हिमाचल प्रदेश में मक्का (रबी) फसल की जानकारीफ

आम जानकारी

मक्का दूसरे स्तर की फसल है, जो अनाज और चारा दोनों के लिए प्रयोग की जाती है। मक्की को ‘अनाज की रानी’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि बाकी फसलों के मुकाबले इसकी पैदावार सब से ज्यादा है। इससे भोजन पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं जैसे कि स्टार्च, कॉर्न फ्लैक्स और गुलूकोज़ आदि। इसे पोल्टरी में भी पशुओं के चारे के लिए प्रयोग किया जाता है। मक्की की फसल हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है क्योंकि इसे ज्यादा उपजाऊ और रसायनों की जरूरत नहीं होती । इसके इलावा यह पकने के लिए 3 महीने का समय लेती है जो कि धान की फसल के मुकाबले बहुत कम है, क्योंकि धान की फसल पकने के लिए 145 दिनों का समय लेती है।
 
पी. ए. यू., लुधियाना के वाइस चांसलर के अनुसार, मक्की की फसल उगाने से किसान अपनी खराब मिट्टी वाली ज़मीन को भी बचा सकते हैं, धान के मुकाबले 90 प्रतिशत पानी और 70 प्रतिशत उपजाऊ शक्ति को बरकरार रखा जा सकता है। यह गेहूं और धान के मुकाबले ज्यादा फायदे वाली फसल है। इस फसल को कच्चे माल के तौर पर उद्योगिक उत्पादों जैसे कि तेल, स्टार्च, शराब आदि में प्रयोग किया जाता है। मक्की की फसल उगाने वाले मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पंजाब हैं। दक्षिण में आंध्रा प्रदेश और कर्नाटक मुख्य मक्की उत्पादक राज्य हैं।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

मक्की की फसल लगाने के लिए उपजाऊ, अच्छे जल निकास वाली, मैरा और लाल मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की उचित मात्रा हो, जरूरी है मक्की रेतली से लेकर भारी हर तरह की ज़मीनों में उगाई जा सकती हैं समतल ज़मीनें मक्की के लिए बहुत अनुकूल हैं, पर कईं पहाड़ी इलाकों में भी यह फसल उगाई जाती है। अधिक पैदावार लेने के लिए मिट्टी में जैविक तत्वों की अधिक मात्रा, पी एच 5.5-7.5 और अधिक पानी रोककर रखने में सक्षम होनी चाहिए। बहुत ज्यादा भारी ज़मीनें भी इस फसल के लिए अच्छी नहीं मानी जाती।
 
खुराकी तत्वों की कमी पता करने के लिए मिट्टी की जांच करवाना आवश्यक है।
 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Renuka (DKH-9705) : यह हाइब्रिड किस्म है। यह किस्म अधिक उपज वाली है जो कि बैक्टीरिया के प्रतिरोधी है। यह दरमियाने लंबे कद की किस्म है जिसके पत्ते चौड़े और गहरे हरे रंग के और दाने लंबे होते हैं। यह किस्म झुलस रोग के प्रतिरोधी है। यह 91-94 दिनों में तैयार हो जाती है और 23-24 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है।
 
Girija Compost(L-118) : यह किस्म निचले और मध्यम क्षेत्रों और अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह समय पर पकने वाली किस्म है। इसके पौधे का कद मध्यम, मोटा तना, गहरे हरे रंग के पत्ते और पौधा सीधा होता है। इसके दाने संतरी रंग के और सख्त होते हैं। यह किस्म 110 दिनों में तैयार हो जाती है और 16-17 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है। 
 
Sartaaj : इसका पौधा मध्यम लंबा और पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। इस किस्म का तना मोटा और दाने मध्यम आकार के सख्त होते हैं। यह किस्म बैक्टीरियल रोग के प्रतिरोधक और सूखे के सामान्य प्रतिरोधक है। इसे सिरमौर, ऊना, बिलासपुर और हमीरपुर क्षेत्रों में और निचले, दरमियाने क्षेत्रों जैसे कुल्लू, मंडी, सोलन, चंबा और शिमला में उगाया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 19-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Early Compost : यह किस्म 750-1450 मीटर की ऊंचाई में स्थित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसका तना मध्यम लंबा और मोटा होता है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों जैसे कुल्लू, बिलासपुर, मंडी और सूखे क्षेत्रों जैसे चंबा, कांगड़ा, सोलन क्षेत्रों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसके दाने संतरी रंग के और सख्त होते हैं। यह किस्म 105-110 दिनों में तैयार हो जाती है और 13.75 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है।
 
Pavarti : यह किस्म निचले और दरमियाने क्षेत्रों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म गलन रोग की प्रतिरोधक है। इसका पौधा मध्यम कद का होता है। इसके दाने संतरी पीले रंग के और सख्त होते हैं। यह किस्म 110-115 दिनों में पक जाती है और 14-15 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है।
 
Navin Compost : यह किस्म जल्दी पकने वाली, मध्यम लंबी, मोटा तना और दाने पीले रंग के और सख्त होते हैं। यह किस्म मक्की-तोरिया-गेहूं के अंतरफसली के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 14-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Pop Corn : यह किस्म पी ए यू द्वारा जारी की गई है और बहुत महंगी बिकती है। यह किस्म 100-105 दिनों में तैयार हो जाती है और 8 क्विंटल प्रति एकड़ औसतन पैदावार देती है। 
इन किस्मों के इलावा नीचे वर्णशंकर किस्में दी गई हैं जिनकी विभिन्न क्षेत्रों में उगाने के लिए सिफारिश की गई है।
 
Kanchan-517 :  यह किस्म कांगड़ा, कुल्लू, सोलन और सिरमैर क्षेत्रों में मध्यम और अधिक बारिश वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। 
 
PSCL-3438 : यह किस्म बिलासपुर, ऊना और हमीरपुर के निचले क्षेत्रों, जहां कम बारिश होती है, में उगाई जाती है।
 
PSCL-4640 : कुल्लू, सोलन, शिमला और चंबा क्षेत्र जो 1200 मीटर ऊंचाई के दरमियाने क्षेत्रों में स्थित हैं, में उगाई जाती है।
 
Kanchan-101 : निचली पहाड़ी क्षेत्रों और दरमियाने क्षेत्रों के निचली पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाती है।
 
Him-95 : यह हाइब्रिड किस्म है जो कि दरमियाने समय में पकने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 28.75 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
9572-A : यह किस्म पत्तों के झुलस रोग के काफी हद तक प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 30.1 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Hybrid Ganga Safed 2 : यह सफेद बीजों वाली किस्म है। इसके पौधे की लंबाई 170-200 सैं.मी. होती है। यह किस्म 115-120 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके बीज में 10 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
 
Hybrid Ganga 5 : यह पीले बीज वाली किस्म है। इसके पौधे की लंबाई 170-180 सैं.मी. होती है। यह किस्म 100-115 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके बीज में 10-11 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है।
 
Sankul Ageti 76 : यह पीले बीज वाली किस्म है। इसके पौधे की लंबाई 150-185 सैं.मी. होती है। यह किस्म 85-95 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसकी खेती बारानी क्षेत्रों में की जाती है।
 
Sankul Navjot (J-684) : यह जल्दी पकने वाली पीले बीज वाली किस्म है। यह किस्म 85 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसकी खेती बारानी क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती बारानी क्षेत्रों में करने से अच्छी अपज देती है।
 
P.E.H.M.-2 : यह जल्दी पकने वाली संकर मक्की की किस्म है। यह किस्म 80-90 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 18-19 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पीले बीज की किस्म है। इसके 100 बीजों का भार 22 ग्राम होता है।
 
Pratap Hybrid Maize 1: यह जल्दी पकने वाली किस्म 80-85 दिनों में पक जाती है । यह सफेद बीज वाली किस्म है। इसके 100 बीजों का भार 23-24 ग्राम होता है। इसकी औसतन पैदावार 12-14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pratap Maize 3 : यह किस्म 80-85 दिनों में पकती है और इसकी औसतन पैदावार 10-11 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह सफेद बीज वाली किस्म है, जिनका 22-23 ग्राम भार प्रति 100 बीज होता है। यह किस्म कम बारिश वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है।
 
Pratap Maize 5 : यह मध्यम पकने वाली किस्म है जो कि 90-95 दिनों में पक जाती है। यह संकुल मक्की की किस्म है। जो कि औसतन पैदावार 14-16 क्विंटल प्रति एकड़ देती है। यह सफेद बीजों वाली किस्म है इसका 25 ग्राम भार प्रति 100 बीज होता है।
 
Pratap QPM Hybrid 1: यह मध्यम कद की किस्म (195-230 सैं.मी) है जो कि 85-90 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 24-25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके बीज में उच्च गुणवत्ता वाली प्रोटीन (8.87 प्रतिशत), लाईसिन (2.50 प्रतिशत) और ट्रिपटोफन (0.66 प्रतिशत) पाया जाता है। 
 
PMH 1: यह किस्म सभी राज्यों में सिंचित स्थितियों में खरीफ/बसंत और गर्मियों के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह लम्बे समय की किस्म है जो कि 95 दिनों में पकती है। इसका तना मजबूत और जामुनी रंग का होता है। इसकी औसतन उपज 21 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prabhat : यह लंबे समय की किस्म है। यह किस्म सभी राज्यों में सिंचित स्थितियों में खरीफ/बसंत और गर्मियों के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसका पौधा मध्यम कद का, मध्यम मोटा तना और गर्दन तोड़ के प्रतिरोधी है। यह किस्म 95 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kesri : यह मध्यम समय की किस्म है, जो 85 दिनों में पकती है। इसके दाने संतरी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PMH-2 : यह कम समय की किस्म है, जो 83 दिनों में पकती है। इसकी खेती बारानी क्षेत्रों के साथ साथ सिंचित क्षेत्रों में की जा सकती है। यह हाइब्रिड किस्म सूखे को सहनेयोग्य है। इसकी बलियां मध्यम लंबी और संतरी रंग के दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 16.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
JH 3459 : यह कम समय की किस्म है, जो 84 दिनों में पकती है। यह सूखे और गर्दन तोड़ को सहनेयोग्य है। इसके दाने संतरी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 17.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prakash : यह सूखे को सहने योग्य, जल्दी पकने वाली (82 दिनों) हाइब्रिड किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 15-17 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Megha : यह कम समय की किस्म है। 82 दिनों में पक जाती है। इसके पीले संतरी रंग के दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pratap Makka Chari 6 : यह किस्म MPUA&T, उदयपुर द्वारा विकसित की गई है। यह मध्यम लंबी किस्म है। इसका तना मजबूत, मध्यम मोटा और गर्दन तोड़ के प्रतिरोधी है। यह 90-95 दिनों में पक जाती है। इसके हरे चारे की पैदावार 187-200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PEEHM 5 : यह मक्का की अगेती हाइब्रिड किस्म है। यह ज्यादा तापमान को सहनेयोग्य है। यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में बिजाई के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HQPM-1 Hybrid : यह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई है। इसकी औसतन पैदावार 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पत्तों के झुलस रोग जैसे एम एल बी और टी एल बी की प्रतिरोधक किस्म है।
 

ज़मीन की तैयारी

फसल के लिए प्रयोग किया जाने वाला खेत नदीनों और पिछली फसल से मुक्त होना चाहिए। मिट्टी को नर्म करने के लिए 2 से 3 बार जोताई करें। खेत में 8-10 टन प्रति एकड़ गाय का गला हुआ गोबर और 10 पैकेट एज़ोसपीरीलम के डालें। खेत में 45-50 सैं.मी. के फासले पर खालियां और मेंड़ बनाएं।

बिजाई

बिजाई का समय
ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों के लिए : 15 मई से जून का पहला सप्ताह
मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों के लिए : 20 मई से 15 जून
निचली पहाड़ी क्षेत्रों के लिए : 15 जून से 30 जून
 
फासला
अधिक पैदावार लेने के लिए स्त्रोतों का सही प्रयोग और पौधों में सही फासला होना जरूरी है।
1) खरीफ की मक्की के लिए : 60X20 सैं.मी.
2) स्वीट कॉर्न : 60x20 सैं.मी.
3) बेबी कॉर्न :  60x20 सैं.मी. या 60X15 सैं.मी.
4) पॉप कॉर्न : 50x15 सैं.मी.
5) चारा : 30x10 सैं.मी.

बीज की गहराई
बीजों को 3-4 सैं.मी. गहराई पर बोयें। स्वीट कॉर्न की बिजाई 2.5 सैं.मी. गहराई पर करें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई हाथों से गड्ढा खोदकर या आधुनिक तरीके से ट्रैक्टर और सीड ड्रिल की सहायता से मेंड़ बनाकर की जा सकती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
बीज का उद्देश्य, बीज का आकार, मौसम, पौधे की किस्म, बिजाई का तरीका आदि बीज की मात्रा को प्रभावित करते हैं।
1) खरीफ की मक्की के लिए : 8-10 किलो प्रति एकड़
2) स्वीट कॉर्न : 8 किलो प्रति एकड़
3) बेबी कॉर्न :16 किलो प्रति एकड़
4) पॉप कॉर्न : 7 किलो प्रति एकड़
5) चारा : 20 किलो प्रति एकड़
 
अंतरफसली : मटर और मक्की की फसल को मिलाकर खेती की जा सकती है। इसके लिए मक्की के साथ एक पंक्ति मटर लगाएं। पतझड़ के मौसम में मक्की को गन्ने के साथ भी उगाया जा सकता है। गन्ने की दो पंक्तियों के बाद एक पंक्ति मक्की की लगाएं।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी की बीमारियों और कीड़ों से बचाने के लिए बीज का उपचार करें। सफेद जंग से बीज को बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, बीज को अज़ोसपीरीलम 600 ग्राम + चावलों के चूरे के साथ उपचार करें। उपचार के बाद बीज को 15-20 मिनटों के लिए छांव में सुखाएं। एज़ोसपीरिलम हवा में मौजूद नाइट्रोजन को मिट्टी में जमा करने में सहायक है।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी/कीटनाशी का प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Imidacloprid 70WS 5ml
Captan 2.5gm
Carbendazim + Captan (1:1) 3gm
 
 

 

 
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP MOP
High rainfall areas 108 156 27
Less rainfall areas 82 117 21

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
High rainfall areas 50 25 16
Less rainfall areas 37.7 19 12.6

 

खेत की तैयारी के समय 4-5 क्विंटल रूड़ी की खाद प्रति एकड़ में डालें। सुपर फासफेट 156 किलो, यूरिया 108 किलो और पोटाश 16 किलो (यदि मिट्टी में कमी दिखे) प्रति एकड़ डालें। एस एस पी और एम ओ पी की पूरी मात्रा और यूरिया का तीसरा हिस्सा बिजाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन पौधों के घुटनों तक होने और गुच्छे बनने से पहले डालें।
 
मक्की की फसल में जिंक और मैग्नीश्यिम की कमी आम देखने को मिलती है और इस कमी को पूरा करने के लिए Znso4@8-10 किलो प्रति एकड़ बुनियादी खुराक के तौर पर डालें। जिंक और मैग्नीशियम के साथ-साथ लोहे की कमी भी देखने को मिलती है जिससे सारा पौधा पीला पड़ जाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए 25 किलो प्रति एकड़ सूक्ष्म तत्वों को 25 किलो रेत में मिलाकर बिजाई के बाद डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

मक्की की फसल में नदीन गंभीर समस्या होते हैं, विशेषकर खरीफ मॉनसून के मौसम में नदीन मक्की से पोषक तत्व लेकर उपज को 35 प्रतिशत तक कम कर देते हैं इसलिए अधिक उपज प्राप्त करने के लिए समय से नदीनों की रोकथाम आवश्यक होती है। मक्की की फसल में कम से कम दो गोडाई करें। पहली गोडाई बिजाई से 20-25 दिन बाद और दूसरी गोडाई 40-45 दिनों के बाद, पर ज्यादा होने की सूरत में एट्राज़िन 500 ग्राम प्रति 150 लीटर पानी से स्प्रे करें। गोडाई करने के बाद मिट्टी के ऊपर खाद की पतली परत बिछा दें और जड़ों में मिट्टी लगाएं।

सिंचाई

बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। मिट्टी की किस्म के आधार पर तीसरे या चौथे दिन दोबारा सिंचाई करें। बारिश के मौसम में, यदि बारिश पर्याप्त हो रही है, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। फसल के शुरूआती समय में पानी ना खड़ने दें और अच्छे जल निकास का प्रबंध करें। फसल को बीजने से 20-30 दिन तक कम पानी दें और बाद में सप्ताह में एक बार सिंचाई करें।
जब पौधे घुटने के कद के,फूल निकलने के समय और दाने बनने के समय सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है। यदि इस समय पानी की कमी हो तो पैदावार बहुत कम हो जाती है। यदि पानी की कमी हो तो एक मेंड़ छोड़कर पानी दें। इससे पानी भी बचता है।
 

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
टांडे सूखना : इससे तना ज़मीन के साथ फूल कर भूरे रंग का जल्दी टूटने वाला और बहुत ही गंदी दुर्गन्ध देता है।
 
इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना होने दें और जल निकास की तरफ ध्यान दें। इसके इलावा फसल के फूल निकलने से पहले ब्लीचिंग पाउडर 33 प्रतिशत कलोरीन 2-3   किलो प्रति एकड़ में डालें।
 
टरसीकम लीफ ब्लाईट : यह बीमारी उत्तरी भारत, उत्तर पूर्वी पहाड़ियां और प्रायद्विपीय क्षेत्र में ज्यादा आती है और एक्सरोहाइलम टरसीकम द्वारा फैलती है। यदि यह बीमारी बाल निकलने के अवस्था में आ जाए तो आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। शुरू में पत्तों के ऊपर छोटे फूले हुए धब्बे दिखाई देते हैं और नीचे के पत्तों को पहले नुकसान होता है और बाद में सारा बूटा जला हुआ दिखाई देता है। यदि इसे सही समय पर ना रोका जाये तो यह 70  प्रतिशत तक पैदावार कम कर सकता है।
 
इसे रोकने के लिए बीमारी के शुरूआती समय में मैनकोज़ेब या ज़ाइनैब 2-4 ग्राम प्रति लीटर 10 दिनों के फासले पर स्प्रे करें।
 
पत्ता झुलस रोग : यह बीमारी गर्म ऊष्ण, उप ऊष्ण से लेकर ठंडे शीतवण वातावरण में आती है और बाइपोलैरिस मैडिस द्वारा की जाती है। शुरू में जख्म छोटे और हीरे के आकार के होते हैं और बाद में लंबे हो जाते हैं। जख्म आपस में मिलकर पूरे पत्ते को जला सकते हैं।
 
डायाथेन एम 45 या ज़ाइनेब 2.0-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के फासले पर 2-4 स्प्रे करने से इस बीमारी को शुरूआती समय में ही रोका जा सकता है।
 
भूरी जालेदार फफूंदी : इस बीमारी की धारियां नीचे के पत्तों से शुरू होती हैं। यह पीले रंग की और 3-7 मि.मी. चौड़ी होती हैं। जो पत्तों की नाड़ियों तक पहुंच जाती हैं। यह बाद में लाल और जामुनी रंग की हो जाती हैं। धारियों के और बढ़ने से पत्तों के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बीज को मैटालैक्सीयल 6 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें और मैटालैक्सीयल 1 ग्राम प्रति लीटर या मैटालैक्सीयल +मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर से स्प्रे करें।
 
फूलों के बाद टांडों का गलना : यह एक बहुत ही नुकसानदायक बीमारी है जो कि बहुत सारे रोगाणुओं के द्वारा इकट्ठे मिलकर की जाती है। यह जड़ों, शिखरों और तनों के उस हिस्से पर जहां दो गांठे मिलती हैं, पर नुकसान करती है।
 
इस बीमारी के ज्यादा आने की सूरत में पोटाश्यिम खाद का प्रयोग कम करें। फसलों को बदल बदल कर लगाएं और फूलों के खिलने के समय पानी की कमी ना होने दें। खालियों में टराइकोडरमा 10 ग्राम प्रति किलो रूड़ी की खाद में बिजाई के 10 दिन पहले डालें।
 
पाइथीयम : इससे पौधे की निचली गांठें नर्म और भूरी हो जाती हैं और पौधा गिर जाता है। प्रभावित हुई गांठे मुड़ जाती हैं। 
 
बिजाई से पहले पिछली फसल के बचे कुचे को नष्ट करके खेत को साफ करें। पौधों की सही संख्या रखें और मिट्टी में कप्तान 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर गांठों के साथ डालें।
 
तना छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तना छेदक : चिलो पार्टीलस, सामान्य तौर पर इसे तना छेदक के रूप में जाना जाता है।यह कीट सारी मॉनसून ऋतु में मौजूद रहता है। यह कीट पूरे देश में खतरनाक माना जाता है। यह कीट पौधे उगने से 10-25 रातों के बाद पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है। कीट गोभ में दाखिल होकर पत्तों को नष्ट करता है और इसके कारण शाख में छेद बन जाते हैं। यह कीट पीले भूरे रंग का होता है, जिसका सिर भूरे रंग का होता है।
स्टेम बोरर के लिए, अंडे परजीवीय ट्राइकोग्राम चिलोनीस @ 1,00,000 / एकड़ में एक सप्ताह के फासले पर तीन बार छोड़ने से इस कीट को रोका जा सकता है। तीसरी बार कोटेशिया फलैवाईपस 2000 प्रति एकड़ से छोड़ें।
 
फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 4 किलो प्रति एकड़ या कार्बरिल 4 प्रतिशत जी 1 किलो प्रति 50 किलो मात्रा को रेत में मिलाकर पत्ते की गोभ में बिजाई के 20 दिन बाद डालें या कीटनाशक कार्बरिल 50 डब्लयु पी 1 किलो प्रति एकड़ बिजाई के 20 दिन बाद या डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। कलोरोपाइरीफॉस 1-1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे पौधे उगने के 10-12 दिनों के बाद स्प्रे करने से भी कीड़ों को रोका जा सकता है।
 
गुलाबी छेदक
गुलाबी छेदक : यह कीट भारत के प्रायद्विपीय क्षेत्र में सर्दी ऋतु में नुकसान करता है। यह कीट मक्की की जड़ों को छोड़कर बाकी सभी हिस्सों को प्रभावित करता है। यह पौधे के तने पर गोल और एस आकार की सुरंग बनाकर उन्हें मल से भर देता है और सतह पर छेद कर देता है। ज्यादा नुकसान होने पर तना टूट भी जाता है। 
 
इसे रोकने के लिए कार्बोफ्यूरॉन 5 प्रतिशत डब्लयु/डब्लयु 2.5 ग्राम प्रति किलो से बीज का उपचार करें। इसके इलावा 4 टराइकोकार्ड प्रति एकड़ अंकुरन से 10 दिन बाद डालने से भी नुकसान से बचा जा सकता है। रोशनी और फीरोमोन कार्ड भी पतंगे को पकड़ने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
 
तना छेदक
कॉर्न वार्म : यह सुंडी रेशों और दानों को खाती है। सुंडी का रंग हरे से भूरा हो सकता है। सुंडी के शरीर पर गहरी भूरे रंग की धारियां होती हैं, जो आगे चलकर सफेद हो जाती हैं।
 
एक एकड़ में 5 फीरोमोन कार्ड लगाएं। इसे रोकने के लिए कार्बरिल 10D 10 किलो या मेलाथियोन 5S 10 किलो गच्छे निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन डालें।
 
शाख का कीट
शाख का कीट : यह कीट पत्ते के अंदर अंडे देता है जो कि सफेद रंग के माम जैसे पदार्थ से ढके होते हैं। इससे पौधे बीमार और पीले पड़ जाते हैं। पत्ते शिखर से नीचे की ओर सूखते हैं और बीच वाली नाड़ी अंडों के कारण लाल रंग की हो जाती है और सूख जाती है।
 
इसे रोकने के लिए डाईमैथोएट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
दीमक
दीमक : यह कीट बहुत नुकसानदायक है और मक्की वाले सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसे रोकने के लिए फिप्रोनिल 8  किलो प्रति एकड़ डालें और हल्की सिंचाई करें।
 
यदि दीमक का हमला अलग अलग हिस्सों में हो तो फिप्रोनिल के 2-3 किलो कण प्रति पौधा डालें खेत को साफ सुथरा रखें।
 
शाख की मक्खी
शाख की मक्खी : यह दक्षिण भारत की मुख्य मक्खी है और कईं बार गर्मी और बसंत ऋतु में उत्तरी भारत में भी पाई जाती है। यह छोटे पौधों पर हमला करती है और उन्हें सूखा देती है।
 
इसे रोकने के लिए कटाई के बाद खेत की जोताई करें और पिछली फसल के बचे कुचे को साफ करें। बीज को इमीडाक्लोप्रिड 6  मि.ली. प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें। इससे मक्खी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है। बिजाई के समय मिट्टी में फोरेट 10 प्रतिशत सी जी 5 किलो प्रति एकड़ डालें। इसके इलावा डाईमैथोएट 30 प्रतिशत ई सी 400 मि.ली. प्रति एकड़ या मिथाइल डैमीटोन 25 प्रतिशत ई सी 450 मि.ली. प्रति एकड़ से स्प्रे करें।
 

कमी और इसका इलाज

जिंक की कमी
यह ज्यादातर अधिक पैदावार वाली किस्मों का प्रयोग करने वाले इलाकों में पाई जाती है। इससे पौधे के शिखर से हर ओर दूसरे या तीसरे पत्ते की नाड़ियां सफेद पीले और लाल रंग की दिखती हैं।
जिंक की कमी को रोकने के लिए बिजाई के समय जिंक सल्फेट 10 किलो प्रति एकड़ डालें। यदि खड़ी फसल में जिंक की कमी दिखे तो जिंक सल्फेट और सूखी मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर पंक्तियों में डालें।
 
मैग्नीश्यिम की कमी
यह मक्की की फसल में आम पाई जाती है। यह ज्यादातर पत्तों पर देखी जा सकती है। निचले पत्ते किनारे और नाड़ियों के बीच में पीले दिखाई देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मैगनीशियम सल्फेट 2 किलो की प्रति एकड़ में फोलियर स्प्रे करें।
 
लोहे की कमी
इस कमी से पूरा पौधा पीला दिखाई देता है। इस कमी को रोकने के लिए फैरस सल्फेट 1 किलो को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

छल्लियों के बाहरी छिल्के हरे से सफेद रंग के होने पर फसल की कटाई करें। तने के सूखने और दानों में पानी की मात्रा 17-20 प्रतिशत होने की सूरत में कटाई करना इसके लिए अनुकूल समय है। प्रयोग की जाने वाली जगह और यंत्र साफ, सूखे और रोगाणुओं से मुक्त होने चाहिए।
 
स्वीट कॉर्न की कटाई : जब फसल पकने वाली हो जाये रोज़ कुछ बालियों की जांच करें, ताकि कटाई का सही समय पता किया जा सके। किस्म के अनुसार बालियों का आकार पूरा विकसित होने पर, छिलके के मजबूत होने और कुछ हद तक बाल सूखने पर कटाई करें।  कटाई में देरी होने से मिठास कम हो जाती है। कटाई हाथों और मशीनों से रात के समय और सुबह करनी चाहिए।
 
बेबी कॉर्न : छल्लियों के निकलने के 45-50 दिनों के बाद जब रेशे 1-2 सैं.मी. के होने पर कटाई करें। कटाई सुबह के समय करें जब तापमान कम और नमी ज्यादा हो । बेबी कॉर्न की तुड़ाई 3 दिनों में एक बार करें और आमतौर पर प्रयोग होने वाली किस्म के आधार पर 7-8 तुड़ाई की जाती है।
 
पॉप कॉर्न : छल्लियों को ज्यादा से ज्यादा समय के लिए पौधों के ऊपर ही रहने दें। मौसम के अनुसार इन्हें खेत में ही रहने दें, जब तक छिल्के पूरी तरह से सूख ना जायें।
 

कटाई के बाद

स्वीट कॉर्न को जल्दी से जल्दी खेत में से पैकिंग वाली जगह पर लेके जायें ताकि उसे आकार के हिसाब से अलग करके , पैक और ठंडा किया जा सके। इसे आमतौर पर लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता है, जिनमें 4-6 दर्जन छल्लियां बक्से और छल्लियों के आकार के अनुसार आ सकें।