हिमाचल प्रदेश में बाजरा उत्पादन

आम जानकारी

बाजरा या पर्ल बाजरा को दानों और चारा उद्देश्य के लिए उगाया जाता है, परंतु नेपियर और हाथी घास की खेती चारा फसल के तौर पर की जाती है। नेपियर-बाजरा, बाजरा और हाथी घास के बीच संकरण है। यह हाइब्रिड पौधों की पैदावार में वृद्धि करता है| इस संकरण प्रजाति से अच्छे उत्पादन के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता वाली खाद भी मिलती है। रोपाई के बाद, यह लगातार 2-3 वर्ष पैदावार देता है।

हिमाचल प्रदेश में, यह 1500 मीटर वाले ऊंचे क्षेत्रों में उगाया जाता है| सिंचित हालातों में, हरा चारा अप्रैल-अक्तूबर महीने में पर्याप्त किया जाता है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    30°C
  • Season

    Rainfall

    30-60 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30°C - 32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°
  • Season

    Temperature

    30°C
  • Season

    Rainfall

    30-60 cm
  • Season

    Sowing Temperature

    30°C - 32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°
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    Temperature

    30°C
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    30-60 cm
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    Sowing Temperature

    30°C - 32°C
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    20-25°
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    Temperature

    30°C
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    30-60 cm
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    Sowing Temperature

    30°C - 32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°

मिट्टी

इसे विभिन्न तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, पर यह भारी मिट्टी, जिसमें पोषक तत्व उच्च मात्रा में हो, में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। यह खारेपन को भी सहनेयोग्य है। नेपियर बाजरा हाइब्रिड की खेती के लिए जल जमाव वाली मिट्टी से परहेज करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

IGFRI-5: यह किस्म बारानी और सिंचिंत हालातों में निचले पर्वतीय क्षेत्रों में (800 मीटर की ऊंचाई से कम) बिजाई के लिए अनुकूल है| यह जल्दी उगने वाली और लम्बे समय की किस्म है| यह किस्म बिजाई के बाद 60 दिनों में तैयार हो जाती है| बारानी क्षेत्रों में, इसकी 3-4 बार कटाई की जा सकती है| इसमें प्रोटीन मात्रा 6.35% और ऑक्ज़ालेट मात्रा 2.8% होती है| इसकी हरे चारे की औसतन पैदावार 476 क्विंटल और सूखी घास की औसतन पैदावार 155 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

NB-37: यह किस्म छोटे कद की और उपउष्ण-कटबंधीय पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल है| यह किस्म सूखे को सहनयोग्य है| इसमें प्रोटीन मात्रा 9-10% और ऑक्ज़ालेट मात्रा 2-3% होती है|

NB-21: यह जल्दी उगने वाली किस्म है| इसका तना पतला, पत्ते लम्बे, पतले और चमकीले होते हैं।

दूसरे राज्यों की किस्में

PNB 233: हाइब्रिड मुलायम , चौड़ी और लम्बे पत्तों वाली किस्म है|  इसकी औसतन पैदावार 1100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PNB 83: यह जल्दी विकास करने वाली किस्म है और इस हाइब्रिड को फूल देरी से लगते है| इसकी हरे चारे की फसल की पैदावार 961 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

CO 3, Pusa Giant Napier, Gajraj, NB-5, NB-6, NB 37 and NB-35

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हल से जोताई करें और दो बार हैरो फेरें। जोताई के बाद सुहागे से मिट्टी को समतल करें। 60 सैं.मी. के फासले पर मेड़ और खालियां बनाएं।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई मार्च महीने या मानसून के शुरू होने पर की जाती है|

फासला
बढ़िया विकास और पैदावार के लिए 90x40 या 60x60  सैं.मी. का फासले की सिफारिश की जाती है|

बीज की गहराई
तने के भाग को 7-8 सैं.मी की गहरी खालियों में बोयें।

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई तने और जड़ के भागों को सीधे बो कर की जाती है। गुलियों को गन्ने की तरह मिट्टी में बिछाया जाता है|

बीज

बीज की मात्रा
नेपियर बाजरा के बीज बहुत छोटे होते हैं, व्यापारक खेती के लिए इसका प्रजनन तने के भाग (दो-तीन गांठे) और जड़ के भाग (30 सैं.मी. लंबे) द्वारा किया जाता है। रोपाई के लिए 11250 तने के भागों का प्रयोग किया जाता है।

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
60 250 -


 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
27 40 -

 

खेत की तैयारी के समय, खाद के तौर पर नाइट्रोजन 27 किलो (यूरिया 60 किलो) प्रति एकड़ में डालें। फासफोरस 40 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 250 किलो) प्रति एकड़ में बिजाई के समय डालें| प्रत्येक कटाई के बाद, नाइट्रोजन 15 किलो प्रति एकड़ की खाद डालें|

सिंचाई

गर्मियों के महीने में या गर्म और शुष्क मौसम में मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर सिंचाई करें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए, फलियों वाली फसलों से अंतर फसली लगाएं। अंतर फसली से मिट्टी में, पोषक तत्व बने रहते हैं, जिससे चारे में भी पोषक तत्व आते हैं जो कि पशुओं के लिए अच्छे होते हैं।

फसल की कटाई

बिजाई के 2 महीने बाद के बाद पहली कटाई की जाती है और आगे की कटाई प्रत्येक 40 दिनों के बाद की जाती है| पहली कटाई के बाद फसल के 1 मीटर के हो जाने पर दूसरी कटाई की जाती है| फसल को 2 मीटर से ज्यादा ऊंचा ना होने दें इससे चारे के पोषक तत्व कम हो जाते हैं। ऐसे चारे पाचन के लिए भारी होते हैं।