धान फसल का उत्पादन

आम जानकारी

धान भारत की एक महत्तवपूर्ण फसल है जो कि जोताई योग्य क्षेत्र के लगभग एक चौथाई हिस्से में उगाई जाती है और भारत की लगभग आधी आबादी इसे मुख्य भोजन के रूप में प्रयोग करती है। पिछले 45 वर्षों के दौरान पंजाब ने धान की पैदावार में बहुत ज्यादा उन्नति हासिल की है। नई तकनीक और अच्छी पैदावार करने वाले बीजों के प्रयोग के कारण धान की पैदावार पंजाब में सबसे ज्यादा होती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    16-30°C
  • Season

    Rainfall

    100-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-27°C
  • Season

    Temperature

    16-30°C
  • Season

    Rainfall

    100-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-27°C
  • Season

    Temperature

    16-30°C
  • Season

    Rainfall

    100-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-27°C
  • Season

    Temperature

    16-30°C
  • Season

    Rainfall

    100-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-27°C

मिट्टी

इस फसल को मिट्टी की अलग अलग किस्मों, जिनमें पानी सोखने की क्षमता कम होती है और जिनका pH 5.0 से 9.5 के बीच में होता है, में भी उगाया जा सकता है। धान की पैदावार के लिए रेतली से लेकर गारी मिट्टी तक, और गारी से चिकनी मिट्टी जिसमें पानी को सोखने की क्षमता कम होती है इस फसल के लिए अच्छी मानी जाती है।

ज़मीन की तैयारी

गेहूं की कटाई के बाद ज़मीन पर हरी खाद के तौर पर मई के पहले सप्ताह जंतर (बीज दर 20 किलोग्राम प्रति एकड़), या सन (बीज दर 20 किलोग्राम प्रति एकड़) या लोबीया (बीज दर 12 किलोग्राम प्रति एकड़) की बिजाई करनी चाहिए। जब फसल 6 से 8 सप्ताह की हो जाए तो, जंतर को मिट्टी में दबा दे| इस तरह प्रति एकड़ में 25 किलो नाइट्रोजन खाद की बचत होती है। भूमि को समतल करने के लिए लेज़र लेवलर का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद खेत में पानी खड़ा कर दें ताकि भूमि के अंदर ऊंचे नीचे स्थानों की पहचान हो सके। इस तरह पानी के रसाव के कारण पानी की होने वाले बर्बादी को कम किया जा सके।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Sukra Dhan-1 (H.P.R-1156):  यह दरमियानी लम्बी (88-110 सैं.मी.) और जल्दी पकने वाली (110-120 दिनों में) किस्म है| यह सीधे पौधे, लम्बे दानों वाली, पतली और बालों-रहित किस्म है| यह बारानी क्षेत्रों में 125-135 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है| यह और सूखे की प्रतिरोधक किस्म है|

H.P.R.-2143: यह दरमियानी लम्बी किस्म है जिसका पौधा 87-105 सैं.मी. ऊंचाई का होता है| यह किस्म 125-135 दिनों में तैयार हो जाती है| यह किस्म 650-1500 मीटर की ऊंचाई वाले मध्य -पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जारी की गई है| यह तने का भुरड़ रोग की प्रतिरोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 18.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

H.R. I. -152: यह वर्णसंकर किस्म है| यह दरमियानी लम्बी और पतले दानों वाली किस्म है| यह किस्म 135-138 दिनों में तैयार हो जाती है| यह तने का झुलस रोग की प्रतिरोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 18.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Kunjan Dhan-957:
यह समय पर पकने वाली और अर्द्ध-छोटे कद की किस्म है| यह किस्म दरमियाने पहाड़ी क्षेत्रों के सिंचिंत क्षेत्रों में बोने के लिए जारी की गई है| यह लम्बी और पतले दानों वाली किस्म है| तने के झुलस रोग का इस किस्म पर ज्यादा असर होता है| इसकी औसतन पैदावार 16.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Kunjan-4 (Varun Dhan): यह किस्म 1000 मीटर की ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों के सिंचित इलाकों जैसे कुल्लू, मंडी और शिमला क्षेत्रों में जारी की गई है| यह अर्द्ध-छोटे कद (81 सैं.मी.), जल्दी पकने वाली (140-145 दिनों में) और यह धान की मुख्य बीमारीयों के प्रतिरोधक है| यह किस्म ठंडे मौसम की प्रतिरोधक है| यह सिंचिंत क्षेत्रों में इसकी औसतन पैदावार 13-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

R.P.-2421: यह दरमियानी लम्बी, जल्दी पकने वाली और ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म है| यह किस्म रोपाई और सिंचिंत क्षेत्रों के लिए प्रमाणित है| यह किस्म 120-125 दिनों में तैयार हो जाती है| इसके दाने सामान्य पतले होते है| यह धान की मुख्य बीमारीयों के प्रतिरोधक है| इसकी औसतन पैदावार 15-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

V L Dhan-221: यह दरमियानी लम्बी, जल्दी पकने वाली और ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म है| यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए जारी की गई है| यह किस्म 105-110 दिनों में पक जाती है| इसके दाने सामान्य पतले होते हैं| यह धान की मुख्य बीमारीयों के प्रतिरोधक है| इसकी औसतन पैदावार 11-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Kasturi (IET 8580): यह लम्बी और पतले दानों वाली किस्म है जो चमकदार और सुगंधित होती है| यह दरमियाने आकार की किस्म है जो 125-135 दिनों में पक जाती है| इसकी औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Hasan Sraay: यह दरमियानी लम्बी और ईरान की धान वाली किस्म है| यह 1000-1300 मीटर की ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों के सिंचित इलाकों में जारी की गई है| यह लम्बी, पतली चमकदार और सुगंधित दानों वाली किस्म है| यह तने का झुलस रोग की प्रतिरोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

China-988: यह किस्म सभी सिंचित और बारानी क्षेत्रों केलिए प्रमाणित की गई है। यह जल्दी पकने वाली और लंबी ऊंचाई वालीकिस्म है। इसके दाने मोटे होते हैं। इसके अंकुरन की क्षमता अधिक होती है इसीलिए यह किस्म सूखे के हालातों को सहन कर सकती है। इस किस्म पर तने के झुलस रोग के गंभीर हमले से तना कमज़ोर हो जाता है और पौधा गिर जाता है। इसकी औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

I.R.-579: यह छोटे कद की, अधिक उपज वाली और कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों (750 मीटर तक) में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं। यह किस्म 140 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म कीटों और बीमारियों के प्रतिरोधी किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 16-17 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, लेकिन इस किस्म की प्रति एकड़ में 25 क्विंटल उपज देने की क्षमता होती है।

Bhrigu Dhan:
यह किस्म 1400 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले सिंचित क्षेत्रों जैसे कुल्लू में उगाने के लिए प्रमाणित की गई है जो कि जल्दी पकने वाली और ठंड के प्रतिरोधी होती है। इसके दाने छोटे और मोटे और लाल रंग के होते हैं। यह किस्म भुरड़ रोग, भूरे धब्बे, झुलस रोग, पत्ता मरोड़ और तने के छेदक जैसे कीटों के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Nagger Dhan: यह छोटे कद की, ठंड के प्रतिरोधी, जापानी किस्म है जो कि 1400 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले सिंचित क्षेत्रों जैसे कुल्लू और अन्य क्षेत्रों में उगाने के लिए प्रमाणित की गई है। इसके दाने छोटे और मोटे होते हैं। यह किस्म 140-145 दिनों में पक जाती है। यह किस्म तने के झुलस रोग और भूरे धब्बों जैसे रोगों के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 14-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PR-108 and PR-109: यह किस्म नालागढ़ और ऊना क्षेत्रों के लिए प्रमाणित की गई है।

Jaya: धौला कुआं और नूरपुर क्षेत्रों में भूरे धब्बे का हमला ज्यादा होता है इसलिए इन क्षेत्रों के लिए Jaya किस्म को प्रमाणित किया गया है। इसकी औसतन पैदावार 22-23 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने मोटे और भारी होते हैं। यह किस्म लगभग 135-140 दिनों में पक जाती है। यह किस्म खारी भूमि में उगाने के लिए उपयुक्त है।

H.K.R-126: यह किस्म निचले क्षेत्रों के लिए प्रमाणित की गई है। यह 95-98 सैं.मी. लंबी किस्म है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं। यह 135-140 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म तने के झुलस रोग और जड़ गलन बीमारियों के कुछ हद तक प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 16.25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

Ratna: इस किस्म की औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके बीज लंबे और पतले होते हैं और स्वाद में अच्छे होते हैं। यह किस्म पकने के लिए 120-125 दिनों का समय लेती है। यह किस्म तना छेदक की प्रतिरोधक है। यह पिछेती बिजाई वाली किस्म है।

BK 79: यह छोटे कद की, लंबे, पतले दानों वाली, बासमती वाली किस्म है। इस किस्म की औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म पकने के लिए 120-135 दिनों का समय लेती है और यह किस्म कीटों और बीमारियों की प्रतिरोधक है।

Basmati 370: यह सुगंधित धान होती है। जिसके दाने लंबाई में 6-7 मि.मी. और चौड़ाई में 1.7 मि.मी. होते हैं। यह किस्म 140-145 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Khushboo: यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि 118-125 दिनों में पक जाती है। यह मध्यम लंबाई वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने 7-7.5 मि.मी. लंबे होते हैं जो कि सफेद रंग के और सुगंधित होते हैं। यह किस्म कीटों और बीमारियों की प्रतिरोधक है।

Taraori Basmati:
यह लंबे कद वाली किस्म पकने के लिए 118-125 दिनों का समय लेती है। इसकी औसतन पैदावार 11-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने 7-7.4 मि.मी. लंबे, सफेद रंग के और सुगंधित होते हैं। चावल उबालने के बाद सामान्य आकार की तुलना में लंबा होता है। फटा हुआ और चिपका नहीं होता। इसके विकास के लिए नाइट्रोजन की 25 क्विंटल प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।

MahiSugandha: यह बासमती किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 130-135 दिनों में पक जाती है।

PHB 71: यह छोटे कद की संकर किस्म है। इसके पौधे का औसतन कद 100-110 सैं.मी. होता है। यह किस्म 130-135 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 22-24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Improved Pusa Basmati 1 (P 1460): यह बासमती की छोटे कद की किस्म है। पकने के लिए 130-138 दिनों का समय लेती है और इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह भुरड़, तना छेदक और कीटों की कुछ हद तक प्रतिरोधक किस्म है।

Pusa Sugandha 4 (P 1121): यह बासमती धान की मध्यम आकार की किस्म है। यह किस्म 130-135 दिनों में पक जाती है। यह किस्म भुरड़, तना छेदक और बैक्टीरिया के हमले की कुछ हद तक प्रतिरोधक है।

Pusa Sugandha 5 (P 2511):  इस किस्म का पौधा 110-115 सैं.मी. मध्यम आकार का होता है। इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म लंबी, सुगंधित और दाने अच्छे स्वाद वाले होते हैं। यह किस्म 130-135 दिनों में पक जाती है। यह किस्म कीटों और बीमारियों की प्रतिरोधक है।

Pratap Sugandha 1 (RSK 1091-10-1-1): यह मध्यम आकार (150-120 सैं.मी.) की किस्म है जो कि पकने के लिए 135-140 दिनों का समय लेती है। इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं। यह भुरड़, तना छेदक और कीटों की कुछ हद तक प्रतिरोधक किस्म है।

Pusa Basmati 1509: यह मध्यम आकार (100-150 सैं.मी.) की किस्म है जो कि पकने के लिए 120-125 दिनों का समय लेती है। इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं। यह भुरड़, तना छेदक और कीटों की कुछ हद तक प्रतिरोधक किस्म है।

BK 190: यह किस्म 140-145 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 29-32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PR 111: यह एक छोटे कद की सीधी बलियों वाली किस्म है और इसके पत्ते बिल्कुल सीधे और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह 135 दिनों में पक जाती है। दाने पतले और साफ होते हैं। यह पत्तों के पीलेपन की बीमारी से रहित है इसकी औसतन पैदावार 27 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 113: यह एक छोटे कद की सीधी बलियों वाली किस्म है और इसके पत्ते बिल्कुल सीधे और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह 142 दिनों में पक जाती है। दाने मोटे और भारी होते हैं। यह पत्तों के पीलेपन की बीमारी से रहित है इसकी औसतन पैदावार 28 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 114: यह एक मध्यम, सीधी बलियों वाली किस्म है और इसके पत्ते पतले, सीधे और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह 145 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, सफेद और साफ होते हैं, जो कि पकाने में ज्यादा अच्छे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 27.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 115:
यह एक मध्यम, सीधी बलियों वाली किस्म है और इसके पत्ते पतले, सीधे और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह 125 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, सफेद और साफ होते हैं, जो कि पकाने में ज्यादा अच्छे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 25 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 116: यह एक मध्यम, सीधी बलियों वाली किस्म है। यह किस्म गर्दन तोड़ की प्रतिरोधक किस्म है। इसके पत्ते हल्के हरे और सीधे होते हैं। यह 144 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, सफेद और साफ होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 28 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 118: यह एक मध्यम, सीधी बलियों वाली और गर्दन तोड़ की प्रतिरोधक किस्म है। इसके पत्ते पतले, सीधे और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह 158 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, सफेद और साफ होते हैं, जो कि पकाने में ज्यादा अच्छे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 29 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 120: यह दरमियाने कद की किस्म है। इसका दाना लंबा और चमकदार होता है। इसके दाने पकाने की गुणवत्ता अच्छी होती है। यह 132 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 28.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 121: यह छोटे कद की सीधी बालियों वाली किस्म है। इस किस्म पर ज़मीन की अंदरूनी सैलाब का कोई असर नहीं होता। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और सीधे होते हैं। यह 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने लंबे पतले और चमकदार होते हैं। इस किस्म पर झुलस रोग का कोई असर नहीं होता। इसकी औसतन पैदावार 30.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 122: यह मध्यम कद की सीधी बालियों वाली किस्म है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और सीधे होते हैं। यह 147 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके दाने बहुत लंबे पतले और चमकदार होते हैं। चावलों को पकाने के बाद गुणवत्ता कमाल की होती है। इसकी औसतन पैदावार 31.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 123: यह मध्यम कद की सीधी बालियों वाली किस्म है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और सीधे होते हैं। इसके दाने बहुत लंबे पतले और चमकदार होते हैं। इस किस्म पर झुलस रोग का प्रभाव बहुत कम होता है। इसकी औसतन पैदावार 29 क्विंटल प्रति एकड़ है।

PR 126: पंजाब में सामान्य खेती के लिए यह किस्म पी ए यू द्वारा जारी की गई है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि रोपाई के 123 दिनों के बाद परिपक्व हो जाती है। यह किस्म झुलस रोग की प्रतिरोधी किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 30 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

HKR 47: यह दरमियाने कद की किस्म है। इसकी पैदावार बहुत अच्छी होती है। इसके दाने लंबे, पतले और सुनहरी रंग के होते हैं। इस किस्म पर फंगस का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसे ज़मीन की अंदरूनी सैलाब प्रभावित करती है।

CSR 30:
यह किस्म ज्यादा लंबी, सीधे आकर के दानों वाली जो कि पकाने में अच्छी और अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। यह किस्म रोपाई के 142 दिनों के बाद परिपक्व हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 13.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

बिजाई

बिजाई का समय
लम्बी और छोटे कद वाली किस्मों के लिए 20 मई से 7 जून और बासमती किस्मों के लिए 15 मई से 30 मई तक का समय बिजाई के लिए उचित है| पनीरी के लिए एक महीने पुराने पौधे तैयार किये जाते है|

फासला
आम किस्म बोने के लिए कतारों में 20 - 22.5 सैं.मी. का फासला रखें| यदि फसल की बिजाई पिछेती होती है, तो फासला 15-18 सैं.मी. रखना चाहिए।

बीज की गहराई

पौधे की गहराई 2-3 सैं.मी. होनी चाहिए। फासला बनाकर लगाने से पौधे ज्यादा पैदावार देते हैं।

बिजाई का ढंग
बिजाई पनीरी या बुरकाव ढंग द्वारा की जाती है।

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 10-14 किलो प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग किया जाता है।

बीज का उपचार
बिजाई से पहले, 10 लीटर पानी में 20 ग्राम कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाईक्लिन घोल लें और इस घोल में बीजों को 8-10 घंटे तक भिगोयें। उसके बाद बीजों को छांव में सुखाएं और फिर बीज बिजाई के लिए तैयार हैं। फसल को जड़ गलन रोग से बचाने के लिए नीचे दिए गए फंगसनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। पहले रासायनिक फंगीनाशी का प्रयोग करो फिर बीजों का टराईकोडरमा के साथ उपचार करो।

फंगसनाशी/कीटनाशी के नाम मात्रा(खाद प्रति किलो बीज)
Trichoderma 5-10gm
Chlorpyriphos 3gm

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MOP
80 100 27

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
36 16 16

 

खाद के तौर पर नाइट्रोजन 36 किलो (यूरिया 80 किलो) फासफोरस 16 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 100 किलो) पोटाश 16 किलो (मिउरेट ऑफ़ पोटाश 27 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें|

फासफोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा जोताई के समय डालें| बाकि की बची हुई नाइट्रोजन को दो बराबर हिस्सों में डालें, पहला हिस्सा रोपण के 3 हफ्ते बाद और दूसरा हिस्सा पहले हिस्से डालने के 2-3 हफ्ते बाद डालें|

सिंचाई

पनीरी लगाने के बाद खेत में दो सप्ताह तक अच्छी तरह पानी खड़ा रहने देना चाहिए। जब सारा पानी सूख जाए तो उसके दो दिन बाद फिर से पानी को लगाना चाहिए। खड़े पानी की गहराई 10 सै.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। खेत में से बूटी और नदीनों को निकालने से पहले खेत में से सारा पानी निकाल देना चाहिए और इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद खेत की फिर से सिंचाई करनी चाहिए। पकने से 15 दिन पहले सिंचाई करनी बंद करनी चाहिए ताकि फसल की आसानी से कटाई की जा सके|

खरपतवार नियंत्रण

पौध को खेत में बीजने से 2-3 दिन बाद 1200 मि.ली. बूटाक्लोर 50 ई.सी. या 1200 मि.ली. थायोबैनकार्ब 50 ई.सी. या 1000 मि.ली. पैंडीमैथालीन 30 ई.सी. या 600 मि.ली. परैटीलाकलोर 50 ई.सी. प्रति एकड़ नामक बूटीनाशकों का प्रयोग करना चाहिए। इनमें से किसी भी बूटीनाशक को 60 किलोग्राम मिट्टी में मिलाकर 4-5 सैं.मी. खड़े पानी में फैला दो।

चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए 30 ग्राम मैटसल्फरोन 20 डब्लयू पी को प्रति एकड़ के हिसाब से 150 लीटर पानी में मिलाके बीजने से 20-25 दिनों के बाद स्प्रे करना चाहिए। स्प्रे करने से पहले खेत में रूके हुए पानी को निकाल दें और स्प्रे करने के एक दिन बाद खेत को फिर पानी दें।

पौधे की देखभाल

जड़ को लगने वाली सूण्डी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

जड़ को लगने वाली सुंडी: जड़ को लगने वाली सूण्डी की पहचान बूटों की जड़ और पत्तों को पहुंचे नुकसान से लगाई जा सकती है। यह सफेद रंग की बिना टांगों वाली होती है। यह मुख्य तौर पर पौधे की जड़ पर ही हमला करती है। इसके हमले के बाद पौधे पीले होने शुरू होने लगते है और उनका विकास रूक जाता है। इस कारण धान के पत्तों के ऊपर दानों के निशान उभर आते हैं। इसका हमला दिखने पर कारबीरल 4 ग्राम प्रति 10 किलो या फोरेट 10 ग्राम प्रति 4 किलो या कार्बोफरोन 3 ग्राम प्रति 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

पौधे का टिड्डा

पौधे का टिड्डा:  इन कीटों का फसल के ऊपर हमला खड़े पानी वाले या वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में ज्यादा होता है। इनकी मौजूदगी का अंदाजा बूटों के ऊपर भूरे रंग में तबदील होने और पौधों की जड़ों के नजदीक शहद जैसी बूंदों की मौजूदगी से लगता है।

यदि इनका हमला दिखाई दे तो 126 मि.ली. डाईक्लोरोवॉस या 400 ग्राम कार्बरिल को 250 ली. पानी में घोल तैयार करके प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए  या 40 मि.ली.  इमीडाक्लोपरिड या 25 ई.सी. प्रति 400 मि.ली. के हिसाब से क्यूनाफॉस या 1 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

leaf folder.jpg

पत्ता लपेट सुंडी: इन बीमारियों के कीटाणुओं का फसल के ऊपर उच्च नमी वाले क्षेत्रों में और खास तौर पर जिन इलाकों में धान की पैदावार लगातार की जा रही हो वहां ज्यादा देखने को मिलती है। इस कीटाणु का लार्वा पत्तों को लपेट देता है और बूटे के तंतुओं को खा जाता है। इसके हमले के बाद पत्तों में सफेद धारियां बन जाती हैं।

रोकथाम: यदि इसके हमले के लक्षण दिखाई दे तो फसल के ऊपर कारटाईप हाइड्रोक्लोराइड 170 ग्राम या टराईज़ोफोरस 350 मि.ली.या 1 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस के पेस्ट को 100 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

Rice Hispa: कुछ जिलों में धान की फसल के ऊपर इस कीट के हमले के ज्यादा केस सामने आते हैं। इस कीट का लार्वा पत्तों में छेद करके पत्तों को नष्ट कर देता है। इसके हमले के बाद पत्तों के ऊपर सफेद धारियां उभर आती है।

इसका हमला दिखाई देने पर फसल के ऊपर 120 मि.ली. मिथाईल पैराथियोन या 25 ई.सी. 400 मि.ली. क्यूनलफोस या 1 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस के पेस्ट को 100 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

तना छेदक

तना छेदक: इस कीटाणु का लार्वा धान के पौधे के बन रही बालियों में प्रवेश करके उसको खा जाता है। जिससे बलियां धीरे धीरे सूख कर खाली हो जाती है जो बाद में सफेद रंग में तबदील हो जाती हैं।

रोकथाम: यदि इसके हमले के लक्षण दिखाई दे तो फसल के ऊपर कार्टाइप हाइड्रोक्लोराईड 170 ग्राम या टराईजोफॉस 350 मि.ली. या एक लीटर कलोरोपाइरीफॉस के पेस्ट को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

भुरड़ रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

भुरड़ रोग: झुलस रोग के कारण पत्तों के ऊपर तिरछे धब्बे जो कि अंदर से सलेटी रंग और बाहर से भूरे रंग के दिखाई देते हैं। इससे फसल की बालियां गल जाती हैं और उसके दाने गिरने शुरू हो जाते हैं। जिन क्षेत्रों में नाइट्रोजन का बहुत ज्यादा प्रयोग किया जाता है। वहां इस बीमारी का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है।

यदि इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो 500 ग्राम जाइनेब का 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके इसका छिड़काव करना चाहिए।

करनाल बंट

करनाल बंट: लाग की शुरूआत पहले बालियों के कुछ दानों पर होती है और इससे ग्रसित दाने बाद में काले रंग का चूरा बन जाते हैं। हालत ज्यादा खराब होने की सूरत में पूरे का पूरा सिट्टा प्रभावित होता है। और सारा सिट्टा खराब होकर काला चूरा बनके पत्ते दानों पर गिरना शुरू हो जाते है।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए नाइट्रोजन की ज्यादा प्रयोग करने से परहेज़ करना चाहिए। जब फसल को 10 % के करीब बलियां पड़ जाये तो उस समय 200 मि.ली. टिल्ट 25 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर इस घोल का छिड़काव करना चाहिए। 10 दिनों के अंतराल के बाद इसका फिर से छिड़काव करना चाहिए।

भूरे रंग के धब्बे

भूरे रंग के धब्बे: पत्तों के भूरेपन के लक्षण की पहचान पत्तों के ऊपर अंदर से गहरे भूरे रंग और बाहरे से हल्के भूरे रंग के अंडाकार या लंबाकार धब्बों से होती है। यह धब्बे दानों के ऊपर भी पड़ जाते हैं। जिस मिट्टी में पौष्टिक तत्वों की कमी पाई जाती है। वहां इस बीमारी का हमला ज्यादा देखने को मिलता है।

इस बीमारी की रोकथाम के लिए सही मात्रा में मिट्टी में पौष्टिक तत्व डालते रहने चाहिए। जब बलियां बननी शुरू हो जाए उस समय 200 मि.ली. टैबूकोनाज़ोल या 200 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल का 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके इसका छिड़काव करना चाहिए। 15 दिनों के बाद इस घोल का फिर से छिड़काव करना चाहिए।

झूठी कांगियारी

झूठी कांगियारी: इस रोग के कारण फफूंद की तरह हर दाने के ऊपर हरे रंग की परत जम जाती है। उच्च नमी, ज्यादा वर्षा और बादलवाई हालातों में यह बीमारी के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। नाइट्रोजन के ज्यादा प्रयोग से भी इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

इसकी रोकथाम के लिए जब बलियां बननी शुरू हो जाये उस समय 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके 10 दिनों के अंतराल के दौरान इसका छिड़काव करना चाहिए,  200 मि.ली. टिल्ट 25 ई.सी. को 200 लीटर पानी में मिलाकर इस घोल का छिड़काव करना चाहिए।

तने का झुलस रोग

तने का झुलस रोग: पत्तों की परत के ऊपर सलेटी रंग के जामुनी रंग की धारी वाले धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में यह धब्बे बड़े हो जाते हैं। इस बीमारी का हमला ज्यादा हो तो फसल में ज्यादा दाना नहीं पड़ता। नाइट्रोजन का ज्यादा प्रयोग नहीं करना चाहिए। खेत का साफ सुथरा रखें।

यदि इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो 200 मि.ली. टैबुकोनाज़ोल या 200 मि.ली. टिल्ट 25 ई सी या 200 ग्राम का 25 % कार्बनडैज़िम 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके एक एकड़ में इसका छिड़काव करना चाहिए। 15 दिनों के अंतराल के दौरान इस घोल का फिर से छिड़काव करना चाहिए।

फसल की कटाई

जब दाने पूरी तरह पक जायें और फसल का रंग सुनहरी हो जाये तो खड़ी फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। ज्यादातर फसल की कटाई हाथों से द्राती से या कंबाइन से की जाती है। काटी गई फसल के बंडल बनाके उनको छांटा जाता है। दानों को बलियों से अलग कर लिया जाता है। अलग करने के बाद छंटाई की जाती है।

कटाई के बाद

धान की कटाई करने के बाद पैदावार को काटने से लेकर प्रयोग तक नीचे लिखी प्रक्रिया अपनाई जाती है।
1. कटाई 2. छंटाई 3. सफाई 4. सुखाना 5. गोदाम में रखना 6.पॉलिश करना और इसके बाद इसे बेचने के लिए भेजना।

दानों को स्टोर करने से पहले इन्हें कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए 10 किलोग्राम दानों के लिए 500 ग्राम नीम के पाउडर को मिलाना चाहिए। स्टोर किए गए दानों को कीटों के हमले से बचाने के लिए 30 मि.ली. मैलाथियोन 50 ई.सी. को 3 लीटर पानी में घोल तैयार करके इसका छिड़काव करना चाहिए। इस घोल का छिड़काव 100 वर्ग मीटर के क्षेत्र में हर 15 दिनों के बाद करना चाहिए।