मटर की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

यह फसल लैग्यूमिनसियाइ फैमिली से संबंध रखती है। यह ठंडे इलाकों वाली फसल है। इसकी हरी फलियां सब्जी बनाने और सूखी फलियां दालें बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। भारत में, यह फसल हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटका और बिहार में उगाई जाती है। यह प्रोटीन, अमीनो एसिड, और शर्करा का अच्छा स्त्रोत है। यह फसल पशुओं के लिए चारे के तौर पर भी प्रयोग की जाती है।
हिमाचल प्रदेश में लगभग 3334 एकड़ भूमि पर मटर की खेती की जाती है जिससे 33,334 मीट्रिक टन उपज प्राप्त होती है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
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    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
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    Rainfall

    400-500mm
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    Sowing Temperature

    25-30°C
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    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
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    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों, रेतली दोमट से चिकनी मिट्टी में उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली मिट्टी जिसकी पी एच 6 से 7.5 हो, में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। यह फसल जल जमाव वाले हालातों में खड़ी नहीं रह सकती। अम्लीय मिट्टी के लिए, चूना डालें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

अगेती किस्में
 
Arkal: यह छोटे कद की झुर्रियों वाली, गहरे हरे रंग के दाने वाली किस्म सभी राज्यों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी प्रत्येक फली में 8-9 दाने होते हैं। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए, सितंबर के पहले पखवाड़े में इसकी खेती करें। इसकी औसतन उपज 21-25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
V.L.7: यह छोटे कद की, दाने झुर्रियों वाले, हल्के हरे रंग के होते हैं और प्रत्येक फली में 6-8 दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 21-25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Matar Ageta : यह पी. ए. यू., लुधियाणा की तरफ से तैयार की गई अगेती और छोटे कद की किस्म, बीज उत्पादन के लिए अच्छी है। इसके दाने मुलायम और हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
मुख्य किस्में
 
Punjab 89: यह अधिक उपज वाली किस्म है जो कि कद में लंबी होती है इसकी आकर्षित और चमकदार फलियां होती हैं प्रत्येक फली 10-12 सैं.मी. लंबी होती है और प्रत्येक फली में 9-12 दाने होते हैं। यह दरमियाने समय में पकने वाले मीठे फलों की किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 57 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Palam Priya (D.P.P. 68): यह अधिक उपज वाली किस्म है। यह किस्म पत्तों के सफेद धब्बा रोगों की प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 50-54 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bonvila: यह मध्यम कद की, दाने झुर्रियों वाले, सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, हल्के हरे रंग की फलियां और फलियों में 7-8 बीज होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 40-50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
V.L.3: यह मध्यम कद की, दाने झुर्रियों वाले, कम और दरमियाने क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है, इसकी प्रत्येक फली में 7-8 बीज होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 56-60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kinnauri: इसका पौधा लंबा, गोल बीज और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी हल्के हरे रंग की फलियां होती हैं जिसमें 5-6 दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 41-52 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Solan Nirog: इसकी फलियां 8-10 सैं.मी. लंबी होती हैं और 8-9 बीज होते हैं। यह किस्म 90-95 दिनों में पक जाती है। यह किस्म पत्तों के सफेद धब्बा रोगों की प्रतिरोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 54-57 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
G.C. 477: यह मध्यम कद की किस्म है इसके बीज हरे और झुर्रियों वाली फलियां होती है जो गहरे हरे रंग की होती हैं और 7-8 बीज होते हैं। इसकी पहली कटाई 110-120 दिनों में की जाती है। यह किस्म पत्तों के सफेद धब्बा रोगों की प्रतिरोधक लेकिन अशोचत्य और बैक्टीरियल सूखे की कम प्रतिरोधक है। इसकी औसतन उपज 54-57 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
T 163 (1978): यह दानों के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 150 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन उपज 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RPG 3 (1982): यह दानों के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 125 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन उपज 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह T 163 किस्म से 20-22 प्रतिशत अधिक उपज देती है। यह व्यापक फलीदार किस्म है। यह किस्म जड़ गलन और फली छेदक के प्रतिरोधक है।
 
Rachna (1987): यह किस्म 135-140 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DMR (1996): इस किस्म के पौधे का कद 105-110 सैं.मी. होता है। यह किस्म 130-135 दिनों में तैयार हो जाती है और 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
 
PG 3: यह छोटे कद वाली अगेती किस्म है जो 135 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके फूल सफेद और दाने क्रीमी सफेद होते हैं। यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। ये जल्दी पकने वाली किस्म है इसलिए इस पर सफेद रोग और फली छेदक का हमला कम होता है।
 
Punjab 88: यह पी. ए. यू., लुधियाणा की किस्म है। फलियां गहरी हरी और मुड़ी हुई होती हैं। यह 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी हरी फलियों की औसतन पैदावार 62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Field Pea 48: यह अगेती पकने वाली दरमियाने कद वाली किस्म है। इसके दाने हल्के हरे रंग के मोटे और झुरड़ियों वाले होते हैं। यह 135 दिनों में पकती है। यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी औसतन पैदावार 27 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
अगेते मौसम की किस्में
 
Asauji: आई. ए. आर. आई. की तरफ से तैयार की गई किस्म है।
 
Early Superb: यह इंगलैंड की तरफ से तैयार की गई छोटे कद की किस्म है।
 
Arkel: यह फ्रांस की किस्म है जिसकी पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Little Marvel: यह छोटे कद की इंगलैंड की किस्म है।
 
Alaska
 
Jawahar Matar 3:  इस किस्म की पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jawahar Matar 4: इस किस्म की पैदावार 28 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Matar
 
Hissar Harit
 
मध्य ऋतु की किस्में
 
Bonneville: यह अमरीका की किस्म है जिसकी औसतन पैदावार 36 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Alderman, Perfection New line, T 19
 
Lincon: इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Jawahar Matar 1: इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Jawahar Matar 2
 
Pant Uphar: इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Ooty 1: इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 

ज़मीन की तैयारी

खरीफ ऋतु की फसल की कटाई के बाद, खेत को तैयार करने के लिए हल से 1 या 2 बार जोताई करें। हल से जोतने के बाद 2 या 3 बार तवियों से जोताई करें। जल जमाव से रोकने के लिए खेत को अच्छी तरह समतल कर लेना चाहिए। बिजाई से पहले, खेत की एक बार सिंचाई करें जो कि फसल के अच्छे अंकुरन में सहायक होती है।

बिजाई

बिजाई का समय
कम पहाड़ी क्षेत्रों के लिए
अगेती बिजाई के लिए, बिजाई सितंबर से अक्तूबर और मुख्य किस्मों के लिए, नवंबर महीने में  बिजाई करें।
 
दरमियानी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए
अगेती किस्मों के लिए, बिजाई सितंबर महीने में और मुख्य किस्मों के लिए, बिजाई नवंबर महीने में करें।
 
अधिक पहाड़ी क्षेत्रों के लिए
अगेती किस्मों के लिए, बिजाई मार्च से जून में और मुख्य किस्मों के लिए, बिजाई अक्तूबर-नवंबर महीने में करें।
 
फासला
अगेती किस्मों के लिए, फासला 30 सैं.मी.x50 सैं.मी. और पिछेती किस्मों के लिए, 45-60 सैं.मी.x10 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बीज को मिट्टी में 2-3 सैं.मी. गहरा बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मशीन से मेंड़ बनाकर करें जो कि 60 सैं.मी. चौड़ी होती हैं।
 

बीज

बीज की मात्रा
अगेती किस्मों के लिए, 48-52 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें और मुख्य किस्मों के लिए, 24-30 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले, बीज को कप्तान या थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज को उपचार करें। रासायनिक तरीके से, उपचार के बाद बीज की अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्हें एक बार राइज़ोबियम लैगूमीनोसोरम से उपचार करें। इसमें 10 प्रतिशत चीनी या गुड़ का घोल मिलायें । इस घोल को बीज पर लगाएं और फिर बीज को छांव में सुखाएं। इससे 8-10 प्रतिशत पैदावार में वृद्धि होती है।
 
इनमें से किसी एक फंगसनाशी दवाई का प्रयोग करें
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Captan 3gm
Thiram 3gm
Carbendazim 2.5gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MOP
40 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
18 24 24

 

बिजाई के लिए नाइट्रोजन 18 किलो (40 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। खादों की पूरी मात्रा पंक्तियों में डाल दें।

 

 

सिंचाई

अच्छे अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई करनी चाहिए। यदि फसल धान के बाद बोयी जाती है तो सिंचाई की कोई जरूरत नहीं। बिजाई के बाद 1 या 2 सिंचाइयों की जरूरत होती है। पहला पानी फूल लगने से पहले और दूसरा पानी फलियां बनने के समय लगाएं। ज्यादा पानी ना लगाएं जिस कारण पत्ते पीले और पैदावार कम हो जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

एक या दो गोडाई करना यह किस्म पर निर्भर करता है। पहली गोडाई, फसल की बिजाई के 3-4 सप्ताह बाद या जब फसल 2 या 3 पत्ते निकाल लेती है और दूसरी गोडाई, फूल निकलने से पहले करें। मटरों की खेती के लिए नदीन नाशकों का प्रयोग बहुत प्रभावशाली होता है। नदीनों की रोकथाम के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ या बसालिन 1 लीटर प्रति एकड़ का प्रयोग फसल बीजने से 48 घंटों के अंदर करें।

पौधे की देखभाल

मटर के पत्तों का कीड़ा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
मटर के पत्तों का कीड़ा : सुंडियां पत्तों में सुरंग बनाकर पत्ते को खाती है। जिस कारण 10 से 15 प्रतिशत तक फसल ko नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 30 ई सी 300 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी प्रति एकड़ में डालकर प्रयोग करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।
 
चेपा और जूं
तेला और चेपा : यह पत्तों का रस चुसते हैं जिस कारण पत्ता पीला हो जाता है और पैदावार कम हो जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 30 ई सी 400 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी प्रति एकड़ में डालकर प्रयोग करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।
 
फली छेदक
फली छेदक : यह मटरों की फसल का खतरनाक कीड़ा है। यदि इस कीड़े की रोकथाम जल्दी ना की जाये तो यह फूलों और फलियों को 10 से 90 प्रतिशत नुकसान पहुंचाता है।
 
शुरूआती नुकसान के समय कार्बरिल 900 ग्राम को प्रति 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें। जरूरत के अनुसार 15 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें। ज्यादा नुकसान के समय 1 लीटर क्लोरपाइरीफॉस या एसीफेट 800 ग्राम को 100 लीटर पानी में डालकर स्प्रे वाले पंप से प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

 

सूखा
  • बीमारियां और रोकथाम
सूखा : इस बीमारी के कारण जड़ें काली और बाद में सूख जाती हैं। पौधा छोटा और रंग बिरंगा हो जाता है। पत्ते पीले होकर किनारों से मुड़ जाते हैं। सारा पौधा मुरझा जाता और तना सूख जाता है।
 
बिजाई से पहले, बीज को थीरम 3 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचार कर लेना चाहिए और अगेती बिजाई ना करें इससे क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होते हैं। तीन साल का फसली चक्र अपनायें। ज्यादा नुकसान होने की हालत में कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर पौधे की जड़ों के साथ साथ छिड़काव करें। लैथीरस वीसिया जैसे नदीनों को नष्ट कर दें।
 
कुंगी
कुंगी : इससे पौधे के पत्ते, टहनियां, फलियों और तने पर पीले भूरे रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए 400 ग्राम इंडोफिल M-45 100 लीटर पानी में या मैनकोजेब 25 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिन के फासले पर छिड़काव करें।
 
पत्तों पर सफेद धब्बे
पत्तों पर सफेद धब्बे : पौधे के पत्ते के निचले हिस्से, फलियां और तने के ऊपर सफेद रंग के धब्बे हो जाते हैं। यह नुकसान फसल के किसी भी पड़ाव पर हो सकता है। इसके कीट पौधे को अपने भोजन स्त्रोत के रूप में उपयोग करते हैं। ये फसल की किसी भी अवस्था में विकसित हो सकते हैं। ज्यादा हमला होने पर पौधा गिर भी जाता है।
 
इसकी रोकथाम के लिए 80 मि.ली कराथेन 40 ई सी को 100 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर छिड़काव करें। इसके तीन छिड़काव 10 दिनों के फासले पर करें। 
 

फसल की कटाई

हरे मटरों की सही पड़ाव पर तुड़ाई जरूरी है। जब मटरों का रंग गहरे से हरा होना शुरू हो, जितनी जल्दी हो सके तुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए। इसकी 4 से 5 तुड़ाइयां 6 से 10 दिनों के फासले पर की जा सकती हैं फसल की पैदावार उसकी किस्म, मिट्टी और सांभ संभाल पर निर्भर करता है।

कटाई के बाद

लंबे समय तक हरी फलियों को कम तापमान पर स्टोर करके रखा जा सकता है। इनकी पैकिंग गनी बैग, गत्ते के बक्से, प्लास्टिक कंटेनर और बांस की टोकरी में की जाती है।