अनार की काश्त

आम जानकारी

अनार, भारत की व्यापारिक फसल है। इसका मूल स्थान परसिया है। यह कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम, फासफोरस, आयरन और विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है। अनार को ताजे फल के रूप में खाया जाता है इसका जूस भी ठंडा और ताज़गी भरा होता है।  जूस के साथ-साथ, अनार के प्रत्येक भाग की कुछ औषधीय विशेषताएं होती हैं। इसकी जड़ें और छिल्के का प्रयोग डायरिया, पेचिश और आंतड़ियों में कीड़े मारने के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियों को डाई तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता है। महाराष्ट्र, अनार का मुख्य उत्पादक राज्य है।  अन्य राज्य जैसे राजस्थान, कर्नाटक,  गुजरात, तामिलनाडू, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में अनार की खेती छोटे स्तर पर की जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    38-40°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है। अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए, इसे गहरी दोमट और जलोढ़ मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह दोमट और हल्की क्षारीय मिट्टी को भी सहनेयोग्य है। इसकी खेती हल्की मिट्टी में भी की जा सकती है। अनार की खेती के लिए, मध्यम और काली मिट्टी भी उपयुक्त होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kandhari: इसके फल बड़े आकार के होते हैं, पीले रंग का छिल्का और लाल रस होता है। जूस में टी एस एस की मात्रा 13-15 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.8 टन प्रति एकड़ होती है।
 
Seedless (Bedana): इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं। इसके फल मीठे, अधिक रसदार, और बीज नर्म होते हैं। इसके प्रत्येक फल का भार 200-250 ग्राम होता है।
 
Spin Dandan: इसके फल बड़े आकार के , भार लगभग 600-700 ग्राम, फल का रंग हल्का सफेद, अंदर से गहरा लाल और स्वाद में मीठा, बहुआयामी और फल में दरार पड़ने की संभावना मध्यम होती है।
 
Chawla: इसका फैलावदार वृक्ष, अप्रैल के आखिरी सप्ताह में पूरे फूल, फल का भार लगभग 105 ग्राम, आकार 53.1 ग 58.3 मि.मी., गुलाबी पीला रंग, पतला छिल्का, सख्त और मीठे बीज, उत्पादन 2.50 किलो प्रति वृक्ष होता है। फल सितंबर के पहले सप्ताह में पक जाते हैं।
 
Ganesh:  इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। छिल्का पीले रंग का और साथ में हल्के गुलाबी रंग का होता है। जूस में टी एस एस की मात्रा 13 से 16 प्रतिशत होती है। फल की उपज 6-7 टन प्रति एकड़ होती है। 
 
Bhagwa: यह पिछेती बिजाई की किस्म है। खाने और परिवहन के लिए उपयुक्त है, फलों में दरारें कम पड़ती हैं, फल का भार 200-300 ग्राम होता है, फल अधिक आकर्षित, संतरी रंग के नर्म और चमकदार होते हैं। यह किस्म मध्य अक्तूबर में पक जाती है।  इसके दाने गोल, लाल रंग के नर्म और मीठे होते हैं। घुलनशील पदार्थ 13 प्रतिशत और अम्लीय 0.61 प्रतिशत होती है और स्टोर करने की क्षमता अच्छी होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Jyothi: यह किस्म छोटे कद की और सदाबहार होती है। इसके दानों के भार के आधार पर 75 प्रतिशत जूस की औसतन उपज होती है। इसके जूस में टी एस एस की मात्रा 17 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 3.2 टन प्रति एकड़ होती है।
 
Mridula: इसके फल का छिल्का लाल रंग का होता है। इसके दानों का रंग भी गहरा लाल होता है। दानों के भार के आधार पर 78 प्रतिशत जूस होता है। जूस में टी एस एस की मात्रा 17-18 प्रतिशत होती है।
 
Ruby: इसके फल छोटे आकार के और लाल रंग के होते हैं। औसतन जूस 80 प्रतिशत और जूस में टी एस एस की मात्रा 15 प्रतिशत होती है।
 
Jodhpur Local:   इसके फल मध्यम आकार के और छिल्का सख्त होता है। इसके फल रसदार, मीठे और बीज काफी हद तक सख्त होते हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक ज़मीन की दो से तीन बार जोताई करें। ज़मीन को समतल और एक समान करने के लिए तवियों से जोताई करें।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई मुख्यत दिसंबर से जनवरी महीने में की जाती है।
 
फासला
उचित फासला मिट्टी की किस्म और जलवायु पर निर्भर करता है। अनार की रोपाई के लिए, यदि वर्गाकार प्रणाली अपनाई गई है तो 5 मी x 5 मी फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
रोपाई से एक महीना पहले बिजाई के लिए 60x60x60 सैं.मी. आकार के गड्ढे खोदें। गड्ढों को 15 दिनों तक धूप में खुला छोड़ें। उसके बाद 20 किलो रूड़ी की खाद और 1 किलो सुपर फास्फेट को मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को भरें। गड्ढे भरने के बाद पानी डालें ताकि मिट्टी अच्छे से नीचे बैठ जाये।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए रोपण विधि का प्रयोग किया जाता है।
अनार का प्रजनन एयर लेयरिंग विधि द्वारा किया जाता है। एयर लेयरिंग बारिश के मौसम के साथ साथ नवंबर-दिसंबर महीने में की जाती है। एयर लेयरिंग विधि के लिए, एक से दो वर्ष के स्वस्थ, पकी हुई टहनियां जिनकी लंबाई 45-60 सैं.मी. और मोटाई पैंसिल जितनी हों, चुनें।
 

बीज

बीज का उपचार
बिजाई से पहले, नए पौधों या कटिंग को 1000 पी पी एम के घोल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में डुबोयें।
 

अंतर-फसलें

शुरूआती दो से तीन वर्षों में अंतरफसली संभव है। अंतरफसली के तौर पर सब्जियों, फलीदार फसलें या हरी खाद वाली फसलें उगाई जा सकती हैं।

खाद

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

Age of plant

Well decomposed cow dung

(kg/plant)

CAN

(gm/tree)

SSP

(gm/tree)

MOP

(gm/tree)

1st year 10 500 600 250
2nd year 15 1000 750 500
3rd year 20 1500 1000 750
4th year 20 2000 1500 1000
5th year 20 2500 1500 1000

 

पहले वर्ष में गाय का गोबर 10 किलो प्रति पौधे में डालें। कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट 500 ग्राम, एस एस पी 600 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 250 ग्राम प्रति पौधे में रोपाई के समय डालें। गाय के गोबर, एस एस पी, म्यूरेट ऑफ पोटाश और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दिसंबर से जनवरी महीने में डालें। बाकी की नाइट्रोजन को दो भागों में बांटे। पहले भाग को, फलों के पहली बार विकसित होने के समय और दूसरे भाग को, फलों के दूसरी बार विकसित होने के 4-5 सप्ताह पहले डालें।

 

सिंचाई

रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। उसके बाद, रोपाई के बाद 3 दिन से 10-15 दिनों के अंतराल पर पानी दें।
 
बारिश के मौसम में, निकास का प्रबंध करें क्योंकि यह फसल जल जमाव के हालातों में खड़ी नहीं रह सकती। गर्मियों में 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और सर्दियों में इसे बढ़ाकर 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
 
अनियमित सिंचाई से फूलों के गिरने में वृद्धि हो सकती है। फलों के विकसित होने की अवस्था में पानी की कमी ना होने दें और पानी की कमी होने पर अत्याधिक पानी देने से फलों में दरारें पड़ जाती हैं और फल गिर जाता है। इसलिए फूल निकलने से लेकर तुड़ाई की अवस्था तक नियमित और पर्याप्त सिंचाई दें। तुपका सिंचाई से अनार अच्छे परिणाम देते हैं। तुपका सिंचाई से ना केवल पानी की बचत होती है बल्कि पानी की कम मात्रा में अच्छी उपज भी मिलती है।
 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए मलचिंग की जा सकती है। नदीनों की रोकथाम के साथ साथ मिट्टी में नमी  को संरक्षित करने में मदद करता है और और वाष्पीकरण हानि को भी कम करता है। 

कटाई और छंटाई

कटाई और छंटाई ताजी सेहतमंद टहनियों की वृद्धि करने में मदद करती है। बीमारी से और घनी शाखाओं को निकाल दें। यह पौधे के आकार को उचित बनाए रखता है।

पौधे की देखभाल

थ्रिप
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
थ्रिप्स : यदि थ्रिप्स का हमला दिखे तो फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 20 मि.ली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
फल की मक्खी
फल की मक्खी : यह फल के छिल्के पर अंडे देती है। उसके बाद वे फल के गुद्दे को खाती हैं। प्रभावित फल गल जाता और गिर जाता है।
 
खेत में सफाई रखें। फूल निकलने और फल के विकसित होने के समय कार्बरिल 50 डब्लयु पी 2-4 ग्राम या क्विनलफोस 25 ई सी 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
मिली बग
मिली बग : ये कीट वृक्षों पर रेंगने लगते हैं और फूलों को अपना भोजन बनाते हैं। यह शहद की बूंदों जैसा पदार्थ भी छोड़ते हैं जो बाद में काले रंग की फंगस में बदल जाता है।
एक निवारक उपाय के रूप में 25 सैं.मी चौड़ी पॉलीथीन पट्टी वृक्ष के तने के चारों तरफ बांधे। यह पौधों को कीटों से बचाकर रखते हैं ताकि वे अंडे ना दे सकें। बाग को साफ रखें। यदि इसका हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 25 डब्लयू जी 0.25 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 17 एस एल 0.35 मि.ली. या डाइमैथोएट 30 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। 

 

चेपा

चेपा : यदि चेपे का हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 25 डब्लयु जी 0.20 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 0.35 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

टहनी का छेदक कीट

टहनी का छेदक कीट : यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर या साइपरमैथरिन 60  मि.ली को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फल के धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
फल के धब्बे : यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
फल का गलना

फल गलन : फल गलन को रोकने के लिए स्ट्रैप्टोसाइकलिन 50 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। पहली स्प्रे के 15 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।

मुरझाना
सूखा : यदि इसका हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम को 5 लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित पौधे और पौधे के आस-पास बीमार पौधों पर छिड़कें।
 

फसल की कटाई

फूल निकलने के बाद, फल 5-6 महीनों में पक जाते हैं। जब फल हरे से हल्के पीले या लाल रंग का हो जाये, या फल पकना शुरू हो जाये तो यह तुड़ाई के लिए उपयुक्त समय होता है। तुड़ाई करने में देरी ना करें क्योंकि इससे फलों में दरारें आ जाती हैं जिससे पैदावार कम हो जाती है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद, फलों को एक सप्ताह के लिए छांव में स्टोर करके रखें। यह फल के छिल्के को सख्त होने में मदद करेगा ताकि एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में नुकसान कम हो। फलों को भार के अनुसान छांटे।