शतावरी फसल के बीज

कटाई के बाद

कटाई के बाद, इसका ऊपर का छिल्का उतार दें। छिल्का उतारने के बाद जड़ों को हवा में सुखाया जाता है। सूखी जड़ों को भंडारण और ज्यादा दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हवा रहित बैग में रखें। पकी जड़ों का प्रयोग विभिन्न उत्पाद जैसे पाउडर, गुलाम और घृतम बनाने के लिए किया जाता है।

फसल की कटाई

रोपाई के बाद 20-30 महीनों में पौधे की जड़ें पक जाती हैं। मिट्टी और जलवायु के आधार पर जड़ें 12-14 महीनों में पक जाती हैं। मार्च-मई के महीने में जब बीज पक जाये , तब कटाई की जाती है। कटाई कुदाली की सहायता से की जाती है। प्रक्रिया और दवाइयां बनाने के लिए अच्छे से पके बीज की आवश्यकता होती है। शुरूआत में पैदावार कम होती है,  लेकिन 7-8 वर्ष बाद इसकी औसतन पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाती है।

पौधे की देखभाल

कुंगी : यह बीमारी पुसीनिया एसपरागी के कारण होती है। इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप पत्ते सूख जाते हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए बॉर्डीऑक्स मिश्रण को 1 प्रतिशत डालें।
 

खरपतवार नियंत्रण

फसल की वृद्धि के समय में लगातार गोडाई की आवश्यकता होती है। खेत को नदीन मुक्त बनाने के लिए 6-8 हाथ की गोडाई की आवश्यकता होती है।

सिंचाई

नए पौधों को खेत में रोपण करने के बाद पहली सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए। इस फसल को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती। इसलिए शुरूआत में 4-6 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर दें और फिर कुछ समय के बाद सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करें। कटाई से पहले सिंचाई जरूर करनी चाहिए ताकि गड्ढों में से जड़ों को आसानी से निकाला जा सके।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
80 300 100

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
35 48 60

 

खेत की तैयारी के समय 80 क्विंटल प्रति एकड़ गली हुई रूड़ी की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। नाइट्रोजन 35 किलो (यूरिया 80 किलो), फासफोरस 48 किलो (एस एस पी 300 किलो), और पोटाश 60 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 100 किलो) प्रति एकड़ में डालें।
मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से पौधे को बचाने के लिए जैविक कीट नाशी जैसे धतूरा, चित्रकमूल और गाय के मूत्र का प्रयोग करें।
 

 

 

बीज

बीज की मात्रा
अधिक उपज के लिए, प्रति एकड़ में 250 ग्राम बीजों का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीज को गाय के मूत्र में 24 घंटे के लिए डाल कर उपचार करें। उपचार के बाद बीज नर्सरी बैड में बोये जाते हैं।
 

बिजाई

बिजाई का समय
दरमियाने क्षेत्रों में, मार्च-जून के महीने में और पहाड़ी क्षेत्रों में, अप्रैल-मई के महीने में बीज को बोया जाता है।
दरमियाने क्षेत्रों में, नए पौधों की रोपाई जून जुलाई के महीने में और पहाड़ी क्षेत्रों में, मार्च-अप्रैल के महीने में की जाती है।
 
फासला
नए पौधों की रोपाई के लिए 150x45 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई से पहले मिट्टी का रासायनिक उपचार किया जाता है। अप्रैल के महीने में बीज बोये जाते हैं। शतावरी के बीजों को 30-40 सैं.मी. की चौड़ाई वाले और आवश्यक लंबाई वाले बेडों पर बोया जाता है। बिजाई के बाद बैडों को नमी के लिए पतले कपड़े से ढक दिया जाता है। नए पौधों का अंकुरण  8-10 दिनों में शुरू हो जाता है।
 
45 सैं.मी. ऊंचाई के होने पर पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। नए पौधों की रोपाई 60 x 60 सैं.मी. की मेड़ों पर की जाती है।
 

ज़मीन की तैयारी

शतावरी की रोपाई के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए , 15 सैं.मी. की गहराई तक खोदें। रोपाई तैयार बैडों पर की जाती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Perfection : यह किस्म IARI, नई दिल्ली द्वारा जारी की गई है।
 
U.C.72 : यह किस्म सूखा, फुज़ारियम सूखा और ताप को सहनेयोग्य है। यह रेतली मिट्टी के साथ सामान्य जलवायु में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है।

D.P.A-1 and Selection 841: किस्में भी हिमाचल प्रदेश में उगाई जाने वाली महत्तवपूर्ण किस्में हैं।
 
दूसरे राज्यों की किसमें
 
Satavari (Asparagus racemosus) : यह किस्म अफ्रीका, चीन, श्री लंका, भारत और हिमालय में पायी जाती है। पौधे की ऊंचाई 1-3 मीटर होती है। फूल 3 सैं.मी. लंबे होते हैं ।
 
Satavari (Asparagus sarmentosa Linn.) : यह किस्म सूदरलैंड, बुरशैल और दक्षिण अफ्रीका में पायी जाती है। इस पौधे की ऊंचाई 2-4 मीटर लंबी होती है और फूल 1 इंच लंबा होता है।
 

 

मिट्टी

यह मिट्टी की कई किस्मों जैसे अच्छे जल निकास वाली लाल दोमट से चिकनी मिट्टी, काली मिट्टी से लैटेराइट मिट्टी में उगाई जाती है। यह चट्टानी मिट्टी और हल्की मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। मिट्टी की गहराई 20-30 सैं.मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यह रेतली दोमट से दरमियानी काली मिट्टी जो अच्छे जल निकास वाली हो, में अच्छे परिणाम देती है। पौधे की वृद्धि के लिए मिट्टी की पी एच 6-8 होनी चाहिए।

  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-35°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

आम जानकारी

शतावरी सबसे लाभदायक जड़ी-बूटी है जिसमें मानव शरीर के लिए व्यापक श्रृंख्ला में लाभ होते हैं। यह एक औषधीय पौधा है जिसकी जड़ों का प्रयोग भारत में हर साल 500 टन दवाइयों के उत्पादन में किया जाता है। शतावरी से तैयार दवाइयों का प्रयोग गैस्ट्रिक अल्सर, अपच और तंत्रिका संबंधी विकारों के उपचार के लिए किया जाता है। यह 1-3 मीटर की ऊंचाई के साथ जड़ों का गुच्छा होता है। इसके फूल शाखाओं में होते हैं और 3 सैं.मी. लंबे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के और अच्छी सुगंध वाले होते हैं और 3 मि.मी. लंबे होते हैं। इसका परागकोष जामुनी रंग का और फल जामुनी लाल रंग का होता है। यह अफ्रीका, श्री लंका, चीन, भारत और हिमालय में पायी जाती है। भारत में यह अरूणाचल प्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरला और पंजाब राज्यों में पाया जाता है।