प्याज़ (रबी) की फसल

आम जानकारी

प्याज़ एक प्रसिद्ध व्यापक सब्जी वाली प्रजाति है| इसको रसोई के कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है| इसके इलावा इसके कड़वे रस के कारण इसे कीटों की रोकथाम, कांच और पीतल के बर्तनों को साफ करने के लिए और प्याज़ के घोल को कीट-रोधी के तौर पर पौधों पर स्प्रे करने के लिए प्रयोग किया जाता है| भारत, प्याज़ की खेती में क्षेत्र के तौर पर दूसरे और उत्पादन के तौर पर चीन के बाद दूसरे स्थान पर है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

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    Harvesting Temperature

    20-30°C
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    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

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    20-30°C
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    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    650-750mm
  • Season

    Sowing Temperature

  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C

मिट्टी

इसकी खेती अलग-अलग तरह की मिट्टी जैसे कि रेतली दोमट, चिकनी, गार और भारी मिट्टी में की जा सकती है| यह फसल गहरी दोमट और जलोढ़ मिट्टी, जिसका निकास प्रबंध बढ़िया,  नमी को बरकरार रखने की क्षमता, जैविक तत्वों वाली मिट्टी में बढ़िया परिणाम देती है| विरली और रेतली मिट्टी इसकी खेती के लिए बढ़िया नहीं मानी जाती है, क्योंकि मिट्टी के घटिया जमाव और कम उपजाऊ-पन के कारण इस में गांठों का उत्पादन सही नहीं होता है| इसकी खेती के लिए मिट्टी की pH 6-7 होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Nasik Red:  इस किस्म की गांठे लाल रंग की, ज्यादा देर तक रहने वाली होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 85-100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह निचली और मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है।
 
Agrifound Dark Red: यह किस्म नासिक द्वारा जारी की गई है। इसकी गांठे गोलाकार आकार की और गहरे लाल रंग की होती हैं। यह किस्म रोपाई के बाद 150-160 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 83-105 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Brown Spanish: इसकी गांठे गोल और अंडाकार आकार की होती हैं। यह किस्म लाल भूरे रंग की और छिल्का मोटा होता है। यह किस्म ऊंची पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है।
 
Palam Lohit: यह आकर्षित गहरे लाल रंग की किस्म है। इसकी गांठे गोल आकार की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
PRO 6: इस किस्म का कद मध्यम होता है। प्याज गहरे लाल रंग के होते हैं। गांठे मध्यम बड़ी और गोल होती हैं। यह किस्म रोपाई के बाद 120 दिनों तक तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 175 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| इसके प्याज़ ज्यादा समय तक रखे जा सकते है| 
 
Punjab Naroya:  इस किस्म का कद मध्यम होता है। प्याज गहरे लाल रंग के होते हैं। गांठे मध्यम बड़ी और गोल होती हैं। यह किस्म रोपाई के बाद  145 दिनों तक तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह जामुनी धब्बों के रोग को सहनेयोग्य किस्म है| 
 
Bhima Kiran: यह रबी के मौसम में उगानेयोग्य किस्म है| इसके प्याज़ हल्के लाल रंग के और गोल से अंडाकार होते है| यह किस्म 130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की गांठों को लंबे समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है। इसकी औसतन पैदावार 165 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bhima Shakti: यह खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगानेयोग्य किस्म है| यह किस्म रोपाई के बाद 130 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 170 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
 
Bhima Shweta: यह रबी के मौसम में उगानेयोग्य किस्म है| इसके प्याज़ सफेद और गोल होते है| यह किस्म पनीरी लगाने से 110-115  दिनों तक तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 160  क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
 
Early Grano: यह किस्म आई. ऐ. आर. आई., नई दिल्ली द्वारा तैयार की गई है| इसके प्याज़ पीले रंग के होते है| यह खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगानेयोग्य किस्म है|  इसकी औसतन पैदावार  200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए तीन-चार बार गहराई से जोताई करें| मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए रूड़ी की खाद डालें| फिर खेत को छोटे-छोटे प्लाटों में बांट दें| यदि सल्फर की कमी दिखे तो जिप्सम 165 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें और मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।

बीज

बीज की मात्रा
3.3 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
उखेड़ा रोग और कांगियारी से बचाव के लिए, थीरम 2 ग्राम+बेनोमाइल 50 डब्लयू पी 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति किलो बीज का उपचार करें| रासायनिक उपचार के बाद, बायोएजेंट ट्राईकोडरमा विराइड 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करने की सिफारिश की जाती है| यह नए पौधे को मिट्टी से पैदा होने वाली और अन्य बीमारीयों से बचाता है।
 

बिजाई

बिजाई का समय
रबी मौसम के लिए :  बिजाई नवंबर-दिसंबर महीने में की जाती है।
मध्यम पहाड़ी क्षेत्रों  में :  अक्तूबर-नवंबर
ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में : अप्रैल
 
फासला
रोपाई के समय, कतारों में 15 सैं.मी. और पौधों में 5-8 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
नर्सरी में, बीज 1-2 सैं.मी. गहराई पर बोयें|
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए, रोपण विधि का प्रयोग करें|
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP
MOP
105 200 16

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN

PHOSPHORUS

POTASH
48 30 9

 

बिजाई से 10 दिन पहले 20 टन रूड़ी की खाद डालें| नाइट्रोजन 47 किलो(यूरिया 105 किलो), फासफोरस 32 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 200 किलो) और पोटाश 24 किलो(म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 42  किलो) प्रति एकड़ में डालें| फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई के समय डालें| बाकि बची नाइट्रोजन टॉप ड्रेसिंग (मिट्टी में मिलाना) के तौर पर रोपाई के चार हफ्ते बाद डालें|
 
पानी में घुलनशील खादें : रोपण से 10-15 दिन बाद NPK 19:19:19@ 10 ग्राम के साथ  सूक्ष्म-तत्व  2.5-3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
 

 

 

सिंचाई

मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर सिंचाई की मात्रा और आवर्ती का फैसला करें| बिजाई या रोपाई के समय या 3-4 दिन बाद मिट्टी में नमी के लिए सिंचाई करें और फिर आवश्यकता अनुसार 10-15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें|

खरपतवार नियंत्रण

शुरुआत में, नए पौधे धीरे-धीरे बढ़ते हैं| इसलिए नुकसान से बचाव के लिए गोड़ाई की जगह रासायनिक नदीन-नाशक का प्रयोग करें| नदीनों की रोकथाम के लिए , बिजाई से 72 घंटे के बीच पैंडीमैथालीन (स्टंप) 1 लीटर को  150 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें| नदीनों के अंकुरण के उपरांत बिजाई से 7 दिन बाद ऑक्सीफ्लोरफेन 200 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें| नदीनों की रोकथाम के लिए,  2-3 गोड़ाई की सिफारिश की जाती है| पहली गोड़ाई बिजाई से एक महीने बाद और दूसरी गोड़ाई, पहली गोड़ाई से एक महीने के बाद करें|

पौधे की देखभाल

थ्रिप्स
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
थ्रिप्स : यदि इन्हे न रोका जाये तो यह पैदावार को 50% तक नुकसान पहुंचाते हैं | यह ज्यादातर शुष्क मौसम में पाए जाते हैं| यह पत्तों का रस चूसते हैं, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते है, कप के आकार के हो जाते है या ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं |
 
थ्रिप्स के हमले की जाँच के लिए 6-8 नीले चिपके कार्ड प्रति एकड़ लगाएं| अगर इनका हमला दिखाई दें तो फिप्रोनिल (रीजेंट) 30 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें, या प्रोफैनफोस 10 मि.ली. या कार्बोसल्फान 10 मि.ली.+ मैनकोजेब 25 ग्राम प्रति 10 लीटर की स्प्रे 8-10 दिनों के फासले पर करें|
 
सफेद सुंडियां
सुंडियां : आम-तौर पर इनका हमला जनवरी-फरवरी महीने में होता है| यह पौधे की जड़ों को खाते है, जिस कारण पत्ते भूरे हो जाते हैं| इससे पौधे का शिखर गीला रहने लग जाता है|
 
यदि इसका हमला दिखाई दें तो कार्बरील 4 किलो या फोरेट 4 किलो मिट्टी में डालें और हल्की सिंचाई करें| सिंचाई वाले पानी या मिट्टी में मिलाकर क्लोरपाइरीफोस 1.5 लीटर प्रति एकड़ में डालें|
 
जामुनी धब्बे और तने का झुलस रोग
  • बीमारीयां और रोकथाम
जामुनी धब्बे और तने का झुलस रोग: गंभीर हमले के दौरान यह बीमारी फसल की पैदावार की 70% तक नुकसान पहुँचाती है| इससे पत्तों पर जामुनी रंग के धब्बे पड़ जाते है| इसकी पीली धारियां भूरी हो जाती है और तीखी और लम्बी हो जाती है|
 
इसकी रोकथाम के लिए प्रोपीनेब 70 % डब्लयू पी 350 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ 10 दिनों के फासले पर दो स्प्रे करें|
 

फसल की कटाई

सही समय पर पुटाई करना बहुत जरूरी है| पुटाई का सही समय, ऋतु, मंडी रेट आदि पर निर्भर करते है| 50% पत्तियों का नीचे की तरफ गिरना दर्शाता है कि फसल पुटाई के लिए तैयार है| फसल की पुटाई हाथों से प्याज़ को उखाड़ कर की जाती है| पुटाई के बाद प्याज़ों को 2-3 दिन के लिए अनावश्यक नमी को निकालने के लिए खेत को छोड़ दें| 

कटाई के बाद

पुटाई के बाद, पूरी तरह सूखने के बाद गांठों को आकार के अनुसार छांट ले|