लोकाट फल की खेती

आम जानकारी

भारत में इसे मुख्यत: लुकाट या लुगाठ के नाम से जाना जाता है। यह एक सदाबहार और उपउष्णकटिबंधीय फल का वृक्ष है। यह 5-6 मीटर कद प्राप्त करता है और इसकी प्रकृति फैलने वाली होती है। इस फल का मूल स्थान केंद्रीय पूर्वी चीन है और यह मुख्य तौर पर ताइवान, कोरिया, चीन, जापान देशों में उगाया जाता है। भारत में लोकाट की खेती दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, आसाम, और उत्तर प्रदेशों राज्यों में की जाती है। इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं। जैसे त्वचा को स्वस्थ करता है और नज़र में सुधार करता है, भार कम करने में मदद करता है, ब्लड प्रैशर को बरकरार रखता है और रक्त को बढ़ाता है। यह दांतों और हड्डियों की शक्ति को मजबूत करने में भी मदद करता है।
 
हिमाचल प्रदेश में इसे 1200 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। यह फल कोहरे के प्रतिरोधक है।
 

मिट्टी

लोकाट को अच्छे निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं, की आवश्यकता होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Golden Yellow: इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं। गुद्दा पीले रंग का होता है और 4-5 बीज होते हैं। यह किस्म मध्य मार्च में पक जाती है। 
 
Pale Yellow: इस किस्म के फल बड़े, सफेद गुद्दा, स्वाद में खट्टे और 3-4 बीज होते हैं। यह किस्म मार्च के अंत में पक जाती है।
 
California Advance: इस किस्म के फल मध्यम आकार के, क्रीम रंग का गुद्दा, स्वाद में खट्टे और 2-3 बीज होते हैं। यह किस्म मध्य अप्रैल में पक जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
अगेती किस्में: Pale Yellow, Golden Yellow, Improved Golden Yellow, Thames Pride and Large Round.
 
मध्य मौसम की किस्में: Mammoth, Improved Pale Yellow, Safeda, Fire Ball, Matchless and Large Agra.
 
पिछेते मौसम की किस्में: California Advance and Tanaka. 
 

ज़मीन की तैयारी

लोकाट की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा और समतल करने के लिए 2-3 जोताई करें।

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई के लिए जून से सितंबर का महीना उपयुक्त होता है।
 
फासला
पौधे से पौधे में 6-7 मीटर फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
रोपाई 1 मीटर गहराई पर करें।
 
बिजाई का ढंग
प्रजनन विधि का प्रयोग किया जाता हैं
 

बीज

बीज की मात्रा
95-96 पौधे प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
नर्म और पुरानी टहनियों का NAA 3 प्रतिशत और IBA 250 पी पी एम से उपचार किया जाता है।
 

प्रजनन

प्रजनन के लिए एयर लेयरिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।  बिजाई के लिए बडिंग किए हुए और कलम वाले पौधों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि वे जल्दी फल देते हैं। 

खाद

खादें (ग्राम प्रति पौधा)

Age Cow dung(KG) UREA PHOSPHORUS
POTASH
Every year 5 80 32 90
10 years and above 50 800 320 900

 

दिसंबर के महीने में गाय का गला हुआ गोबर डालें और बाकी की खाद को दो भागों में बांटे, पहले भाग को सितंबर अक्तूबर महीने में डालें और बाकी के आधे भाग को फरवरी मार्च के महीने में डालें।

 

 

सिंचाई

मिट्टी और मौसम के आधार पर सिंचाई दी जाती है। मुख्यत: तुड़ाई के समय 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
पत्ता लपेट सुंडी : ये कीट पत्तों को लपेटकर पौधों को प्रभावित करते हैं।
 
चेपा : प्रौढ़ और छोटे कीट दोनों ही पौधे का रस चूसकर उसे कमज़ोर कर देते हैं। गंभीर हमले में, इनके कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और नए पत्तों का आकार बेढंगा हो जाता है। ये कीट प्रभावित पत्तों पर शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं जो कि बाद में काले रंग की फंगस में विकसित हो जाते हैं।
 
फल की मक्खी : मादा मक्खी नए फलों की बाहरली परत के नीचे अंडे देती है उसके बाद छोटे कीट गुद्दे को  खाते हैं जिससे फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
काले रंग के धब्बे : यह बीमारी फंगस के कारण होने वाली बीमारी है। इसके  कारण पत्तों पर काले रंग के धंसे हुए धब्बे पड़ जाते हैं।
 

फसल की कटाई

मुख्य तौर पर पौधा रोपाई के तीन वर्षों में फल देना शुरू करता है और 15 वें वर्ष में  पौधा अधिक उपज देना शुरू कर देता है। फलों के पूरी तरह पकने पर तीखे यंत्र से तुड़ाई करें। तुड़ाई के बाद छंटाई की जाती है। इसकी औसतन उपज 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।