लौकी फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

लौकी को "कैलाबाश" के नाम से जाना जाता है और यह कुकुरबिटेशियस फैमिली से संबंधित है। यह एक वार्षिक फल देने वाला पौधा है, जिसकी बढ़वार अधिक होती है। इसके पौधे के फूल सफेद रंग के होते हैं जो गुद्देदार और बोतल के आकार के फल देते हैं। इसके फल का उपयोग सब्जी के तौर पर किया जाता है। लौकी के शारीरिक फायदे भी हैं। यह पाचन प्रणाली को अच्छा करता है, शूगर के स्तर और कब्ज को कम करता है। अनिद्रा और मूत्र संक्रमण का इलाज करता है और अनिद्रा उपचार के लिए अच्छा उपाय है। हिमाचल प्रदेश में, लौकी को मुख्यत: कम और दरमियाने क्षेत्रों में नकदी फसल के तौर पर उगाया जाता है।

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जाता है। रेतली दोमट से चिकनी मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

गोलाकार किस्में
 
Pusa Summer Prolific Round, Pusa Manjri (Sankar variety) और Punjab Round किस्में हिमाचल प्रदेश में उगाई जाने वाली मुख्य गोलाकार किस्में हैं।
 
लंबाकार किस्में
 
Pusa Summer Prolific round किस्म को हिमाचल प्रदेश में लौकी की खेती के लिए उपयोग किया जाता है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Punjab Barkat :  यह किस्म 2014 में जारी की गई है। इसके फल लंबे, हल्के हरे रंग के और बेलनाकार होते हैं। यह किस्म काफी हद तक चितकबरे रोग के प्रतिरोधी है। इसकी औसतन पैदावार 94 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Long : यह किस्म 1997 में जारी की गई है। इसके चमकदार, बेलनाकार और हल्के हरे रंग के फल होते हैं। इसका मंडीकरण लंबी दूरी वाले स्थानों पर आसानी से किया जा सकता है। इसकी औसतन पैदावार 75 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Punjab Komal : यह किस्म 1988 में जारी की गई है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि बिजाई के बाद 70 दिनों में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं जो कि हल्के हरे रंग के होते हैं और प्रत्येक बेल में 10-12 फल होते हैं। यह किस्म खीरे के चितकबरे रोग को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 84 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

लौकी की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें। मिट्टी के भुरभुरा होने तक जोताई के बाद सुहागा फेरें।

बिजाई

बिजाई का समय
निचले क्षेत्र : सिंचित क्षेत्रों में फरवरी-मार्च और बारानी क्षेत्रों में जून के महीने में बिजाई की जाती है।
दरमियाने क्षेत्र : मार्च अप्रैल के महीने में
 
फासला
कतारों में 1.5-2.0 मीटर और पौधों में 60 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 1-2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए 2 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।
 
बीज का उपचार
मिट्टी से पैदा होने वाली फंगस से बचाने के लिए बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
84 125

38

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
38 20 22

 

बैड की तैयारी से पहले अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 42 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें। पहली तुड़ाई के समय यूरिया 84 किलो (नाइट्रोजन 38 किलो), एस एस पी 125 किलो (फासफोरस 20 किलो) और म्यूरेट ऑफ पोटाश 38 किलो (पोटाश 22 किलो) प्रति एकड़ में डालें।

 

 

सिंचाई

इस फसल को बिजाई के बाद, तुरंत सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में 6-7 सिंचाई और बरसात के मौसम में यदि  आवश्यकता हो तो  सिंचाई करें। इस फसल को कुल 9 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए, पौधे की वृद्धि के शुरूआती समय में 2-3 गोडाई करें। गोडाई खाद डालने के समय करें। बरसात के मौसम में नदीनों की रोकथाम के लिए मिट्टी चढ़ाना भी प्रभावी तरीका है।

पौधे की देखभाल

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल की मक्खी : ये फल के अंदरूनी भागों को अपना भोजन बनाते हैं जिसके कारण फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं गल जाते हैं और पीले पड़ जाते हैं।
उपचार : कार्बरिल 10 प्रतिशत 600-700 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
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पेठे की भुण्डियां : ये कीट जड़ों को अपना भोजन बनाकर नुकसान पहुंचाती है।
उपचार : कार्बरिल 10 प्रतिशत 600-700 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
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रंग बिरंगी भुण्डी : ये कीट पौधे के भागों को अपना भोजन बनाकर उसे नष्ट कर देते हैं।
उपचार : कार्बरिल 10 प्रतिशत 600-700 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
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  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के निचले धब्बे : क्लोरोटिक धब्बे इस बीमारी के लक्षण हैं।
उपचार : मैनकोजेब 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
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पत्तों पर सफेद धब्बे : इस बीमारी के कारण छोटे, सफेद रंग के धब्बे पत्तों और तने पर देखे जाते हैं।
उपचार : इस बीमारी से बचाव के लिए, एम-45 या Z – 78, 400-500 ग्राम की स्प्रे करें।
 
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चितकबरा रोग : इस बीमारी के कारण वृद्धि रूक जाती है और उपज में कमी आती है।
उपचार : चितकबरे रोग से बचाव के लिए, डाइमैथोएट 200-250 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

किस्म और मौसम के आधार पर, फसल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मार्किट की आवश्यकतानुसार, मध्यम और नर्म फलों की कटाई करें। बीज उत्पादन के लिए ज्यादातर पके फलों को स्टोर किया जाता है। तीखे चाकू की मदद से फलों को बेलों  से काटें। मांग ज्यादा होने पर फल की तुड़ाई प्रत्येक 3-4 दिन में करनी चाहिए।

बीज उत्पादन

लौकी की अन्य किस्मों से 800 मीटर का फासला रखें। खेत में से बीमार पौधों को निकाल दें। बीज उत्पादन के लिए, की तुड़ाई पूरी तरह पकने पर करें। सही बीज लेने के लिए खेत की तीन बार जांच आवश्यक है। तुड़ाई के बाद, फलों के सूखाएं और फिर बीज निकाल लें।