गुलदाउदी

फसल की कटाई

मुख्य रूप से रोपाई के 5-6 महीने बाद फूल निकलना शुरू होते हैं। फूलों की कटाई अक्तूबर से नवंबर महीने में की जाती है। सुबह के समय पूरी तरह विकसित खुले फूलों की कटाई की जाती है। कटाई किए गए फूलों को परिवहन और बिक्री उद्देश्य के लिए बांस की टोकरियों में पैक किया जाता है। 

पत्तों पर सफेद धब्बे : यह ओइडियम क्राइसैंथमी के कारण होता है। पत्तों और तनों पर सफेद रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए ज़िनेब या डाइथेन एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
सूखा : इस बीमारी से पत्तों पर भूरे और पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे पत्ते मर जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो डाइथेन एम 45 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर काले धब्बे : यह सेप्टोरिया क्राइसैंथेमेला और एस. ओबेसा के कारण होता है। इसके कारण पत्तों पर गोल आकार के सलेटी भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्ते अपने आप पीले रंग में बदल जाते हैं और फिर मर जाते हैं।
 
इस बीमारी की  रोकथाम के लिए ज़िनेब या डाइथेन एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
बिहार सुंडी और अमेरिकन सुंडी : बिहार सुंडी मुख्य रूप से पौधे के पत्तों को खाती है जब कि अमेरिकन सुंडी पौधे की कलियों और फूलों को खाती है।
 
बिहार सुंडी की रोकथाम के लिए, एकालक्स (क्विनलफॉस) 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। अमेरिकन सुंडी की रोकथाम के लिए नुवाक्रॉन (डाइक्लोरोफॉस) 2-3 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 
पौधे का टिड्डा : यदि इसका हमला दिखे तो रोगोर 30 ई सी 2 मि.ली. या प्रोफैनोफॉस 25 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : यह मुख्य तौर पर फूल निकलने के समय हमला करता है। ये कीट डंठल, तने, फूल, कलियों आदि में से रस चूसते हैं।
यदि इसका हमला दिखे तो रोगोर 30 ई सी या मैटासिसटोक्स 25 ई सी @2 मिली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

खरपतवार नियंत्रण

पौधे की अच्छी वृद्धि और खेत को नदीन मुक्त करने के लिए 2-3  गोडाई की आवश्यकता होती है। रोपाई के 4 सप्ताह बाद पहली गोडाई करें।

सिंचाई

सिंचाई की आवृत्ति विकास स्तर, मौसम और मिट्टी के हालातों पर निर्भर करती है। गुलदाउदी की फसल को उचित निकास वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। सिंचाई पहले महीने में सप्ताह में दो बार दें और फिर सप्ताह के अंतराल पर लगातार सिंचाई दें।

खाद

 तत्व (किलोग्राम प्रति वर्गमीटर)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASSIUM
30 30 30

 

खेत की तैयारी के समय 5 किलो प्रति वर्गमीटर में गाय का गला हुआ गोबर डालें। नाइट्रोजन 30 किलो, फासफोरस 30 किलो और पोटाशियम 30 किलो वर्गमीटर में डालें। फासफोरस और पोटाशियम की पूरी मात्रा और नाइट्रोज की आधी मात्रा खेत की तैयारी के समय डालें। बाकी की नाइट्रोजन रोपाई के 45 दिनों के बाद डालें।

बीज

बीज की मात्रा
रोपाई के लिए 45000 पौधे प्रति एकड़ के घनत्व का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
पौधों को मिट्टी से पैदा हाने वाली उखेड़ा रोग से बचाव के लिए सीरेसन 0.2 प्रतिशत या कप्तान 0.2 प्रतिशत से काटे हुए भागों का उपचार करें।
 

प्रजनन

गुलदाउदी का प्रजनन मुख्य रूप से जड़ों द्वारा या शीर्ष से काटे हुए भागों द्वारा किया जाता है। शीर्ष से काटे हुए भागों की कटिंग विधि में, सेहतमंद पौधे के 4-5 सैं.मी. ऊपरी भाग की कटाई मध्य अप्रैल से अंत जून तक की जाती है। जड़ों की कटाई के बाद उन्हें सीरेसन 0.2 प्रतिशत या कप्तान 0.2 प्रतिशत से उपचार किया जाता है। गांठों में तने को ज़मीन से थोड़ा ऊपर काटें, इससे एक नया भाग विकसित होगा। जड़ के भाग को मुख्य पौधे से अलग कर लिया जाता है और उसके बाद तैयार बैडों में बोया जाता है।

बिजाई

बिजाई का समय
गांठों की रोपाई फरवरी - मार्च के महीने में की जाती है और शीर्ष से काटे हुए भागों को  की रोपाई जून-जुलाई के महीने में की जाती है।
 
फासला
कतार से कतार में और पौधे से पौधे में 30x30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।

बीज की गहराई
बीज को पॉलीथीन के लिफाफों में 1-2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 

ज़मीन की तैयारी

गुलदाउदी की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की हैरो से 2-3 बार जोताई करना आवश्यक होता है। आखिरी जोताई के समय रूड़ी की खाद 8-10 टन प्रति एकड़ में डालें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Standard cultivars:
 
White varieties: Purnima, White Star.
 
Yellow varieties: Yellow star, Fizzy yellow.
 
Pink varieties: Fizzy, Tata Century.
 
Spray cultivars:
 
White varieties: 
 
Birbal Sahni : यह किस्म 121 दिनों में पक जाती है। पौधा 65 सैं.मी. लंबा होता है। पौधे के सफेद रंग के फूल होते हैं जो गुच्छों में उगते हैं और 4-8 सैं मी. व्यास होता है। इसकी औसतन पैदावार 13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Baggi : यह किस्म 137 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 64 सैं.मी. लंबा होता है। पौधे के फूल सफेद रंग के गुच्छों में उगते हैं। फल का व्यास 4-8 सैं.मी. होता है। इसकी औसतन पैदावार 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
White Bouquet, Surf. 
 
Yellow varieties:  
 
Ajay : यह मध्यम आकार के फूलों वाली किस्म 116 दिनों में तैयार हो जाती है। इस पौधे का कद 55 सैं.मी. होता है और 79 फूल प्रति पौधे में होते हैं। इसके फूल चमकदार पीले रंग के होते हैं जिनका व्यास 8.18  सैं.मी. होता है। यह किस्म 37 दिनों के बाद फूल निकालना शुरू करती है।

Nanko, Kundan, Aprajita
 
Pink varieties: Ravi Kiran, Flirt.
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Ratlaam Selection : यह किस्म 138 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 51 सैं.मी. लंबा होता है। पौधे के फूल हल्के पीले सफेद रंग के होते हैं। फल का व्यास 8.1सैं.मी. होता है। इसकी औसतन पैदावार 72 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Gold : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म 76 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 23 सैं.मी. लंबा होता है। पौधे के फूल की कलियां लाल रंग की होती हैं जो कि पकने पर आकर्षित पीले रंग की हो जाती हैं। फल का व्यास 5-30 सैं.मी. होता है। यह किस्म गमले में बोने के लिए उपयुक्त है।
 
Anmol : यह देरी से पकने वाली किस्म है। यह किस्म 114 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 50 सैं.मी. लंबा होता है। पौधे के फूल पीले रंग की होते हैं जो कि गुच्छों में होते हैं। फल का व्यास 40 सैं.मी. होता है। इसकी औसतन पैदावार 13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इस किस्म के अकेले पौधे में लगभग 208 फूल पैदा होते हैं।
 
Royal Purple : यह देरी से पकने वाली किस्म है। यह किस्म 141 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 45 सैं.मी. लंबा होता है। पौधे के फूल जामुनी-गुलाबी रंग के होते हैं जो कि गुच्छों में होते हैं। फल का व्यास 5.3 सैं.मी. होता है। इस किस्म के अकेले पौधे में लगभग 201 फूल पैदा होते हैं।यह किस्म गमले में बोने के लिए उपयुक्त है।
 
Yellow delight : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म 88 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 66 सैं.मी. लंबा होता है जिसके फूल आकर्षित पीले रंग के होते हैं। फल का व्यास 5.2सैं.मी. होता है। इस किस्म के अकेले पौधे में लगभग 103 फूल पैदा होते हैं।
 
Garden Beauty : यह मध्यम पकने वाली किस्म है जो कि 132 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 70 सैं.मी. लंबा होता है। फल का व्यास 10 सैं.मी. होता है, जिनका रंग एक समान होता है। यह 73 फूल प्रति पौधा देता है। बिजाई के 23 दिनों में फूल आने शुरू हो जाते हैं।
 
Winter Queen : यह मध्यम पकने वाली किस्म है जो कि 128 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 75 सैं.मी. लंबा होता है। फल का व्यास 90 सैं.मी. होता है, जिनका रंग एक समान होता है। यह 125 फूल प्रति पौधा देता है। बिजाई के 23 दिनों में  फूल आने शुरू हो जाते हैं।
 
Atom Joy : यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि 101 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा 58 सैं.मी. लंबा होता है जिसके फूल गुलाबी रंग के होते हैं। फल का व्यास 6.6 सैं.मी. होता है। यह 283 फूल प्रति पौधा देता है। बिजाई के 36 दिनों में  फूल आने शुरू हो जाते हैं।
 
Kelvin Mandrin : यह छोटे फूलों वाली किस्म है जो कि लगभग 102 फूल देती है। इसके फूल कॉपर रंग के होते हैं जिनका व्यास 4.5 सैं.मी. होता है। पौधा 48 सैं.मी. लंबा होता है। यह किस्म 40 दिनों के बाद फूल निकालना शुरू करती है।
 
Kelvin tattoo : यह छोटे फूलों वाली किस्म है जो कि लगभग 101 फूल देती है। इसके फूल कैडमियम पीले रंग के होते हैं, जो कि मध्य में से लाल रंग के होते हैं। जिनका व्यास 3.37 सैं.मी. होता है। पौधा 41 सैं.मी. लंबा होता है। यह किस्म 31 दिनों के बाद फूल निकालना शुरू करती है।
 
Reagan White :  यह किस्म 103 दिनों के बाद फूल निकालना शुरू करती है। इसका पौधा 45 सैं.मी. लंबा होता है। इसके सफेद रंग के फूल होते हैं जिनका व्यास 8.43 होता है। यह 54 फूल प्रति पौधा देती है।
 
Reagan Emperor : यह सिंगल कोरिया किस्म है। यह 103 दिनों के बाद फूल निकालना शुरू करती है। पौधा 78 सैं.मी. लंबा होता है और गुलाबी रंग के फूल होते हैं, जिनका व्यास 8.15 सैं.मी. होता है। यह 25 फूल प्रति पौधा देती है।
 
Yellow Charm : यह सिनेरेरिया श्रेणी से संबंधित है। इस किस्म के पौधे का कद 15 सैं.मी. होता है। यह 485 फूल प्रति पौधा देती है। इसके फूल चमकदार पीले रंग के होते हैं जिनका व्यास 3.5 सैं.मी. होता है। इस किस्म को कटाई छंटाई की जरूरत नहीं होती और ना ही किसी सहारे की जरूरत होती है। 
 
Mother Teresa : यह मध्यम समय की किस्म एनीमॉन श्रेणी से संबंधित है जो कि 102 दिनों में फूल निकालना शुरू करती है। इसके पौधे का कद 38 सैं.मी. होता है और 150 फूल प्रति पौधा देती है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं जो कि मध्य में से क्रीम या पीले रंग के होते हैं। फूलों का व्यास 5.5 सैं.मी. होता है। यह देरी से पकने वाली किस्म है जिसके फूल दिसंबर-जनवरी महीने में खिलते हैं। इस किस्म को कटाई छंटाई की जरूरत नहीं होती और ना ही किसी सहारे की जरूरत होती है।
 
Other varieties : Kirti, Arka Swarna, Shanti, Y2K, Arka Ganga, Appu, Sadbhavana, Bindiya, MDU 1 (yellow colored flowers), Combaitore varieties such as CO 1 (yellow colored varieties) and CO 2 (purple colored flowers), Indira and Red Gold, Ravi Kiran, Akash, Yellow Start, Indira, Rakhee and Chandrakand are some more varieties which are used. 
 

 

मिट्टी

अच्छे जल निकास वाली लाल दोमट मिट्टी गुलदाउदी की खेती के लिए अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की पी एच 6-7 अच्छी रहती है। 

  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    80-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    16-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    80-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    16-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    80-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    16-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    80-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    16-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

आम जानकारी

यह पूरे विश्व में उगाई जाने वाली महत्तवपूर्ण फूल की फसल है। ग्रीन हाउस में उगाने पर यह ज्यादा उपज देती है। यह ‘कम्पोसिटे’ परिवार से संबंधित है। मांग अच्छी होने के कारण, भारत में गुलदाउदी की खेती व्यापारिक तौर पर की जाती है। फूलों का उपयोग मुख्य रूप से पार्टी व्यवस्था, धार्मिक चढ़ावे और माला बनाने के लिए किया जाता है। यह जड़ी बूटी का सदाबहार पौधा है जिसका कद 50-150 सैं.मी. होता है। गुलदाउदी की खेती व्यापारिक तौर पर कर्नाटक, तामिलनाडू, पंजाब और महाराष्ट्र में की जाती है।