अखरोट के बारे में जानकारी

आम जानकारी

रोगिंग तीन बार किया जाना चाहिए पहली बानस्पतिक वृद्धि के समय, दूसरी फूल निकलने के समय और तीसरी फल निकलने के समय करनी चाहिए। करेले की अन्य किस्मों से 1000 मीटर का फासला रखें। खेत में से बीमार पौधों को निकाल दें। बीज उत्पादन के लिएए की तुड़ाई पूरी तरह पकने पर करें। सही बीज लेने के लिए खेत की तीन बार जांच आवश्यक है। तुड़ाई के बाद फलों को सूखाएं और फिर बीज निकाल लें।यह एक शीतोष्ण गिरी वाला फल है जो कि जगलाडीएसी परिवार से संबंधित है। इसे आमतौर पर अखरूट या अखरोट के नाम से जाना जाता है। चीन, यू एस ए, यूकरेन, मैक्सिको, टर्की और इरान मुख्य अखरोट उत्पादक देश हैं। भारत में, जम्मू और कश्मीर अखरोट के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। इसके अलावा इसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और अरूणाचल प्रदेश में भी उगाया जाता हैं हिमाचल प्रदेश में इसे उत्तर पश्चिमी हिमालय और 1200-2150 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है। अखरोट मुख्य तौर पर 4 श्रेणियों में उपलब्ध होते हैं। जैसे कि कागज़ी अखरोट, मध्यम अखरोट, सख्त अखरोट और पतले अखरोट। इसके कई  स्वास्थ्य लाभ भी हैं जैसे कि यह कैंसर को रोकने में मदद करता है, शूगर को नियंत्रित करता है, दिमाग को तेज करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    38-40°C
  • Season

    Rainfall

    80cm
  • Season

    Temperature

    38-40°C
  • Season

    Rainfall

    80cm

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों जैसे अच्छे निकास वाली गारी दोमट मिट्टी से चिकनी दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। अखरोट की खेती के लिए 6.0-7.5 पी एच अच्छी रहती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Gobind: यह मध्यम उपज देने वाला पौधा है। यह किन्नौर क्षेत्र में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह सितंबर के अंत में पक जाती है। इसके फल का आकार मध्यम होता है। गिरी अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। अच्छी भरी हुई गुठली होती है। इसका छिल्का कागज़ी होता है। गिरी को आसानी से निकाला जा सकता है।
 
Eureka: इसके फल मध्यम आकार के, आसानी से तोड़े जाने वाले होते हैं। इसकी गिरी हल्के भूरे रंग की, अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। इस किस्म से 50 प्रतिशत गिरी की उपज प्राप्त होती है। अच्छी गुठली होती है जो कि गिरी के साथ अच्छी भरी हुई होती है।
 
Placentia: इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। 48 प्रतिशत गिरियों की उपज प्राप्त होती है। इसकी गिरियां सफेद रंग की होती हैं। पौधे का आकार छोटा होता है। यह किस्म जल्दी पकने वाली होती है।
 
Wilson Wonder: इसके फल कुछ चपटे, अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। यह किस्म पतझड़ मौसम में पक जाती है।
 
Franquette: यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसकी गुठली हल्के भूरे रंग की होती है, अच्छी गुणवत्ता वाली होती है और छोटे से मध्यम आकार के फल होते हैं। यह 48 प्रतिशत गिरियों की उपज देती है। इसके वृक्ष का आकार छोटा होता है।
 
Pratap: यह कोटखाई क्षेत्र की चुनी गई किस्म है। इसके फल आयताकार होते हैं। फल का भार 24 ग्राम होता है। फल लंबा, साफ और हल्का सा आसमानी रंग का छिल्का होता है। अखरोट तोड़ने में थोड़ा कठोर होता है। इसका छिल्का हल्का पतला (16 मि.मी. मोटा) होता है। गिरी अच्छी (49.7 प्रतिशत) होती है। इसके पौधे का आकार बड़ा होता है। यह अधिक उपज देने वाली किस्म है।
 
Soldering Selection: फल का भार मध्यम (17 ग्राम) होता है। फल गोलाकार आकार का होता है। छिल्का मध्यम सख्त और चपटा होता है। गिरियों का रंग हल्का (40 प्रतिशत) होता है। गिरियों में 49 प्रतिशत वसा और प्रोटीन 21 प्रतिशत होता है। गिरियां अच्छी गुणवत्ता वाली और गिरियों का स्वाद अच्छा होता है। पौधे की वृद्धि अच्छी होती है। यह मध्यम उपज देने वाली किस्म है।
 
Kotkhai Selection 1: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसके फल का आकार मध्यम और भार 15.4 ग्राम होता है। छिल्का चपटा और पतला (1.4 मि.मी. मोटा) होता है। यह किस्म 58 प्रतिशत गिरियां देती हैं। गिरियां हल्के रंग की और स्वाद होती हैं।
 
Servery: यह किस्म कुल्लू की पहाड़ियों के लिए उपयुक्त है। गिरियां मध्यम आकार की और भार 15.0 ग्राम होता है। गिरियों का आकार अंडाकार, सिरा तीखा, नर्म छिल्का होता है, जो कि हल्के रंग का होता है। छिल्का मध्यम सख्त होता है। गिरियां हल्के रंग की होती हैं। यह किस्म गिरियों की उपज 65 प्रतिशत देती है।
 
K.N.-5: पौधा मध्यम बढ़ने वाला होता है। इसकी गिरियां लंबी, चतुर्भुज आकार की होती हैं, भार 18.33 ग्राम होता है। छिल्के का रंग हल्का जिसकी नर्म परत होती है और गिरियां हल्के रंग की होती हैं। यह किस्म 56.36 प्रतिशत गिरियों की उपज देती है।
 
K-12: पौधा मध्यम बढ़ने वाला होता है। गिरी का भार 19.05 ग्राम होता है जो कि गोल लंबे आकार की होती हैं गिरियां चतुर्भुज आकार की होती हैं, छिल्का हरे रंग का होता है। गिरियों का रंग बहुत हल्का होता है। यह किस्म 54.99 प्रतिशत गिरियों की उपज देती है।
 
S.H.-23: पौधा मध्यम बढ़ने वाला होता है। गिरी का भार 14.81 ग्राम होता है गिरियों का आकार अंडाकार, छिल्का नर्म और हल्के रंग का होता है। गिरियों का रंग हल्का होता है। यह किस्म गिरियों की 52.67 प्रतिशत उपज देती है।
 
S.H.-24: पौधा मध्यम बढ़ने वाला होता है। गुठली हल्के रंग की होती है। गिरियों का बाहरी छिल्का नर्म, गिरियां हल्के रंग की होती हैं जो कि 60.08 प्रतिशत उपज देती हैं।
 
S.R.-11: पौधा धीरे बढ़ने वाला होता है। गिरियों का भार 14.35 ग्राम होता है। गिरियां बड़े आकार की, लंबी, बेलनाकार होती हैं। इसका छिल्का हल्कें रंग का, नर्म होता है। गिरियां बहुत हल्के रंग की होती हैं। इसकी गिरियों की उपज 61.05 प्रतिशत होती है।
 

बिजाई

बिजाई का समय
अखरोट के वृक्ष की बिजाई के लिए दिसंबर से मार्च का समय उपयुक्त होता है।
 
फासला
नए पौधों के लिए बीज में 25 सैं.मी. और पौधों में 8-12 मीटर x 8-12 मीटर फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 1-2 इंच की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
प्रजनन विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
27-62 वृक्ष प्रति एकड़ में लगाए जाते हैं।
 
बीज का उपचार
पौधे को जड़ गलन से बचाने के लिए डाइथेन-78 से पौधे का उपचार करें।
 

प्रजनन

ग्राफ्टिंग या बीज या बडिंग विधि से प्रजनन किया जाता है। मुख्यत प्रजनन बीजों के द्वारा किया जाता है। जड़ के भाग के लिए, स्थानीय अखरोट के पौधे का प्रयोग प्रजनन के लिए करें।

खाद

शुरूआती वर्षों में फासफोरस की थोड़ी मात्रा 100 ग्राम और पोटाशियम 100 ग्राम प्रति पौधे में डालें। 5 वर्षों के बाद फासफोरस 18-35 किलो और पोटाशियम 27-40 किलो प्रति एकड़ में डालें। पहले वर्ष में नाइट्रोजन 100 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें और इसे प्रति वर्ष 100 ग्राम बढ़ाते जाएं।

सिंचाई

नर्सरी में से रोपाई के बाद सिंचाई आवश्यक है। मिट्टी, जलवायु और मौसम के आधार पर आगामी सिंचाई करें। बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। पानी के उचित प्रयोग के लिए तुपका सिंचाई विधि अपनायें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए रासायनिक नदीननाशकों की स्प्रे करें। नदीनों को रोकने के लिए मलचिंग भी एक प्रभावी तरीका है।

कटाई और छंटाई

1 वर्ष का पौधा होने पर “मॉडीफाईड सेंट्रल लीडर सिस्टम” से सिधाई की जाती है और काट छांट अगेते बसंत में की जाती है।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
अखरोट की भुंडी: यह कीट पूरी तरह विकसित गुठली को खाती है और इसे काले रंग के गले हुए तत्व में बदल देती है। प्रभावित फल अपने आप गिर जाता है।
उपचार:  इस कीट से बचाव के लिए क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
धब्बा रोग: पत्तों और फल के छिलके पर गोल आकार के धब्बे देखे जा सकते हैं। फल पकने से पहले ही गिरना शुरू हो जाते हैं। शाखाओं के ऊपरी भाग पर कैंकर के धब्बे देखे जा सकते हैं।
उपचार:  पत्तियों के खुलने के समय बॉर्डीऑक्स मिश्रण की स्प्रे करें और उसके दो सप्ताह बाद स्प्रे करें और फिर पत्तों के पूरी तरह विकसित होने पर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

10-15 प्रतिशत फलों के गिरने पर तुड़ाई की जाती है। तुड़ाई एक लंबी लाठी की सहायता से वृक्ष को हिलाकर की जाती है और उसके बाद फलों को भूमि पर से उठाया जाता है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद छिल्के को निकाल लिया जाता है। फलों को आकर्षित बनाने के लिए इन्हें सोडियम कार्बोनेट 8 किलो को 230 लीटर पानी में मिलाकर 5-10 सैकेंड के लिए डुबोकर रखा जाता है। इस मिश्रण में सल्फयूरिक एसिड भी डाला जाता है। उत्पादकता किस्म, पौधे की उम्र और पौधे के आकार पर आधारित होती है। फलत और अफलत वर्ष और वृक्ष की उम्र को ध्यान में रखते हुए प्रति वृक्ष फल उत्पादन को उपयुक्त समझा गया है।