्म के टमाटर गोल और दरमियाने आकार के और रसीले होते हैं। यह गुच्छों के रूप में लगते हैं। यह पत्ता मरोड़ बीमारी की रोधक किस्म है। 
 
HS 102 : यह किस्म जल्दी पक जाती है। इस किस्म के टमाटर छोटे और दरमियाने आकार के गोल और रसीले होते हैं। 
 
Sonali : इस किस्म की औसतन पैदावार 300-320 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Pusa Hybrid 1 : यह किस्म ICAR, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसकी औसतन पैदावार 128 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Hybrid 2 :  यह किस्म ICAR, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसके फल चपटे, गोल और मोटे छिल्के वाले होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 220 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
ARTH-3 : यह किस्म रोपाई के बाद 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 350-380 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Keekruth : इसके पौधे की ऊंचाई 100 सैं.मी. होती है। यह फसल 136 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म के टमाटर दरमियाने से बड़े आकार के, गोल और गहरे लाल रंग के होते हैं।
 
Keekruth Ageti :  इसके पौधे की ऊंचाई 100 सैं.मी. होती है। इस किस्म के टमाटर दरमियाने से बड़े आकार के और गोल होते हैं जो ऊपर से हरे होते हैं। पकने के समय इनका रंग बदल जाता है।
 

मिट्टी

इस फसल की खेती  अलग-अलग मिट्टी की किस्मों में की जा सकती है जैसे कि रेतली,  चिकनी,  दोमट,  काली,  लाल मिट्टी,  जिसमें पानी के निकास का सही प्रबंध हो। अच्छे निकास वाली रेतली मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में हो, में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी की पी एच 7-8.5 होनी चाहिए। यह फसल अम्लीय और खारी मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। ज्यादा तेजाबी मिट्टी में खेती ना करें। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी लाभदायक है, जबकि अच्छी पैदावार के लिए चिकनी, दोमट और बारीक रेत वाली मिट्टी बहुत अच्छी है।

  • Season

    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-600mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-600mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-600mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-25°C
  • Season

    Rainfall

    400-600mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C

आम जानकारी

यह भारत की महत्तवपूर्ण व्यापारिक सब्जियों की फसल है। यह फसल दुनिया भर में आलू के बाद दूसरे नंबर की सबसे महत्तवपूर्ण फसल है। इसे फल की तरह कच्चा और पकाकर भी खाया जा सकता है। यह विटामिन ए, सी, पोटाशियम और अन्य खनिजों का भरपूर स्त्रोत है। इसका प्रयोग जूस,  सूप,  पाउडर और कैचअप बनाने के लिए भी किया जाता है। इस फसल की प्रमुख पैदावार बिहार,  कर्नाटक,  उत्तर प्रदेश,  उड़ीसा,  महांराष्ट्र,  आंध्र प्रदेश,  मध्य प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में की जाती है। राजस्थान में टमाटर की खेती लगभग 16,588 हैक्टेयर में की जाती है, जिससे 55,508 टन का उत्पादन होता है।