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आम जानकारी

यह एक महत्तवपूर्ण प्रोटीन युक्त दालों वाली फसल है। इसे ज्यादातर मुख्य दाल के तौर पर जो कि दो भागों द्वारा बनी होती है, खायी जाती है। यह दाल गहरी संतरी, और संतरी पीले रंग की होती है। इसे बहुत सारे पकवानों में प्रयोग किया जाता है। यह कपड़ों और छपाई के लिए स्टार्च का स्त्रोत भी मुहैया करता है। इसे गेहूं के आटे में मिलाकर ब्रैड और केक भी बनाये जाते हैं। भारत, दुनिया में सब से अधिक मसूर पैदा करने वाला देश है। 
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2002-03 में, 364 एकड़ ज़मीन में मसूर की खेती की गई जिससे 1495 क्विंटल औसतन उपज प्राप्त हुई।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    18-20°C
  • Season

    Rainfall

    100cm
  • Season

    Harvesting Temperature

    22-24°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C

मिट्टी

यह हर तरह की मिट्टी में उग सकती है पर क्षारीय, खारी और जल जमाव वाली मिट्टी में नहीं उग सकती। मिट्टी भुरभुरी और नदीन रहित होनी चाहिए ताकि बीज एक जैसी गहराई में बोये जा सकें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Vipasha (H.P.L.-5): इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं। दाने मोटे होते हैं जो बाहर से हल्के भूरे रंग के चमकदार और अंदर से हल्के संतरी रंग के होते हैं। इस किस्म के बीज सख्त नहीं होते। यह किस्म सूखे के प्रतिरोधक है। यह 175-180 दिनों में पक जाती है और 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन उपज देती है।
 
Markandey (E.C.-1):  यह नई किस्म है जो उप उष्णकटिबंधीय पर्वतीय क्षेत्रों के उप पर्वतीय और कम पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। इसके पौधे का कद 40-45 सैं.मी. होता है और दाने मोटे होते हैं जो भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म एंथ्राक्नोस, सूखे, जड़ गलन और पीली कुंगी के प्रतिरोधक किस्म है। इस किस्म की औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और यह किस्म 160-170 दिनों में पक जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pant Lentil-4 (PL 81-17): यह किस्म 1993 में जारी की गई है, इसकी औसतन पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है और 140-145 दिनों में परिपक्व हो जाती है। यह किस्म कुंगी और सूखे को सहनेयोग्य है।
 
IPL 406 (Angoori): यह किस्म 2007 में IIPR द्वारा जारी की गई है। यह उत्तरी राजस्थान में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 120-155 दिनों में परिपक्व हो जाती है। यह कुंगी और सूखे को सहनेयोग्य किस्म है।
 
Pant Lentil 8 (PL 063): यह किस्म 2010 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 135 दिनों में परिपक्व हो जाती है। यह किस्म कुंगी, सूखे और फली छेदक के प्रतिरोधी है।
 
Haryana Masur 1: यह पूरे हरियाणा में बोने के लिए अनुकूल किस्म है। यह कीटों और बीमारियों के प्रतिरोधी है। यह किस्म 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6.5-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Sapna: यह दरमियाने समय की किस्म हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में बोने के लिए अनुकूल है। यह 140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे, समतल, और सलेटी रंग के होते हैं जिन पर गहरे काले रंग के धब्बे होते हैं। यह फली छेदक के प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Garima: यह सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इसके पत्ते चौड़े और गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके दाने सपना किस्म के दानों से बड़े होते हैं। यह किस्म 135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bombay 18:  यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DPL 15: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DPL 62: यह किस्म 130-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
L 4632

K 75: यह किस्म 120-125 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa 4076: यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Lens 4076 (Shivalik) : यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5. 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Vaibhav: यह किस्म 130-135 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-9.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Lentil 7: यह किस्म 147 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

सीड बैड तैयार करने के लिए हल्की मिट्टी कम जोताई की आवश्यकता होती है। भारी मिट्टी में एक गहरी जोताई के बाद 3-4 क्रॉस हैरो से जोताई करनी चाहिए। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 जोताई पर्याप्त होती है। पानी के अच्छे बहाव के लिए सुहागा मारना बहुत जरूरी है। फसल बीजने के समय खेत में सही नमी होनी चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
बीज को अक्तूबर के अंत से नवंबर के मध्य में बोयें। यदि सूखे का हमला हो तो दिसंबर के पहले सप्ताह तक बिजाई की जा सकती है।
 
फासला
कतार में 25-30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।

बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी. गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए, पोरा ढंग या खाद और बीज वाली मशीन का प्रयोग करें। इसके इलावा इसकी बिजाई हाथों से छींटा देकर की जा सकती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 10-12 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को कप्तान या थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचार करें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई                      मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)                               
Captan 3gm
Thiram 3gm
 
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
9 100 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
4 16 -

 

नाइट्रोजन 4 किलो (9 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (100 किलो सुपर फासफेट) की मात्रा प्रति एकड़ बिजाई के समय डालनी चाहिए। बिजाई से पहले, बीज को राइज़ोबियम से उपचार कर लेना चाहिए। यदि बिजाई से पहले बीज का राइज़ोबियम से उपचार नहीं किया है तो फासफोरस की मात्रा दोगुनी कर देनी चाहिए।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

मसूर में मुख्य तौर पर चिनोपोडियम एल्बम (बथुआ), विसिया स्टीवा (अंकारी), लथाइरस परिवार (चटरीमटरी) आदि नदीन पाये जाते हैं।  नदीनों की रोकथाम के लिए दो गोडाई, पहली 30 दिन और दूसरी 60 दिनों के अंतराल पर करें। 45-60 दिनों तक खेत को नदीन मुक्त रखें ताकि फसल अच्छा विकास करे और ज्यादा पैदावार दे। इसके इलावा स्टंप 30 ई सी 550 मि.ली. बिजाई  के दो से तीन दिनों के अंदर अंदर छिड़काव करें और इसके साथ एक गोडाई 50 दिनों के बाद करें जो कि नदीनों की रोकथाम के लिए अनुकूल है।

सिंचाई

मसूर को आमतौर पर बारानी इलाकों में उगाया जाता है। मौसम के हिसाब से इसे दो या तीन पानी की जरूरत पड़ती है। पहला पानी बिजाई के  चार हफ्ते बाद और दूसरा पानी फूल खिलने के समय दें। सिंचाई के लिए फलियां भरने और फूल निकलने की अवस्थाएं गंभीर होती हैं। इन अवस्थाओं में पानी की कमी ना होने दें। 

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फली छेदक सुंडी : यह सुंडी पत्ते, डंडियां और फूलों को खाती है। यह मसूर की खतरनाक सुंडी है और पैदावार का बहुत नुकसान करती है। इसकी रोकथाम के लिए हेक्साविन 900 ग्राम 50 डब्लयु पी को 90 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर फूल निकलने के समय छिड़काव करें। यदि आवश्यकता पड़े तो 3 सप्ताह के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : इससे टहनियां, पत्ते और फलियों के ऊपर हल्के पीले रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे अकेले या समूह में नज़र आते हैं। छोटे धब्बे धीरे धीरे बड़े धब्बों में बदल जाते हैं। कई बार प्रभावित पौधा पूरी तरह सूख जाता है। इससे बचाव के लिए रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। इसकी रोकथाम के लिए 400 ग्राम एम 45 को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
 
झुलस रोग : इससे टहनियां और फलियों के ऊपर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे धीरे धीरे लंबे आकार के बनते हैं। कईं बार ये धब्बे गोलाकार का रूप ले लेते हैं। बचाव के लिए, बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें और प्रभावित पौधे को नष्ट कर दें। इसकी रोकथाम के लिए 400 ग्राम बवास्टिन को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें।
 

फसल की कटाई

कटाई सही समय पर करनी चाहिए जब पौधा सूख जाए और फलियां पक जायें। फलियों को अत्याधिक पकने ना दें। इससे फलियां अपने आप गिरनी शुरू हो जाती हैं। पौधों की थ्रैशिंग लाठियों से करें। थ्रैशिंग के बाद बीजों को साफ करें और धूप में सुखायें। भंडारण के समय नमी की मात्रा 12 प्रतिशत होनी चहिए।