कीवी फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

कीवी को ‘चाइनीज़ गूज़बैरी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह विटामिन बी और विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है और कैल्शियम, पोटेशियम और फासफोरस जैसे खनिजों का भी उच्च स्त्रोत है। कीवी को ऐसे ही या फिर सलाद या खाने के बाद भी परोसा जा सकता है। इसे वाइन या स्क्वैश बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। भारत में इसे मुख्यत: हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर,मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, और केरला में उगाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू, शिमला, मंडी, सोलन और सिरमौर कीवी की खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र हैं।

फसल की कटाई

4-5 वर्ष की आयु में कीवी फल देना शुरू करते हैं और व्यापारिक तौर पर 7-8 वर्ष क आयु में फल देना शुरू करते हैं।  तुड़ाई मुख्यत: अक्तूबर से दिसंबर  में की जाती है। लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए सख्त फलों की तुड़ाई की जाती है। दो सप्ताह में सख्त फल नर्म हो जाते हैं और खाने योग्य हो जाते हैं।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद, भार के अनुसार छंटाई की जाती है। कीवी की छंटाई के बाद इन्हें रेफरीजरेटर में रखा जाता है। इनकी लंबे समय तक रहने की गुणवत्ता अच्छी होती है और इन्हें 8 सप्ताह तक स्टोर करके रखा जा सकता है। उसके बाद बिक्री उद्देश्य और लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए इन्हें पैक किया जाता है।

पत्ते वाली सुंडी
पत्ता लपेट सुंडी : यह सुंडियों का एक समूह होता है जो खुद को सिल्क धागों की मदद से पत्तों के आसपास बांध देता है और ताजे पत्तों को खाकर पौधे को नष्ट करता है।
 
रोकथाम : इस सुंडी की रोकथाम के लिए  क्विनलफॉस 600-800 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
ब्लोसम थ्रिप्स
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
ब्लोसम थ्रिप्स : ये काले या पीले भूरे रंग के थ्रिप्स होते हैं। जो फूलों में छेद कर देते हैं और फूलों का रस चूसते हैं।
रोकथाम : थ्रिप्स की रोकथाम के लिए ट्राइज़ोफॉस या रोगोर 300-400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
झुलस रोग
झुलस रोग : पत्तियों पर पीले रंग के और भूरे रंग के धंसे हुए धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी पौधे में जख्मों से प्रभावित क्षेत्रों द्वारा प्रवेश करती है।
 
रोकथाम : इसे इंडोफिल एम- 45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करके रोका जा सकता है।
 
कोढ़ रोग
कोढ़ रोग : पौधे की शाखाओं के ऊपर जंग लगे पौधे देखे जा सकते हैं।
 
रोकथाम : इस बीमारी को प्रभावित शाखाओं की छंटाई करके रोका जा सकता है। मुख्यत: कैंकर से 12 इंच नीचे के भाग की कटाई की जाती है।
 
पौधे के तने की जड़ में रसोली या फोड़े का रोग : यह एक विषाणु रोग है जो कि पौधे की जड़ों या तने के जख्मों द्वारा प्रवेश करता है।
 
रोकथाम : स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 50 ग्राम + कॉपर सल्फेट 25 ग्राम को 300 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के अंतराल पर तीन स्प्रे करें।
 
बोटरीटिस फल गलन
बोटरीटिस फल गलन : इसे सलेटी फंगस के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी से फल सिकुड़ जाते हैं और तने के आखिरी हिस्से में सलेटी रंग की फंगस देखी जाती है। यह बीमारी मुख्यत: बारिश और अधिक नमी वाले मौसम में होती है।
रोकथाम : इसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300-400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करके रोका जा सकता है।
 

पौधे की देखभाल

जड़ गलन
  • बीमारियां और रोकथाम
जड़ गलन : यह बीमारी मुख्यत: घटिया निकास वाली मिट्टी और नमी की अधिक मात्रा वाली मिट्टी में खेती करने के कारण होती है। इससे जड़ें और तना लाल भूरे रंग का हो जाता है।
रोकथाम : इसे रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300-400 ग्राम को प्रति एकड़ में छिड़कें।
 

अंतर-फसलें

शुरूआती 5 वर्षों में, सब्जियों और फलीदार फसलों के साथ अंतरफसली करना फसल की वृद्धि के लिए अच्छा होता है।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को निकालने के लिए निराई गोडाई करें।

सिंचाई

वृद्धि के शुरूआती समय में (सितंबर से अक्तूबर महीने में) सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल की अच्छी वृद्धि के लिए 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

खाद

शुरूआती खुराक के तौर पर रूड़ी की खाद 20 किलो और NPK का मिश्रण 0.5 किलो जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा 15 प्रतिशत हो, प्रति वर्ष डालें। 5 वर्ष के बाद, यूरिया 2 किलो, एस एस पी 3 किलो और म्यूरेट ऑफ पोटाश 1.5 किलो प्रति वर्ष डालें।
 
यूरिया खाद को दो भागों में बांटें, आधी से दो तिहाई मात्रा जनवरी -फरवरी महीने में डालें और बाकी की मात्रा को अप्रै- मई के महीने में फल बनने के बाद  डालें। 20-30 सैं.मी. गहरी और 30 सैं.मी. चौड़ी खाइयों में पोषक तत्व डालें।
 

कटाई और छंटाई

सिधाई मुख्य रूप से पौधे को सहारा देने के लिए की जाती है। पहले मौसम में, नए पौधे की मुख्य शाखा को खूंटी से सहारा दिया जाता है। दूसरे मौसम में, वृद्धि के लिए एक दूसरे की सामने वाली शाखाओं को तारों से दिया जाता है और अगले वर्ष में बाद वाली शाखाओं को आकार देने के लिए घेरे के लंबवत किया जाता है। छंटाई तीसरे वर्ष में की जाती है। 15-20 शाखाओं को छोड़कर की जाती है। चौथे वर्ष में, कीवी के वृक्ष का आकार बन जाता है।

बिजाई

बिजाई का समय
रोपाई जनवरी-फरवरी महीने में की जाती है।
 
फासला
T-bar   ढंग में कतारों में 4 मीटर और पौधे से पौधे में 5-6 मीटर फासले का प्रयोग करें।
परगोला ढंग में कतारों में 6 मीटर फासले का प्रयोग करें।
 
बिजाई का ढंग
T-bar  ढंग
परगोला ढंग 
 

ज़मीन की तैयारी

शैड की तैयारी : हवा एक प्रमुख कारक है इसलिए कीवी के फलों को अच्छे विकास के लिए और हवा से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। 
 
कीवी की खेती के लिए खड़ी ढाल भूमि की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की अच्छी तरह से जोताई करें। गड्ढों को तैयार करें और दिसंबर महीने में गड्ढों को अच्छी तरह से गली रूड़ी की खाद के साथ भरें।
 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Hayward: इस किस्म के फल चौड़े और समतल होते हैं। इस किस्म को अधिक ठंडे समय की आवश्यकता होती है।
 
Abbott: यह किस्म जल्दी फूल निकालने वाली और जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के और लंबाकार आकार के होते हैं। इसके फल स्वाद में बहुत मीठे होते हैं।
 
Allison: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके फल स्वाद में मीठे होते हैं।
 
Monty:  यह अधिक पैदावार वाली किस्म है। यह देरी से पकने वाली और जल्दी फल पकने वाली किस्म है। इसके फल अच्छे आकार के और लंबाकार होते हैं।
 
Bruno: इस किस्म को कम ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। इसके फल का आधार लंबा पतला होता है। इस किस्म के फल गहरे भूरे रंग के होते हैं जो कि आकार में छोटे और घने होते हैं। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Tomuri: यह देरी से फल देने वाली किसम है।
 

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जाता है लेकिन अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी कीवी की खेती के लिए अच्छी होती है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मिट्टी की पी एच 6.9 से कम होनी चाहिए। भारी गीली मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह पौधे की वृद्धि पर प्रभाव डालती है।