पालक की फसल

आम जानकारी

पालक का मूल स्थान केंद्रीय और पश्चिमी एशिया है और यह अमरांथासियेइ प्रजाति से संबंध रखती है। यह एक सदाबहार सब्जी है और पूरे विश्व में इसकी खेती की जाती है। इसको हिंदी में "पालक" कहा जाता है| यह आयरन, विटामिन का उच्च स्त्रोत और एंटीऑक्सीडेंट होता है। इसके बहुत सारे सेहतमंद फायदे हैं। यह बीमारीयों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है| यह पाचन के लिए, त्वचा, बाल, आंखों और दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। इससे कैंसर-रोधक और ऐंटी ऐजिंग दवाइयां भी बनती है| भारत में आंध्रा प्रदेश, तेलंगना, केरला, तामिलनाडू, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और गुजरात आदि पालक उत्पादक के राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    80-120cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    80-120cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    80-120cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    80-120cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C

मिट्टी

पालक को मिट्टी की कई किस्मों जो अच्छे जल निकास वाली होती हैं, में उगाया जाता है| पर यह रेतली चिकनी और जलोढ़ मिट्टी में बढ़िया परिणाम देती है। तेजाबी और जल जमाव वाली मिट्टी में पालक की खेती करने से बचाव करें। इसके लिए मिट्टी का pH 6 से 7 होना चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Pusa Harit: इस किस्म का पौधा सीधा और पत्ते मोटे होते हैं| यह किस्म निचले और मध्यवर्ती क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल है| इसकी औसतन पैदावार 62.5-84 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

Benarji joint: यह किस्म सब क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुकूल है| इसकी औसतन पैदावार 62.5-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

दूसरे राज्यों की किस्में

Punjab Green:  इसके पत्ते अर्द्ध सीधे और गहरे चमकीले के होते है| बिजाई के बाद यह 30 दिनों में कतई के लिए तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| इसमें ऑक्सेलिक एसिड की मात्रा कम होती है|

Punjab Selection:  इसके पत्ते हल्के हरे रंग के, पतले, लम्बे और संकीर्ण होते है| इसके पत्ते स्वाद में हल्के खट्टे होते है| इस किस्म का तना जामुनी रंग का होता है| इसकी औसतन पैदावार 115 क्विंटल प्रति एकड़ होती है

Other variety: Pusa jyoti, Pusa Palak, Pusa harit, Pusa Bharati

ज़मीन की तैयारी

ज़मीन को भुरभुरा करने के लिए, 2-3 बार जोताई करें| जोताई के बाद सुहागे से मिट्टी को समतल करें। बैड तैयार करें और सिंचाई करें।

बिजाई

बिजाई का समय
निचले क्षेत्रों में: जुलाई-नवंबर, फरवरी-मार्च
मध्यवर्ती क्षेत्रों में: जुलाई-अक्तूबर, फरवरी-अप्रैल
ऊंचे क्षेत्रों में: मार्च-जून

फासला
बिजाई के लिए, कतारों में 25-30  सैं.मी. और पौधों में का फासला 5-7 सैं.मी. रखें।

बीज की गहराई
बीज को 3-4 सैं.मी की गहराई में बोयें|

बिजाई का ढंग
बिजाई कतारों या बुरकाव द्वारा की जा सकती है।

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 10-12.5 किलो प्रति एकड़ बीजों की आवश्यकता होती है।

बीज का उपचार
अंकुरन की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए बिजाई से पहले बीजों को 12-24 घंटे तक पानी में भिगो दें।

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
62 132 20

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
28 21 12

 

 

बढ़िया पैदावार के लिए, अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 40 क्विंटल और नाइट्रोजन 28 किलो (62 किलो यूरिया), फासफोरस 21 किलो (सुपरफासफेट 132 किलो) पोटाश 12 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ में डालें। गले हुए गाय के गोबर और फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई से पहले डालें। बाकी की नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में प्रत्येक कटाई के समय डालें। खाद डालने के बाद हल्की सिंचाई करें।

सिंचाई

बीज की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए और अच्छी पैदावार के लिए नमी की मात्रा कही होनी चाहिए| मिट्टी में अच्छी तरह से नमी मौजूद ना हो तो, बिजाई से पहले सिंचाई करें|
बिजाई के बाद पहली सिंचाई करें। गर्मी के महीने में, 4-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें जब कि सर्दियों में 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। ज्यादा सिंचाई करने से परहेज़ करें। ध्यान रखें की पत्तों के ऊपर पानी ना रहे क्योंकि इससे बीमारी का खतरा और गुणवत्ता में कमी आती है। ड्रिप सिंचाई पालक की खेती के लिए लाभदायक सिद्ध होती है|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को दो से तीन गोडाई की जरूरत होती है और गोडाई से मिट्टी को हवा मिलती है। रासायनिक तरीके से नदीनों की रोकथाम के लिए पायराज़ोन 1-1.12 लीटर का प्रति एकड़ में प्रयोग करें। बाद में नदीन-नाशक के उपयोग से बचें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा:  इसका हमला दिखाई दें तो, मैलाथियॉन 50 ई सी 350 मिली को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। मैलाथियॉन की स्प्रे के बाद तुरंत कटाई ना करें। स्प्रे के 7 दिनों के बाद कटाई करें।

  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों पर गोल धब्बे: पत्तों पर, छोटे गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, बीच से सलेटी और लाल रंग के धब्बे  पत्तों के किनारों पर दिखाई देते हैं। बीज फसल में यदि इसका हमला दिखाई दें तो, कार्बेनडाज़िम 200 ग्राम या इंडोफिल एम 45, 600 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि आवश्यकता हो तो दूसरी स्प्रे 15 दिनों के अंतराल पर करें।

फसल की कटाई

किस्म के आधार, फसल बिजाई के 25-30 दिनों के बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के लिए तीखे चाकू या दराती का प्रयोग किया जाता है। कटाई किस्म और जलवायु के आधार पर 20-25 दिनों के अंतराल पर लगातार की जानी चाहिए।

बीज उत्पादन

बीज की उत्पादन के लिए, 50 सैं.मी.x 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। पालक की खेती के लिए लगभग 1000 मीटर का फासला होना चाहिए। प्रत्येक पांच पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़नी चाहिए, जो कि खेत के परीक्षण के लिए जरूरी है। बीमार पौधों को हटा दें, पत्तों में विभिन्नता दिखाने वाले पौधों को हटा दें। जब बीज भूरे रंग के हो जाएं तब फसल की कटाई करें। कटाई के बाद पौधों को सुखने के लिए एक सप्ताह के लिए खेत में ही रहने दें। अच्छी तरह से सूखने के बाद, बीज लेने के लिए फसल की छंटाई करें।