हिमाचल प्रदेश में बादाम का उत्पादन

आम जानकारी

यह एक पतझड़ी वृक्ष होता है जो कि 10 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचता है और इसका तना 30-35 सैं.मी. अर्द्धव्यास तक का होता है। बादाम रोज़ेसी परिवार से संबंध रखता है। यह एक गुठलीदार फल होता है, जिसका बाहरी छिल्का होता है और बीज का शैल सख्त होता है। बादाम के पोषक मुल्यों और स्वास्थ्य लाभों के कारण इसका मार्किट में अच्छा निर्यात होता है। बादामों को गमलों में या कंटेनर में उगाया जा सकता है। इसका प्रयोग बादाम मिल्क, बादाम सिरप, बादाम का तेल और बादाम का आटा बनाने के लिए किया जाता है। यह कब्ज से राहत दिलाता है, पेट के कैंसर को रोकता हैं, पाचन शक्ति को बढ़ाता है और रक्त चाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।

मिट्टी

इसे मिट्टी की लगभग सभी किस्मों में उगाया जाता है लेकिन गहरी और अच्छे निकास वाली दोमट मिट्टी बादाम की खेती के लिए अच्छी होती है। जल जमाव और उच्च पानी वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। बादाम की खेती के लिए मिट्टी की पी एच 7.0-8.5 उपयुक्त रहती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Nouni Selection: यह मध्यम विकास वाला पौधा है जो सीधा बढ़ता है और नियमित फल देता है। इसके फूल देरी से निकलते हैं। इसकी पैदावार तुलनात्मक अधिक होती है। गुठली मध्यम आकार की होती है, छिल्का कागज़ी होता है। मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत जल्दी (जून के तीसरे सप्ताह में) पकने वाली किस्म है। इसकी गिरी भूरे रंग की, छोटी, कुछ कुछ झुर्रीदार, मीठी और अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। इसका छिल्का आसानी से टूट जाता है इसलिए इसे बिक्री उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी गुठली से 55-60 प्रतिशत गिरी की उपज प्राप्त होती है।
 
Nikitskai: यह नियमित फल देने वाली किस्म है। इसके फूल देरी से निकलते हैं। यह मध्यम उपज देने वाली किस्म है। इसकी गुठली नर्म होती है। यह मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में  (जून के चौथे सप्ताह) जल्दी पकने वाली किस्म है। यह मध्यम से बड़े आकार की किस्म है जिसकी गिरी छोटी, भूरे रंग की, कुछ कुछ झुर्रीदार होती है। इसकी उपज अच्छी गुणवत्ता वाली होती हैं, यह मीठी किस्म है। इसकी गुठली से 45-50 प्रतिशत गिरी की उपज प्राप्त होती है।
 
White Brandice: इसका पौधा मध्यम वृद्धि वाला होता है और सीधा बढ़ता है। यह नियमित उपज देने वाली और देरी से पकने वाली किस्म है। यह तुलनात्मक ज्यादा फल देती है। इसकी गुठली कागज़ी होती है जो कि छोटे मध्यम आकार की होती है। मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में यह फसल जून के तीसरे सप्ताह में तैयार हो जाती है। इसकी गिरी छोटी, गहरे भूरे रंग की, कुछ कुछ झुर्रीदार, मीठी और अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसकी गुठली से 60-65 प्रतिशत गिरी की उपज प्राप्त होती है।
 
Thin sheld: इसका पौधा मध्यम वृद्धि वाला होता है और सीधा बढ़ने वाला और फैलने वाला, घना होता है। यह जल्दी उपज देने वाली किस्म है। इसकी गुठली बड़े आकार की होती है, जो कि हल्के भूरे रंग की, आकर्षित, तलवार के आकार की होती है। इसका छिल्का आसानी से गुठली से अलग हो जाने वाला, कागज़ी होता है। इसकी गिरी भूरे रंग की, मीठी, और स्वादिष्ट होती है।
 
Ni-plus-ultra: यह जल्दी उगने वाला और फैलने वाला पौधा होता है और मध्यम उपज देता है। इसकी गुठली बड़ी, आयताकार, कागज़ी होती है। गुठली 29 प्रतिशत गिरी की उपज देती है, गिरी हल्के से गहरे भूरे रंग की होती है।
 
Drek: इसकी गुठली आयताकार, सिरों से गोल या नुकीली, सफेद रंग की, मध्यम कठोरता वाली होती है और 30 प्रतिशत गिरी की उपज देती है। इसकी गिरी भूरे रंग की, लंबी होती है। यह फैलने वाला पौधा, अनयिमित फल देने वाला और अधिक उपज देने वाला पौधा होता है।
 
Texas: इसकी गुठली आयताकार, सिरों से गोल या नुकीली, सफेद रंग की, मध्यम कठोरता वाली होती है और 30 प्रतिशत गिरी की उपज देती है। इसकी गिरी भूरे रंग की, लंबी होती है। यह फैलने वाला पौधा, अनयिमित फल देने वाला और अधिक उपज देने वाला पौधा होता है।
 
Non-pareil: इसकी गुठली फैली हुई, चपटी तथा सिरों से पतली, बड़ी, कागज़ी होती है और 65 प्रतिशत गिरी की उपज देती है, इसका पौधा मध्यम वृद्धि वाला, सीधा फैलने वाला और नियमित उपज देने वाला होता है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Soft shell varieties: Thompson, Carmel, Rudy.
 
Hard shell varieties: Buttei, Texas.
 
Regular shell variety: Um-el-Fahem, Marcona, California Mission Neplus, Be’eri, Greek, Hanatziv.
 

ज़मीन की तैयारी

बादाम की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की 2-3 बार जोताई करें। उसके बाद सुहागे से समतल करें। आखिरी जोताई के समय ज़मीन को जैविक पदार्थ से भरें।

बिजाई

बिजाई का समय
रोपाई फरवरी - मार्च के महीने में की जानी चाहिए।
 
फासला
पौधों में 6 मीटर x 6 मीटर या 4 मीटर x 4 मीटर या 3.5 मीटर x 3.5 मीटर फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
गड्ढों में वृक्षों की रोपाई के लिए 3 फुट x 3 फुट x 3 फुट आकार के गड्ढे खोदें।
 
बिजाई का ढंग
ग्राफ्टिंग या बडिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

कटाई और छंटाई

पौधे की उचित स्थापना के लिए कटाई और छंटाई आवश्यक है। रोपाई के समय ज़मीन से 1 मीटर ऊपर से वृक्ष की कटाई की जाती है। कटाई ज़मीनी स्तर से ऊपर 0.7 मीटर से कम की नहीं की जानी चाहिए। कटाई 3-4 शाखाओं को छोड़कर की जानी चाहिए, इससे वृक्ष को संतुलित करने में मदद मिलेगी।

सिंचाई

मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर सिंचाई की जाती है। पानी की कमी दिखने पर सिंचाई करनी चाहिए। मुख्य तौर पर फूल निकलने के समय और फल विकसित होने की अवस्था में सिंचाई करनी चाहिए क्योंकि ये अवस्थाएं पानी की कमी के बहुत संवेदनशील होती हैं। पानी का उचित उपयोग करने के लिए तुपका सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए। सिंचाई या भारी बारिश के दौरान खेतों में से अतिरिक्त पानी का निकास कर देना चाहिए। 

खाद

सर्दियों (दिसंबर से जनवरी महीने) के दौरान गली हुई रूड़ी की खाद 20-25 किलो प्रति वृक्ष में डालें। यूरिया को 2-3 भागों में बांटकर डालना चाहिए। डी ए पी और म्युरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की पहली आधी मात्रा फूल खिलने से पहले पखवाड़े में करें, यूरिया की दूसरी मात्रा बनने के तीन सप्ताह बाद और यूरिया की तीसरी मात्रा मई जून के महीने में डालें। अगले मौसम में फल बनने की वृद्धि शुरू करने और लगातार वृद्धि के लिए यूरिया 1.5-2 किलो की फोलियर स्प्रे करें। 

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे : इस बीमारी के मुख्य लक्षण बादाम के शैल पर कुंगी का दिखना है।
उपचार : पत्तों पर सफेद धब्बों की रोकथाम के लिए मध्य बसंत के समय फंगसनाशी डालें। प्रतिरोधक किस्में उगाई जानी चाहिए। मैनकोजेब 400 ग्राम डालें और उसके बाद 78 डालें।
 
कुंगी : पत्तों की ऊपरी सतह के ऊपर छोटे, पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और पत्तों की निचली सतह पर लाल रंग की कुंगी के धब्बे दिखाई देते हैं।
उपचार : सलफर या मैनकोजेब 400 ग्राम को पत्ते गिरने के 5 सप्ताह बाद डालें और उसके बाद पिछेती बसंत मौसम के 4-5 सप्ताह बाद डालें।
 
धफड़ी रोग : पत्तों, फलों और टहनियों पर सलेटी काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
उपचार : धफड़ी से देखभाल के लिए मैनकोजेब 400 ग्राम को पत्ते गिरने के 5 सप्ताह बाद डालें और उसके बाद पिछेती बसंत मौसम के 4-5 सप्ताह बाद डालें।
 
बदबूदार कीड़ा : यह ज्यादातर मई-जुलाई के महीने में फसल को प्रभावित करता है। गुठली झुर्रीदार बन जाती है और पर काले धब्बे दिखाई देते हैं।
उपचार : इस कीट से बचाव के लिए इकालक्स 300 मि.ली. या मैलाथियोन 400 मि.ली. डालें।
 
वृक्ष छेदक : लार्वा वृक्षों में छेद कर देता है जो कि तने तक चला चाता है और वृक्ष अपने आप मर जाता है।
उपचार : यदि लार्वा मौजूद है तो 2-3 बार स्प्रे करें। पहली स्प्रे अप्रैल के मध्य से लेकर अंत तक करें और उसके बाद 6 महीने के अंतराल पर करें। फेम 20 मि.ली. या मोनोसिल 400 मि.ली. डालें।
 

फसल की कटाई

तुड़ाई मुख्य तौर पर अंत अगस्त से सितंबर महीने में गिरियों के पूरी तरह सूखने पर की जाती है। तुड़ाई हाथों से तोड़कर की जाती है। तुड़ाई के बाद हाथों से ही शैल को निकाला जाता है। इसका औसतन उत्पादन 400-800 ग्राम प्रति एकड़ होता है।

कटाई के बाद

बाहरी छिलका निकालने के बाद गिरियों को 5-7 प्रतिशत नमी रह जाने तक धूप में सुखाया जाता है। बाहरी छिल्के को निकालना जरूरी होता है अन्यथा वे फंगस का कारण बनते हैं।