टिंडा सबजी के बारे में जानकारी

आम जानकारी

यह उत्तरी भारत की सबसे महत्तवपूर्ण गर्मी की सब्जी है। चप्पन कद्दू का मूल भारत है। यह कुकुरबिटएसी के परिवार से संबंधित है। इसके कच्चे फल सब्जी बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। 100 ग्राम अनपके फल में 1.4 प्रतिशत प्रोटीन, वसा 0.4 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 3.4 प्रतिशत, कैरोटीन 13 मि.ग्रा. और विटामिन 18 मि.ग्रा. होते हैं। इसके फल की औषधीय विशेषताएं भी हैं। सूखी खांसी और रक्त संचार सुधारने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
 
हिमाचल प्रदेश में टिंडे की फसल को कम और दरमियाने पर्वतीय क्षेत्रों में नकदी फसल के तौर पर उगाया जाता है। यह जल्दी पकने वाली फसल है। निचले क्षेत्रों में, इस फसल को दिसंबर-जनवरी के महीने में नदी के नज़दीक (सवान नदी) उगाया जाता है। यह फसल मार्च-अप्रैल के महीने में तैयार हो जाती है। यह दरमियाने पर्वतीय क्षेत्रों (कुल्लू की पहाड़ियों) में प्रसिद्ध फसल है। 
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C
  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C
  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C
  • Season

    Temperature

    10-28°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-20°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-28°C

मिट्टी

अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए, अच्छे निकास वाली, उच्च जैविक तत्वों वाली रेतली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी की पी एच 6 से 7 होनी चाहिए। यह मिट्टी के पास ऊंची पानी वाली जगह में उगाने पर भी अच्छे परिणाम देती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Australian Green : इस किस्म के गहरे हरे रंग के फल होते हैं जिनके ऊपर हल्की धारियां बनी होती हैं और फल आकार में लंबे होते हैं।
 
Pusa Alankar : यह एक हाइब्रिड किस्म है, इसके फल हल्के रंग के, फल पर चमकदार धारियां और आकार में लंबे होते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Tinda 48 : इस किस्म की बेलें 75 से 100 सैं.मी. लंबी होती हैं। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के और फल मध्यम आकार के होते हैं। फल गोल आकार में चमकदार हल्के हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  
 
Tinda Ludhiana : इसके फल हल्के हरे, मध्यम आकार के और चपटे गोल आकार के होते हैं। प्रत्येक बेल पर 8-10 फल होते हैं। फल का गुद्दा नर्म, हल्का सफेद, कम बीज और पकने की गुणवत्ता अच्छी होती है। यह किस्म बिजाई के 60 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 18-24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
 
Arka Tinda : यह किस्म , बैंगलौर द्वारा विकसित की गई है।
 
Anamalai Tinda

Mahyco Tinda
 
Swati : इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। यह दो महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक ज़मीन की जोताई करें। गाय का गला हुआ गोबर 8-10 किलो खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ में डालें। खेती के लिए बैड तैयार करें। बीज को गड्ढों या खालियों में बोया जा सकता है।

बिजाई

बिजाई का समय
निचले क्षेत्रों में: सिंचित क्षेत्रों में, फरवरी-मार्च के महीने में और सवान क्षेत्रों में, दिसंबर जनवरी के महीने में बिजाई की जाती है।
 
फासला
कतारों में 90 सैं.मी. और पौधे में 60 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। प्रत्येक जगह पर 2-3 बीज बोयें और फिर सेहतमंद पौधे 1या 2 ही लगाएं।
 
बीज की गहराई
बीजों को 2-3 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बीज को सीधे बैड पर या मेंड़ पर बोया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
प्रत्येक जगह पर 2-3 बीज बोयें। एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 2.5-3.4 किलो बीज की मात्रा पर्याप्त होती है।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले 12-24 घंटे के लिए बीज को पानी में भिगो दें। इससे उनकी अंकुरन प्रतिशतता में वृद्धि होती है। मिट्टी से होने वाली फंगस से बचाने के लिए कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, बीज को ट्राइकोडरमा विराइड 2.5 ग्राम या स्यूडोमोनास फलूरोसैंस 10 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 3gm
Thiram 2.5gm
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़) 

UREA SSP MOP
84 130 38

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)  

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
38 21 22

 

टिंडे की पूरी फसल को नाइट्रोजन 38 किलो (यूरिया 84 किलो), फासफोरस 21 किलो (एस एस पी 130 किलो) और पोटाश 22 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 38 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा शुरूआती समय में डालें।

    

 

सिंचाई

इसे लगातार सिंचाई की जरूरत होती है क्योंकि यह कम समय की फसल है। यदि बीज को सिंचाई से पहले खालियों में बोया जाये, तो पहली सिंचाई बिजाई के बाद दूसरे या तीसरे दिन करें। गर्मियों के मौसम में 4-5 दिन के अंतराल पर  जलवायु, मिट्टी की किस्म, के अनुसार सिंचाई करें। बारिश के मौसम में बारिश की आवृति के आधार पर सिंचाई करें। चप्पन कद्दू ड्रिप सिंचाई देने पर अच्छा परिणाम देता है और 28 प्रतिशत उपज बढ़ जाती  है।

खरपतवार नियंत्रण

काली पॉलीथीन मल्च का प्रयोग करने से नदीनों की रोकथाम होगी और मिट्टी में भी नमी बनी रहेगी। खेत को नदीनों से मुक्त करने के लिए हाथों से गोडाई करें और नदीनों की जांच करते रहें। बिजाई के 15-20 दिनों के बाद हाथों से गोडाई करें। नदीनों की तीव्रता के आधार पर बाकी की गोडाई करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तेला और चेपा : ये पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं। तेले के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे पत्तों का आकार कप की तरह हो जाता है और पत्ते ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं।
 
यदि खेत में इसका हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे : इस रोग से पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, इससे पौधे का तना भी प्रभावित होता है। ये पत्तों को खाद्य स्त्रोत के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके हमले के कारण फल समय से पहले ही पक जाता है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो पानी में घुलनशील सलफर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।
 
एंथ्राक्नोस : एंथ्राक्नोस से प्रभावित पत्ते झुलसे हुए दिखने लगते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला खेत में दिखे तो मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

किस्म के आधार पर बिजाई के 60 दिनों में फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब फल पक जाएं और मध्यम आकार के हो जायें तब तुड़ाई कर लें। 4-5 दिनों के अंतराल पर तुड़ाई करें। इसकी औसतन पैदावार 105-125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

बीज उत्पादन

टिंडे की अन्य किस्मों से 800 मीटर का फासला रखें। प्रभावित पौधों को खेत में से बाहर निकाल दें, जब फल पक जाएं तब वे हल्के रंग के हो जाते हैं, फिर उन्हें ताजे पानी में डालकर हाथों से मसलदिया जाता है जिससे गुद्दे से बीज अलग हो जाते हैं। बीज, जो नीचे सतह पर बैठ जाते हैं, उन्हें बीज उद्देश्य के लिए इकट्ठा कर लिया जाता है।