हिमाचल प्रदेश में लोबिया की खेती

आम जानकारी

लोबिया हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद और चारे के लिए पूरे भारत में उगाई जाने वाली वार्षिक फसल है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है। यह सूखे को सहने योग्य, जल्दी पैदा होने वाली फसल है, और नदीनों को शुरूआती समय में पैदा होने से रोकती है। यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है। लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का मुख्य स्त्रोत है। मक्के की फसल के साथ इसकी मिश्रित खेती भी की जा सकती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    27-35°C
  • Season

    Rainfall

    75-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-28°C
  • Season

    Temperature

    27-35°C
  • Season

    Rainfall

    75-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-28°C
  • Season

    Temperature

    27-35°C
  • Season

    Rainfall

    75-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-28°C
  • Season

    Temperature

    27-35°C
  • Season

    Rainfall

    75-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    28-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    25-28°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की विभिन्न किस्मों में उगाया जा सकता है पर यह अच्छे जल निकास वाली बालुई मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Himachal Cowpea 1 (C-475): यह पहली किस्म है जो उप पहाड़ी और कम पहाड़ी के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई गई है। यह अधिक उपज देती है और सफेद दानों वाली किस्म है। यह मध्यम कद और मोटे तने वाली किस्म है। इसके हल्के हरे रंग के पत्ते होते हैं, 13-15 सैं.मी. लंबी फलियां होती हैं और प्रत्येक फली में 10-12 दाने होते हैं। यह किस्म 80-85 दिनों में पक जाती है। यह किस्म सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा रोग, पीला चितकबरा रोग और पीला सुनहरा चितकबरा रोग के प्रतिरोधी है। इसके दानों की औसतन उपज 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Himachal Cowpea 2 (C-519): इस किस्म की खेती उप पर्वतीय और कम पर्वतीय के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में करने के लिए उपयुक्त है। इसके हरे पौधों की औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल और दानों की औसतन पैदावार 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म हरी सब्जियों और दालों के रूप में भी प्रयोग की जाती है। यह किस्म 85-90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा रोग, झुलस रोग और पीला चितकबरा रोग के प्रतिरोधक किस्म है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Cowpea 88: इस किस्म की पूरे राज्य में खेती करने के लिए सिफारिश की जाती है। इसे हरा चारा प्राप्त करने के साथ साथ बीज प्राप्त करने के उद्देश्य से भी उगाया जाता है। इसकी फली लंबी और बीज मोटे और चॉकलेटी भूरे रंग के होते हैं। यह पीला चितकबरा रोग और एंथ्राक्नोस रोग के प्रतिरोधी है। इसके बीज की औसतन पैदावार 4.4 क्विंटल प्रति एकड़ और हरे चारे की पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CL 367: इस किस्म को चारा प्राप्त करने के साथ साथ बीज प्राप्त करने के उद्देश्य से उगाया जाता है। यह किस्म ज्यादा फलियां पैदा करती है। इसके बीज छोटे और क्रीमी सफेद रंग के होते हैं। यह किस्म पीला चितकबरा रोग और एंथ्राक्नोस रोग के प्रतिरोधी है। इसके बीज की औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ और हरे चारे की पैदावार 108 क्विंटल होती है।
 
Kashi Kanchan: यह छोटी और फैलने वाली किस्म है। इसकी खेती गर्मी के मौसम के साथ साथ बरसात के मौसम में की जा सकती है। इसकी फलियां नर्म और गहरे हरे रंग की होती हैं। इसकी फली की औसतन पैदावार 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

दालों की फसल की तरह इस फसल के लिए सामान्य बीज बैड तैयार किए जाते हैं।मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की दो बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
इस फसल की खेती के लिए जुलाई  का पहला सप्ताह उचित समय है।

फासला
बिजाई के समय, पंक्ति से पंक्ति का फासला 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बिजाई 3-4 सैं.मी गहराई में करनी चाहिए।

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई पोरा ड्रिल या बिजाई वाली मशीन से की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
6-8 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, बीज का एमीसान-6 @ 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयू  पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करें। यह बीजों को गलने और पनीरी को नष्ट होने से बचाता है।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
18 100 18

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
8 16 8

 

बिजाई के समय, नाइट्रोजन 8 किलो (यूरिया 18 किलो)प्रति एकड़ के साथ फासफोरस 16 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 100 किलो) और पोटाश 8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 18 किलो) प्रति एकड़ में डालें। लोबिया में फासफोरस की खाद डालने से वह अच्छी प्रतिक्रिया करती है। यह जड़ों के साथ साथ पौधे के विकास, पौधे में पोषक तत्वों की वृद्धि और गांठे मजबूत करने में सहायक होती है।

 

 

 

 

सिंचाई

फसल की अच्छी वृद्धि के लिए औसतन 4-5 सिंचाइयां आवश्यक हैं। जब फसल मई के महीने में उगाई जाये तो 15 दिनों के अंतराल पर मॉनसून आने से पहले सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण

फसल को नदीनों से बचाने के लिए 24 घंटों के अंदर अंदर पैंडीमैथालीन 750 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर डालें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तेला और काला चेपा : यदि तेला और काले चेपे का हमला दिखे तो मैलाथियॉन 50 ई सी 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।
 
बालों वाली सुंडी : इस कीट का ज्यादा हमला अगस्त से नवंबर के महीने में होता है। फसल को इस कीट से बचाने के लिए बिजाई के समय तिल के  बीजों की एक पंक्ति लोबिया के चारों तरफ डालें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
बीज गलन और पौधों का नष्ट होना : यह बीमारी बीज से पैदा होने वाले माइक्रोफलोरा के कारण फैलती है। प्रभावित बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंगे हो जाते हैं। प्रभावित बीज अंकुरन होने से पहले ही मर जाते हैं और फसल भी बहुत कमज़ोर पैदा होती है। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले एमीसन-6@ 2.5 ग्राम या  बवास्टिन 50 डब्लयु पी 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।
 

फसल की कटाई

बिजाई के 55 से 65 दिनों के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।