स्ट्रॉबेरी फल

आम जानकारी

यह भारत की महत्तवपूर्ण फल की फसल है। यह अत्याधिक खराब होने वाला नर्म फल है। इसे शीतोष्ण या उपउष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है। यह विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है। इसके फलों को विभिन्न उद्देश्यों जैसे आईसक्रीम  और जैम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। भारत के नैनीताल, देहरादून, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कश्मीर, बैंगलोर, पश्चिमी बंगाल, हिमाचल प्रदेश और पुणे  राज्यों में इसे मुख्य तौर पर उगाया जाता है। हिमाचल प्रदेश में इसे निचली दरमियानी क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होती है।

मिट्टी

स्ट्रॉबेरी को मुख्यत: अच्छे निकाल वाली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसमें जैविक तत्व उच्च मात्रा में होते हैं। मिट्टी की पी एच 5.7-6.5 होनी चाहिए, जो कि थोड़ी अम्लीय होती है। अम्लीय मिट्टी में इसकी खेती ना करें, क्योंकि इसमें इसकी जड़ों का आकार सही नहीं बनता। एक ही ज़मीन पर ज्यादा वर्षों तक स्ट्रॉबेरी की खेती नहीं करनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Tioga: इसके फल का आकार बड़ा, गुद्दा और छिल्का सख्त और स्वाद, रख रखाव में उत्तम, परिवहन के लिए उपयुक्त होती है। इसमें अम्ल की मात्रा 0.70 प्रतिशत और टी एस एस की मात्रा 7.0 प्रतिशत होती है। यह विषाणु रोगों के प्रतिरोधक किस्म है।
 
Torrey: फल का आकार बड़ा, शंकु के आकार के, गुद्दा और छिल्का कम सख्त, स्वाद में अच्छा, परिवहन के लिए उपयुक्त और अच्छी गुणवत्ता वाला होता है। फल अप्रैल के पहले सप्ताह में पकना शुरू हो जाते हैं। इसमें अम्ल की मात्रा 0.70 प्रतिशत और टी एस एस की मात्रा 7.0 प्रतिशत होती है।
 
Chandler: फल शंकु के आकार के, कभी कभी लंबे व चपटे, चमकदार, नर्म और आकर्षित, गुद्दे का रंग फल के रंग जैसा, सख्त और मजबूत, मध्यम आकार का पौधा, सीधा, रनर पैदा करने की क्षमता मध्यम, स्व परागण वाली किस्म है।
 
Selva (mid hills): दिन की लंबाई से अप्रभावित किस्म, शंकु आकार के फल, मीठा गुद्दा, जो कि सख्त और लाल रंग का होता है, स्वाद में मीठा खट्टा, भंडारण क्षमता अधिक, कीटों और बीमारियों का हमला इस किस्म पर कम होता है। इसकी औसतन पैदावार 200-250 ग्राम प्रति पौधा होती है। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
पहाड़ी क्षेत्रों के लिए Srinagar, Royal Sovereign and Dilpasand उपयुक्त हैं।
 
Pusa Early dwarf: यह छोटे कद की किस्म, उत्तर भारतीय मैदानों के लिए उपयुक्त है। इसके फल नुकीले होते हैं।
 
Katrain Sweet: यह अधिक सुगंधित और स्वाद में नर्म होती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली और उच्च जैविक पदार्थों वाली उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है।

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई के लिए उपयुक्त समय अगस्त सितंबर का महीना है।
 
फासला
कतार से कतार में 30 x60 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
5-7 सैं.मी. की गहराई होनी चाहिए।
 

प्रजनन

स्ट्रॉबेरी का प्रजनन खिलने के मौसम के बाद रनर्स द्वारा किया जाता है। आमतौर पर एक अकेला पौधा 8-10 रनर्स का उत्पादन करता है लेकिन यह कई बार 15 रनर्स प्रति पौधा हो सकता है। प्रजनन शीर्षक भाग द्वारा भी किया जा सकता है लेकिन यह बहुत समय लेता है और मजदूरों की आवश्यकता होती है एक अकेले पौधे से 3-5 शीर्षक भाग प्रति पौधा।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN
PHOSHORUS POTASH
30 15 15

 

खेत की तैयारी के समय रूड़ी की खाद 20 टन, पोटाश 15 किलो और फासफोरस 15 किलो प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 30 किलो को दो समान भागों में बांटें। पहली भाग को पौधे की वृद्धि के समय सितंबर अक्तूबर महीने में डालें और बाकी की नाइट्रोजन को फूलों के विकसित होने के समय प्रयोग करें।

 

सिंचाई

रनर्स की रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई की आवश्यकता होती है। सितंबर अक्तूबर महीने में सप्ताह में दो बार सिंचाई करें और नवंबर में सप्ताह में एक सिंचाई की आवश्यकता होती है और दिसंबर में जनवरी महीने में प्रत्येक पखवाड़े में एक बार सिंचाई करें। फल बनने की अवस्था में सिंचाई की आवृत्ति को बढ़ा दें।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए मलचिंग एक प्रभावी तरीका है। तैयार गड्ढों में घास या लकड़ी की एक परत डालें। इससे नदीनों को रोकने में मदद मिलेगी और मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद मिलेगी। एक एकड़ खेत में 6 टन मलच की आवश्यकता होती है।

पौधे की देखभाल

सफेद सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सफेद सुंडी और कतरा सुंडी : ये कीट जड़ों और नर्म तनों को काटकर पौधे को नष्ट करते हैं।
 
रोकथाम : क्विनलफॉस 400 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
जड़ गलन
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बा रोग : गहरे जामुनी भूरे रंग के धब्बे जो कि बीच में से सफेद रंग के और गोल आकार के दिखाई देते हैं। फलों और पत्तियों के तने पर लंबे धब्बे दिखाई देते हैं।
 
रोकथाम : कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
सलेटी फंगस : फंगस के हमले के कारण फूल झुलसे हुए और फल गलन दिखाई देता है।
 
रोकथाम : एम 45 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
रैड स्टील रोग
रैड स्टील रोग : प्रभावित पौधे की वृद्ध कम हो जाती है और रनर्स बहुत कम बनते हैं और ऐसे पौधे सर्दियों में मर जाते हैं। नई और किनारे वाली जड़ें सड़ जाती हैं और जड़ की बाहरी त्वचा लाल रंग की हो जाती है।
 
रोकथाम : प्रभावित खेतों में खेती ना करें।
 
पत्तों पर धब्बे पड़ना
जड़ गलन : तने पर भूरे रंग की परत या धब्बे दिखाई देते हैं जो कि बाद में जड़ों पर फैल जाते हैं।
 
रोकथाम : एम 45 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम प्रति एकड़ में छिड़कें।
 
सलेटी फंगस
सलेटी फंगस : फंगस के हमले के कारण फूल झुलसे हुए और फल गलन दिखाई देता है।
 
रोकथाम : एम 45 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

फल अप्रैल महीने में पकना शुरू हो जाता है। 2-3 वर्ष फसल ली जा सकती है लेकिन 2 वर्ष के बाद उपज कम हो जाती है। जब छिल्के का रंग आधे से तीन चौथाई हिस्सा विकसित होने पर तुड़ाई की जाती है। तुड़ाई प्रत्येक सैकंड पर की जाती है या तीसरे दिन मुख्यत: सुबह के समय की जाती है। तुड़ाई के बाद कंटेनर में पैकिंग की जाती है और उसके बाद परिवहन के लिए भेज दिया जाता है।