
- बीमारियां और रोकथाम
जब इसकी फलियां पूरी तरह पक जायें और रंग पीला हो जाये तो इसकी कटाई की जा सकती है। इसके पत्ते पीले पड़ने के बाद गिरने शुरू हो जाते हैं। कटाई समय से करें। काटी हुई फसल 3-4 दिनों के लिए धूप में रखें। अच्छी तरह सूखने के बाद बैलों या छड़ों की मदद से छंटाई की जा सकती हैं।
राजमांह को कटाई के बाद छोटी प्रक्रिया की जरूरत होती है, लेकिन इसकी अच्छी गुणवत्ता के लिए भंडारण के दौरान अच्छी देखभाल की ज़रूरत होती है। भंडारण से पहले छंटाई करें और प्रभावित बीन्स को बाहर निकालें। ताप और नमी इनकी गुणवत्ता को कम करते हैं इसलिए इन्हें हमेशा ठंडे, गहरे और सूखे स्थान पर रखें।
इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों जैसे हल्की रेतली से भारी चिकनी मिट्टी में उगाया जा सकता है। जल निकास वाली दोमट ज़मीनों में इसकी पैदावार बहुत अच्छी होती है। यह फसल ज्यादा खारेपन को सहने योग्य नहीं है। लगभग 5.5-6 पी एच वाली ज़मीनों में इसकी पैदावार अधिक होती है।
मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की तीन से चार बार जोताई करें, खेत को समतल रखें ताकि उसमें पानी ना खड़ा रहे यह फसल जल जमाव के प्रति काफी संवेदनशील होती है। आखिरी जोताई के समय, 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें ताकि अच्छी पैदावार मिल सके।
फसल के शुरू में नदीनों की रोकथाम जरूरी है। इस अवस्था में नदीनों का हमला ना होने दें। खादें डालने और सिंचाई करने के साथ ही गोडाई कर दें। नदीनों के अंकुरन से पहले फ्लूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ या पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ का प्रयोग करें।
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MOP |
17 | 150 | On soil test results |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
8 | 24 | - |
नाइट्रोजन 8 किलो (17 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो एस एस पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बिजाई के बाद, 1 महीने के अंतराल पर 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के 3 सप्ताह बाद की जाती है, दूसरी सिंचाई फूल खिलने के समय और तीसरी सिंचाई फलियां विकसित होने के समय की जाती है। इस फसल के लिए गहरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
राजमांह को इसके लाल रंग की वजह से और किडनी के आकार जैसा होने पर किडनी बीन्स भी कहा जाता है।यह प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत है और मोलीबडेनम तत्व भी देता है। इसमें कोलैस्ट्रोल को कम करने वाले तत्व भी हैं। उत्तरी भारत में इसकी दाल भी बनाई जाती है। भारत में, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बंगाल, तामिलनाडू, केरल, कर्नाटक मुख्य राजमांह उत्पादक राज्य हैं।
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