जलवायु
-
Temperature
15-32°C -
Rainfall
600-1000mm -
Sowing Temperature
15-20°C -
Harvesting Temperature
30-32°C
बैंगन की फसल सख्त होने के कारण इसे अलग अलग तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह एक लंबे समय की फसल है, इसलिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ रेतली दोमट मिट्टी उचित होती है और अच्छी पैदावार देती है। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी और अधिक पैदावार के लिए चिकनी और नमी या गारे वाली मिट्टी उचित होती है। फसल की वृद्धि के लिए मिट्टी का pH 5.5-6.6 होना चाहिए।
Arka Nidhi: यह नई किस्म है, इसके फल हल्के नीले से काले रंग के होते हैं तथा 20-24 सैं.मी. लम्बे होते हैं| इसकी औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
H-8 (HIsar Shyamal): इस किस्म के फल गोलाकार, आकर्षित जामुनी रंग के और नरम होते हैं| इसकी औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Arka Keshav: यह नई किस्म है, यह मुरझाना बीमारी की रोधक है| इसके फल लम्बे और गुच्छों में, इसका छिलका आकर्षित लाल-जामुनी, इसकी पहली तुड़ाई 65-70 दिनों में की जाती है और इसकी औसतन पैदावार 66-84 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Pusa Purple Cluster: इस किस्म के फल 10-12 सैं.मी. लम्बे, गहरे जामुनी रंग के (एक गुच्छे में4-9 फल) गुच्छो में होते है| इसकी औसतन पैदावार 42-52 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Pusa Kranti: इस किस्म के फल 15-20 सैं.मी. लम्बे, आकर्षित रंग और नर्म होते है| इसकी औसतन पैदावार 84 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Pusa Purple Long: इस किस्म के फल 20-25 सैं.मी. लम्बे, हल्के जामुनी रंग, पतले और नरम होते है| इसकी औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Pusa Anupam: इस किस्म के पौधे का कद 70-80 सैं.मी. होता है| इस किस्म के फल 15-20 सैं.मी. लम्बे, जामुनी रंग के गुच्छों में,(एक गुच्छे में 3-5 फल) होते है| यह किस्म 100-110 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
T-3: इस किस्म के फल गोलाकार, 10-12 सैं.मी. लम्बे और हल्के जामुनी रंग के होते है| इस किस्म के पौधे का कद 50-60 सैं.मी. होता है| यह किस्म 80-90 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 185 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
दूसरे राज्यों की किस्में
लंभकार किस्में
Pusa Purple Long: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। सर्दियों में यह 70-80 दिनों में और गर्मियों में यह 100-110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के बूटे दरमियाने कद के और फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 125- 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Pusa Purple Cluster: यह किस्म आई. सी. ए. आर. नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। यह दरमियाने समय की किस्म है। इसके फल गहरे जामुनी रंग और गुच्छे में होते हैं। यह किस्म मुरझाना को सहने योग्य होती है।
Pusa Kranti: यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह किस्म बसंत और पतझड़ के मौसम में उगाने के लिए अनुकूल है। यह किसम 130-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हे। इसके फल आकर्षित गहरे जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 55-64 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
गोलाकार किस्में
Pusa Hybrid 5: इस किस्म के फल लंबे और गहरे जामुनी रंग के होते है। यह किस्म 80-85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Pusa Purple Round: यह किस्म पत्ते, शाख और फल के छोटे कीट की रोधक किस्म है।
Pant Rituraj: इस किस्म के फल गोल और आकर्षित जामुनी रंग के होते हैं और इनमें बीज की मात्रा भी कम होती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
हाइब्रिड किस्में
Pusa Anmol: यह हाइब्रिड किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह pusa purple long किस्म से 80% ज्यादा उपज देती है।
Pusa Hybrid 6: यह हाइब्रिड किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह से 80 प्रतिशत ज्यादा उपज देती है।
Arka Navneet : यह किस्म IIHR, बैंगलोर द्वारा तैयार की गई है और यह उच्च पैदावार देने वाली किस्म है। यह 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फल बड़े और अंडाकार होते हैं। इसको पकने की गुणवत्ता बहुत बढ़िया है| इसकी औसतन पैदावार 260-280 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Neelima: यह भारत में पहली सूखा रोधक किस्म है जो कि KAU द्वारा जारी की गई है। इसके फल बड़े और अंडाकार होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 260 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Swetha: यह बैक्टीरियल सूखा विरोधी किस्म है जो कि KAU द्वारा जारी की गई है। इसके फल मध्यम लंबे और सफेद रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की 3-4 बार जोताई करें। अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 42 क्विंटल प्रति एकड़ मिट्टी में मिलायें।
बिजाई का समय
निचले क्षेत्रों में: अक्तूबर-नवंबर और फरवरी-मार्च
मध्यवर्ती क्षेत्रों में: मई-जून और मार्च-मई
फासला
कतारों के बीच में 60-70 सैं.मी. और पौधों के बीच में 60 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
बीज की गहराई
नर्सरी में बीजों को 1.5 सैं.मी. गहराई में बोयें और मिट्टी से ढक दें।
बिजाई का ढंग
खेत में पनीरी लगाकर इसकी बिजाई की जाती है।
बीज की मात्रा
बिजाई के लिए प्रति एकड़ खेत में, 300-400 ग्राम बीजों का प्रयोग करें।
बीज का उपचार
बिजाई के लिए तंदरूस्त और बढ़िया बीज का ही प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति किलो से बीजों का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, बीजों का ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम प्रति किलो से बीजों का उपचार करें और फिर छांव में सुखाने के बाद तुरंत बिजाई करें।
फंगसनाशी/कीटनाशी के नाम | मात्रा(प्रति किलो) |
Carbendazim | 3gm |
Thiram | 3gm |
Trichoderma viride | 4gm |
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP |
MOP |
92 | 156 | 35 |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
42 | 25 | 15 |
खाद के तौर पर नाइट्रोजन 42 किलो (92 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 156 किलो), पोटाश 15 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएं। यूरिया की आधी मात्रा और सिंगल सुपर फासफेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा रोपण के समय डालें| बाकी बची हुई यूरिया की मात्रा दो बराबर हिस्सों में एक महीने के अंतराल पर डालें|
पानी में घुलनशील खादें: फसल के शुरूआती विकास के समय हयूमिक तेजाब 1 लीटर प्रति एकड़ या मिट्टी में मिलाकर 5 किलो प्रति एकड़ डालें। यह फसल की पैदावार और वृद्धि में बहुत मदद करता है। पनीरी लगाने के 10-15 दिन बाद खेत में 19:19:19 के साथ 2.5 से 3 ग्राम प्रति लीटर सूक्ष्म तत्वों की स्प्रे करें। शुरूआती विकास के समय, कईं बार तापमान के कारण पौधे सूक्ष्म तत्व नहीं ले पाते, जिस के कारण पौधा पीला पड़ जाता है और कमज़ोर दिखता है। ऐसी स्थिति में 19:19:19 या 12:61:0 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें, आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद दोबारा स्प्रे करें। पनीरी खेत में लगाने के 40-45 दिनों के बाद 20% बोरोन 1 ग्राम में सूक्ष्म तत्व 2.5 से 3 ग्राम प्रति लीटर पानी से स्प्रे करें। फसल में तत्वों की पूर्ति और पैदावार 10-15% बढ़ाने के लिए 13:00:45 की 20 ग्राम प्रति लीटर पानी की दो स्प्रे करें। पहली स्प्रे 50 दिनों के बाद और दूसरी स्प्रे पहली स्प्रे के 10 दिन बाद करें। जब फूल या फल निकलने का समय हो तो 0:52:34 या 13:0:45 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
अधिक तापमान होने के कारण फूल गिरने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए पलैनोफिक्स (एन ए ए) 4 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने के समय करें। 20-25 दिन बाद यह स्प्रे दोबारा करें।
नदीनों को रोकने, अच्छे विकास और उचित हवा के लिए दो - चार बार गोडाई करें। काले रंग की पॉलिथीन शीट से पौधों को ढक दें जिससे नदीनों का विकास कम हो जाता है और मिट्टी का तापमान भी बना रहता है।
नदीनों को रोकने के लिए, पौधे लगाने से पहले मिट्टी में फलूकलोरालिन 600-800 मि.ली. प्रति एकड़ या ऑक्साडायाज़ोन 400 ग्राम प्रति एकड़ डालें। अच्छे परिणाम के लिए पौधे लगाने से पहले एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ की मिट्टी के तल पर स्प्रे करें।
गर्मियों में हर 3-4 दिन बाद पानी लगाएं और सर्दियों में 12-15 दिन बाद पानी लगाएं। बैंगन की अधिक पैदावार लेने के लिए सही समय पर पानी लगाना बहुत आवश्यक है। बैंगन की फसल को कोहरे वाले दिनों में बचाने के लिए मिट्टी में नमी बनाये रखें और लगातार पानी लगाएं। फसल में पानी ना खड़ा होने दें, क्योंकि बैंगन की फसल खड़े पानी को सहनयोग्य नहीं है।
फल और शाख का कीट: यह बैंगन की फसल का मुख्य और खतरनाक कीट है। शुरूआत में इसकी छोटी गुलाबी सुंडियां पौधे की गोभ में छेद करके अंदर से तंतू खाती हैं और बाद में फल पर हमला करती हैं। प्रभावित फलों के ऊपर बड़े छेद नज़र आते हैं और खाने योग्य नहीं होते हैं।
प्रभावित फल हर सप्ताह तोड़ कर नष्ट कर दें। नर्सरी लगाने से 1 महीने बाद ट्राइज़ोफॉस 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी और 50 ग्राम नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। 10-15 दिनों के फासले पर यह स्प्रे दोबारा करें। फूल निकलने के समय कोराजैन 18.5 प्रतिशत एस सी 5 मि.ली. + टीपॉल 5 मि.ली. का घोल 12 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के फासले पर दो बार स्प्रे करें।
शुरूआती हमले में 5 प्रतिशत नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। ज्यादा हमला दिखने पर 25 प्रतिशत साइपरमैथरिन 2.4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। कीटों की गिनती अधिक हो जाने पर स्पाइनोसैड 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल पकने के बाद ट्राइज़ोफॉस या किसी और कीटनाशक की स्प्रे ना करें।
चेपा: पौधों पर मकौड़ा जुंएं, चेपा और मिली बग भी हमला करते हैं। ये पत्ते का रस चूसते हैं और पत्ते पीले पड़ कर झड़ने शुरू हो जाते हैं।
यदि चेपे और सफेद मक्खी का हमला दिखे तो डैल्टामैथरिन + ट्राइज़ोफॉस के घोल 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। सफेद मक्खी के नुकसान को देखते हुए एसेटामीप्रिड 5 ग्राम प्रति 15 लीटर की स्प्रे करें।
थ्रिप्स: थ्रिप्स के हमले को मापने के लिए 6-8 प्रति एकड़ नीले फेरोमोन कार्ड लगाएं और हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। थ्रिप का ज्यादा हमला होने पर फिप्रोनिल 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें।
जूं: यदि खेत में जुंओं का हमला दिखे तो एबामैक्टिन 1-2 मि.ली. या फैनाजैकुइन 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
पत्ता खाने वाली सुंडी: कईं बार फसल की शुरूआत में इस कीड़े का हमला नज़र आता है।
इसकी रोकथाम के लिए नीम वाले कीटनाशकों का प्रयोग करें। यदि कोई असर ना दिखे और हमला बढ़ रहा हो तो रासायनिक कीटनाशक जैसे कि एमामैक्टिन बैंज़ोएट 4 ग्राम लैंबडा साइहैलोथ्रिन 2 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
जड़ों में गांठें: यह बैंगन की फसल की आम बीमारी है। यह फसल के शुरूआती समय में ज्यादा खतरनाक होते हैं। इससे जड़ें फूलने लग जाती हैं इस बीमारी के हमले से फसल का विकास रूक जाता है, पौधा पीला पड़ जाता है और पैदावार भी कम हो जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं और मिट्टी में कार्बोफिउरॉन या फोरेट 5-8 किलो प्रति एकड़ मिलाएं।
उखेड़ा रोग: नमी और बुरे निकास वाली मिट्टी से यह बीमारी पैदा होती है। यह ज़मीन से पैदा होने वाली बीमारी है। इस बीमारी से तने पर धब्बे और धारियां पड़ जाती हैं। इससे छोटे पौधे अंकुरन से पहले ही मर जाते हैं। यदि नर्सरी में इसका हमला हो जाये तो सारे पौधों को नष्ट कर देती है।
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। बिजाई से पहले नर्सरी वाली मिट्टी को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ें। यदि नर्सरी में इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए नर्सरी में से पानी का निकास करें और मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर डालें।
झुलस रोग और फल गलन: इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यह दाग फलों पर भी नज़र आते हैं। जिस कारण फल काले रंग के होने शुरू हो जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें यदि खेत में हमला दिखे तो ज़िनैब 2 ग्राम प्रति लीटर या मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
पत्तों का छोटापन: यह बीमारी पत्तों के टिड्डे द्वारा फैलती है। इस बीमारी से प्रभावित पत्ते पतले रह जाते हैं। छोटी पत्तियां भी हरी पड़ जाती हैं। प्रभावित पौधे फल नहीं पैदा करते।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। नर्सरी में फोरेट 10 प्रतिशत (20 ग्राम, 3x1 मीटर चौड़े बैड के लिए) का प्रयोग करें। बिजाई के समय दो पंक्तियों के बीच फोरेट डालें। यदि शुरूआती समय पर हमला दिखे तो प्रभावित पौधे उखाड़कर बाहर निकाल दें। फसल में डाईमैथोएट या ऑक्सीडैमीटन मिथाइल 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। इस बीमारी का मुख्य कारण तेला है। तेले के हमले को काबू करने के लिए थायामैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।
चितकबरा रोग: इस बीमारी से पत्तों पर हल्के हरे धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तों पर छोटे-छोटे बुलबुले जैसे दाग बन जाते हैं और पत्ते छोटे रह जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई के लिए तंदरूस्त और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। प्रभावित पौधे खेत में से उखाड़कर नष्ट कर दें। सिफारिश की गई दवाइयां चेपे की रोकथाम के लिए अपनाएं। इसके हमले की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या डाईमैथोएट 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
सूखा: इस बीमारी से फसल पीली पड़ने लग जाती है और पत्ते झड़ जाते हैं। सारा पौधा सूखा हुआ नज़र आता है प्रभावित तने को यदि काटकर पानी में डुबोया जाये तो पानी सफेद रंग का हो जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसली चक्र अपनाएं। बैंगन की फसल फ्रांसबीन की फलियों की फसल के बाद उगाएं, ऐसा करने से इस बीमारी को फसल को बचाया जा सकता है। प्रभावित पौधों के हिस्सों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। खेत में पानी खड़ा ना रहने दें। बीमारी के हमले को रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
बैंगन की तुड़ाई फल पकने से थोड़ा समय पहले की जाती है, जब फल उचित आकार और रंग का हो जाता है। मंडी में अच्छा रेट लेने के लिए फल चिकना और आकर्षक रंग का होना चाहिए।
बैंगन को ज्यादा देर के लिए आम कमरे के तापमान में नहीं रखा जा सकता, क्यों कि इससे इसकी नमी खत्म हो जाती है। बैंगन को 2-3 सप्ताह के लिए 10-11° सैल्सियस तापमान पर और 92% नमी में रखा जा सकता है। कटाई के बाद, इसे सुपर, फैंसी और व्यापारिक आकार के हिसाब से छांट लिया जाता है। पैकिंग के लिए, बोरियों या टोकरियों का प्रयोग करें।
बैंगन सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है, इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं| यह विटामिन और खनिजों का अच्छा स्त्रोत है। इसकी खेती सारा साल की जा सकती है। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।
हिमाचल प्रदेश में बैंगन की बिजाई निचले और मध्यवर्ती क्षेत्रों में की जाती है| निचले क्षेत्रों में, इसकी खेती बहार-गर्मी या बारिश-पतझड़ के मौसम और मध्यवर्ती क्षेत्रों में, इसकी खेती अप्रैल से अक्तूबर के महीने में की जाती है| बैंगन की खेती 105 एकड़ ज़मीन में की जाती है और इसकी औसतन पैदावार 1650 टन वार्षिक होती है|
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