बागबानी में आम की फसल

आम जानकारी

इसे सभी फलों का राजा कहा जाता है और इसकी खेती भारत में पुराने समय से की जाती है। आम विटामिन ए और सी का उच्च स्त्रोत है और इसके पत्ते चारे की कमी होने पर चारे के तौर पर और इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। कच्चे फल चटनी, आचार बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और पके फल खाने के लिए और जूस, जैम और जैली आदि बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में आम को 1200 मीटर की ऊंचाई पर उगाया जाता है। आम ना ज्यादा कम और ना ज्यादा ठंड को सहन नहीं कर सकता। मुख्य तौर पर आम की खेती शुष्क क्षेत्रों में की जाती है जहां गर्मियों में (जून-सितंबर महीने में) भारी बारिश होती है और बाकी के महीने शुष्क रहते हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    22-27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
  • Season

    Temperature

    22-27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
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    Harvesting Temperature

    28-30°C
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    Temperature

    22-27°C
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    Rainfall

    50-80mm
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    Sowing Temperature

    20-22°C
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    Harvesting Temperature

    28-30°C
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    Temperature

    22-27°C
  • Season

    Rainfall

    50-80mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-22°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C

मिट्टी

अच्छे निकास वाली उच्च उपजाऊ मिट्टी में आम की खेती की सिफारिश की जाती है। नमक वाली और हैलोक्लाइन मिट्टी में आम की खेती ना करें क्योंकि यह आम की बिजाई के लिए असुरक्षित होती है। मिट्टी की पी एच 8.5 प्रतिशत से कम होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Dusheri:  इसे क्षेत्र में व्यापक तौर पर उगाया जाता है। इसके फल जुलाई के पहले सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के फलों का आकार छोटे से दरमियाना, रंग पीला, फल नर्म, स्वाद में मीठा और गुठली आकार में छोटी होती है। यह फल ज्यादा देर तक स्टोर किए जा सकते हैं। यह फसल नियमित फल पैदा करती है। इसकी औसतन पैदावार 150 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Langra: इस किस्म के फलों का आकार दरमियाने से बड़ा, रंग निंबू जैसा पीला और नर्म होता है। फल रेशे रहित और स्वाद में बढ़िया होते हैं। इसके फल का छिल्का दरमियाना मोटा होता है। इसके फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Amarpali:  यह किस्म Neelam और Dushehri  किस्मों के सुमेल से तैयार की गई है। यह नियमित फल देती है। इस किस्म के पौधे का आकार छोटा होता है।
 
Bombay Green: इस किस्म के पौधे का आकार मध्यम, नर्म छिल्का, रेशेमुक्त गुद्दा जो कि नर्म, रसदार और स्वाद में अच्छा होता है। इसके फल जुलाई के महीने में पक जाते हैं।
 
 Fazli: इसका आकार बड़ा, मध्यम मोटा छिल्का जो कि रंग में हरा होता है। इसका स्वाद अच्छा और गुद्दा मीठा होता है। इसके फल अगस्त के महीने में पक जाते हैं।
 
Summer Bahishat Chausa (Chausa): यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। छिल्का सामान्य, मध्यम मोटा और पीले रंग का होता है। इसके फल अगस्त के महीने में तैयार हो जाते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Malika: यह किस्म Neelam और Dushehri किस्मों के सुमेल से तैयार की गई है। यह नियमित फल पैदा करती है।
 
Sepia Shahpasand: इसकी खेती मध्य मौसम में की जाती है। इसके फल मध्यम और लैमन हरे रंग के होते हैं। फल रसदार, स्वाद में मीठे और हल्के सुगंधित होते हैं।
 
Alphonso: इस किस्म को भारी मात्रा में निर्यात किया जाता है। इस किस्म के फल का आकार दरमियाना और अंडाकार होता है। फल का रंग हरा और हल्का पीला होता है और बीच बीच में हल्का गुलाबी रंग भी होता है। फल रेशा रहित और खाने में बहुत ही स्वाद होते हैं। फल का छिल्का पतला और चिकना होता है। इस किस्म के फल जुलाई के पहल सप्ताह में पककर तैयार हो जाते हैं।
 
Hybrids: Mallika, Amrapali, Ratna, Arka Arjun, Arka Puneet, Arka Anmol, Sindhu, Manjeera
 
Varieties: Himsagar, Kesar, Neelam.
 

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन की अच्छी तरह जोताई करें, क्रॉस जोताई करने के बाद उसे समतल करें। ज़मीन को इस तरह तैयार करें ताकि खेत में पानी ना खड़ा हो। ज़मीन को समतल करने के बाद एक बार फिर गहरी जोताई करके ज़मीन को अलग अलग भागों में बांट दें। फासला जगह के हिसाब से अलग-अलग होना चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
बारिश पर आधारित क्षेत्रों में जुलाई से अगस्त महीने में बिजाई की जाती है और जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं वहां फरवरी से मार्च महीने में बिजाई की जाती है।
 
फासला
कलम वाली किस्मों के लिए 8x10 मीटर फासले का प्रयोग करें और उन्हें वर्गाकार प्रणाली में लगाएं। amarpali किस्म के लिए 3x3 मीटर फासले का प्रयोग करें। 
 
बीज की गहराई
बिजाई से एक महीना पहले 1x1x1 मीटर के आकार के गड्ढे 9x9 मीटर के फासले पर खोदें। गड्ढों को धूप में खुला छोड़ दें। फिर इन्हें मिट्टी में 30-40 किलो रूड़ी की खाद और 1 किलो सिंगल सुपर फासफेट मिलाकर भर दें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई वर्गाकार और षट्कोणीय तरीके से की जा सकती है। षट्कोणीय तरीके से बिजाई करने से 15 प्रतिशत वृक्ष ज्यादा लगाए जा सकते हैं।
 

बीज

बीज का उपचार
बीजों को फंगस के बुरे प्रभावों से बचाने के लिए कप्तान फंगसनाशी से उपचार करें।
 

सिंचाई

बीज बोने के बाद तुरंत हल्की सिंचाई करें। अगली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें और उसके बाद आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई करें।  शुष्क और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में उचित अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है।  

खरपतवार नियंत्रण

फसल की अच्छी उपज के लिए, उचित अंतराल पर गोडाई करनी जरूरी है। रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाने से खेतों में से नदीनों को निकालने में मदद करता है। पहली गोडाई रोपाई के 30 दिनों बाद की जाती है और दूसरी गोडाई रोपाई के 60 दिनों के बाद की जाती है।  

खाद

खादें (ग्राम प्रति वृक्ष)

Age of crop

(Year)

FYM

(in kg)

CAN

(gm/tree)

SSP

(gm/tree)

MOP

(gm/tree)

First to three years 10-30 100-300 100-300 100-300
Four to six years 40-60 400-700 400-700 400-700
Seven to nine years 70-90 700-900 700-900 700-900
Ten and above years 100 1000 1000 1000

 

तत्व (ग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 16 60

 

आम की खेती के लिए नाइट्रोजन 25 किलो, फासफोरस 16 किलो और पोटाश 60 किलो प्रति एकड़ की जरूरत होती है। 1-3 वर्ष की फसल के लिए, गाय का गोबर 10-30 किलो, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 100-300 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 100-300 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 100-300 ग्राम प्रति वृक्ष डालें। 4-6 वर्ष की फसल के लिए, गाय का गोबर 40-60 किलो, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 400-700 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 400-700 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 400-700 ग्राम प्रति वृक्ष डालें।
 
7-9 वर्ष की फसल के लिए गाय का गोबर 70-90 किलो, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 700-900 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 700-900 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 700-900 ग्राम प्रति वृक्ष के लिए प्रयोग करें। 10 या 10 से अधिक वर्ष की फसल के लिए गाय का गोबर 100 किलो, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 1000 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 1000 ग्राम, म्यूरेट ऑफ पोटाश 1000 ग्राम प्रति वृक्ष डालें। 
 
गाय का गोबर और एस एस पी दिसंबर महीने में और 1 किलो कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश फरवरी के महीने में प्रयोग करें और 1 किलो कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट जून के महीने में फूल निकलने के समय प्रति पौधे में डालें।
 

 

 

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे : फलों और फूलों के भागों पर सफेद पाउडर जैसे धब्बों का हमला देखा जा सकता है। ज्यादा गंभीर हालातों में फल या फूल झड़ने शुरू हो जाते हैं। इसके साथ साथ फल, शाखाओं और फूल के भाग शिखर से सूखने के लक्षण भी नज़र आने लगते हैं।
 
फूल निकलने से पहले, फूल निकलने के समय और फलों के गुच्छे बनने के बाद, 1.25 किलो घुलनशील सल्फर को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 10-15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो 178 प्रतिशत इमीडाक्लोप्रिड 5 मि.ली. को हैक्साकोनाज़ोल 10 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर या ट्राइडमॉर्फ 5 मि.ली. या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
एंथ्राक्नोस : शाखाओं पर गहरे-भूरे या काले धब्बे नज़र आते हैं। फलों पर भी छोटे, उभरे हुए, गहरे दाग दिखाई देते हैं।
 
एंथ्राक्नोस और अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रभावित और नष्ट हुए भाग को काट दें और इस पर बोर्डो पेस्ट लगाएं। बोर्डिऑक्स मिश्रण 10 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम प्रति 10 लीटर की स्प्रे प्रभावित वृक्ष पर करें। यदि नए फूल पर एंथ्राक्नोस का हमला दिखे तो थायोफनेट मिथाइल 10 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 10 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
ब्लैक टिप : फल पकने से पहले असाधारण तरीके से शिखरों पर से लंबे हो जाते हैं।
 
फूल निकलने से पहले और निकलने के समय, बोरैक्स 6 ग्राम प्रति लीटर पानी + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे तीन बार 10-15 दिनों के फासले पर करें।
 
  • हानिकारक कीट ओर रोकथाम
मिली बग : यह फल, पत्ते, शाखाओं और तने का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसका हमला आमतौर पर जनवरी से अप्रैल के महीने में देखा जाता है। मिली बग से प्रभावित हिस्सा सूख जाता है और प्रभावित हिस्से पर फंगस देखी जा सकती है। 
 
इसे रोकने के लिए, 25 सैं.मी. चौड़ी पॉलीथीन (400 गेज) शीट तने के आस पास लपेट दें ताकि नवंबर और दिसंबर के महीने में मिली बग के नए बच्चों को अंडों में से बाहर निकलने से रोका जा सके। यदि इसका हमला दिखे तो एसीफेट 2 ग्राम प्रति लीटर और स्पाइरोटैटरामैट 3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
आम का टिड्डा : इसका हमला ज्यादातर फरवरी-मार्च के महीने में, जब फूल निकलने शुरू हो जायें , तब होता है। यह फलों और पत्तों का रस चूसते हैं। प्रभावित फूल चिपचिपे हो जाते हैं और प्रभावित हिस्सों पर काले रंग की फफूंदी दिखाई देती है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो साइपरमैथरिन 25 ई सी 3 मि.ली. या डैलटामैथरिन 28 ई सी 9 मि.ली. या फैनवैलारेट 20 ई सी 5 मि.ली. या नींबीसाइडिन 1000 पी पी एम 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर पूरे वृक्ष पर स्प्रे करें।
 
फल की मक्खी : यह आम की एक गंभीर मक्खी है। मादा मक्खियां फल के ऊपरले छिल्के पर अंडे देती हैं। बाद में यह कीड़े फलों के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल सड़ना शुरू हो जाता है और झड़ जाता है।
 
प्रभावित फलों को खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फल बनने के बाद, मिथाइल इंजेनोल 0.1 प्रतिशत के 100 मि.ली. के रासायनिक घोल के जाल लटका  दें । मई महीने में क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे 20 दिनों के फासले पर तीन बार करें।
 
तना छेदक : यह आम का एक गंभीर कीड़ा है। यह वृक्ष की छाल के नीचे सुरंग बनाकर इसके टिशू खाता है, जिस कारण वृक्ष नष्ट हो जाता है। लार्वे का मल सुरंग के बाहर की ओर देखा जा सकता है।
 
इसका हमला दिखे तो सुरंग को सख्त तार से साफ करें। फिर रूई को 50:50 के अनुपात में मिट्टी के तेल और क्लोरपाइरीफॉस में भिगोकर इसमें डालें। फिर इसे मिट्टी से बंद कर दें।
 

फसल की कटाई

फल का रंग बदलना फल पकने की निशानी है। फल पकने के लिए आमतौर पर 15-16 सप्ताह का समय लेता है। सीढ़ी या बांस (जिस पर तीखा चाकू लगा हो) की मदद से पके हुए फल तोड़े और पके फलों को इक्ट्ठा करने के लिए एक जाल भी लगाएं। फल को नीचे ज़मीन पर ना गिरने दें इससे भंडारण के दौरान फल का नुकसान होगा। तुड़ाई के बाद फलों को आकार  और रंग के आधार पर छांटे और बक्सों में पैक करें। तुड़ाई किए गए फलों के ऊपरी  भाग को पॉलीनैट पर नीचे की तरफ करके रखें।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद फलों को पानी में डुबोयें। कच्चे फल, जो पानी के ऊपर तैरते दिखाई दें, को हटा  दें। इसके बाद 25 ग्राम नमक को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फलों को डुबोदें। जो फल पानी पर तैरते हैं, उन्हें निर्यात के लिए प्रयोग करें। फूड एडल्ट्रेशन एक्ट (1954) के अनुसार, यदि कोई फलों को कार्बाइड गैस का प्रयोग करके पकाता है, तो इसे जुर्म माना जाता है। फलों को सही ढंग से पकाने के लिए100 किलो फलों को 100 लीटर पानी,जिसमें (62.5मि.ली.-187.5मि.ली.) एथ्रेल 52+ 2 डिगरी सैल्सियस  पर 5 मिनट के लिए तुड़ाई के बाद 4-8 दिनों के बीच डुबोयें। फल की मक्खी की होंद को चैक करने के लिए भी एच टी (वेपर हीट ट्रीटमैंट) जरूरी है। इस क्रिया के लिए 3 दिन पहले तोड़े फलों का प्रयोग करें।