सूरजमुखी की फसल

आम जानकारी

सूरजमुखी का नाम "हैलीएन्थस" है जो दो शब्दों से बना हुआ है। 'हैलीअस' मतलब 'सूरज' और 'एन्थस' मतलब 'फूल'। फूल, सूरज की दिशा होने में मुड़ जाने के कारण इसे सूरजमुखी कहा जाता है। यह देश की महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है। इसका तेल हल्के रंग, अच्छे स्वाद और इसमें उच्च मात्रा में लिनोलिक एसिड होता है, जो कि दिल के मरीज़ों के लिए अच्छा होता है। सूरजमुखी के बीज में खाने योग्य तेल की मात्रा 45-50 प्रतिशत होती है ।

जलवायु

  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C
  • Season

    Rainfall

    500-700mm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-37°C
  • Season

    Temperature

    20-25°C

मिट्टी

इसे कई प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। उपजाऊ और अच्छे निकास वाली भूमि में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। यह क्षारीय मिट्टी को सहन कर सकती है। तेजाबी और जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। मिट्टी की पी एच 6.5-8 के लगभग होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

EC-68413 : यह किस्म गर्मियों के मौसम में बिजाई के लिए अनुकूल है।

EC-68415 : यह किस्म बसंत के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह 100-110 दिनों में पक जाती है। इसके पौधे का कद 150-200 सैं.मी. होता है। इसके बीज की औसतन पैदावार 333-416 किलो प्रति एकड़ होती है। इसके बीज में तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
मध्यम कद वाली संकर किस्में

MSFH 8 : यह किस्म 92-94 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के पौधे का कद 170-180 सैं.मी. होता है। इसमें तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है। इसके 100 दानों का औसतन भार 4-5 ग्राम होता है। इसकी औसतन पैदावार 11-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
MSFH 17 : यह किस्म 85-88 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के पौधे का कद 200-210 सैं.मी. होता है। इसमें तेल की मात्रा 40-41 प्रतिशत होती है।  इसके 100 दानों का औसतन भार 6-8 ग्राम होता है। इसकी औसतन पैदावार 11-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

लंबे कद की किस्में
 
EC 68415 : यह किस्म 100-110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के पौधे का कद 150-200 सैं.मी. होता है। इसके बीजों की औसतन पैदावार 3.5-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके बीज में तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत होती है।

Ramsan Record.
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Jwalamukhi : यह दरमियाने कद की हाइब्रिड किस्म है। पौधे का कद 170 सैं.मी. होता है। फसल 120 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 7.3 क्विंटल प्रति एकड़ है। तेल की मात्रा 42 प्रतिशत है।

GKSFH 2002 : यह दरमियाने कद की हाइब्रिड किस्म है। फसल 115 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है। तेल की मात्रा 42.5 प्रतिशत है।
 
SH 3322: इस किस्म के पौधे का कद 160 सैं.मी. होता है। यह 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8.3 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 43 प्रतिशत होती है।
 
PSFH 118 : यह कम समय की हाइब्रिड किस्म है, जिसके पौधे का कद 155 सैं.मी. होता है। यह किस्म 98 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हे। इसकी औसतन पैदावार 7.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें तेल की मात्रा 40.5 प्रतिशत होती है।
 
PSH 569 : पौधे का कद 162 सै.मी. होता है। फसल 98 दिनों में पक जाती है। यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए अनुकूल है। इसकी औसत पैदावार 7.4 क्विंटल प्रति एकड़ है और 36.3 प्रतिशत तेल होता है।
 
PSH 996 : यह दरमियानी ऊंची 141 सै.मी. हाइब्रिड किस्म है। फसल 96 दिनों में पक जाती है। इसकी औसत पैदावार 7.8 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसके बीज में 35.8 प्रतिशत तेल होता है। यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए अनुकूल है। 

Variety : DRSF 108, PAC 1091, PAC-47, PAC-36, Sungene-85, Morden 
 
Hybrids : KBSH 44, APSH-11, MSFH-10, BSH-1, KBSH-1, TNAU-SUF-7, MSFH-8, MSFH-10, MLSFH-17, DRSH-1, Pro.Sun 09.
 

ज़मीन की तैयारी

नर्म बैड बनाने के लिए खेत को दो-तीन बार जोताई करके समतल करें। 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 4-5 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, अच्छे अंकुरन के लिए बीजों को 24 घंटों के लिए पानी में डालें। फिर छांव में सुखाएं उसके बाद थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे बीज को मिट्टी के कीड़ों और बीमारियों से बचाया जा सकता है। फसल को सफेद धब्बों के रोग से बचाने के लिए मैटालैक्सिल 6 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इमीडाक्लोपरिड 5-6 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Thiram 3gm
Metalaxyl 6gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
35 156 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN
PHOSPHORUS POTASH
16 25 -

 

संयुक्त किस्मों के लिए, नाइट्रोजन 16 किलो (35 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (एस एस पी 156 किलो) मिट्टी में मिलायें और हाइब्रिड किस्मों के लिए नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो) और फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के समय डालें। खादों की सही मात्रा के लिए मिट्टी की जांच करें और खुराकों को इसके आधार पर डालें।
 
यदि फसल कमज़ोर हो तो बीज के अंकुरन के 30 दिनों बाद नाइट्रोजन 8 किलो प्रति एकड़ में डालें।
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

फसल के पहले 45 दिनों के दौरान खेत को नदीन मुक्त रखें और फसल की गंभीर अवस्थाओं पर सिंचाई करें। बिजाई के 2-3 सप्ताह बाद पहली गोडाई करें और उसके 3 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें। रासायनिक तरीके से नदीनों को रोकने के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर नदीनों के अंकुरण से पहले बिजाई के 2-3 दिन बाद स्प्रे करें।
 
गर्दन तोड़ से फसल को बचाने के लिए जब फसल 60-70 सैं.मी. लंबी हो जाये तो फूल निकलने से पहले मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया पूरी कर लें।
 

सिंचाई

फसल की अच्छी वृद्धि और उपज के लिए 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के 1 महीने बाद करें। जब फसल पर 50 प्रतिशत फूल निकल आयें, नर्म और सख्त दुधिया अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं। इस अवस्था पर पानी की कमी से उपज का काफी नुकसान हो सकता है। ज्यादा या दो लगातार सिंचाई ना करें क्यांकि इससे सूखा और जड़ गलन होने का हमला बढ़ सकता है।
 
मधु मक्खी बीज बनने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यदि मधु मक्खियां कम हो तो सुबह 8-11 समय 7-10 दिनों के अंतर पर हाथों से पॉलीनेशन करें। इसलिए हाथों को मलमल के कपड़े से ढक लें।
 

पौधे की देखभाल

तंबाकू सूण्डी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तंबाकू सूण्डी :  यह सूरजमुखी का प्रमुख कीड़ा है और अप्रैल मई महीने में हमला करता है ये पत्तों को अपना भोजन बनाते हैं।
 
सूण्डियों को पत्तों सहित नष्ट कर दें। यदि इसका हमला दिखे तो फ़िप्रोनिल एस सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। हमला बढ़ने की हालत में दो स्प्रे 10 दिनों के फासले पर करें या स्पिनोसैड 5 मि.ली. 10 ली. पानी या नुवान + इंडोएक्साकार्ब 1 मि.ली. 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
अमेरिकन सूण्डी
अमेरिकन सूण्डी : यह सूरजमुखी का प्रमुख कीड़ा है यह कीड़ा पौधों और दानों को खाता है। इससे फफूंद लगती है और फूल गल जाते हैं। इसकी सूण्डी हरे से भूरे रंग की होती है।
 
इसको रोकने के लिए 4 फेरोमोन कार्ड प्रति एकड़ लगाएं। यदि खतरा बढ़ जाये तो कार्बरिल 1 किलो या एसीफेट 800 ग्राम या कलोरोपाइरीफॉस 1 ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 
 
बालों वाली सूण्डी
बालों वाली सूण्डी : इसका लार्वा पत्ते को, ज्यादातर पत्ते की निचली सतह को अपना भोजन बनाते हैं। इसके हमले के कारण पौधा सूख जाता है। लार्वा पीले रंग का होता है और उसके काले रंग के बाल होते हैं।
 
सूण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट करा दें। यदि हमला दिखे तो फिप्रोनिल एस सी 2 मि.ली. प्रति ली. की स्प्रे करें। हमला बढ़ने पर 10 दिनों के फासले पर दो स्प्रे या स्पिनोसेड 5 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 
 
तेला
तेला : इसका हमला कली बनने के समय होता है। इससे पत्ते मुड़ जाते हैं और जले हुए नज़र आते हैं।
 
यदि 10-20 प्रतिशत बूटों के ऊपर रस चूसने वाले कीड़ों का हमला दिखे तो नीम सीड करनाल एक्सटरैक 50 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। 
 
कुंगी
  • बीमारियां और रोकथाम
कुंगी : यह बीमारी पैदावार का 20 प्रतिशत तक नुकसान करती है। 
 
इसकी रोकथाम के लिए, टराइडमॉर्फ @1 ग्राम या मैनकोज़ेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें या हैकज़ाकोनाज़ोल 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के फासले पर दो बार करें।
 
जड़ों का गलना
जड़ों का गलना : इस रोग वाले पौधे कमज़ोर हो जाते हैं और जल्दी पक जाते हैं और तने के ऊपर राख के रंग के धब्बे पड़ जाते हैं परागण के बाद, पौधा अचानक सूख जाता है। 
 
इसको रोकने के लिए, बिजाई के 30 दिन बाद टराईकोडरमा विराईड 1 किलो प्रति एकड़ और 20 किलो रूड़ी की खाद या रेत में मिलाकर डालें। इसके इलावा कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
तने का गलना
तने का गलना : इसके लक्षण बिजाई के 40 दिनों के अंदर देखे जाते हैं। इससे पौधा बीमार हो जाता है जो दूर से ही बीमार दिखता है। प्रभावित पौधे के नज़दीकी सतह पर सफेद रूई जैसी फंगस दिखाई देती है। बिजाई से पहले थीरम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
आल्टरनेरिया झुलस रोग
झुलस रोग : इस रोग से बीज और तेल की पैदावार कम हो जाती है। पहले नीचे के पत्तों के ऊपर गहरे भूरे और काले धब्बे पड़ जाते हैं जो कि बाद में ऊपर वाले पत्तों पर पहुंच जाते हैं। नुकसान बढ़ने पर यह धब्बे तने के ऊपर भी पहुंच जाते हैं। 
 
यदि इसका नुकसान दिखे तो मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे 10 दिन के अंतर पर 4 बार करें।
 
फूलों का गलना : शुरू में फूल के पिछले भाग में भूरे रंग रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में धब्बे बड़े गुद्देदार हो जाते हैं और बाद में सफेद फंगस से ढक जाते हैं, जो कि बाद में काले रंग की हो जाती है।
 
फूल निकलने के समय या फल बनने के शुरूआती समय पर इन्हें चोट लगने से बचाएं क्योंकि इससे इस बीमारी का हमला बढ़ जाता है। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

पत्तों के सूखने और फूलों का पिछला हिस्सा पीले रंग का  होने पर कटाई करें। कटाई में देरी ना करें क्योंकि इससे फसल गिर जाती है और दीमक का खतरा भी बढ़ जाता है।

कटाई के बाद

फूल तोड़ने के बाद, उन्हें 2-3 दिनों के लिए सुखाएं। सूखे हुए फूलों में से बीज आसानी से निकल जाते हैं। मुख्य भाग गहाई मशीन के साथ की जा सकती है। गहाई के बाद, बीज को भंडारण से पहले सुखाएं और उनमें नमी की मात्रा 9-10 प्रतिशत होनी चाहिए।