ग्लेडियोलस की फसल के बारे में जानकारी

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद ताज़े फूलों को गत्ते के बक्सों में स्टोर किया जाता है| इन बक्सों को नज़दीकी मंडियों में व्यापर के लिए भेजा जाता है|

फसल की कटाई

तुड़ाई मुख्य तौर पर 3-4 महीने (90-120 ) पनीरी लगाने के बाद की जाती है| है। इसकी कटाई 4-5 शुरूआती पत्तों को छोड़कर की जाती है ताकि गांठों के उचित विकास में कोई बाधा ना आये। इसकी औसतन पैदावार 100000 डंडियां प्रति एकड़ और 95000 गांठे प्रति एकड़ होती है|
 
गांठों की कटाई : फूलों की तुड़ाई के 6-8 हफ्ते बाद, गांठों की तुड़ाई करनी चाहिए| कटाई के 2-3 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर दें। कटाई के बाद गांठों को हवा में सुखाएं। गांठों से पत्तों को निकालकर इन्हें साफ करें। सूखाने के बाद प्लास्टिक के लिफाफों में 5-10°सै  पर कोल्ड स्टोर में स्टोर किया जाता है|
 
चितकबरा रोग: इस बीमारी के लक्षण पौधे का पीला पड़ना, विकास का रुक जाना और रंग-बिरंगे और गोल धब्बे आदि होते है|
 
उपचार: यह बीमारी फैलने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन यह बीमारी फैलने से पहले प्रभावित पौधों के लिए गोड़ाई और कीटों की रोकथाम से यह बीमारी का इलाज किया जा सकता है|
 
थ्रिप्स: यह पत्तों का रस चूस कर और फूलों को खाकर पौधे का नुकसान करता है|
 
उपचार: इसकी रोकथाम के लिए मैलाथिओन 0.2% की स्प्रे करें|
 
  • कीट और रोकथाम
चेपा: यह पौधे के नए भाग को नष्ट करता है और बढ़ने से रोकता है|
उपचार: चेपे की रोकथाम के लिए रोगोर 30 ई सी या मैलाथिओन 50 ई सी प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
 
जड़ों का गलना: यह बीमारी मैलोइडोगाइन इनकोगनिटा के कारण होती है| इसके लक्षण पत्तों का अविकसित होना, सुखना और पीले पड़ना, जड़ों का कमज़ोर होना आदि है।
 
उपचार: इसकी रोकथाम के लिए ऑक्ज़ामिल की स्प्रे प्रभावित खेत में करें|
 
गांठो पर काला-पन: यह बीमारी सेपटोरिया ग्लेडिओली के कारण होती है| इसके लक्षण गांठों पर अंदर की तरफ धसे हुए गहरे-भूरे और काले रंग के धब्बे पड़ जाते है|
 
उपचार: इस बीमारी की रोकथाम के लिए गांठों को थायोफानेट मिथाइल में 85-120° फारनहाइट तापमान पर और इप्रोडाइओन को अनुकूलित तापमान पर 15-30 मिन्ट भिगोएं|
 

पौधे की देखभाल

  • बीमारीयां और रोकथाम
गांठों का गलना: इस बीमारी के लक्षण अपरिपक्व पत्तों का पीला पड़ना, तने का सिकुड़ना और जड़ें और गांठे लाल-भूरी होकर सूख जाती है|
 
उपचार: इस बीमारी की रोकथाम के लिए गांठों को थायोफानेट मिथाइल में 85-120° फारनहाइट तापमान पर और इप्रोडाइओन को अनुकूलित तापमान पर 15-30 मिन्ट भिगोएं|
 

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA
SSP
MOP
120 185 30

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
55 30 18

 

बिजाई के 20 दिन पहले, 5 किलो गली हुई रूड़ी की खाद प्रति वर्गमीटर मिट्टी में मिलायें। खेत की तैयारी के समय नाइट्रोजन 55 किलो (यूरिया 120 किलो), फासफोरस 30 किलो (सिंगल फासफेट 185 किलो) और पोटाश 18 किलो (म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 30 किलो) प्रति एकड़ में शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। नाइट्रोजन 30 ग्राम  प्रति वर्गमीटर में, 5-6 पत्ते निकलने पर डालें|

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को रोकने के लिए हाथों से गोडाई या नदीननाशक स्प्रे का प्रयोग किया जाता है। नदीनों के नियंत्रण के लिए सप्ताह में एक बार हाथों से गोडाई करें। एट्राज़िन 400-500 ग्राम या पैंडीमैथालीन 600-800 मि.ली. को नदीनों के अंकुरण से पहले और पैराकुएट 600-800 मि.ली. या ग्लाइसेल 800 मि.ली. नदीनों के अंकुरण के बाद प्रति एकड़ में स्प्रे करें। पैराकुएट और ग्लाइसेल को मुख्य फसल पर ना डालें क्योंकि यह मुख्य फसल को नुकसान पहुंचाती है सिर्फ नदीनों पर ही डालें।

कमी और इसका इलाज

आयरन की कमी: ग्लेडियोलस की फसल में आयरन की कमी के लक्षण पत्तों का पीला पड़ना है| जब पौधे के 3-6 पत्ते निकलते है तब फेरस सल्फेट 1 किलो की स्प्रे करें यह आयरन की कमी का इलाज करती है|

सिंचाई

मध्य सितंबर से अंत मार्च तक सप्ताह में दो बार नल के पानी से सिंचाई करें और शुरूआती अप्रैल से अंत जून तक सप्ताह में तीन बार सिंचाई करें और उसके बाद शुरूआती जुलाई से मध्य सिंतबर तक मौसम के आधार पर 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। 

बीज

बीज की मात्रा
प्रति एकड़ खेत के लिए 62500-67000 गांठों का प्रयोग करें|
 
बीज का उपचार
मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए बिजाई से पहले गांठों को बाविस्टिन के घोल में एक घंटे के लिए भिगोएं और छांव में सुखाएं।
 

बिजाई

बिजाई का समय
निचले पहाड़ी क्षेत्रों में :  अगस्त, सितंबर-अक्तूबर
मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में :   फरवरी -मार्च, मई
ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में :  अप्रैल-मई
 
फासला
सीढ़ीनुमा खेती के लिए कतार से कतार में 25 सैं.मी. और गांठों में 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें और सामान्य खेती के लिए 45x45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बढ़िया विकास के लिए, गांठो को 8 सैं.मी. गहरा बोयें|
 
बिजाई का ढंग
गांठो को कतारों में उचित फासले पर सीधे मिट्टी में बोयें|
 

ज़मीन की तैयारी

ग्लेडियोलस की खेती के लिए, बिजाई से पहले खेत की अच्छी तरह से जोताई करें| मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए जोताई आवश्यक हैं| 20-25 टन रूड़ी की खाद मिट्टी में मिलाएं|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

पीले रंग की किस्में
 
Aldebaron, Topaz, Vink’s Glory, Jester, Top Brass.
 
Nova Lux: यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है| डंडी की लंबाई 79 सैं.मी. होती है जिस पर पीले रंग के फूलों का उत्पादन होता है। प्रत्येक पौधा लगभग 47 गांठों का उत्पादन करता है। 
 
सफेद रंग की किस्में

White friendship, White prosperity, American White.
 
White prosperity: यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है| इसकी 75 सैं.मी. की डंडी पर 17 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं।
 
गुलाबी रंग की किस्में

Spic, Friendship Pink, Span. 
 
Suchitra: यह किस्म 90-95 दिनों में पक जाती है| इसकी 83 सैं.मी. की डंडी पर 15-16 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 85 गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म गुलाबी रंग के फूल पैदा करती है|
 
लाल रंग की किस्में
 
Oscar, Red Majesty, American Beauty
 
जामुनी रंग की किस्में

Red Beauty, Interpid, Trader Horn, Mayur, Marvellous and Blue Lilac. 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Urovian: यह किस्म 110-120 दिनों में पक जाती है| इसकी 84 सैं.मी. की डंडी पर 16 लाल छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं।
 
Golden Melody: यह किस्म 90-100 दिनों में पक जाती है| इसकी 87 सैं.मी. की डंडी पर 15 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 67 गांठों का उत्पादन करता है। इसके किस्म हल्के पीले रंग के फूल होते हैं।
 
Snow Princess: यह किस्म 80-90 दिनों में पक जाती है| इसकी 65 सैं.मी. की डंडी पर 11-14 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 15 गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म सफेद रंग के फूल पैदा करती है|
 
Silvia: यह किस्म 120 दिनों में पक जाती है| इसकी 75 सैं.मी. की डंडी पर 13-15 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 15 गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म सुनहरे पीले रंग के फूल पैदा करती है|
 
Sansray: यह किस्म 120 दिनों में पक जाती है| इसकी 75.5 सैं.मी. की डंडी पर 15-17 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 91 गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म सफेद रंग के फूल पैदा करती है|
 
Mayur: यह किस्म 100-110 दिनों में पक जाती है| है। इसकी 76.6 सैं.मी. की डंडी पर 14-16 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 88 गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म जामुनी रंग के फूल पैदा करती है|
 
Punjab Pink Elegance: इस किस्म की डंडियां सजावट के उद्देश्य से उपयोग की जाती हैं। यह किस्म 86 दिनों में तैयार हो जाती है। प्रत्येक पौधा लगभग 39 छोटे आकार की गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म हल्के गुलाबी रंग के फूल पैदा करती है और इसकी डंडी लंबी होती है।
 
Punjab flame: इस किस्म की डंडियां सजावट के उद्देश्य से उपयोग की जाती हैं। यह किस्म 114 दिनों में तैयार हो जाती है। प्रत्येक पौधा लगभग 60 छोटे आकार की गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म हल्के गुलाबी लाल रंग के फूल पैदा करती है जो मध्य में से लाल रंग के होते हैं।
 
Punjab Glance: इस किस्म की डंडियां सजावट के उद्देश्य से उपयोग की जाती हैं। यह किस्म 78 दिनों में तैयार हो जाती है। प्रत्येक पौधा लगभग 14 छोटे आकार की गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म संतरी रंग के फूल पैदा करती है और इसकी डंडी लंबी होती है।
 
Punjab Lemon Delight: इसे सजावटी उद्देश्य से उपयोग किया जाता है। यह किस्म 80 दिनों में तैयार हो जाती है। प्रत्येक पौधा लगभग 11 छोटे आकार की गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म हल्के पीले रंग के फूल पैदा करती है और इसकी डंडी लंबी होती है।
 
Punjab Glad 1: यह किस्म 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी 84 सैं.मी. की डंडी पर 15 छोटे फूल गुच्छों में लगते हैं। प्रत्येक पौधा लगभग 44 गांठों का उत्पादन करता है। यह किस्म संतरी रंग के फूल पैदा करती है|
 

मिट्टी

अच्छे निकास वाली दोमट मिट्टी जिसकी अच्छी उपजाऊ शक्ति हो, में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। भारी चिकनी और अम्लीय मिट्टी में इसकी खेती ना करें और खेत में पानी ना खड़ा होने दें। मिट्टी की पी एच 7 के लगभग होनी चाहिए।

आम जानकारी

पूरे विश्व में ग्लेडियोलस के फूलों को लोग बहुत पसंद करते हैं|यह एक सदाबाहार फूल का पौधा है जिसके पत्ते तलवार जैसे होते हैं और फूल का बाहरी हिस्सा चिमनी के जैसे मुड़े हुए और  शाखाएं चम्मच की तरह होती है| इसके फूल अक्तूबर-मार्च के महीने में खिलते हैं| यह विभिन्न रंगों के फूलों का उत्पादन करते हैं जैसे गुलाबी से लाल, हल्के जामुनी से सफेद, सफेद से क्रीम और संतरी से लाल आदि| यह कई बीमारीयों जैसे ज़ुकाम, दस्त, फफूंद संक्रमण और गर्दन तोड़ बुखार आदि के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है| भारत में पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र आदि मुख्य उत्पादन क्षेत्र है|
 
हिमाचल प्रदेश में इसे बेमौसमी फसल के तौर पर उगाया जाता है इसे लगभग सभी क्षेत्रों में उगाया जाता है और 25 एकड़ भूमि इसे उगाने के लिए प्रयोग की जाती है।