आलूबुखारा बारे में जानकारी

आम जानकारी

आलूचे का पौधा व्यापक सजावटी, सीमित और लगभग बाकि फलों के पौधों से कम देखभाल वाला होता है| आलूचे में विटामिन ऐ,बी, (थायामाइन), राइबोफ्लेविन के साथ-साथ पौष्टिक तत्व जैसे कि कैल्शियम, फासफोरस और लोहे की भरपूर मात्रा होती है| इसमें खट्टेपन और मीठे की मात्रा अच्छी तरह से मिली होने के कारण, यह उत्पाद बनाने जैसे कि जैम, स्क्वेश आदि के लिए बहुत लाभदायक है| सूखे आलूचे को प्रूनस के नाम से भी जाने जाते है| इनका प्रयोग आयुर्वेदिक तौर पर भी किया जाता है| इससे तैयार तरल को पीलिये और गर्मियों में होने वाली ऐलर्जी से बचाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है|

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    20-30°C
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    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
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    20-25°C
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    25-30°C
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    20-25°C

जलवायु

  • Season

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    20-30°C
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    200-300mm
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    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

आलूचा को मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है, जैसे कि घनी उपजाऊ, बढ़िया निकास वाली, दोमट मिट्टी   जिसका pH  5.5-6.5 हो, में उगाया जा सकता है| मिट्टी में सख्त-पन, जल-जमाव और नमक की ज्यादा मात्रा नहीं होनी चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Frontier: इसके फल Santa rosa किस्म से भारी होते हैं और आकार में बड़े होते हैं, इसका छिल्का गहरे जामुनी लाल रंग का होता है। फल मीठा, स्वाद, सख्त और आसानी से गुठली से अलग होने वाला होता है। फल भंडारण के लिए उपयुक्त होते हैं और जून के आखिरी सप्ताह में पक जाते हैं, फल की उपज अधिक होती है और फल सीधा बढ़ता है।
 
Red Beaut:  इसके फल मध्यम, ग्लोब के आकार के, लाल और आकर्षित छिल्के वाले होते हैं। गुद्दा पीले रंग का मीठा, सुगंधित और गुठली से चिपका हुआ होता है। फल मई के दूसरे सप्ताह में पक जाते हैं। फल मध्यम आकार के और सीमित मात्रा में होते हैं।
 
Teruel: इस किस्म के फल मध्यम से बड़े आकार के, पीले रंग के, हल्के लाल रंग के होते हैं। इसका गुद्दा पीले रंग का, मीठा, अच्छी सुगंध वाला, गुठली से चिपका हुआ होता है। फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में पक जाते हैं। फल मध्यम आकार के और अधिक उपज देते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Alubokhara: इस किस्म के पौधे सीधे और फैलने वाले होते है| इसके फल बाकी की किस्मों से बढ़े होता है| इस किस्म की पैदावार kala Amritsari किस्म से कम होती है| इसके फलों का छिलका पीला होता है और बीच में लाल धब्बे होते हैं| इसका गुद्दा बहुत स्वाद और मीठा होता है|
 
Satluj Purple: यह किस्म को अकेले उगाने पर फल नहीं लगता है, इसलिए इसके साथ परागण के लिए kala Amritsari किस्म का प्रयोग किया जाता है| बढ़िया फलों की प्राप्ति के लिए हर दूसरी पंक्ति में kala Amritsari किस्म के पौधे का होना बहुत जरूरी है| इस किस्म के फलों का आकार बढ़ा और भार 25-30 ग्राम होता है| इसकी बाहरी परत मोटी और बीच वाली परत पीली बिंदियों वाली होती हैं| आम-तौर पर इसके ताज़े फल खाये जाते है| यह मई के शुरू में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 35-40 किलो प्रति वृक्ष होती है|
 
Kala Amritsari: यह मैदानी क्षेत्रों की सबसे ज्यादा पसंद करने वाली किस्म है| इसके फलों का आकार सामान्य, गोल-चपटा होता है| पकने के बाद इसके फल की बाहरी परत गहरे जामुनी रंग की हो जाती है| इसकी बीच वाली परत पीली बिंदियों वाली होती है और गुद्दा रसीला होता है| इसके फल स्वाद में हल्के खट्टे होते हैं| फल मई के दूसरे पखवाड़े में पक जाते है| इस किस्म के फल जैम और स्क्वेश बनाने के लिए प्रयोग किये जाते है|
 
Titron: यह अकेले फल देने वाली किस्म है, पर पैदावार बढ़ाने के लिए इसके साथ परागण के alucha किस्म लगाई जाती है| Titron किस्म kala Amritsari किस्म से छोटी होती है| इसके फल Satluj Purple और kala Amritsari किस्म से छोटे होता है| इस किस्म की बाहरी परत  kala Amritsari से पतली होती है| इसका गुद्दा पीले रंग का और हल्का रसीला होता है| इसकी औसतन पैदावार 30-35  किलो प्रति वृक्ष होती है|
 
Kataruchak: इस किस्म की खोज पंजाब के गुरदासपुर जिले के एक छोटे से गांव कटरूचक में हुई| इस किस्म के फलों का मूल्य kala Amritsari से ज्यादा होता है, क्योंकि इसके फल पर सफेद रंग की कलियां होती है| इसके फल बढ़े, दिल के आकार के और जामुनी रंग के होते है| यह kala Amritsari से बाद जल्दी पक जाती है| इसकी औसतन पैदावार 45-50 किलो प्रति वृक्ष होती है| इसके फल जैम, स्क्वेश आदि तैयार करने के लिए बढ़िया होता है|
 

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई जनवरी के पहले पखवाड़े में की जाती है|  
 
फासला
पौधों के बीच उचित फासला 15X30 सैं.मी. होना चाहिए| पौधों और पंक्तियों के बीच फासला 6X6 मीटर होना चाहिए|
 
बिजाई का ढंग
इसके पौधों की सीधी बिजाई की जाती है|
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 110 पौधों की जरूरत होती है|
 

खाद

तत्व (ग्राम प्रति वृक्ष)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASSIUM
30 15 15

 

आलूचे की खेती के लिए भारी मिट्टी में भारी मात्रा में खाद की जरूरत होती है| यूरिया 60 ग्राम(नाइट्रोजन 30 ग्राम), 6 किलो रूड़ी की खाद, पोटाश 60 ग्राम(पोटाशियम 36 ग्राम ), फासफोरस 15 ग्राम डालें| छ: साल बाद खाद की मात्रा बढ़ा दें| ज़िंक की कमी होने पर ज़िंक सल्फेट 3 किलो की स्प्रे करें|

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों के अंकुरण होने से पहले ड्यूरॉन को टरबासिल के साथ 1.2 किलो प्रति एकड़ या सीमाज़ाइन 1.6 किलो प्रति एकड़ की सिफारिश की जाती है और अंकुरण के बाद नदीनों की रोकथाम के लिए ग्लाइफोसेट 320 मि.ली. प्रति एकड़ डालें|

सिंचाई

आलूचे के पौधे की जड़े अनियमित होती है और यह जल्दी पक जाता है| इस लिए इसे विकास के समय काफी मात्रा में नमी की जरूरत होती है| सिंचाई  मिट्टी की किस्म, मौसम और फल की किस्म पर निर्भर करती है| अप्रैल,मई और जून महीने में एक हफ्ते के फासले पर सिंचाई करें| फूल निकलने और फल पकने के समय अच्छी तरह से सिंचाई करें| बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| सितंबर, अक्तूबर और नवंबर महीने में 20 दिनों के फासले पर सिंचाई करें|

प्रजनन

आलूचे के बढ़िया प्रजनन के लिए आड़ू,आलूचे और खुमानी के भागों का प्रयोग किया जाता है| हल्की ज़मीन वाले खेतों में आड़ू के भागों का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है, जबकि भारी मिट्टी में, आड़ू काबुल ग्रीन गेज और खुमानी के भाग बढ़िया पैदावार देते है| कलम लगाने के बिना Kala Amritsari की काट कर बिजाई करना भी सहायक सिद्ध होता है| इसके लिए तने का भाग दिसंबर के पहले हफ्ते तैयार हो जाता है और 30 दिनों तक तना पक जाने के बाद इसको जनवरी में 15x30  सैं.मी. क्षेत्र में लगाया जाता है|

आलूचे का पत्ता मरोड़ चेपा: इसके हमले से पत्ते और नई शाखाएं मुड़ जाती है और इनका विकास रुक जाता है| इन पर छोटे और चिपकने वाले कीट मौजूद रहते है|
 
रोकथाम: इनके अंडे देने से पहले ही बाग़बानी तेल की स्प्रे ध्यानपूर्वक करें या जब यह पत्तों पर दिखाई दें तो नीम अर्क डालें|
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
आलूचे की भुंडी: इसके हमले से फल पर चपटाकर धब्बे पड़ जाते है और फल जल्दी टूट कर गिर जाते है|
 
रोकथाम: गिरे हुए फलों को लगातार उठाते रहें| जब पत्ते गिरने शुरू हो तो हर रोज़ वृक्ष के नीचे एक शीट बिछाये और वृक्ष के तने पर मोटे डंडे से मारे| शीट पर गिरी हुई भुंडीयों को इक्क्ठा करके नष्ट कर दें और यही क्रिया 3 हफ्ते तक दोहराएं|
 
काली गांठे पड़ना(फंगस): इस बीमारी के साथ नई शाखाएं और किनारों पर 1 से 30 सैं.मी. के आकार की  धुंए जैसे काली गांठे पड़ जाती है|
 
रोकथाम: इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें जैसे की ‘president’ और ‘shiro’| गांठों को छांट दें| कटाई हमेशा सोजिश से कम से कम 10 सैं.मी. नीचे से करें|
 

पौधे की देखभाल

  • बीमारीयां और रोकथाम
भूरे गलन रोग(फंगस): यह बीमारी से फलों पर भूरे रंग के पाउडर जैसा पदार्थ बन जाता है| फल सिकुड़ कर गल जाते है|
 
रोकथाम: पौधे को हवा लगने के लिए अच्छी तरह से कांट-छांट करें| नीचे गिरे हुए फलों को हटा के नष्ट कर दें| फल निकलने से पहले सल्फर की स्प्रे करें और छिलके पर दरार आने पर दोबारा स्प्रे करें| फिर एक हफ्ते के फासले पर दो हफ्ते तक स्प्रे करें|
 

फसल की कटाई

इस फसल के फलों के पकने का समय इनकी किस्म पर निर्भर करता है| वृक्ष पर फलों का पकना जरूरी होता है| पके फलों को कई सारी तुड़ाइयां करके इक्क्ठा किया जा सकता है और पूरे ध्यान के साथ पैक किया जाता है|

कटाई के बाद

यह फसल जल्दी खराब हो जाती है, इसलिए इसको अच्छी तरह से पैक करके सही तापमान पर स्टोर कर देना चाहिए|