शलगम की खेती

आम जानकारी

शलगम "बरासीकेसी" परिवार से संबंध रखती है। यह ठंडे मौसम की फसल है। शलगम की खेती इसकी जड़ों और हरे पत्तों के लिए की जाती है। इसकी जड़ें विटामिन सी का उच्च स्त्रोत होती हैं जबकि इसके पत्ते विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलिएट और कैलशियम का उच्च स्त्रोत होते हैं। इसे भारत के समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। आमतौर पर शलगम सफेद रंग के होती है। बिहार, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और तामिलनाडू भारत के मुख्य शलगम उत्पादक राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-400cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-400cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-400cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-400cm
  • Season

    Sowing Temperature

    18-23°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-15°C

मिट्टी

इस किस्म को मिट्टी की कईं किस्मों में उगाया जा सकता है पर चिकनी मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की उच्च मात्रा में हो, में उगाया जाए तो यह अच्छे परिणाम देती है। भारी या हल्की मिट्टी में खेती करने से बचें क्योंकि इससे विकृत जड़ों का उत्पादन होता है। अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी का pH 5.5-6.8 होना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

यूरोपियन किस्में

Purple Top White Globe: यह किस्म लम्बी और जड़ें गोलाकार, ऊपरी भाग जामुनी और निचला भाग सफेद रंग का होता है| यह किस्म निचले और मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल है। यह किस्म 55-60 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 125-156 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Snowball: इस किस्म की जड़ें छोटी और गोलाकार, हल्का पीला रंग, और 60 दिनों में तैयार हो जाती है, यह किस्म मध्यवर्ती और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल होती है| इसकी औसतन पैदावार 83-105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Pusa Chandrima:
इस किस्म की जड़ें आकार में बड़ी, समतल और गोलाकार, सफेद रंग की, दरमियानी नोक, पर कम गहरी होती है| अगेती बिजाई वाली किस्म, जो अक्तूबर महीने में उगाने में अनुकूल होती है| इसकी औसतन पैदावार 130-156 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

एशियाई किस्में

Pusa Sweti: इस किस्म की जड़ें सफेद होती हैं| इसकी औसतन पैदावार 130-156 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Pusa Swarnima: यह जल्दी पकने वाली किस्म है, यह गहरी और दरमियानी नोक वाली होती है| समतल जड़ें, बाहरी छिलका हल्के पीले रंग का, और यह ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में जून-अक्तूबर में उगाने के लिए अनुकूल है और निचले क्षेत्रों में अक्तूबर-दिसंबर महीने में उगाने के लिए अनुकूल है|

दूसरे राज्यों की किस्में

L 1: यह किस्म 45 से 60 दिन बाद पक जाती है| इसकी जड़ें गोल और पूरी तरह सफेद, मुलायम और कुरकुरी होती हैं| इसकी जड़ों की औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Punjab Safed 4: इस खेती की सिफारिश पंजाब और हरियाणा में की जाती है| इसकी जड़ें पूरी तरह सफेद, गोल, सामान्य आकार और स्वाद में बढ़िया होती हैं|

Pusa Kanchan

Golden Ball

ज़मीन की तैयारी

खेत की जोताई करें और खेत को नदीन रहित और रोड़ियों रहित बनायें। गाय का गला हुआ गोबर 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। बिना गले हुए गोबर का प्रयोग करने से बचे इससे जड़ें दोमुंही हो जाती हैं।

बिजाई

बिजाई का समय
निचले क्षेत्रों में: सितंबर-नवंबर
मध्यवर्तीय क्षेत्रों में: अगस्त-अक्तूबर
ऊंचे क्षेत्रों में: अप्रैल-जुलाई

फासला
कतारों के बीच 30 सैं.मी. और पौधों के बीच 10 सैं.मी. का फासला रखें|

बीज की गहराई
बीजों को 1-1.5 सैं.मी. की गहराई में बोयें।

बिजाई का ढंग

बिजाई सीधे बैड पर या मेंड़ पर कतारों में की जाती है।

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए 1.5-1.8 किलोग्राम बीज बिजाई के लिए काफी होते हैं।

बीज का उपचार
जड़ गलन से फसल को बचाने के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MOP
40 100 25

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
18 16 15

 

खाद की मात्रा स्थान के हिसाब से बदलती रहती है। यह जलवायु, मिट्टी की किस्म, उपजाऊ शक्ति पर आधारित होती है।

गले हुए गाय के गोबर 40 क्विंटल के साथ  नाइट्रोजन 18 किलो (यूरिया 40 किलो), फासफोरस 16 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 100 किलो) पोटाश 15 किलो( मिउरेट ऑफ़ पोटाश 25 किलो) प्रति एकड़ में बिजाई के समय डालें।

सिंचाई

बिजाई के बाद, पहली सिंचाई करें| यह अच्छे अंकुरण में मदद करती है। गर्मियों में मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार और बाकी की सिंचाइयां 6-7 दिनों के अंतराल पर करें। सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। शलगम की पूरी फसल को पांच से छः सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। ज्यादा सिंचाई करने से बचें इससे जड़ों का आकार विकृत होगा और ज्यादा संख्या में बालों की वृद्धि होती है।

खरपतवार नियंत्रण

अंकुरण के 10-15 दिनों के बाद, छंटाई की प्रक्रिया करें। नदीनों की रोकथाम के लिए गोडाई करें। गोडाई करने से मिट्टी को हवा मिलती है। बिजाई के दो से तीन सप्ताह बाद गोडाई करें। गोडाई के बाद, मेंड़ों पर मिट्टी चढाएं।

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम

जड़ गलन: इस बीमारी के बचाव के लिए, बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। बिजाई के बाद 7 और 15  दिन नए पौधों के आस पास की मिट्टी में कप्तान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|

फसल की कटाई

किस्म के आधार पर और मंडी के आकार के हिसाब से जब वे 5-10 सैं.मी. अर्द्ध व्यास के हो जाये शलगम की पुटाई कर लें। आमतौर पर जड़ें किस्म के आधार पर बिजाई के 45-60 दिनों के बाद मंडी के आकार पर पहुंच जाती है। पुटाई में देरी करने से जड़ें रेशेदार हो जाती हैं। पुटाई शाम के समय करें। पुटाई के बाद जड़ों के साथ हरे रंग की शिखरों को पानी से धोया जाता है। उन्हें टोकरी में भरा जाता है और मंडी में भेजा जाता है। ठंडे और नमी वाले हालातों में जड़ों को 2-3 दिनों के लिए रखा जाता है लेकिन जब उन्हें 8-15 सप्ताह के लिए स्टोर करके रखना हो तो उन्हें 0-5° सै के साथ 90-95% तापमान पर रखा जाता है।

बीज उत्पादन

बीज उद्देश्य के लिए, शलगम के बीजों को मध्य सितंबर में बोयें और फिर दिसंबर के पहले सप्ताह में नए पौधों को रोपण किया जाता है। 45 सैं.मी x 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। नाइट्रोजन 30 किलो (यूरिया 65 किलो) और फासफोरस 8 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 50 किलो) प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के समय फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालें। बिजाई के 30 दिनों के बाद नाइट्रोजन की बाकी की मात्रा को डाल दें। जब पौधे पर 70% फलियां जिनका रंग हल्का पीला हो तब कटाई कर लें।